कांग्रेस उपनिवेशवादी पार्टी अथवा ईसाईयत-इस्लामिक ?

 


कांग्रेस की स्थापना 

कांग्रेस को समझने के लिए सर्व प्रथम कांग्रेस के इतिहास को समझना होगा। कांग्रेस की स्थापना क्यों हुई और इसकी आवस्यकता क्या थी ? अब हमें भारतीय राजाओं, साधू संतों की एकता और उनके संघर्ष को समझना होगा बामपंथी व कांगी इतिहासकारों द्वारा यह झूठ फैलाया गया कि भारतीय रजवाड़े आपस मे लड़ते थे दूसरा सबसे बड़ा झूठ हमारे संतों के बारे में कि साधू-संतों को ढोंगी बताना उनके साधनाओं का मज़ाक बनाना इस प्रकार का भ्रम फैलाया गया। क्योंकि 1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जो लड़ा गया वह हमारे राजाओं की एकता और साधू- संतों जैसे स्वामी दयानंद, स्वामी विवेकानंद और महर्षि अरविंद जैसे अनेकों संतो की प्रेरणा नेतृत्व से लड़ा गया कुछ का मानना है कि यह स्वतंत्रता संग्राम असफल था लेकिन ऐसा नहीं था हम उस संग्राम में सफल रहे। अब ईस्ट इंडिया कंपनी के बस की बात यह नहीं थी कि वह भारत जैसे देश को धोखे में रखकर भारत को नियंत्रण में रख सके, इसलिए 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के पश्चात् उन्होंने ब्रिटिश सरकार यानी महारानी को अपनी सत्ता सौंप दी। ब्रिटिश सरकार को यह ध्यान में आ गया था कि भारत पर शासन करना आसान नहीं है क्योंकि भारत में राजा महाराजाओ को यह ब्रिटिश चाल समझ में आ गई थी। वे राजनैतिक दृष्टि से सतर्क हो चलें थे। ब्रिटिश सरकार को यह ध्यान में आ गया था कि भारतीय राजनैतिक हवा को बिना निकाले भारत पर शासन करना असंभव है। इसलिए एक ब्रिटिश ICS अधिकारी ऐ.ओ. ह्युम ने नौकरी छोड़कर भारतीयों की ब्रिटिश सरकार में सहभागिता के नाम पर कोई बहत्तर ब्यक्तियों जिसमें दादाभाई नौरोजी, विनसा वाचा प्रमुख थे, ए.ओ. ह्युम के नेतृत्व में कांग्रेस की स्थापना की।

ईस्ट इंडिया कंपनी 

ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में कहने के लिए ब्यापार करने आयी थी लेकिन उसकी महत्वकांक्षा कुछ और ही थी, उसने भारतीयों के इतिहास का अध्ययन किया हुआ था कि भारतीय बहुत जल्द ही किसी पर विस्वास कर लेते हैं और यह विचार रखते हैं कि जैसे हम हैं सामने वाला भी वैसा ही है। कंपनी ने भारतीय राजाओं से रोजगार माँगा उसमे मालगुजारी वसूलना प्रमुख थी, जब वे मालगुजारी वसूलने लगे फिर अगली चाल चली कि हमें अपने सुरक्षा हेतु सिक्योरिटी गार्ड भर्ती करने की अनुमति मांगी जिसे हमारे राजाओं ने मान लिए यही सबसे बड़ा धोखा हुआ कंपनी ने सिक्योरिटी गार्ड के स्थान पर अपनी अंग्रेजी सेना भर्ती शुरू कर दी। 

