खटिक जाति और स्वतंत्रता संग्राम-!

हिंदू खटिक जाति
:- 

एक धर्मभिमानी समाज की उत्पति, उत्थान एवं पतन का इतिहास

खटिक जाति मूल रूप से वो ब्राह्मण जाति है, जिनका काम आदि काल में याज्ञिक क्रिया में हवि यानी यज्ञ समिधा ब्यवस्था करना होता था, ध्यान देने योग्य है कि समयानुसार जातियों में परिवर्तन आया और नाई, भाट, तीर्थ पुरोहित, चारण ये सभी ब्राह्मण जाति है लेकिन कुछ लोग इन्हें ब्राह्मण मानने से इंकार करते हैं,  संस्कृत में इनके लिए शब्द है, 'खटिटक' ।
यह समाज राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र, बिहार और प बंगाल में अधिकांश पायी जाती है इनका उप नाम सोनकर भी है, पुराणों में 'खटक' ब्राह्मणों का वर्णन मिलता है, इनकी एक और परिभाषा है खटक यानी खट से सिर काटने वाला, राजपुताना में महाराणा प्रताप के साथ अग्रगणी योद्धाओं में थे, स्थान स्थान पर मुसलमानों से संघर्ष हुआ और प्रसिद्ध हो गया कि ये मुसलमानों का सिर काटने वाले लोग हैं इसलिए जब इस्लामिक सत्ता आयी तो इन्हें पददलित घोषित किया, जब मुसलमानों ने इन पर अत्याचार शुरू किया तो इन्होंने हर नहीं मानी बल्कि बिकल्प के रूप प्रतिक्रिया में सुवर पालन करना शुरू कर दिया, वास्तव में ये वीर योद्धा जाती है। मुगलों को कई बार पराजित किया, इनके गोत्र इस प्रकार है, सोयल,, चंदेल, बघेरवाल इत्यादि मिलते हैं, ये वास्तविक रूप से सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं, कहते हैं कि इनका संबंध "खटक राजवंश" से था इनके कुल पुरुष महाराज "खटवांग" माने जाते हैं खटिक समाज में आज भी इनकी पूजा होती है। प्रचलित हैं कि इस राजा को माँ काली ने तलवार भेंट किया था, गुजरात में इन्हें खाटकी, राजस्थान में खटीक कहा जाता है ये अपने को क्षत्रिय वंश का दावा करते हैं जो शासक के दूसरे सबसे बड़े योद्धा वर्ग से है, मुसलमानों के मुकाबले विकल्प के रूप में बकरे, सुवर इत्यादि काटने और मांसाहारी हिन्दुओ को आपूर्ति करना यह भी एक रोजगार शुरू किया, इस प्रकार यह जाति ब्राह्मणों और राजपूतों की परंपरागत स्वाभिमानी जाति है जो आज भी इनके स्वभाव से दिखाई देता है।

अक्रान्ताओ से संघर्ष 

मध्यकाल में जब क्रूर इस्लामी अक्रांताओं ने हिंदू मंदिरों पर हमला किया तो सबसे पहले खटिक जाति के ब्राहमणों ने ही उनका प्रतिकार किया, राजा व उनकी सेना तो बाद में आती थी। मंदिर परिसर में रहने वाले खटिक ही सर्वप्रथम उनका सामना करते थे, तैमूरलंग को दीपालपुर व अजोधन में खटिक योद्धाओं ने ही रोका था और सिकंदर को भारत में प्रवेश से रोकने वाली सेना में भी सबसे अधिक खटिक जाति के ही योद्धा थे, तैमूर खटिकों के प्रतिरोध से इतना भयाक्रांत हुआ कि उसने सोते हुए हजारों खटिक सैनिकों की हत्या करवा दी और एक लाख सैनिकों के सिर का ढेर लगवाकर उस पर रमजान की तेरहवीं तारीख पर नमाज अदा की ।

और सुवर पालन शुरू हुआ 

मध्यकालीन बर्बर दिल्ली सल्तनत में गुलाम, तुर्क, लोदी वंश और मुगल शासनकाल में जब अत्याचारों के कारण हिंदू जाति मौत या इस्लाम का चुनाव कर रही थी तो खटिक जाति ने अपने धर्म की रक्षा और बहू बेटियों को मुगलों की गंदी नजर से बचाने के लिए अपने घर के आस-पास सूअर बांधना शुरू किया क्योंकि इस्लाम में सूअर को हराम माना गया है, मुगल तो इसे देखना भी हराम समझते थे और खटिकों ने मुस्लिम शासकों से बचाव के लिए सूअर पालन शुरू कर दिया, उसे उन्होंने हिंदू के देवता भगवान विष्णु के वराह (सूअर) अवतार के रूप में लिया, मुस्लिमों की गौहत्या के जवाब में खटिकों ने सूअर का मांस बेचना शुरू कर दिया और धीरे-धीरे यह स्थिति आई कि वह अपने ही हिंदू समाज में पददलित होते चले गए, कल के शूरवीर ब्राहण आज अछूत और दलित श्रेणी में हैं ।

