स्वामी श्रद्धानंद -- बलिदान दिवस --------कोटि-कोटि बंदन.

 स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती का बलिदान आर्य समाज की परंपरा

स्वामी जी महान क्रन्तिकारी देश भक्त संत थे वे अपने गुरु महर्षि दयानंद सरस्वती के अनन्य भक्त और उनके उद्देश्यों के प्रति समर्पित शिष्य थे, वेदों के प्रचार वैदिक साहित्य के लिए गुरुकुलो की स्थापना देश आज़ादी हेतु हजारो क्रांतिकारियों की श्रृंखला खड़ा की--- वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, और आर्य जाती की रक्षा के लिए, मरणासन्न अवस्था से उसे पुनः प्राणवान, गतिवान बनाने की लिए उसे सर्बोच्च शिखर पर पहुचने हेतु आर्य समाज ने सैकणों बलिदान दिए है उसमे प्रथम पंक्ति की प्रथम पुष्प स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती थे, इनके पिता जी का नाम नानकचंद था इनका बचपन का नाम मुंशीराम था पद्धने में मेधावी परन्तु बड़े ही उदंड स्वभाव के थे पिता जी पुलिस इंस्पेक्टर थे, बालक के नास्तिक होने के कारन पिता जी बड़े ही असहज महसूस करते थे, सम्बत १९३६ में महर्षि दयानंद सरस्वती बरेली पधारे पिता जी इनको उनके प्रवचन के लिए लेकर गए उनके उपदेशो को सुनकर प्रभावित ही नहीं हुए बल्कि उनके प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो गया लेकिन नास्तिकता का भाव नहीं गया उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा नास्तिकता तो समाप्त हो ही गयी उनके मन में पुनर्जन्म के प्रति भी जो अनास्था थी समाप्त हो गयी और आर्यसमाज के निकट आ गए । 

आर्य समाज जालंधर के अध्यक्ष

 वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला के अध्यक्ष हो गए उनका सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ हो गया, एक बार घूमते-घूमते हिमालय के कंदराओ में जा पहुचे उन्हें प्यास लगी पानी खोजते-खोजते एक गुफा दिखाई दी कम्मंडल बाहर रखा था स्वामी जी ने देखा की एक महात्मा उसी गुफा में खड़ा तपस्या में लीन है, श्रद्धानंद जी उस महात्मा से निवेदन करने लगे की आप बाहर आये भारत पर बिपत्ति है देश गुलाम है गो हत्या हो रही है भारत माता की अस्मत लुटी जा रही है आप जैसे महात्मा यदि कंदराओ में अपनी ब्यक्तिगत मोक्ष के लिए तपस्या करते रहेगे तो देश का क्या होगा--? लेकिन उस महात्मा के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था, वे वापस एक गाव में आ गए दुसरे दिन फिर उस संत से मिलने पहुचे और वही आग्रह दुहराने लगे महात्मा पर कोई असर नहीं होता देख उन्होंने कहा की यदि आप नहीं निकलेगे तो मै यही बैठता हूँ, स्वामी जी की बात सुनकर वो महात्मा मुस्कराया और कहा की तुम्हारा नाम स्वामी श्रद्धानंद है तुम पंजाब के रहने वाले हो, तुम्हारी आत्मा महान तपस्वी है इसके बगल में एक और गुफा है उसमे आप भी खड़े हो जाओ बहुत ही शांति मिलेगी, स्वामी जी ने कहा मै महर्षि दयानंद का शिष्य हूँ देश और धर्म की रक्षा हेतु ही मेरा जन्म हुआ है पीछे नहीं हट सकता उस सन्यासी ने कहा की मै भी तुम्हारी तरह हिन्दू समाज के लिए काम करता था यह समाज मरने के लिए पैदा हुआ है निराश होकर मै यह आनंद ले रहा हू तुम भी बगल की गुफा में खड़े हो जाओ ----! मेरे गुरु का आदेश है भारत की स्वतंत्रता भारत की सुरक्षा और धर्म की रक्षा के साथ बिधर्मी हुए बंधुओ की घर वापसी, उस सन्यासी ने स्वामी जी से कहा की तुम नवजवान हो जिस देश का नवजवान खड़ा हो जाता है वह देश दौड़ने लगता है, स्वामी जी ने आर्य समाज के माध्यम से हजारो देश भक्त नवजवानों को खड़ा कर दिया और  क्रांतिकारियों की ऐसी श्रंखला से देश दौड़ने लगा। 

