इजरायल का संकट--!
हमारे देश के नेतागण और बुद्धिजीवी अंदरूनी राजनीति की सनक (इस्लामी वोट बैंक) अंतरराष्ट्रीय संबंधों तक ले जाते हैं। तभी वे हमेशा फलस्तीन की फिक्र करते हैं और इजरायल को दैत्य जैसा दिखाने की फिराक में रहते हैं। वे बुनियादी बातों पर चुप रहते हैं कि कई मुस्लिम शासक, संगठन इजरायल का अस्तित्व ही मिटा देना चाहते हैं। ईरान के पिछले राष्ट्रपति अहमदीनेजाद ने इजरायल को 'दुनिया के नक्शे से हटा देने' की बार-बार घोषणा की थी। इसलिए नहीं कि इजरायल ने उनके साथ कोई बदसलूकी की, बल्कि सिर्फ इसलिए कि वह यहूदियों से घृणा करते हैं। कभी हमारे नेताओं ने इस पर संसद में चर्चा क्यों नहीं की-? हमेशा फलस्तीन की फिक्र के पीछे वही इस्लामपरस्ती है जो उनकी अंदरूनी राजनीति की झक है। अत: यदि गाजा पर चर्चा हो तो 1948 से अब तक की पूरी स्थिति पर होनी चाहिए। इजरायल के जन्म के तुरंत बाद ही उस पर मिश्र, इराक, जार्डन, लेबनान, सीरिया व अरब देश ने साझा हमला किया था। यानी शुरू से ही इजरायल की जान पर आफत है-! मगर दुष्प्रचार से प्रभावित होकर अनेक लोग सदैव इजरायल को ही दोषी मान लेते हैं। सच तो यह है कि हाल तक मुस्लिम समाज यहूदियों को कायरता का दूसरा नाम समझता था। मशहूर शायर अल्लामा इकबाल ने अपनी ऐतिहासिक पुस्तक 'शिकवा' में मुसलमानों को जिहाद के लिए प्रेरित करने के लिए ताना मारा था कि वे यहूदियों से भी कायर हैं।कायर नहीं सहिष्णु
सच्चाई यह है कि सदियों से यहूदी व्यापारी प्रकृति के शांति-प्रिय
लोग रहे हैं। फिर भी मानव इतिहास में सबसे अधिक जिनका उत्पीड़न हुआ है वे
यहूदी हैं। प्रत्येक इस्लामी, ईसाई देशों में अपने उत्पीड़न से आहत होकर
आखिर उन्होंने अपने एक अलग देश की मांग की, जिसे अंतत: विश्व समुदाय ने
स्वीकार किया। इस प्रकार, इजरायल नामक यह देश संयुक्त राष्ट्र ने मई 1948
में निर्मित किया था। फिर वहां दुनिया के कोने- कोने से यहूदी आकर बसे,
लेकिन उसके चारों तरफ जमे इस्लामी शासकों को यह मंजूर नहीं था। यही झगड़े की
जड़ है। इस्लामी देशों ने बार-बार इजरायल को बलपूर्वक खत्म करने की कोशिशें
की हैं। इस तरह के हालात ने यहूदियों को योद्धा बनाया। हमें उनका अभिनंदन
करना चाहिए, भर्त्सना नहीं। इजरायल न केवल हमारा मित्र देश है, बल्कि
आत्मरक्षा और आत्मसम्मान के पाठ में हमें उससे कुछ सीखना भी चाहिए। विगत
कुछ वषरें से इजरायल पर हमलों की प्रकृति वही है जो हम कश्मीर में बीस साल
से झेल रहे हैं। यानी किसी देश द्वारा संगठित, आधिकारिक आक्रमण के बदले
आतंकी संगठनों द्वारा जब-तब हमले। उनकी पीठ पर कई देशों की सरकारें भी हैं,
मगर उन्हें सीधे-सीधे जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। जैसे पाकिस्तान
लश्करे-तैयबा, हिजबुल मुजाहिदीन, माओवादियों आदि को सहयोग, समर्थन देकर
भारत को सताता है उसी तरह पहले शिया आतंकी संगठन हिजबुल्ला ने इजरायल पर
हमला किया, जिसने दक्षिण लेबनान में मजबूत ठिकाना बना लिया था। उसे ईरान व
सीरिया का सहयोग और प्रोत्साहन था। फिर कुछ वर्षों से सुन्नी हमास गाजा से
हमले कर रहा है। यूरोपीय संघ से लेकर जापान तक अनेक देशों ने हमास को
आतंकवादी संगठन घोषित कर रखा है। हमास से कई पड़ोसी मुस्लिम देश भी सशंकित
रहते हैं। उसी की मदद में अभी हमारे वामपंथी नेता और बुद्धिजीवी बयान दे
रहे हैं।
2 टिप्पणियाँ
इस्लामिक देश इजरायल को समाप्त करना चाहते हैं तो क्या यहूदियों को अपने सुरक्षा का भी अधिकार नहीं! और मुसलमानो से रक्षा करना है तो उसे लड़ना ही पड़ेगा चाहे इजरायल हो अथवा कोई और देश ।
जवाब देंहटाएंजागरूक कराती सामयिक प्रस्तुति ..आभार
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