भारतीय संस्कृति का प्रतीक प्रयागराज महाकुम्भ


 महाकुम्भ 

कुम्भ सनातन धर्म में आस्था का विषय है, यह हिंदू संस्कृति के आस्था का प्रतीक है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों में भी इसका वर्णन है। सूर्य की बारह राशियों में से एक राशि का नाम कुम्भ है। किसी भी साधना अथवा शुभ कार्यों में सर्व प्रथम कुम्भ कलश की स्थापना की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार कलश के मुख में विष्णु, ग्रीवा में रुद्र और मूल में ब्रम्हाजी का वास रहता है। सप्त सिंधु, सप्त द्वीप, ग्रह, नक्षत्र और संपूर्ण ज्ञान भी कुम्भ कलश में रहता है। एक पौराणिक मान्यता और भी है जब समुद्र मंथन हुआ था उसमें से निकले विष को महादेव पी गए लेकिन अमृत निकलने पर देव और दानवो में युद्ध हुआ, अमृत घट चार स्थानों हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक में गिरा। इन्हीं चार स्थानों पर कुम्भ लगता है। विश्व में कहीं भी अमृत की चर्चा नहीं है केवल भारतीय वांगमय में अमृत है अमृत की प्रीति भी अमृत है, सूर्य अमर हैं प्रतिदिन उगते हैं और अस्त होते हैं। मास, वर्ष, युग बीतते हैं नदियाँ प्रवाह मान होती हैं ।

आदि काल से कुम्भ 

कुम्भ की मान्यता बहुत पुरानी है, कुम्भ क्या और क्यों? हिंदू संस्कृत नित्य नूतन परंपरा का नाम है, पुरानी नीव नया निर्माण का नाम है हिंदुत्व। समाज में किसी प्रकार की कोई विकृत नहीं रहनी चाहिए इसलिए मंथन समुद्र मंथन, एक संस्कृति एक चिंतन के लिए मंथन। जैसे सनातन धर्म के बारे में कोई नहीं कह सकता की कब से उसी प्रकार कुम्भ कब से इसका भी कोई तिथि नहीं है। प्रयाग राज मुख्यतः नगर क्षेत्र नहीं है, सरकारें खूबसूरत नगर बना सकती हैं। लेकिन प्रयाग जैसा तीर्थ कोई भी सत्ता नहीं बना सकती, प्रयागराज जैसे तीर्थ हज़ारों लाखों वर्षो की साधना से बनते हैं, गजब की है यह पुण्यभूमि। ऐसा माना जाता है कि पाणिनि ने यहीं पर अष्टाध्याई लिखी थी। तुलसीदास ने इसे 'क्षेत्र अगम गढ़ गाढ़ सुहावा ' कहकर काल का वर्णन करते हैं। एक विदेशी ने 1895में कुम्भ देखकर लिखा था, 'आश्चर्यजनक श्रद्धा की शक्ति ने वृद्धाओं, कमजोरों, युवाओ को असुविधा जनक यात्रा में अनायास खींच लाती है इसका कारण क्या है? वायसराय लिनलिथगो ने 1942 में विशाल कुम्भ को देख पंडित मदनमोहन मालवीय से पूछा इतने लोगों को निमंत्रण के लिए बड़ा धन व्यय हुआ होगा, मालवीय जी ने उन्हें बताया कि सिर्फ दो पैसे के पंचांग को देखकर यहाँ लाखों लोग आये हैं।

आस्था का प्रतीक 

कुंभ आस्था है, सांस्कृतिक प्रतीक है। वेदों, उपनिषदों और पुराणों जैसे पुरातन ग्रंथों में भी वर्णन मिलता है। सूर्य की बारह राशियों में से एक राशि का नाम कुंभ है, मांगलिक कार्यों में सर्व प्रथम कुंभ की स्थापना की जाती है। स्कन्ध पुराण के अनुसार अमृत घट चार स्थानों पर हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक गोदावरी तट पर गिरा था। इन्हीं चार स्थानों पर कुंभ लगता है, कहते हैं और ऐसी भारतीय मान्यता हैं कि अमृत मिले तो अनंत काल तक जीवन। कुंभ मेले में लाखों साधू, संत आये हैं उनके मन में गृहस्ती की चिंता नहीं है, लेकिन लाखों गृहस्थ भी कुंभ समागम में आये हैं सबका विस्वास है कि कुंभ में स्नान करने और पुष्पार्चन जीवन को सुन्दर और सुखी बनाएगा। लाखों लोग कुंभ में आते हैं कौन किस जाति का है कोई नहीं जानता। न कोई किसी की जाती पूछता है वास्तविकता यह है कि ये कुंभ समरसता का कुंभ है, ये संवाद का कुंभ है, ये शांति का कुंभ है। यह ये बताता है कि भारतीय समाज में कभी जातीय व्यवस्था नहीं थी, ऊंच नीच भेद भाव नहीं था यह कुंभ इस बात को प्रमाणित करता है।

विश्व का सबसे बड़ा महानगर 

आश्चर्य नहीं करियेगा यह अब तक का सबसे विशाल कुंभ महानगर है, जिसे राज्य सरकार ने जिला घोषित कर रखा है। इसमें कुल पचीस सेक्टर बनाये गए हैं जिसमे नौ सेक्टर गंगा उस पार और सोलह सेक्टर गंगाजी यमुना जी के पार। लगभग यह दस हज़ार एकड़ का विशाल नगर है जिसमें एक करोड़ साधू संत श्रद्धालु रह सकते हैं। यह कोई डेढ़ महीने वाला अस्थायी पर विकसित महानगर है, जहाँ लखनऊ, कानपुर और आगरा तीनों के नागरिकों को एक साथ वसाया जा सकता है।

श्रद्धा ऐसी भी 

भंडारे में पकते व्यंजनों की खुसबू और हवन सामग्री की महक का मिलन चहु ओर है। कहीं मन्त्रोंच्चारण की प्रखरता तो कहीं प्रवचन की निर्मलता, यह महानगर सोता नहीं है पल -पल जाग रहा है। उसे पता है कि यहाँ का परम आनंद के कुल पैतालिस दिन है उसमें भी लगातार घटता जा रहा है। कहते है कि यह अवसर 144 वर्ष वाद आया है जो सभी का हर्षोल्लास देखने को मिल रहा है खैर देर रात "ग्रेटर नोयडा" में उतरने वाला कैव ड्राइवर हाथ जोड़कर भाऊक हो जाता है पैसे नहीं लूंगा आप महाकुम्भ से आये हैं मेरा सौभाग्य आपकी पावन यात्रा में मुझे सेवा करने का सुयोग मिला वाकई यह महाकुम्भ दूर सुदूर तक श्रद्धालुओं को आस्था से भिगो रहा है। जब तक यह पोस्ट लिखी जा रही है उस समय २९ जनवरी अमावस्या तक कुम्भ में ३५ करोड़ श्रद्धालुओं ने स्नान कर लिया है। यह अभी तक विश्व के किसी भी धार्मिक उत्सव में सर्वाधिक उपस्थिति मानी जा रही है।

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