 सुद्धि आन्दोलन

स्वामी श्रद्धानंद जी ने गुरुकुल प्रारंभ करके देश में पुनः वैदिक शिक्षा को प्रारंभ कर महर्षि दयानंद द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो को प्रचार-प्रसार व कार्यरूप में परिणित किया, वेद और आर्य ग्रंथो के आधार पर जिन सिद्धांतो का प्रतिपादन किया था उन सिद्धांतो को कार्य रूप में लाने का श्रेय स्वामी श्रद्धानंद जी को ही है, गुरुकुल कांगड़ी की स्थापना, अछूतोद्धार, शुद्धि, सद्धर्म प्रचार पत्रिका द्वारा धर्म प्रचार, सत्य धर्म के आधार पर साहित्य रचना, वेद पढने व पढ़ाने की ब्यवस्था करना, धर्म के पथ पर अडिग रहना, आर्य भाषा के प्रचार तथा उसे जीवको -पार्जन की भाषा बनाने का सफल प्रयास, आर्य जाती के उन्नति के लिए हर प्रकार से प्रयास करना आदि ऐसे कार्य है जिनके फलस्वरुप स्वामी श्रद्धानंद अनंत काल के लिए अमर हो गए, उनका सर्बाधिक महानतम जो कार्य था, वह शुद्धि सभा का गठन जहाँ-जहाँ आर्य समाज था वहाँ-वहाँ सुद्धि सभा का गठन कराया और सुद्धि- आन्दोलन का रूप ले लिया भारत जगने लगा । 

और बलिदान हो गए

उन्होंने [स्वामी श्रद्धानंद जी ]ने पश्चिम उत्तर प्रदेश के ८९ गावो के हिन्दू से हुए मुसलमानों को पुनः हिन्दू धर्म में सामिल कर आदि जगद्गुरु शंकराचार्य के द्वारा शुरू की परंपरा को पुनर्जीवित किया और समाज में यह विस्वास पैदा किया की जो बिधर्मी हो गए है वे सभी वापस अपने हिन्दू धर्म में आ सकते है देश में हिन्दू धर्म में वापसी के वातावरण बनने से लहर सी आ गयी, राजस्थान के मलकाना क्षेत्र के एक लाख पच्चीस हज़ार मुस्लिम राजपूत यानी मलकाना राजपूतो की घर वापसी उन्हें भारी पड़ी,  वे देश के आज़ादी के अग्रगणी नेता थे गाँधी जी को महात्मा की उपाधि देने वाले वही थे उन्होंने देश जाती, धर्म की रक्षा -यज्ञ में अपने जीवन की आहुति दे डाली, (मुल्ला-मौल्बियो) बिधर्मियो को बर्दास्त नहीं हुआ, २३ दिसंबर १९२६ को एक धर्मांध मुस्लिम युवक अब्दुल रशीद ने उन्हें गोली मारकर हत्या कर दी, वे अमर होकर आज भी हमारे प्रेरणा श्रोत बने हुए है, आइये उनके उद्देश्यो, उनके बिचारो पर चल कर उनको श्रद्धांजलि दें-! 

घर वापसी ही असली श्रद्धांजलि

आइये बिछुड़े हुए बंधुओ की घर वापसी कर -उनके लिए यही सच्ची श्रद्धांजलि अर्पित करे यही देश भक्ति, भारत भक्ति और यही हमारी राष्ट्र आराधना भी है हम इस यज्ञ में आहुति जरुर डालेगे तभी स्वामी श्रद्धानंद की आत्मा को शांति मिलेगी ।