नेपाल में चीन की भूमिका
मैं नेपाल में दस वर्षों तक सामाजिक कार्यकर्ता के कारण था लगभग अधिकांश जिलों में मेरा प्रवास हुआ था शायद ही कोई नेपाली राजनीति कार्यकर्ता या नेता होगा जिसने इतना प्रवास किया होगा, जिस समय मैं था तो माओवाद अपने चरम अवस्था में था, यदि पहाड़ में कोई अच्छा कपड़ा पहनने वाला, दोनों समय भोजन करने वाला ब्यक्ति दिखाई देता तो यह समझ लेना चाहिए कि वह माओवादी ही है और कुछ पूछने की आवश्यकता नहीं है, इसका परिणाम यह हुआ कि गाँव खाली हो गए अधिकांश सक्षम लोगों ने अपना घर छोड़कर शहर में छोटा सा घर बना अपने बच्चों की सुरक्षा में लग गए, मैं एक दिन भारतीय राजदूतावास में बैठा था उसी दिन पोखरा में नेपाल के सहयोगी देशों की बैठक चल रही थीं, मैने उत्सुकता बस अम्बेसडर से पूछा कि पोखरा में नेपाल के सहयोगी देशों की बैठक हो रही है आप नहीं गए उन्होंने बड़े प्रेम से बताया कि जितना भारत नेपाल को सहयोग करता है उसका 4℅ अमेरिका करता है जो सेकेंड लार्जेस्ट है, चीन का सहयोग प्रतिशत में नहीं आता तो वहाँ के नेता चीन के पक्ष में क्यों ? उन्होंने बताया कि चीन नेपाल में कोई मदद नहीं करता वह दो काम करता है एक नेपाली बामपंथी नेताओं को खरीदता है पार्टी फंडिंग के नाम पर ब्यक्तिगत धन लेना नेपाली वामी नेताओं का स्वभाव वन गया है, दूसरा जो भारतीय सहयोग से धन नेपाल सरकार को मिलता है सारा का सारा ठेका चीनी कंपनी को मिलने के कारण आम जनता को लगता है कि यह चीन के सहयोग से हो रहा है इस प्रकार पूरे नेपाल में बामपंथी पुरजोर चीन के पक्ष में प्रचार किया करते हैं। और चीन भारत के खिलाफ भड़काकर अपना उल्लू सीधा करता है कभी "कालापानी" का लाली पाप दिखाना कभी गलत नक्सा बनवाकर नेपाल को फसाना और स्वयं कभी हिमालय के उत्तर "टिगड़ी नदी" 20 किमी नेपाल का था कब्जा करना कभी पूरा "हिमालय" अपने नक्से में दिखाना तो कभी "नेपाली गांव" को अपने सीमा में मिला लेना।भूखें भजन न होय गोपाला और चीन टूट जाएगा
चीन की अपनी परेशानी है वह तिब्बत की ओर खाद्यान्न उत्पादन नहीं कर सकता लगभग आधा चीन के लिए भोजन की समस्या है, इस कारण उसे नेपाल पर निर्भर रहना पड़ता है वह नेपालियों को स्मगलिंग के लिए प्रोत्साहित करता है, चीन का मुख्य भोजन चावल है ऐसा नहीं कि चीन में चावल होता नहीं है लेकिन उसे दक्षिणी भाग में भेजना बहुत महंगा सौदा साबित हो जाता है इसलिए स्मगलिंग ही सहारा भारतीय सीमा से प्रतिदिन सैकड़ों ट्रक चावल नेपाल में जाता है, नेपाल में खाद्यान्न की कोई समस्या नहीं है नेपाल खाद्यान्न उत्पादन में सक्षम है तो यह चावल जाता कहाँ है वास्तविकता यह है कि काठमांडू से खासा वार्डर से ल्हासा चला जाता है पश्चिम नेपाल में दार्चुला बैतड़ी जिलों में बड़ी संख्या में लोग भेड़ी पालते हैं भेड़ी के दोनों तरफ मिलाकर5 किलो चावल रखते हैं ऐसे सौ, दो सौ के झुंड में भेड़ी चराने वाला सिमा पार करके तिब्बत पहुंच जाता है, चीन की वास्तविकता को समझने के लिए ''सोबियत रुस'' को समझना होगा वह भी अमेरिका के मुकाबले आणविक ताकत बढ़ाकर विश्व को दो ध्रुवीय कर दिया था लेकिन केवल दिखावा, इसलिए भुखमरी के कारण चौदह टुकड़े हो गए वही हाल चीन का होने वाला है, भूखा देश लड़ नहीं सकता आज चीन नेपाल में फंस चुका है, चाह कर भी निकल नहीं पा रहा है जो उसे देश टूटने तक ले जाएगा।
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