अन्तः सलिला वेद माता सरस्वती ---!




वाग्देवी (वाणी की देवी)----!

भारतीय संस्कृति व भारतीय परंपरा में "सरस्वती नदी" को "वाग्देवी" यानी अभिब्यक्ति, विद्वत्ता, ज्ञान, विज्ञान, मेधा और सोध की देवी कहा जाता है ऐसा क्यों ? ध्यान में आता है कि जिस सरस्वती देवी की बात हम कर रहे हैं वह और कोइ नहीं वह सरस्वती नदी ही है, ऐसा क्या था कि हमारे पूर्वजों ने इस नदी को इतना महत्व दिया-? हम लोग यह भी जानते हैं कि भारत की सर्वाधिक महत्वपूर्ण पूज्य नदी गंगाजी हैं तो आखिर गंगा जी को इतना महत्व क्यों नहीं--? ध्यान में रखने वाली बात यह है कि सरस्वती नदी वैदिक कालीन नदी है इसी के किनारे भगवान ब्रह्मजी के कंठ में वेद आया, ब्रह्माजी ने सरस्वती नदी के किनारे अपने चार शिष्यों अग्नि, वायु, आदित्य और अङ्गिरा जैसे ऋषियों को वेदों का ज्ञान दिया इन ऋषियों ने इसी नदी के किनारे गुरुकुल खोलकर सभी ऋषियों फिर तमाम ऋषियों ने इसी नदी के किनारे गुरुकुल खोलकर वेदों के ज्ञान को सम्पूर्ण जगत को देने का कार्य किया इसी कारण इस नदी को "वाग्देवी" यानी 'विद्या की देवी' भी कहते हैं, भारतीय दर्शन में ब्रम्हाजी को सृष्टि का रचनाकार माना जाता है क्यों? यह भी एक मौलिक प्रश्न है वेदों में जो ज्ञान है वह केवल प्राणी मात्र के लिए ही नहीं--! जड़ वस्तुएं जैसे पहाड़, पत्थर, पेड़ पौधे व वनस्पतियां सभी का संरक्षण संतुलन यह सब ज्ञान वेदों में है इसलिए वे सृष्टि रचनाकार हैं, सरस्वती जी उनकी पुत्री हैं क्योंकि यह सारा का सारा ज्ञान इसी नदी के किनारे ब्रम्हाजी ने अपने कंठ से ऋषियों को दिया इसीलिए वे ज्ञान की देवी हैं। हमारी मान्यता है कि "वसंत पंचमी" के लिए इस नदी के किनारे भगवान "ब्रम्हा जी" ने वेदों का गान यानी गुरुकुल खोल वेदों की शिक्षा का प्रारंभ किया था इसलिए "माता सरस्वती वाग्देवी" का जन्म "वसंतपंचमी" के दिन मनाया जाता है।

देश को सांस्कृतिक विरासत--!

संपूर्ण जगत में मानव जीवन, संस्कृति, सभ्यता का उद्भव इसी नदी के किनारे होने के कारण ऋषियों मुनियों ने इस मानवीय संवेदना को सम्पूर्ण भारत व जगत में फैलाने का कार्य किया उस समय जो ब्राह्मण थे जिन्हें भट्ट, जागा, तीर्थ पुरोहित, पंडा ऐसे सात प्रकार के ब्राह्मण जो सरस्वती नदी के किनारे रहते थे उन्हें सारस्वत ब्राह्मण कहा जाता है सम्पूर्ण समाज जीवन में इस मानव संस्कृति का प्रचार-प्रसार किया, मानवीयता परक कर्मकांड दिया जिससे हिन्दू वैदिक संस्कृति ने भारतीय जनमानस में घर कर गया, उसने भारतीय जीवन मूल्यों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और आज भी वे निरंतरता बनाये हुए हैं, इसी कारण यह 'मृत नदी' होने के बावजूद भी भारतीय जनमानस में जीवित ही नहीं प्रेरणा की देवी का स्थान प्राप्त है, भारतीय संस्कृति नदीय व वनीय संस्कृति है क्योंकि हमारे ऋषि- महर्षि सभी ने जो तपस्या (सोध) का स्थान बनाया वह नदी के किनारे अथवा जंगलों में उसी सोध के फल स्वरूप यह मानवीय मूल्यों का विकास हुआ जिसमें केवल मानव मात्र का ही चिंतन नहीं हुआ बल्कि जीव-जंतु, पशु- पक्षी इतना ही नहीं तो पेड़- पौधे व वनस्पतियों तक का चिंतन ऋषियों ने किया इस कारण इसे नदीय और वनीय संस्कृति भी कहते हैं।

