हरिहरनाथ मुक्तिनाथ सांस्कृतिक यात्रा-- धार्मिक एवं राष्ट्रीय एकता का प्रतीक .

       नेपाल के मुक्तिनाथ यानी मानसरोवर से आती जलधारा काली गण्डकी का स्वरुप लेते हुए  बिहार में नारायणी नदी जिसे विष्णु भगवान की मान्यता प्राप्त है वह नदी स्वयं ही नारायण का स्वरुप है के कारन जानी जाती है, इसकी मान्यता है इसके गर्भ में  भगवान सालिग्राम के स्वरुप में नारायण पाए जाते है. पुरानो में वर्णित है कि हरिहर क्षेत्र भगवान का चरण स्थान है देवघाट भगवान का नाभि स्थान और मुक्तिनाथ भगवान का श्री मुख है दामोदर कुंड भगवान का शिखा स्थान है, अपने यहाँ छः तीर्थ क्षेत्र माने जाते है जिसमे हरिहर क्षेत्र एक है, ऐसी मान्यता है की नेपाल में त्रिबेनी स्थान पर इसी नदी में गज-गृह क़ा युद्ध शुरू हुआ था, गजेन्द्र मोक्ष यही हरिहर यानी सोनपुर जो गंगा जी गण्डकी के संगम पर स्थित है यही हुआ था, भगवान विष्णु यही प्रकट होने के कारण यह स्थान हरिहार नाम के नाते जाना जाता है त्रिबेनी से हरिहर नाथ [सोनपुर] ३०० की.मी. है यह पुण्य क्षेत्र माना जाता है इसी नारायणी नदी के किनारे -किनारे साधू -संत यात्रा किया करते थे इसी रास्ते जगद्गुरु रामानंदाचार्य, रामानुजाचार्य, स्वामी नारायण और पूज्य प्रभुदत्त ब्रम्हचारी ने भी यात्रा की जहा -जहा ब्रम्हचारी जी रुके थे आज भी वे गाव को यादगार बने हुए है उनके साहित्य में उल्लेख मिलता है, इस नदी के किनारे हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ की यात्रा आज भी संतो की पैदल यात्रा १७ दिनों में पूरी होती है, मार्ग में बड़ी-बड़ी धर्मशालाए रहने के स्थान बने हुए है इस पर रामानुज संप्रदाय क़ा बहुत बड़ा काम था जो बिगत काल में समाप्त सा हो गया है लेकिन सेवा के रूप में कुछ दिखाई देता है, किन्ही कारणों से यह यात्रा बंद हो गयी बताते है की साधू-संतो के जाने से भारत क़ा प्रभाव न बढ जाय इस नाते राजा महेंद्र ने चीन के इशारे पर यह यात्रा रोकने क़ा प्रयत्न किया जब हम वहा पहुचे तो जो साधू-संतो ने बताया उससे यही मालूम होता है.
      जगह-जगह तीर्थ क्षेत्र होने के कारण इसाई और इस्लाम मतावलंबियो की निगाहे भी इससे अछूती नही रही इन लोगो ने इस क्षेत्र में मकड़ी के जाल जैसी ही घेर रखा है, हमने यानी धर्मजागरण ने समाज जागरण की दृष्टि से हरिहर नाथ से मुक्तिनाथ यात्रा ३ अप्रैल को शुरू की मुक्तिनाथ नेपाल के दुर्गम स्थान कोई १२५०० फिट की उचाई पर स्थित है यह यात्रा १५०० किमी की हुई जिसमे जगह-जगह १९ स्थानों पर धर्म सभाए स्वागत कोई ६०० फ्लेग्स तोरण द्वार भगवा झंडो से सजा हुआ रास्ता, भव्य रथ क़ा पूजन जिसमे हजारो लोगो ने भाग लिया यात्रा में बलेरो, यसकार्पियो १५ वाहनों के साथ ८० लोगो की आठ दिनों में यात्रा सम्पन्न हुई, नेपाल में भी मठ-मंदिरों में स्वागत और सभाए हुई.
      प्रथम चरण तो पूरा हुआ अब जागरण के पश्चात् जहा-जहा इशाई करण हुआ है वहा घर वापसी क़ा काम शुरू करना और यही गद्दियो [मुसलमान] क़ा क्षेत्र है जहा मुग़ल काल में यादव बंधुओ ने इस्लाम स्वीकार तो किया लेकिन अभी तक वे अपनी यानी हिन्दू परंपरा ही मानते है यह वही क्षेत्र है अब यादव सम्मलेन करके घर वापसी का वातावरण बनाना और उन्हें वापस लाना इस पर हम काम कर रहे है, भविष्य में एक अच्छी परंपरा क़ा लाभ मिलेगा, मुक्तिनाथ केवल दक्षिण के [कर्णाटक, आंध्र, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और गुजरात ] तीर्थ- यात्री जाते थे इस यात्रा के माध्यम से उत्तर भारत और नेपालियों की रूचि बढ़ाने क़ा काम हुआ है जिसका लाभ दीर्घा काल में मिलेगा, ज्ञातब्य हो कि वहा जाने के लिए प्रति ब्यक्ति ४०० रु. जजिया कर जैसा देना पड़ता है वैसे तो फ्लाईट से पोखरा से जुमसुम जायेगे तो भी भारतीयों दुगुना- तिगुना वसूला जाता है जब की भारत में किसी भी नेपाली से तीर्थ यात्रा के नाम पर कोई अतिरिक्त धन नहीं लिया जाता बल्कि उन्हें और सुबिधा दिया जाता है भारतीयों के जाने से नेपाल को पर्याप्त लाभ होता है इस पर भारत और नेपाल दोनों सरकारों को ध्यान देना चाहिए.

     इस यात्रा के माध्यम से नारायणी नदी के किनारे-किनारे तीर्थ क्षेत्रो को जागृत करना उनका पुनिर्माण कराना  बिधर्मियो द्वारा राष्ट्र बिरोधी कार्यो पर रोक लगाना, चर्च द्वारा मतान्तरण की गिद्ध दृष्टि से दूर रखना इसका उद्देश्य है इस पुण्य दायिनी यात्रा से भारत और नेपाल के सम्बंधो को और बल मिलेगा.

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