इस्लाम का अंतर मन
मुहम्मद इकबाल ने एक पुस्तक लिखी है जिसका नाम है ''शिकवा'' उन्होने उसमे अल्लाह से सिकायत की है अपने मन की बात बड़ी बेबाकी से खुदासे कहा कि इस्लाम के नाम पर हम मुसलमानों ने लाखों मंदिर तोड़े, लाखों-करोणों निरपराध लोगो की हत्या की, दुनिया की धरोहर साहित्यों के पुस्तकालयों को जलाया और विश्व की तमाम पुरातन संस्कृतियों को समाप्त किया ---फिर मिला क्या--? गंदगी, गरीबी, हिंसा, हत्या और बलात्कार मे फंसा निराशा भरा जीवन-!''हो जाएँ खून लाखों लेकिन लहू न निकले,
जिनको आता नहीं दुनियाँ मे कोई फन तुम हो !''
इकबाल यहीं नहीं रुकते वे आगे इसका जबाब भी लिखते है ''जबाबे शिकवा'' उसमे वे लिखते हैं कि हे अल्लाह तुमने हमे लड़ने की क्षमता दी, जहां इस्लाम का उदय हुआ तेल का कुवां दिया जिससे इस्लाम मे संपन्नता हुई ऐसे इकबाल दो पुस्तक लिखते हैं। (ये बाद मे मुल्लाओं के दबाव मे लिखा गया)
आज का इस्लाम कहाँ खड़ा है इस पर विचार करते हैं क्या इकबाल ने जो शिकवा मे कहा वही सही है ? क्योंकि इतनी हिंसा के पश्चात क्या मिला ! लगता है की इकबाल ने जबाबे शिकवा को मुल्ला-मौलबियों के दबाव मे लिखा, वर्तमान समय मे इस्लाम की हालत बड़ी दयनीय बन गयी है, इस्लाम विश्व पटल पर आतंक का पर्याय, अमानवीय हो गया है जब हम विचार करते हैं तो ध्यान मे आता है की ''यू एन'' के एक आकडे के अनुसार 25 वर्ष से आज तक विश्व मे 'एक करोण पाचीस लाख' मुसलमान मारे गए हैं इनको किसने मारा उसका भी आकडा है अमेरिका, इंग्लैंड, फ्रांस, जर्मनी, रुश, इशरायल, भारत और चीन इत्यादि देशों ने आतंकबाद अथवा किसी युद्ध मे कुल दस लाख मुसलमानों को मारा होगा तो एक करोण पंद्रह लाख कहाँ चले गए --वे आपस मे लड़कर मर गए कहते हैं की इस्लाम शांति, प्रेम मुहब्बत का धर्म है, कैसे हैं ये शिया -सुन्नी को नहीं देखना चाहता न सुन्नी- शिया को, अहमदिया, कादियानी जैसे इनके बहत्तर फिरके हैं जिसमे एक दूसरे को अपने शत्रु ही समझते है यानी इनकी पोल यहीं खुल जाती है ये शांति और प्रेम मुहब्बत का धर्म नहीं केवल 'अरबियन राष्ट्रवाद' का विस्तारवाद है।
आखिर क्यों और कैसे--?
इराक के राष्ट्रपति सद्दाम हुसेन जो सुन्नी थे उन्होने इराक मे लगभग 30 लाख शिया मुसलमानों की हत्या की उसके बदले ईरान के राष्ट्रपति अयातुल्ला खुमैनी जो शिया थे 25 लाख सुन्नियों को मरवा दिया इराक -ईरान का युद्ध हुआ जिसमे आठ लाख ईरानी और पाँच लाख इराक़ी मारे गए, कोरियन गृहयुद्ध मे 1950 से 53 तक उन्नीस लाख, सुडान गृह युद्ध 1955से 1972 और 1983 से 2006 अट्ठारह लाख सत्तर लाख संख्या मे मारे गए, ऐसे पूरा इस्लामिक देश लड़कर मरते रहे इधर पिछले दस सालों मे कहीं अलकायदा, कहीं आईएस आईएस, कहीं बोको हरम, कहीं जमात उल दवा, कहीं हरकत उल मुजाहिदीन कहीं तालिबान अथवा अन्य आतंकवादी संगठन जो अपने को असली इस्लाम के मसीहा ही नहीं सभी आतंकी संगठनों के प्रमुख अपने को असली खलीफा बताते हैं इस्लाम के नाम पर ही लाखों की हत्या कर चुके हैं यहाँ तक की स्कूली बच्चों को भी नहीं बक्स रहे हैं महिलाओं मे भी अपने बच्चों को आतंकवादी बनाना गर्व की बात, आईएस आईएस इराक के कई भागो पर कब्जा कर चुका है 'इराक और सीरिया' को इस्लामिक स्टेट बनाना चाहते हैं इनकी और माओवादियों की कार्य पद्धति एक ही है (स्वयंभू सरकार) लेकिन इराक पर कब्जा इतना आसान नहीं 'आईएस आईएस' के पास सात हज़ार लड़के हैं जबकि इराक के पास ढाई लाख की सेना है, इस समय 'आईएस आईएस' के पास 14 हज़ार करोण की समपत्ति जो सभी आतंकी संगठनों के समाप्त का कारण बनेगी संपत्ति को लेकर संघर्ष होना स्वाभाविक है, आखिर वे किसकी हत्या कर रहे हैं इस्लाम के नाम वे मुसलमानों की ही हत्या --!
1 टिप्पणियाँ
धन्यवाद 🙏🌷
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