हरिहरनाथ -मुक्तिनाथ यात्रा के आरंभिक पग (योजना,उपादेयता,उद्देश्य और सन्देश )-- !

       हिन्दू धर्म में तीर्थ और यात्राओ का बड़ा ही महत्व है भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को उपदेश करते हुए कहा की ''सर्व धर्म परित्यज्यम मामेकंशरणम ब्रज''। यानी सभी धर्मो को छोड़कर तुम सिर्फ और सिर्फ मेरे शरण आओ, मेरे धर्म हिन्दू धर्म में आओ मै तुम्हारा कल्याण करुगा, तुम्हे सब पापो से मुक्त कर दुगा, तुम शोक मत करो --।
          यही आधार लेकर जगदगुरु शंकराचार्य ने जिन्हें भगवान शंकर का स्वरुप ही माना जाता है।  समाप्त हुए वैदिक धर्म की शास्त्रार्थ द्वारा पुनर्स्थापना की इस शंकर मत को हम अद्वैतवाद कहते है ----! इसी को कर्मकांड में बाधते हुए जगदगुरु रामानुजाचार्य ने सम्पूर्ण भारत वर्ष में हिन्दू धर्म का धार्मिक दृढ़ीकरण किया उन्होंने भारत भूमि को १०८ दिव्य क्षेत्रो में बाटकर हिन्दू समाज को संस्कारित जागृत व संगठित करने का काम किया। जहाँ आदि शंकर का काल, बौद्ध काल था वहीं रामानुज के समय इस्लामिक काल प्रारंभ हो चुका था, रामानुजाचार्य को हम द्वैतवाद का प्रवर्तक मानते है। जब इस्लामिक काल प्रभावी हो चुका था धर्मान्तरण, गो हत्या जोर बलात हो रहा था इसी काल में रामानंद स्वामी का प्रादुर्भाव हुआ वे विशिष्टा -द्वैत के प्रथम आचार्य थे --। का प्रतिपादन कर, उसे माध्यम बना द्वादस विभिन्न - २१ जातियों में बड़े-बड़े संत खड़ा कर इस्लामिक आंधी को रोक दिया, उन्होंने अपने साथ संत रविदास, संत कबीर, संत पीपा, धन्ना जाट जैसे संतो जिन्हें द्वादस भागवत कहा जाता था, को लेकर १७५ वर्षो तक भारत वर्ष का भ्रमण किया और जो बिधर्मी हो गए थे  उन्हें वापस हिन्दू धर्म में लाने का प्रयास किया वास्तव में स्वामी रामानंद भी रामानुजाचार्य की ही विरासत स्वरुप ही थे।
         इन हमारे संतो ने जहाँ राष्ट्र जागरण कर धर्म को बचाया वहीँ तीर्थ यात्राओ तथा धर्म यात्राओ के माध्यम से सनातन धर्म का दृढ़ीकरण किया उसी में चारो धाम, द्वादश ज्योतिर्लिंग, ५२शक्ति पीठ, और बहुत प्रकार से तीर्थो की परिक्रमा और जिन नदियों के किनारे हमारे धर्म संस्कृति का विकाश हुआ। हमारे महापुरुषों ने नदियों की परिक्रमा शुरू की, हमारा समाज ऐसा है, समय के अनुसार अपने में बहुत कुछ परिवर्तन करता रहा है जैसे "कावर यात्रा" आज देश में सर्बाधिक प्रभावी है। यह पुरातन नहीं है उसी प्रकार हमारे संघर्ष काल में बहुत सारी यात्राये समाप्त हुई है जो हिन्दू धर्म और देश के लिए महत्व की थी है आज हमें उसे पुनः शुरू करने की आवस्यकता है।
