धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो--------!

        

जब एक बालिका ने

भारतीय संस्कृति के प्रखर उपासक महान विद्वान ''स्वामी करपात्री जी'' महराज को कौन नहीं जनता, उनकी लौकिक पढ़ाई बहुत कम थी उन्होने गंगा जी की परिक्रमा की और वे वेद, वेदांग, उपनिषद और पुराणों के महान ज्ञाता बनकर आ गए वे भारतीय स्वतन्त्रता सेनानी ही नहीं बल्कि ''भारतीय धर्म संघ'' स्थापना कर धर्म प्रचार मे लग गए। एक बार मध्य प्रदेश के एक गाँव मे प्रवास पर थे, प्रवचन के पश्चात वे जो जय घोष लगाते वह संस्कृत मे होता था एक छोटी सी बालिका आई और करपात्री जी से कहा स्वामी जी यदि आप इस जय घोष को हिन्दी मे कहते तो हमारी भी समझ मे आता, करपात्री जी को यह बात ध्यान मे आ गयी और उन्होने उसी उद्घोष को हिन्दी मे कहा ''धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो, प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो'' आज यह जय घोष भारतीय संस्कृति का उद्घोष बन गया ।

धर्म की जय हो

भारतीय संस्कृति मे धर्म क्या है नैतिकता, राष्ट्रीय चरित्र, कहते हैं की भगवान मनु ने मनुस्मृति में धर्म के दस लक्षण बताए हैं..! 
धृति:   क्षमा  दमोअस्तेया   शौचमिंद्रीयनिग्रह:। 
धीर्विद्या सत्यम अक्रोधो दशकम धर्मलक्षणम।। 
अर्थात 'धृति, क्षमा, दमों, अस्तेय शौच, इंद्रिय निग्रह, धी, विद्या, सत्यम और अक्रोध। ------ दशकम धर्म लक्षणम' इत्यादि दस धर्म के लक्षण हैं जैसे धर्म शाला, धर्म पत्नी यानी जहां -जहां धर्म शब्द लगा है वहाँ समाज का विस्वास, पवित्रता, नैतिकता, सामाजिक बंधन, परिवार, काका-काकी, मामा-मामी  ऐसे रिस्ते जो हमे व समाज को बांधे रखता है उसे भारत मे धर्म कहते हैं, भगवान श्रीराम ने एक आदर्श कायम किया उनकी सादगी, सरलता, भाइयों के प्रति कैसा प्रेम की राज्य नहीं लेना चाहते दोनों, श्री राम का जीवन हिन्दू  संस्कृति की ब्याख्या, परिभाषा जीवन मूल्य और सर्वसमावेशी है, वे एक दूसरे को गद्दी पर बिठाना चाहते हैं, जहां श्री क़ृष्ण धर्म स्थापना हेतु महाभारत कराते हैं। वास्तव मे यही हिन्दू धर्म है जो विश्व का सर्व श्रेष्ठ धर्म है । जहां केवल मानव मात्र ही नहीं बल्कि पशु-पक्षी, जीव- जन्तु, नदी, पर्वत सबकी चिंता का विधान है। जहां प्रकृति के प्रति श्रद्धा का भाव है वहीं इसके सरक्षण, संबर्द्धन मे पुण्य माना जाता है इसी धर्म की जय हो । 

