वैदिक ऋषिकाएँ...! ब्रह्मवादिनी अपाला

 

अपाला 

सामाजिक विकृति

भारतीय वैदिक परंपरा में "चतुरवरणम् मया सृष्टा गुण कर्म विभागसः" की परंपरा हो नित्य नूतन और युगानुकूल समय परिस्थिति अनुसार स्वीकार करने परंपरा हो, जिस समाज में दीर्घतमा, कवष एलूश, महिदास एतरेया जैसे शूद्र ऋषि वैदिक मंत्रदृष्टा हो उस समाज में विकृति कैसे आ सकती है यह विचारणीय प्रश्न है। जहाँ पर "यत्र नारियस्य पूज्यन्ते रमनते तत्र देवता" जिस समाज में ऐसी व्यवस्था हो वहाँ पर नारियों से भेद कैसे हो सकता है ¡ जहाँ पर लोपामुद्रा, लोमहर्षिणी, घोषा, गार्गी, सूर्या सावित्री जैसे ऋषिकाएं मंत्र दृष्टा रही हों वहाँ भेद -भाव की गुंजायस कैसे हो सकती है? इससे यह तो समझ में आ सकती है कि विकृति का कारण हमारी संस्कृति, धर्म नहीं बल्कि कुछ और है जिसे हम छेपक कह सकते हैं। लेकिन आज का विषय ये नहीं है बल्कि आज हम एक वैदिक ऋषिका मंत्र दृष्टा अपाला की चर्चा करना चाहते हैं।

बचपन में ही वेद मंत्र कंठस्थ

ब्राह्मवादिनी अपाला अत्रि मुनी के वंश में उत्पन्न हुई थीं। कहते हैं कि अपाला बचपन से ही बहुत सुन्दर थी उसे बचपन में ही सफ़ेद कुष्ट रोग हो गया था। अपाला बहुत मेधावी थी एक बारे जिस मंत्र को सुन लेती उसे स्वाभाविक याद हो जाता था, अत्रि ऋषि जब गुरुकुल के विद्यार्थियों को वेद मंत्र पढ़ाते अपाला भी मन्त्रों को सुनती और इस प्रकार उसने चारों वेदों कंठस्थ कर लिया। अब ऋषि उसका चेहरा देखते ही बहुत प्रसन्न हो जाते लेकिन अब अपाला ! ज्यों -ज्यों अपाला बड़ी होने लगी अत्रि ऋषि बहुत चिंतित होने लगे उन्हें अब अपाला के विवाह को लेकर चिंता होने लगी, बहुत सारे ऋषि पुत्रों के पास गये लेकिन जो भी अपाला के इस रोग को जानता वह विवाह से इंकार कर देता इस प्रकार अपने पिता को चिंतित देख अपाला भी दुखी रहती। अब अपाळा युवा हो गयी उसकी सुंदरता के आगे कुष्ट रोग उसके चेहरे से छुप सा गया। 

अपाला का विवाह और ----!

वह अति सुन्दर थी एक दिन एक ऋषि, अत्रि ऋषि के आश्रम पर आये उन्होंने उसे देखा तो देखते रह गए उसकी सुंदरता के आगे उन्हें उसका कुष्ट रोग दिखाई नहीं दिया और उन्होंने अत्रि ऋषि से उनकी पुत्री अपाला का हाथ मांग लिया। ऋषि बहुत प्रसन्न हुए और अपनी पुत्री अपाला का विवाह उस युवक ऋषि से कर बिदा कर दिया। अब अपाला अपने पति के साथ सुखमय जीवन बिताने लगी, धीरे-धीरे उसकी आयु बढ़ने के साथ ढलने लगी वह कुष्ट रोग स्पष्ट दिखने लगा अब उसके पति दुखी रहने लगे उनके मन में बार-बार आता कि अपाला अपने पिताके आश्रम चली जाय लेकिन ऋषि, अत्रि ऋषि के सामने जाने की हिम्मत नहीं जुटा पा रहे थे क्योंकि उन्होंने स्वयं ही अपाला का हाथ माँगा था। अब अपाला ने अपने पति के मनोभाव को पढ़ा और अपने पिता अत्रि ऋषि के आश्रम चली गयी। ऋषि अत्रि ने जब अपाला को देख सबकुछ समझ गये और पुत्री को सांत्वना देते हुए आश्रम पर रहने को कहा। फिर अपाला को साधना यानी इंद्र की तपस्या के लिए कहा, अपाला विदुषी थी वह बहुत आध्यात्मिक भी थीं उनका मन हमेशा वेदों के ज्ञान में लगा रहता वें वैदिक ऋचाओं का आत्मसात करती थी। लेकिन कुष्ट रोग से पीड़ित थीं, उसने देवताओं के राजा इंद्र का ध्यान किया। इंद्र, अपाला की तपस्या उसके निर्मल मन से बहुत प्रभावित हो उठे। 