वैदिक ही नहीं पौराणिक भी--!

सरस्वती नदी का अपने आप मे इतना ब्यापक स्वरूप है कि भारत वर्ष का एक अनपढ़ किसान जिसने कभी कोई पुस्तक नहीं देखा है उसकी भी इतनी श्रद्धा है कि भारत के बहुत सारे तीर्थों में सरस्वती को खोजता है, जैसे बद्रीनाथ में तो कही प्रयाग के संगम में ! सरस्वती नदी का वर्णन केवल वेदों में ही नहीं वल्कि उपनिषदों, पुराणों और ब्राह्मण ग्रन्थों में भी मिलता है इसका प्रवाह हिमालय के 'आदि बद्री' से निकल कर हरियाणा के 'कुरुक्षेत्र', 'पहेवा तिर्थ' होते हुए राजस्थान के 'पुष्कर तीर्थ' होकर गुजरात के 'प्रभास क्षेत्र' से समुद्र में मिलती है, इसकी चौड़ाई कहीँ -कहीँ पर दो से चार किमी तक थी इसी नदी के किनारे "कवष ऐलूष" (वैदिक) ऋषी को वरुण देवता का मन्त्र दर्शन हुआ था, इसी के किनारे ऋषी विश्वामित्र, ऋषि अगस्त, ऋषि ऋचीक, ऋषी जमदग्नि आदि कई ऋषियों ने तपस्या की थी, महर्षि विश्वामित्र और ऋषी जमदग्नि ने गुरुकुल खोला था, केवल वेंदो ही नहीं ब्राह्मण ग्रंथों की भी देवी कहा जाय तो अतिस्योक्ति नहीं होगा, 'महाभारत' काल में "भगवान बलराम" ने जिस नदी के किनारे तीर्थ यात्रा की वह सरस्वती नदी ही थी उस समय जो तीर्थ स्थल मौजूद थे वे आज भी है, आदि बद्री, आदि केदार से लेकर कुरुक्षेत्र में ब्रम्ह सरोवर, पहेवा तीर्थ में "ब्रम्हाजी" का मंदिर, पुष्कर में "भगवान ब्रम्हाजी" का मंदिर तथा प्रभाष क्षेत्र में बहुत सारे तीर्थ पाये जाते हैं, महाभारत काल तक इस नदी में बहाव था लेकिन उसी समय से पानी का स्तर घटने लगा, पाँच हज़ार वर्षों में मृत नदी हो गई लेकिन भारतीय जन-मानस में यह नदी जीवित ही नहीं बल्कि भगवती सरस्वती का स्थान प्राप्त है, स्थान- स्थान पर सरस्वती पूजा होती है मूर्तियां स्थापित करने की परंपरा सी बन गई है।

दुर्भाग्यवश----!