अधर्म का नाश हो

अधर्म का नाश हो यानी क्या ? हमे विचार करना है की अधर्म क्या है जिसका नाश हो जो नैतिकता का विरोधी हो, जिसका ब्रंहांड  मे विस्वास नहीं जिसमे पूर्णता मे विस्वास नहीं जहां चरित्र का कोई महत्व नहीं, जहां सम्बन्धों पर विचार नहीं, जहां गोत्र का कोई संबंध नहीं, जिनका प्रकृति का संरक्षण नहीं करते, नहीं जो पीपल, तुलसी आदि औषधियों को नष्ट करना विचार, जिनका नदियों मे मातृत्व का भाव नहीं यानी जल का संरक्षण नहीं जिनका भारत के प्रति माता का भाव नहीं जो गाय को माता नहीं मानते उसे को काटने मे जन्नत महसूस करते हैं जिनका वेद व भारतीय वांग्मय मे विस्वास नहीं भारतीय महापुरुषों मे विस्वास नहीं यहाँ के तीर्थों मे आस्था नहीं वह अधर्म है मै एक कथा बताता हूँ ''एक बार मुहम्मद साहब अपने घर मे गए अपनी पुत्र वधू को स्नान करते हुए देखा उसके साथ बलात संबंध बना लिया। जब उनका लड़का घर पर आया तो उन्होने बताया कि अल्लाह का ''इलहाम'' आया है कि अब ये तुम्हारी माँ है और मेरी पत्नी '' भारत मे कम से कम इसको स्वीकार नहीं किया जा सकता लेकिन इस्लाम मे भाई-बहन का बिवाह जायज है, ईसाईयों मे केवल अगूठी बदलते हैं यह सब भारत मे अधार्मिक कृत्य माना जाता है तो इसका नाश (समाप्त) हो ---!

प्राणियों मे सद्भावना हो 

प्राणियों मे सद्भावना माने क्या ? हिन्दू समाज मे केवल मनुष्य का ही चिंतन नहीं किया गया तो प्राणी मात्र का चिंतन है कहा जाता है कि प्रत्येक मनुष्य को पाँच पेड़ लगाने चाहिए। पीपल का बृक्ष, तुलसी का पौधा नहीं काटना चाहिए तो नीम का बृक्ष घर के बाहर लगाना यानी हमने पेड़-पौधों मे भी आत्मा का दर्शन किया। हिन्दू धर्म के अनुसार केवल गाय को गो ग्रास ही नहीं निकालना तो चींटी को भी चारा देना हाथी मे गणेश का दर्शन करना यहाँ तक 'सूकर' भी विष्णु का अवतार माना जाता है इतना ही नहीं सर्प की भी पूजा उसे दूध पिलाने की परंपरा गरुण 'भगवान विष्णु' की सवारी है तो चूहा 'गणेश जी' का हमारे पूर्वजों (ऋषियों-मुनियों ) ने लाखों करोणों वर्षों मे सम्पूर्ण समाज का चिंतन करते हुए सभी की चिंता, सभी मे सद्भावना बनी रहे ऐसा समाज निर्माण किया । 

विश्व का कल्याण हो

विश्व का कल्याण हो यानी क्या यह हमे समझने की अवस्यकता है कल्याण क्या है -? एक वार धरती को भगवान ''सूकर'' ने बचाया था। भगवान श्रीरामचन्द्र जी ने रावण का वध करके विश्व कल्याण किया था तो ''हृणा कश्यप'' का बध ''नरसिंघ भगवान'' ने किया था द्वापर और कलयुग के संधि काल मे भगवान कृष्ण ने कंस ही नहीं तो धर्म स्थापना हेतु महाभारत करवाया था। भगवत गीता मे उन्होने कहा ''यदा -यदाहि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत, अभ्युत्थानम अधर्मस्य तदात्मानम सृजामिहम'' जब-जब धर्म की हानी होती है मै आता हूँ बिधर्मियों का संहार करता हूँ। वर्तमान मे विश्व कल्याण करना यानी क्या करना जो मानवता का नुकसान कर रहे हैं जो गोबध कर रहे हैं जो विश्व मे हिंसा यानी धर्म के नाम पर अपने को स्वयं भू खलीफा सिद्ध कर हजारों लाखों की हत्या कर रहे हैं जो यह कहते हैं की मेरी ही बात सत्य है मेरा ही धर्म मानने योग्य है मेरा ही पूजा स्थल साधना योग्य है शेष को न जिंदा रहने का अधिकार है न मठ, न मंदिर बनाने का सभी नष्ट करना। सभी ग्रंथागारों को नष्ट करना अथवा करना चाहते हैं, इन राक्षसों को समाप्त करना यानी इन्हे समाप्त करना। जिस मानवतावादी संस्कृति की रक्षा हेतु महाराणा प्रताप ने जीवन भर संग्राम किया, क्षत्रपति शिवा जी महराज ने अफजल खान जैसे आतताईयों की बध किया। गुरु गोविंदसिंह ने पिता, पुत्र सहित अपने प्रिय शिष्यों के बलिदान का आवाहन किया। वीर बंदा बैरागी ने अपने बंद-बंद नुचवाया, भाई मतिदास ने आरे से शरीर को चिरवाया। जिस विश्व कल्याण कारी संस्कृति की सुरक्षा हेतु गुरु तेगबहादुर का बलिदान हुआ धर्म वीर संभाजी राजे ने अप्रितम आहुति दी इन महापुरुषों ने जो किया वही विश्व का कल्याण का मार्ग है ।