उपनिवेशवाद 

अंग्रेजों ने बड़ी चतुराई से एक विमर्श गढ़ा और प्रचारित किया कि भारतीय रजवाड़े आपस में एक दूसरे से लड़ते रहते हैं। इसलिए ये भारतीय भारतवर्ष पर शासन करने योग्य नहीं हैं । देश में बहुत सारे रजवाड़े ऐसे थे जिन्हे इस्लामिक शासकों अथवा अंग्रेजो ने उन्हें राजा की मान्यता दिया था वे रजवाड़े उनके पक्ष में खड़े दिखाई देते थे। इसलिए जब भारतीय क्रांतिकारियों की लोकप्रियता बढ़ने लगी स्वामी दयानन्द सरस्वती, स्वामी विवेकानंद, महर्षि अरविंद देश के राजाओं, क्रांतिकारियों, गुरुकुलों को आगे बढ़ाने लगे मानों स्थान -स्थान पर क्रांतिकारियों की नर्सरी खड़ी हो रही हो। अंग्रेजों ने अब चिंतन शुरू कर दिया कि लम्बे समय तक अथवा स्थायी तौर पर भारत पर हम कैसे शासन कर सकते हैं? उन्होंने देखा कि यदि हिंदू समाज वेदों, उपनिषदों, रामायण और महाभारत की ओर बढेगा अध्ययन करेगा तो इन पर शासन नहीं किया जा सकता। इसलिए एक तरफ हमारे ग्रंथों में क्षेपक डालने का काम हमारे कुछ लोगों को खरीद कर शुरू कर दिया। दूसरी ओर एक राजनैतिक पार्टी का गठन किया जिससे भारतीय स्वाभिमान स्वाधीनता की हवा निकाली जा सके। उस पार्टी का नाम कांग्रेस रखा और एक प्रस्ताव किया कि कुछ अंग्रेजी पढ़े लिखें लोग ही उसके सदस्य बन सकते हैं एक और प्रस्ताव किया कि किसी आर्यसमाजी को कांग्रेस का सदस्य नहीं बनाना है। अब हम यह समझ सकते हैं कि आर्यसमाज एक राष्ट्रवादी संस्था है इसलिए उन्हें कांग्रेस में नहीं लाना। अब धीरे -धीरे गोखले, मोहनदास कर्मचंद गांधी, जवाहरलाल नेहरू जैसों को अंग्रेजों ने कांग्रेस सौंप दिया जो अंग्रेजो के मार्गदर्शन में चलते रहे इसलिए कांग्रेस ने कभी भी पूर्ण स्वराज्य की मांग नहीं किया। इतना ही नहीं कांग्रेस ने हमेशा क्रांतिकारियों का बिरोध ही नहीं किया बल्कि चंद्रशेखर आज़ाद, भगतसिंह ऐसे तमाम क्रांतिकारियों को फांसी दिलाने में सहयोग किया। एक तरफ स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती के हत्यारे के पक्ष में गाँधी वकालत करते दिखाई देते हैं और कहते हैं कि अब्दुल रशीद ने अपने धर्म का पालन किया है तो दूसरी ओर नेताजी सुभाषचंद बोस को कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटवाने उन्हें भारत से बाहर भिजवाने और अंग्रेजों का अपराधी घोषित करवाने का काम किया। आज भी कांग्रेस पार्टी उपनिवेशवाद की शिकार है उसे राष्ट्रहित- देशहित अच्छा नहीं लगता आज उनकी नशों में अंग्रेजी खून बह रहा है ऐसा दिखाई देता है।


ईसाई मिशनरियों का खेल  और कांग्रेस 

देश का शायद ही कोई जिला केंद्र होगा जहाँ ईसाई मिशनरी का कब्ज़ा नहीं होगा, मिशनरी स्कूल, हॉस्पिटल व अन्य सेवाकेंद्र सभी सरकारी जमीन पर लीज लेकर बनाया गया है उनका एक मात्र उद्देश्य है कि धर्मान्तरण के बल ईसाई संख्या बल बढ़ाना। एक प्रत्यक्ष उदाहरण देता हूँ देश आज़ाद होने के तुरंत भारत के प्रधानमंत्री का "जशपुर" तत्कालीन मध्यप्रदेश में दौरा था जशपुर के आदिवासियों ने भारत के प्रधानमंत्री को काला झंडा दिखाया। तत्कालीन मुख्यमंत्री ने एक जांच कमेटी बनाया जिसका नाम था "नियोगी कमीशन", कमीशन ने जो रिपोर्ट दी वह चौकाने वाला था। रिपोर्ट में कहा गया कि इन आदिवासियों को लगा कि अंग्रेज भारत छोड़कर चलें गए है तो अब अपना शासन नहीं रहा ईसाई मिशनरियों के उकसावे में आकर काला झंडा दिखाया। लेकिन कांग्रेस की आँख नहीं खुली, मिशनरियों का एक उद्देश्य ईसाईयत का प्रचार करना और भारत में ईसाईकरण की प्रक्रिया को तीव्रता से बढ़ावा देना रहा है। अधिकतर ईसाई पादरी यूरोप के पिछड़े वर्ग के अपढ़, असभ्य परन्तु ईसाईयत के सिद्धांतो, रीति रिवाजों, मिथकों तथा दंत कथाओं के प्रति अंध श्रद्धा तथा अटूट आस्था रखते थे, प्रायः इनकी भाषा गाली गलौज से पूर्ण तथा व्यवहार असंतुलित होता था। इसके वावजूद नेहरू ने नार्थ ईस्ट में ईसाई मिशनरियों को खुली छूट दे दिया और हिंदू संतों को नार्थ ईस्ट के कई प्रदेशों में प्रतिबंधित कर दिया परिणाम स्वरुप आज कई प्रदेशों में लगता ही नहीं की वे भारत के हिस्सा हैं।