हज़ारों वर्ष संघर्ष के पश्चात 1947 में जो भी हिन्दुओं के हिस्से में आया उसे भारत वर्ष कहा जाता है लेकिन कैसा दुर्भाग्य है हमारा ? कि भारत का जो प्रथम प्रधानमंत्री हुआ वह अराष्ट्रीय था उसे भारतीय संस्कृति, भारतीय वांग्मय की कोइ जानकारी नहीं थीं वह अपने को दुर्घटनाग्रस्त हिंदू मानते थे उन्हें अपने देश की संस्कृति से कोई प्रेम नहीं था ईसी कारण सत्ता तो कांग्रेस के हाथ में आयी लेकिन बौद्धिक संस्थान वामपंथियों के हाथ में सौंप दिया गया, इन वामपंथियों ने हिंदू धर्म व संस्कृति का सत्यानाश करना शुरु कर दिया, मैक्समूलर ने (जिसे संस्कृति की ABCD नहीं आती थी) लिखा वेदो में गरेडियों का गीत लिखा है, वेदों में सरस्वती नदी का वर्णन है जो नदी धारती पर है ही नहीं इसलिए वेद अपौरुषेय नहीं है न ही इसकी कोई प्रमाणिकता है, मैक्समूलर ने बड़ी ही योजना पूर्वक काम किया उसने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि जब सरस्वती नदी नहीं थीं तो वेद भी झूठा साबित हो गया है, उसे हथियार बनाकर "आर्य" बाहर से आये यह नयी थ्योरी गढ़ने का एक प्रयत्न किया भारतीय वामपंथियों ने उसी थ्योरी को आज तक आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं, अंग्रेजों को यह पता था कि सरस्वती नदी और वेदों के प्रति हिंदू समाज में अटूट श्रद्धा है यदि सरस्वती नदी और वेद काल्पनिक सिद्ध हो जायेगे तो भारत को गुलाम बनाये रखने में आसानी होगी और हिन्दू समाज दिग्भ्रमित हो जायेगा, आज तक 70 वर्षों से इन वामपंथियों ने भारतीय संस्कृति पर कुठाराघात किया अभी जब राष्ट्रवादी सरकार आयी उसने इन बौद्धिक संस्थानों पर भारतीय संस्कृति के जानकरों विद्वानों की नियुक्ति करना शुरू किया तो इन वामपंथियों, कांग्रेसियों ने हाय तौबा मचाना शुरू कर दिया, इन सत्तर सालों में ऐसा इतिहास की रचना खड़ी कर दी है कि जैसे भारत कभी ताकतवर था ही नहीं, यह देश गुलाम ही था, यहां अपनी कोई संस्कृति थी ही नहीं, यहां कोई चक्रवर्ती सम्राट थे ही नहीं, लगता ही नहीं कि यह देश चक्रवर्तियों का था यहां सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य, सम्राट विक्रमादित्य, सम्राट पुष्यमित्र शुंग का भी शासन हुआ करता था, लगता ही नहीं कि यहां राजा दाहिर, बप्पारावल, महाराणा प्रताप, महाराणा कुम्भा, महाराणा राजसिंह, विजयनगर साम्राज्य के हरिहर- बुक्का और क्षत्रपति शिवजी महराज, क्षत्रपति संभाजी महाराज भी थे, इन वामपन्थी व कांग्रेस ने भारतीय समाज को केवल दिग्भ्रमित करने का ही काम किया।

ग्रंथों में सरस्वती---!

जैसा कि ऊपर वर्णन किया गया है कि इसको वैदिक नदी होने का गौरव प्राप्त है ऋग्वेद में सरस्वती का अन्नवती तथा उदकवती के रूप में भी वर्णन मिलता है, यह सदा नीरा तथा इसके क्षेत्र में बहुत अन्न पैदा होता था, यह नदी आदि बद्री से निकल कर पंजाब, हरियाणा के कुरुक्षेत्र, सिरसा होकर राजपुताना के पुष्कर प्रभाष क्षेत्र गुजरात होकर समुद्र में विलीन हो जाती है, इसका वायु पुराण तथा बाणभट्ट ने हर्ष चरित्र में वर्णित किया है अस्वघोष व राजशेखर ने भी अपने साहित्यों मे चर्चा की है हरियाणा राजस्थान से इस सूखी नदी को घग्घर भी कहते हैं सरस्वती नदी ईशा पूर्व 3000 से 5000 वर्ष अपने पूरे प्रवाह में बहती थी उस समय यमुना और सतलज की धाराएं सरस्वती में गिरती थीं, लगभग 2000 ईशा पूर्व भूगर्भ में बदलाव की वजह से यमुना जी तथा सतलुज नदी ने अपना रास्ता बदल दिया तथा दृष्टावती नदी के 2600 ईशा पूर्व सूख जाने के कारण धीरे धीरे सरस्वती नदी अन्तः सलिला हो गई, वैदिक काल में सरस्वती नदी ही सर्वाधिक वड़ी और प्रवाह मान नदी थी।

सरस्वती दर्शन---!