हिन्दू चिंतन

जगदीश चंद्र बसु भारत के महान वैज्ञानिक थे, उन्होंने एक प्रयोग किया कि पेड़-पौधों में भी मनुष्यों, पशु-पक्षियों के समान आत्मा होती है। वे भी मनुष्यों, पशु, पक्षियों के समान हर्ष और शोक से प्रभावित होते हैं, तथा मान-अपमान के प्रति बड़े संबेदनशील होते हैं। उन्होंने एक दिन दो पौधे रोपे, प्रतिदिन वे एक पौधे की प्रशंसा करते, उसे सम्मान के साथ फलने फूलने के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते। दूसरे पौधे को प्रतिदिन कोसते, दुत्कारते और अपमानित करते रहते कि तू फले फुलेगा नहीं, बस यूँ ही समाप्त हो जायेगा। नतीजा यह हुआ कि जिस पौधे को जगदीश बसु पुच कारते थे, प्रशंसा करते थे, आशीर्वाद दें रहे थे वह दिन बदिन लह लहाने लगा खूब फल फूल देने लगा। जिस पौधे को वे लगातार अपमानित करते वह मुरझा गया फिर फूल कहाँ से आता? जो बात पौधों के लिए सच है वह पशु पक्षियों के लिए भी सच है, मनुष्यों के लिए भी सच है, यही बात मनुष्य के समाज, जाति और राष्ट्र के लिए भी सत्य है।

सनातन धर्म के त्योहार 

हिंदू धर्म में जो भी त्योहार है सभी काल गणना के अनुसार है यानी वैज्ञानिक विधि विधान से बनाए गए हैं जो हर्षोल्लास, समाधान और संतुष्टि देते हैं। सभी समता, ममता और बंधुत्व का संदेश देते हैं। ऋग्वेद की एक ऋचा कहती है "वयं राष्ट्रये जाग्रयाम पुरोहिता " यानि पुरोहित यानी पुर यानी गांव का हित राष्ट्र के हित के लिए, यह एक ऐसी पद्धति एक अरब छानबे करोड़ आठ लाख वर्ष पहले बनाई गयी थी जो आज भी जीवित है और सनातन धर्म की जीवन रेखा भी है।

होली 

होली का त्योहार एक अनूठा त्योहार है ये नए वर्ष आने का संकेत देता है। प्रकृति अपने नए वर्ष आने वाले प्रमाणों को बताती है जैसे पेड़ पौधों में पतझड़ शुरू हो जाता है और उसमें नए नए कपोलों के साथ आम, लीची व अन्य पौधों में मंजर, फूल और फल आने लगता है। जव, गेहूं, सरसों, गन्ना फसल कटना शुरू हो जाता है किसान प्रसन्नता पूर्वक खुशियां मनाता है और अपने कुल देवता की पूजा पाठ करता है। इतना ही नहीं तो मनुष्यों की शरीर में भी चमड़े नव हड़ते हैं यही नए वर्ष आने के प्राकृतिक दैवीय प्रमाण है। मंदिरों में भीड़ बढ़ जाती है पूजा पाठ शुरू हो जाता है और नए वर्ष का स्वागत हिंदू समाज करता है।