           आज हमने धर्म और देश को बचाने राष्ट्र को जगाने की दृष्टि से कई यात्राये शुरू की है जैसे लेह में सिन्धु दर्शन, असम-नागालैंड सीमा पर परसुराम कुंड यात्रा, केरल के शबरी मलाई यात्रा यह यात्राये तो नयी हो सकती है लेकिन हरिहरनाथ-मुक्तिनाथ यात्रा नयी न होकर यह रामानुजाचार्य ही नहीं तो वैष्णव परंपरा की यात्रा है । इस यात्रा मार्ग पर रामानुजाचार्य, स्वामी रामानान्द, स्वामीनारायण, सभी साधू-संतो के साथ यात्रा होती थी प्रभुदत्त ब्रम्हचारी के यात्रा ब्रितांत में इसका विस्तृत वर्णन मिलता है। हरिहरनाथ-मुक्तिनाथ यात्रा नारायणी नदी के संगम से उद्गम तक की यात्रा है इस यात्रा को जगद्गुरु रामानुजाचार्य ने शुरू किया था वैष्णव महत्व की यात्रा होने के कारन स्वामीरामानंद सहित सभी वैष्णव आचार्यो ने अपने संतो, शिष्यों के साथ यात्रा नारायणी नदी के किनारे-किनारे करते थे । इस यात्रा को पुनर्प्रष्ठित करते हुए धर्मजागरण ने इसे पुनः शुरू की, नारायणी को भगवान सालिग्राम की माता का स्थान प्राप्त है । इस नदी के किनारे-किनारे बहुत सारे तीर्थ है मुक्तिनाथ हिमालय के उपरी हिस्से में है जहा प्राण वायु की कमी भी है लगता है हमारे आचार्यो का आना -जाना कम रहा इस नाते यह स्थान बौद्ध प्रभावी लगता है। इस यात्रा को प्रारंभ करने के पीछे यह भी उद्देश्य रहा होगा, क्यों कि शंकराचार्य अल्प आयु में चले जाने के कारन ऊपर हिमालय में बौद्ध ही रह गए बाद के हमारे आचार्यो ने इसी उद्देश्य को लेकर इस मुक्तिनाथ यात्रा शुरू की होगी जिससे हिन्दू संस्कृति का प्रचार -प्रसार उन क्षेत्रो में किया जा सके। नारायणी नदी और यात्रा भारत -नेपाल को रस्सी के सामान बाधे हुए है दोनों देशो की संस्कृति का सामूहिक विकाश और धर्मान्तरण रुके चर्च द्वारा राष्ट्र विरोधी गति बिधिया रुके, किन्ही कारणों से यह यात्रा बंद हो गयी चैत्र एकादशी को यानी ३ अप्रैल २०१२ को पुनः धर्मजागरण समन्वय विभाग ने शुरू की। यह यात्रा नारायणी नदी के संगम से उद्गम तक की यात्रा है संगम स्थान पर हरि और हर (विष्णु -शंकर) हरिनाथ मंदिर से उय्ता शुरू होकर उद्गम स्थल मुक्तिनाथ में भी हरि-हर स्थापित (शैव -वैष्णव) है। जिससे हम रामानुजाचार्य, रामानान्द्चार्य के उद्देश्य को पूरा किया जा सके।
        इस यात्रा का एक आर्थिक पहलू भी है दोनों देशो का पर्यटन भी बढेगा और जगह-जगह तीर्थ मंदिरों के प्रभाव से स्थानीय लोगो को रोजगार भी मिलेगा आज जहाँ- जहाँ  तीर्थ और मंदिर है वहां बड़े -बड़े ब्यवसायिक केंद्र खड़े हो गए, छोटे-मोटे स्थानीय लोगो को रोजगार का अवसर भी मिलता है। हमारा आर्थिक विकाश भी इसमें निहित है, एक दूसरा पहलु भी है नेपाल और भारत को भगवान ही चाहता है की साथ-साथ रहें। इस नाते यह यात्रा इस काम में सहायक सिद्ध होगी, दोनों देशो का आपस में आदान-प्रदान होगा, हमें एक दुसरे को समझने का अवसर मिलेगा, राष्ट्रीयता का भाव प्रगट होगा, हम एक है ऐसा सन्देश देने में यह यात्रा सफल होगी ।।          

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