बिरसा मुंडा ----- एक महान क्रन्तिकारी देश भक्त ही नहीं, वे धर्म की रक्षा करते-करते भगवान हो गए.

सनातन धर्म 

भारत एक सनातन धर्मी, वैदिक [वैज्ञानिक] धर्म मानने वाला प्रकृति पूजक  यानी प्रकृति से प्रेम, जीव-जंतु, पशु - पक्षी, नदी, पहाड़ और सभी बनस्पतियो में इश्वर को देखता है, यही हमें पश्चिम से अलग करता है, पश्चिम केवल मानवता बिरोधी ही नहीं वह तो प्रकृति बिरोधी भी है, समय-समय पर इस भारतीय भूमि ने देश व धर्म रक्षक, क्रन्तिकारी पैदा किये उसी में एक ''भगवान बिरसा'' भी हुए ।

एक दिव्य शिशु का जन्म 

छोटा नागपुर में रांची से ६० की.मी.दूर दक्षिण दिशा में ''उलीहातू'' नामक गाव जिसमे एक गरीब परिवार जो सुगना मुंडा के नाम से जाना जाता था सुगना अपनी ईमानदारी, परिश्रम के नाते जाने जाते थे वही उनकी पत्नी कर्मी सेवा भाव और मृदु भाषी के लिए सभी की प्रिय थी पुरे गाव के लिए इन पति-पत्नी का प्रेम अनुपम उदहारण था, 15 नवम्बर 1875 को 'करमी' ने  एक शिशु को जन्म दिया सुगना को  बधाइयो का ताता लग गया गाव के मुखिया ने पूछा कि बालक का क्या नाम रखोगे सुगना ने कहा की पुरोहित जी जो कहेंगे--- पुरोहित ने कहा की बृहस्पति को जन्म लिया इसका नाम 'बिरसा' होगा।

चर्च के विद्यालय में प्रवेश 

सन १८९०-९२ के काल खंड में छोटा नागपुर के अधिकांस बनबासी, चर्च व पादरियों के बहकावे में आकर ईशाई हो गए थे, सगुना अपने बच्चे की पढाई हो इस नाते ईशाई धर्म पहले ही स्वीकार कर चुके थे, बिरसा को भी बप्तिस्मा करके ईशाई बनाया गया बिरसा का नाम 'दावुद बिरसा' रखा गया कुछ इन्हें 'डेविड बिरसा' कहते थे, विरसा के पिता जी ने 'बालक विरसा' को मिशनरी विद्यालय में प्रवेश कराया क्योकि और विद्यालय था ही नहीं, स्कूल में अध्यापक व पादरी दोनों हिन्दू धर्म [ सनातन] की आलोचना करते उन्हें यह बर्दास्त नहीं होता और पादरियों का पाखंड पूर्ण ब्यवहार उन्हें रास नहीं आया, उन्होंने कहा --- मान्यवर जो अन्य धर्मो का अपमान करे, उनके रीति- रिवाजो का मजाक उडाये, अन्य धर्मो के लोगो को प्रताड़ित करे ऐसा धर्म का स्वरूप मुझे स्वीकार नहीं।

र स्कूल से निष्कासन 

''तुम जैसे उद्दंड, असभ्य और जिद्दी लड़के के लिए हमारे स्कूल में कोई जगह नहीं है, तुम इसी समय यहाँ से चले जावो मै तुम्हे स्कूल से निकलता हूँ'' 'पादरी लूथर' ने एक ही सास में अपना निर्णय सुना दिया होठो पर मुस्कान लिए ''बिरसा'' कक्षा से बाहर चले गए, शीघ्र ही 'पादरियों' की असलियत भापकर बिरसा न केवल 'ईशाई मत' त्यागकर 'हिन्दू धर्म' में लौट आये, बल्कि उन्होंने अन्य ''वनबासियो'' को भी ''हिन्दू धर्म'' में वापसी की, यह धर्म सुधार का आन्दोलन देश आज़ादी का रूप लेने लगा, यही बिरसा मुंडा आगे चलकर एक महान क्रन्तिकारी तथा 'धरती आबा' [जगत पिता] के नाम से बिख्यात हुए।

स्वतंत्रता संग्राम और जेल यात्रा 

''बिरसा' ने अपने समाज के लोगो को पवित्र जीवन जीने की शिक्षा दी, देश को स्वतंत्र कराने के प्रयास में अत्याचारी अंग्रेजो के बिरुद्ध अपने समाज के लोगो में ऐसी ज्वाला भड़काई की रांची के अंग्रेज 'कप्तान मेयर्स' ने 24 अगस्त 1895 को 'बिरसा मुंडा' को सोते समय रात को गिरफ्तार कर लिया उनके मुह में रुमाल ठूसकर एक हाथी पर बैठा कर रातो-रात रांची लाकर जेल में डाल दिया, बाद में उनके अनुययियो को भी गिरफ्तार कर लिया गया, राची में उन पर मुकदमा चलाया गया जिसमे सभी लोगों को लगभग दो वर्ष की सजा हुई, जेल से छूटकर उन्होंने सशस्त्र क्रांति का रास्ता अपनाया, इस दल में कई ''क्रांति प्रचारक'' बनाये गए जो गुप्त बैठक करते थे, जिनका उद्देश्य देश को आजाद करना और अपने समाज को अंग्रेज व अंग्रेजों द्वारा नियुक्त जमींदारो से मुक्ति दिलाना ही था।


देश के लिए मौत को गले लगाया 

बिरसा जीवन पर्यंत 'स्वतंत्रता' हेतु संघर्ष करते रहे, आखिर घबराकर अंग्रेजो ने छल -कपट का सहारा लिया, बिरसा को पकडवाने के लिया 500 रुपये का इनाम घोषित किया उनके अनेक सहयोगियों पर भी इनाम की घोषणा की गयी आखिरकार बिस्वास घातियो की मुखबिरी से रात में सोते हुए ''विरसा मुंडा'' को गिरफ्तार कर लिया गया, 'बिरसा' पर आम आदमी की तरह मुकदमा चलाया गया लूट-पाट, ह्त्या, आगजनी इत्यादि केश में फसाया गया, 30 मई 1900 प्रातः वे अस्वस्थ अनुभव कर रहे थे उन्हें अन्य कैदियों के साथ अदालत लाया गया वह अचानक उनकी तबियत ख़राब होने लगी उन्हें पुनः जेल लाया गया उनका गला सूख रहा था आवाज़ लडखडा रही थी.-- 8 जनवरी को पुनः उनकी हालत ख़राब होने लगी उनकी शक्ति क्षीण होती चली गयी 9 जून को 8  बजे खून की उलटी हुई और 9 बजे हमारे 'बिरसा भगवान' ने संसार से बिदा ली, जिबित रहते 'विरसा मुंडा' ने अपने शौर्य पूर्ण कार्यो से अंग्रेज सरकार को सुख पूर्वक चैन की नीद सोने नहीं दी और चर्च व पादरियों को उनका [धुर्तयी पूर्ण ] चेहरा दिखाया, ऐसे थे हमारे क्रन्तिकारी सपूत 'बिरसा मुंडा' जो भगवान स्वीकार हो गए पूरे के पूरे वनबसी क्षेत्र तथा झारखण्ड, छत्तीशगढ़  में आज भी 'बिरसा भगवान' की पूजा की जाती है वे हमारे जीवंत प्रेरणा श्रोत है।