वैसे हम लोगों को स्वतंत्र पर्यटन के लिए समय नहीं मिलता लेकिन यदि देखा जाय तो सर्वाधिक पर्यटन करने वाले हमी लोग हैं, मैं 2 बार कुरुक्षेत्र बैठक के लिए गया वहां ब्रम्हसरोवर तथा कई धर्मिक स्थानों को देखने का सौभाग्य मिला इस वर्ष भी धर्म जागरण की बैठक के लिए जाना हुआ मेरे अंदर बहुत अधिक उत्सुकता थी सरस्वती दर्शन का वास्तविकता यह है कि मैं उदगम स्थल दर्शन के लिए जाना चाहता था लेकिन व्यवस्था नहीं बननेके कारण जाने का सौभाग्य नहीं मिला, मैं पहेवा तीर्थ स्थल गया वहाँ सरस्वती नदी का प्रवाह देखने को मिला मैं 3-4 किमि नदी के किनारे किनारे गया वहां पता चला कि हरियाणा सरकार सरस्वती परिक्रमा करती है जो सरकारी कार्यक्रम होता है यह परिक्रमा लगभग 100 किमी दूर से अधिक तय की जाती है,आज भी वे सभी तीर्थ मौजूद हैं जो महाभारत काल में थे मैंने नदी के कई चित्र लिये मेरे मन में यह बात घर कर गई कि ब्रम्हाजी का मंदिर पहेवा में है फिर पुष्कर में है यह सरस्वती के कारण ही मंदिर है क्योंकि ब्रम्हाजी ने वेंदो का ज्ञान इसी सरस्वती नदी के किनारे दिया था मेरी उत्सुकता ने मुझ जो समझ में आया लिखने को मजबूर किया इस प्रकार मैं जो भी खोज पाया इस पवित्र सरस्वती को जो वैदिक हिन्दू धर्म की थाती है आपके सामने प्रस्तुत किया है।

इतिहास संकलन--!

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ द्वारा स्थापित इतिहास संकलन योजना ने बीसों वर्षों के प्रयास स्वरूप सरस्वती नदी प्रवाहित हो गई प्रथम चरण में राजस्थान के तत्कालीन मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत ने इस अन्तः सलिला से रेगिस्तान में नहर परियोजना निकालने का अद्भुत कार्य किया, नासा के वैज्ञानिकों ने बताया कि आज भी यह नदी नीचे प्रवाहमान है, हरियाणा के तत्कालीन प्रान्त संघ चालक दर्शन लाल के नेतृत्व में तत्कालीन संस्कृति मंत्री जगमोहन ने एक टीम बनाई जिसने सरस्वती नदी पर काम किया इतिहास संकलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने सरस्वती आर्य सभ्यता पर एक पुस्तक लिख कर इसकी प्रमाणिकता को सिध्द किया।

संदर्भ ग्रंथ -----!

ऋग्वेद के लगभग सभी मंडलों में सरस्वती नदी का महत्वपूर्ण स्थान है, ऋग्वेद की ऋचा 6,61-7,95 औऱ 7,96 में प्रार्थना के रूप में है, ऋग्वेद 2.4.16 में "सर्वश्रेष्ठ माँ", सर्वश्रेष्ठ देवीतथा सर्वश्रेष्ठ नदी कह कर सम्बोधित किया है, ऋग्वेद 6.61, 8.81, 10.17, 7.9.52, 7.36.6 ऐसे और भी ऋचायें हैं। यजुर्वेद 34.11, रामायण, महाभारत के शल्य पर्व के 35.54 अध्याय, सतपथ ब्राह्मण, पारसी धर्म ग्रंथ "अवेस्ता" । 




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