इस्लाम के प्रति 

देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था वह भी जो भाग आज पाकिस्तान में है वहाँ के लोगों ने मुस्लिम लीग को वोट नहीं दिया था वहाँ पर कांग्रेस जीती थी ठीक इसके उलट उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में मुस्लिम लीग जीती इसका अर्थ यह हुआ की इन प्रदेशों के मुसलमानो ने पाकिस्तान के पक्ष में वोट दिया लेकिन वे पाकिस्तान नहीं गए। कोलकाता के एक भाषण में सरदार पटेल ने कहा था कि क्या चौबीस घंटे में आपका मन बदल गया है ? इतना ही नहीं संविधान सभा मे एक बहस के दौरान मुस्लिम नेताओं ने मुस्लिमों के कुछ अलग निर्वाचन, सरिया की भी मांग पर सरदार पटेल ने कहा कि अभी भी आपके लिए पाकिस्तान का रास्ता खुला हुआ है आप जा सकते है। बहस में मौलाना आज़ाद ने कहा क़ि हम छोटे भाई की भूमिका में रहेंगे, सरदार पटेल ने कहा सबके लिए एक कानून रहेगा लेकिन दुर्भाग्य बस असमय सरदार पटेल की मृत्यु होने के कारण नेहरू बेलगाम हो गए। और भारत को इस्लामिक देश बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी, मौलाना आज़ाद (जो न भारतीय नागरिक थे न ही उन्हें अंग्रेजी अथवा हिंदी आती थी वे विशुद्ध मदरसा छाप थे) को स्वतंत्र भारत का प्रथम शिक्षा मंत्री बनाकर भारतीय चिति यानी राष्ट्रवाद को समाप्त करने और भारतीय शिक्षा का इस्लामीकरण करने का भरपूर प्रयास किया। इसी रास्ते पर इंद्रा गांधी, राजीव गांधी तथा सोनिया गांधी बढ़ते रहे।

सच्चर कमीशन 

यूपीए की सरकार में कहने को तो मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री थे लेकिन सारा का सारा अधिकार सोनिया गाँधी का था बिना सोनिया के कोई पत्ता नहीं हिलता था। सच्चर कमीशन ने एक रिपोर्ट पेश किया जिसका पूरे देश मे प्रत्येक स्तर पर बिरोध हुआ वह रिपोर्ट लागू नहीं हो पायी, रिपोर्ट मे था कि कहीं भी दंगा होता है दोष किसी का हो लेकिन गिरफ़्तारी हिन्दू की ही होगी। हिन्दुओं के घर किराये पर जबरदस्ती ले सकते हैं फिर उनकी इच्छा पर है कि वे छोड़ेगा अथवा नहीं! 

बांग्लादेशी व रोहंगिया घुसपैठ 

2005 से 2014 के बीच रोहंगिया मुस्लिम की संख्या मे एक बैग बढ़ावा आ गया पहले तो बांग्लादेशी घुसपैठिये पूरे देश मे फैल गए थे जम्मू कश्मीर से कन्याकुमारी तक कोई जिला ऐसा नहीं है जहाँ ये घुसपैठिये नहीं हैं बिहार के कुछ जिले जिसमें किसनगंज, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, दरभंगा, पश्चिमी व पूर्वी चम्पारण सीमांचल होने के कारण यह क्षेत्र संवेदनशील हो गया है, झारखण्ड का संथाल परगना, रांची, लोहरदगा तथा सारा वनवासी क्षेत्र अब हिंदू आदिवासी असहज महसूस कर रहा है और हिन्दू अपने घर छोड़कर पलायन करने को मजबूर हो रहे हैं। रोहंगिया अथवा बांग्लादेशी घुसपैठिये सीधे अपने तय सेंटर पर जाते हैं उन्हें वहाँ से बताया जाता है कि किस लोकसभा सीट पर मुसलमानो की संख्या कम है उन्हें भेजा जाता है। उन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है कि जो स्थान सरकारी है स्लम एरिया है सडक के किनारे नदी के किनारे वे बस जाते हैं, स्थानीय मस्जिद उनके रोजगार की ब्यवस्था करती है, ठेला की ब्यवस्था, सब्जी बेचने की ब्यवस्था, राजमिस्त्री का, लेवर का काम इत्यादि। धीरे धीरे हिंदू सरकारी नौकरी के चक्कर में अपने अनुवानसिक रोजगार छोड़ता जा रहा है और घुसपैठिये उस पर कब्ज़ा करते जा रहे हैं। मुस्लिम घुसपैठिये किसी मुस्लिम देश में घुसपैठ नहीं करते और करना भी चाहते हैं तो इस्लामिक देश उन्हें शरण नहीं देते उनकी योजना रहती है कि गैर मुस्लिम देशों का इस्लामीकरण करना।

"इन सबकी दोषी कांग्रेस पार्टी है और उनका भी दोष नहीं है उसका डी.एन.ए. ही ऐसा है लेकिन सर्वाधिक दोषी हिंदू समाज है जो इस कांग्रेस को पहचान नहीं सका। "


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