अपाला को इंद्र का दर्शन और कुष्ट रोग ठीक हुआ

अपाला की तपस्या से इंद्र बहुत प्रसन्न हुए और अपाला को दर्शन दिया, वरदान मांगने को कहा अब अपाला बहुत प्रसन्न थी उसने सुन रखा था कि इन्द्र को सोमरस बहुत पसंद है। अब अपाला को सोम का पौधा तो मिला गया लेकिन उसका रस कैसे निकाले कोई उसके पास साधन नहीं था उसने अपने दांतो से काट सोमरस निकाला उसकी निष्ठा देख भगवान इंद्र बहुत प्रसन्न हो गये और वरदान मांगने को कहने लगे। अपाला ने अपने शरीर के कुष्ट रोग दूर करने, पति को खुश रहने की प्रार्थना की। भगवान इंद्र ने अपाला के शरीर पर हाथ फेरा तभी उसका शरीर बहुत कोमल हो गया अब उन्होंने अश्विनीकुमारों (तत्कालीन वैद्य) का आह्वान किया और धीरे -धीरे अपाला का कुष्ट रोग ठीक होता चला गया। उनके खेत हरे भरे हो गए। पति ऋषि के घर से तो अपाला चली तो आयी लेकिन उनका मन दुखी रहने लगा, उन्हें लगा कि उनसे गलती हो गई है आखिर वह हमारी धर्म पत्नी है, हमने स्वयं ही  उसके पिता अत्रि ऋषि से हाथ माँगा था। उन्हें बड़ी ग्लानि हुई और वे अपाला को लेने अत्रि ऋषि के आश्रम आ गए सामने अपाला दिखी उसकी सुंदरता तो और बढ़ गयी है सारा का सारा कुष्ट रोग समाप्त हो गया है। उन्होंने अत्रि ऋषि से छमा याचना करते हुए अपाला को अपने आश्रम लेकर चले गये।

वैदिक ऋचाएं 

अपाला अब ब्रम्हावादिनी हैं वें ऋग्वेद के 91वें सूक्त के मन्त्रों की दृष्टा यानी शोध कर्ता हैं जिसमे "सात ऋचा" है। अपाला को वेद मंत्र कंठस्थ है वह बड़ी मेधावी थीं। आज कुछ ऋचाओं जिसकी मंत्र दृष्टा अपाला है के भावार्थ को हम लेते हैं जिससे अपाला के मेधा के बारे में हमें ज्ञान होगा।

"जो कन्या किसी रोगादिवस शरीर से निर्बल और निस्तेज हो उसको विवाह से पूर्व सोमलता आदि रोगनाशक औषधियों का रस सेवन कराके पहले समर्थ और शक्तिशाली बनाना चाहिए। ऐसा करने के पश्चात् ही वस्तुतः पति को स्वीकार करने योग्य बनती है। 1।"

"सोमरस की मात्रा पर पूरा नियंत्रण रखना चाहिए। यह बलप्रद औषधि बूँद -बूँद करके सर्वथा नियंत्रित मात्रा में दी जानी चाहिए, यह धीरे -धीरे प्रभावी होती है। 3।"

"सोमलता आदि औषधियों के रस का सेवन करके दुर्बल और रोगिणी कन्या भी, जो किसी को पतिवरण करने की विचार मात्र से दूर भागती थी, शक्ति सम्पन होकर वीर्यवान पति को चाहने लगती है। 4।"

"सोमलता आदि औषधियों के रस का विधिवत उपयोग करने से शरीर के सभी प्रकार के दोष, प्रानापान आदि क्रियाओ के दोषों के कारण उत्पन्न रोग सभी मिट जाते हैं। पोषण के अभाव में रिक्त एवं खोखला हुआ शरीर पुनः कांतिमान हो उठता है। 7।"

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1 टिप्पणियाँ

  1. जो लोग यह कहते नहीं थकते कि वैदिक काल में महिलाओं को शिक्षा व वेद मंत्र पढ़ने का अधिकार नहीं था यह ऋषिकाओ पर लेख उन सभी लोगों के लिए थप्पड़ जैसा है।

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