१८५७ स्वतंत्र समर 

1857 की लडाई में मेरठ व उसके आसपास अंग्रेजों के पूरे के पूरे परिवारों को मौत के घाट उतारने वालों में खटिक समाज सबसे आगे था, इससे गुस्साए अंग्रेजों ने 1891 में पूरी खटिक जाति को ही वांटेड और अपराधी जाति घोषित कर दिया। जब आप मेरठ से लेकर कानपुर तक 1857 के विद्रोह की कहानी पढेंगे तो रोंगटे खडे हो जाए्ंगे, जैसे को तैसा पर चलते हुए खटिक जाति ने न केवल अंग्रेज अधिकारियों, बल्कि उनकी पत्नी बच्चों को इस निर्दयता से मारा कि अंग्रेज थर्रा उठे, क्रांति को कुचलने के बाद अंग्रेजों ने खटिकों के गाँव के गाँव को सामूहिक रूप से फांसी दे दिया गया और बाद में उन्हें अपराधिक जाति घोषित कर समाज के एक कोने में ढकेल दिया।

कोलकाता हिंदू नरसंहार में हिन्दू रक्षक की भूमिका मे

स्वतंत्रता से पूर्व 1946 में जब मोहम्मद अली जिन्ना ने डायरेक्ट एक्शन की घोषणा की थी तो मुस्लिमों ने कोलकाता शहर में हिंदुओं का नरसंहार शुरू किया। लेकिन एक दो दिन में ही पासा पलट गया और खटिक जाति के लोगो ने गोपालपाठा के नेतृत्व में मुस्लिमों का इतना भयंकर नरसंहार किया कि बंगाल के मुस्लिम लीग के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी ने सार्वजनिक रूप से कहा कि हमसे भूल हो गई, बाद में इसी का बदला मुसलमानों ने बंग्लादेश में स्थित नोआखाली में लिया, आज हम आप खटिकों को अछूत मानते हैं, हम सेकुलर और बामपंथी इतिहासकारों के द्वारा लिखित इतिहास को पढ़े जिसकी गलत तरीके से ब्याख्या ने भारत के स्वाभिमान को समाप्त करने का षड्यंत्र किया क्योंकि हमें उनका सही इतिहास नहीं बताया गया है, उसे दबा दिया गया है, जो वीर थे क्षत्रिय थे हिंदू समाज की रक्षा की वही पददलित घोषित कर दिये गए। 

छुवा छूत इस्लामिक काल की देन 

आप यह जान लीजिए कि दलित शब्द का सबसे पहले प्रयोग अंग्रेजों ने 1931 की जनगणना में 'डिप्रेस्ड क्लास' के रूप में किया था, उसे ही बाबा साहब अंबेडकर ने अछूत के स्थान पर दलित शब्द में तब्दील कर दिया, इससे पूर्व पूरे भारतीय इतिहास व साहित्य में 'दलित' शब्द का उल्लेख कहीं नहीं मिलता है , मुस्लिमों के डर से अपना धर्म नहीं छोड़ने वाले, हिंसा और सूअर पालन के जरिए इस्लामी आक्रांताओं का कठोर प्रतिकार करने वाले एक शूरवीर ब्राहमण खटिक जाति को आज दलित वर्ग में रखकर अछूत की तरह व्यवहार किया है और आज भी कर रहे हैं, भारत में 1000 ईस्वी में केवल एक फीसदी अछूत जाति थी, लेकिन मुगल वंश की समाप्ति होते-होते इनकी संख्या चौदह फीसदी हो गई, आखिर कैसे ? सबसे अधिक इन अनुसूचित जातियों के लोग आज के उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, मध्य भारत में है, जहाँ मुगलों के शासन का सीधा हस्तक्षेप था और जहाँ सबसे अधिक धर्मांतरण हुआ, आज सबसे अधिक मुस्लिम आबादी भी इन्हीं प्रदेशों में है, जो धर्मांतरित हो गये थे ।