दशहरा 

वयं राष्ट्रँ जाग्रयाम पुरोहिता, कैसे-कैसे त्योहारों की रचना की गई जो जीवंत है आज भी नित्य नूतन है वैज्ञानिक भी है। बुराई पर अच्छाई की विजय किसी न किसी रूप में पूरे देश में सम्पूर्ण हिंदू समाज दशहरा मनाता है और अपने को भगवान श्री राम से, भगवती दुर्गा जी से जोड़ता है यही वास्तव में राष्ट्रीयता का जागरण है इसी नाते यह देश नित्य नूतन बना रहता है। यह धर्म ऐसा है जो प्रत्येक आधुनिकता को स्वीकार ही नहीं करता बल्कि धारण भी करता है किसी प्रकार का कोई भेद नहीं, ऊंच-नीच का भाव नहीं, सभी सुखी हो सभी निरोगी हो यही कामना के साथ त्यौहार मनाया जाता है यही है सनातन धर्म। जब अधर्म पर धर्म की विजय होती है यानी रावण (अधर्म) पर राम (धर्म) की विजय होती है उनका अयोध्या में राज्यारोहण होता है तो सारे जगत में दीपावाली मनाई जाती है।

रक्षाबंधन...!

''येन वद्धों बली राजा'' -- दान वीर राजा बलि -!
हमे प्रहलाद पौत्र "महाराजा बली" की कथा हम सबको ध्यान मे है जब सभी देवता भगवान विष्णु के पास गए की यह देवताओं के राज्य पर 'राज़ा बली' का शासन है। इसे हमे वापस दिलाएँ भगवान विष्णु ने बताया की राज़ाबलि तो बड़े धार्मिक राज़ा हैं इसलिए उनसे युद्ध करना अधार्मिक होगा और अपने मर्यादा के बिरुद्ध होगा लेकिन भगवान विष्णु ने देवताओं की बात मान 'बामन' (बाल ब्रह्मण) रूप धारण कर वे ठीक राजाबली के यज्ञ के समय पहुचे। राजा बलि यज्ञ वेदी पर ही दान किया करते थे किसी से को वापस नहीं करते थे। राजाबली बामन भगवान के सुंदर स्वरूप को देख मोहित हो गया। भगवान ने राजा से दान मांगा राजाबली तो उस समय के सबसे बड़े दानी थे और उस समय तो यज्ञ कर रहे थे, दान पीठिका पर बैठे थे, राजा ने उस बालक से कहा मांगो, लेकिन उनके गुरु शुक्राचार्य ने दान देने से मना किया कहा कि ये सामान्य बालक नहीं ये साक्षात विष्णु हैं ये तुम्हें ठगने आए हैं। लेकिन राजा ने कहा यदि ये विष्णु हैं तो और भी मेरे सौभाग्य की बात है कि विष्णु स्वयं ही मुझसे कुछ मागने आए हैं। वे नहीं माने और दान देने के लिए अडिग हो गए तो बामन भगवान ने उनसे कहा कि हे राजन पहले आप रक्षा सूत्र बंधवाकर संकल्प ले-! फिर मै कुछ माँगूगा । 
राजा को भगवान बामन ने रक्षासूत्र बांध दान मांगा, मुझे केवल ढाई कदम जमीन अपने आसन के लिए चाहिए-! राजा ने जैसे ही स्वीकार किया देखते ही देखते वह छोटा सा बालक महा आकार लेता दिखाई दिया और दो कदम मे ही सारी धरती नाप ली फिर कहा राजन अब मै अपना कदम कहाँ रखू ? राजा ने आफ्ना सिर झुका दिया, भगवान ने वर मागने के लिए कहा तो महादानी राजाबली के भगवान से अपने साथ रहने के लिए कहा उसी समय राजबली पाताल लोक चले गए और भगवान उनके दरवान बन वही रहने लगे, देवताओं ने प्रथम बार रक्षाबंधन का महत्व जाना। 
अब देवलोक मे भगवती लक्ष्मी अकेले रहने लगी भगवान तो पाताल लोक मे राजाबली की चाकरी कर रहे हैं। उन्होने पाताल लोक जाकर राजाबली से भेट कर उनको भाई बना रक्षासूत्र बांधा राजबली ने लक्ष्मी माता से वर मागने को कहा लक्ष्मी जी ने उनसे उनके दरवान को ही मांगा। राजबली तो सब समझ ही रहे थे उन्होने रक्षासूत्र बधवाने के पश्चात भगवान विष्णु को लक्ष्मी को सौप दिया वे देवलोक चले गए। धीरे-धीरे देवता फिर मानव समाज मे यह रक्षाबंधन की परंपरा पड़ गयी।

"येन वद्धों बली राजा"

देवासुर संग्राम हो रहा था बार-बार असुर जीतते देवता पराजित होते तब इंद्राणी ने इन्द्र को युद्ध मे जाते समय रक्षा सूत्र बांधा और देवताओं को विजयश्री प्राप्त हुई। धीरे-धीरे यह त्यवहार का स्वरूप धारण कर लिया। यह त्यवहार पहले वीर-ब्रत के रूप मे मनाया जाता था फिर परंपरा बन राष्ट्रीय पर्व हो गया। धीरे-धीरे यह प्रचलन राष्ट्र ब्यापी हो चला, पुरोहित यानी परहित यानी राष्ट्रहित, पुरोहित हिन्दू समाज का आईना होता है वह गाव-गाव मे प्रत्येक हिन्दू के यहाँ राखी बांध राष्ट्र चेतना जगाने का काम करता था जो आज भी परंपरा मे है पुरोहित हमारा प्रतीकात्मक राष्ट्र है। वही हिन्दू राष्ट्र का प्रतिनिधि करता है इसीलिये वह हमारे हाथ मे राखी बांधता है और हम उसके यानी राष्ट्र की रक्षा का संकल्प लेते हैं वास्तविक रक्षाबंधन यही है।      

विश्व कल्याण का ग्रन्थ 

सर्वे  भवन्तु  सुखिना:,  सर्वे  संतु  निरामया।
सर्वे भद्राणि पश्यंतु, माकश्चित दुःख भागभवेत्।।
सनातन धर्म सारे विश्व को परिवार मानते हुए ईश्वर से प्रार्थना करता है कि सभी सुखी हों, सभी निरोगित हों, सभी पशु पक्षी, पेड़ पौधे रहेंगे तो पर्यावरण ठीक रहेगा।
"याज्ञवळक्य" महान विद्वान ऋषि हुए हैं, वह अपनी पत्नी पंडिता मैत्रेई को उपदेश करते हैं कि हे मैत्रेई ! जो आकाश आदि से भी बड़ा सर्बव्यापक परमेश्वर है, उससे ही ऋग, यजु, साम और अथर्व ये चारों वेद उत्पन्न हुए हैं। जैसे मनुष्य की शरीर से श्वास बाहर आके भीतर को जाता है इसी प्रकार सृष्टि के आदि में ईश्वर वेदों को उत्पन्न करके संसार में प्रकाश करता है, और प्रलय के समय में संसार में वेद नहीं रहते, परंतु उसके ज्ञान के भीतर वे सदा बने रहते हैं। जैसे वीज में अंकुर प्रथम ही रहता है, वही बृक्षरूप होकर फिर भी बीज के भीतर रहता है, इसी प्रकार से वेद भी ईश्वर के ज्ञान में सब दिन बने रहते हैं, उनका नाश कभी नहीं होता क्योंकि वह ईश्वर की विद्या है, इससे इसको सत्य ही जानना चाहिए। (ऋग्वेद भाष्यभूमिका )

अपने मठ, मंदिर और गुरुद्वारों मे पूजा के पश्चात हम केवल यह जय-घोष ही करेगे या विश्व के कल्याण मे कोई भूमिका भी निभाएगे आइए विचार करें।