ब्राह्मण और क्षत्रिय वंशज 

डॉ सुब्रमण्यम स्वामी लिखते हैं, ''अनुसूचित जाति उन्हीं बहादुर ब्राह्मण व क्षत्रियों के वंशज है, जिन्होंने जाति से बाहर होना स्वीकार किया, लेकिन मुगलों के जबरन धर्म परिवर्तन को स्वीकार नहीं किया। आज के हिंदू समाज को उनका शुक्रगुजार होना चाहिए, उन्हें कोटिश: प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि उन लोगों ने हिंदू के भगवा ध्वज को कभी झुकने नहीं दिया, भले ही स्वयं अपमान व दमन झेला ।''
प्रोफेसर शेरिंग ने भी अपनी पुस्तक 'हिंदू कास्ट एंड टाईव्स' में स्पष्ट रूप से लिखा है कि भारत के निम्न जाति के लोग कोई और नहीं, बल्कि ब्राहमण और क्षत्रिय ही हैं, स्टेनले राइस ने अपनी पुस्तक "हिन्दू कस्टम्स एण्ड देयर ओरिजिन्स" में यह भी लिखा है कि अछूत मानी जाने वाली जातियों में प्रायः वे बहादुर जातियां भी हैं, जो मुगलों से हारीं तथा उन्हें अपमानित करने के लिए मुसलमानों ने अपने मनमाने काम करवाए थे।

हिंदुत्व के गौरव 

यदि आज हम बचे हुए हैं तो अपने इन्हीं अनुसूचित जाति के भाईयों के कारण जिन्होंने नीच कर्म करना तो स्वीकार किया, लेकिन इस्लाम को नहीं अपनाया, धन्य हैं हमारे ये भाई जिन्होंने पीढ़ी दर पीढ़ी अत्याचार और अपमान सहकर भी हिन्दुत्व का गौरव बचाये रखा और स्वयं अपमानित और गरीब रहकर भी हर प्रकार से भारत वासियों की सेवा की, देश में कहीं भी यदि धर्म की बात आती है हिंदुओं के, मंदिरों के रक्षा का विषय आता है तो हिंदू समाज के साथ संघर्ष में अग्रगणी रहता है, यदि विधर्मियों को यदि पता चल जाता है कि यहां ये समाज रहता है तो वे अपना रास्ता बदल देते हैं यानी दंगा बंद कर देते हैं ।

संदर्भ ग्रंथ 

1. हिंदू खटिक जाति: एक धर्माभिमानी समाज की उत्पत्ति, उत्थान एवं पतन का इतिहास, लेखक डॉ विजय सोनकर शास्त्री, प्रभात प्रकाशन
2. आजादी से पूर्व कोलकाता में हुए हिंदू मुस्लिम दंगे में खटिक जाति का जिक्र, पुस्तक 'अप्रतिम नायक :- श्यामाप्रसाद मुखर्जी' में आया है | यह पुस्तक भी प्रभात प्रकाशन द्वारा प्रकाशित है।

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4 टिप्पणियाँ

  1. मैं भी खटीक समाज से हूं और अपने आप को गौरवान्वित महसूस करता हूं जो अपने स्वाभिमान की रक्षा के लिए हिंदुत्व की रक्षा के लिए अपमान सह कर भी अपने धर्म को बचा कर रखा इससे बड़ी गौरव की क्या बात है जय हिंद जय भारत

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  2. जातीय स्वाभिमान अवश्यक है सभी लोग भगवान मनु की संतान है अपने यहाँ वर्ण ब्यवस्था कि मान्यता थी समाज में विकृति आने के कारण सब कुछ गड़बड़ हुवा है आइये सारा हिन्दू समाज को जागरूक करे

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  3. इस आलेख में अनेक झोल हैं जिस कारण इसकी विस्वसनीयता संदिग्ध हो जाती है ।
    संदर्भ हेतु उल्लेखित सूची कालखंड में प्रामाणिक नही है ।
    वर्तमान समय में सामाजिक आचरण व व्यवहार भी इस आलेख के विषय को गलत सिद्ध करता है ।
    हिन्दू समाज में एक मात्र सोच हम रखें कि हिन्दू हैं और मानवीय गुण से परिपूर्ण व्यक्तित्व हैं । कार्य कुछ हो, स्वभाव कुछ हो, सामाजिक स्थिति कुछ हो किन्तु अपने हिन्दू समाज के मान सम्मान हेतु कार्य करना है । वर्ण व्यवस्था व्यक्ति के कर्म व आचरण के अनुरूप बदलता रहा है । वर्तमान में भी नई वर्ण व्यवस्था तैयार है जिसमे पुनः चार खंड हैं
    1. विधायिका/राजनीतिक वर्ग,
    2. कार्यपालिका/प्रशासनिक वर्ग,
    3. मीडिया/पत्रकार वर्ग एवं
    4. जनता/सामान्य वर्ग
    कालांतर में मनुवादी वर्ण व्यवस्था के स्थान पर यही वर्ण व्यवस्था समाज मे व्याप्त रहेगी जिसमें सामान्य वर्ग ही शोषित वर्ग होगा ।
    अतः जातीय व्यवस्था के झमेले पर अनावश्यक चिंतन छोड़ भविष्य में मानवता वादी समाज बनाने व शोषण की सोच को छोड़ने वाले मानव को महिमा मंडित करने में सहयोग करें ।

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