नाई समाज का गौरवशाली इतिहास---।

वैदिक मान्यताओ का समाज

भारतीय समाज में यह समाज बड़ा ही बुद्धिमान समाज माना जाता है, गाओं में "नाई समाज" इस समाज के बारे में भिन्न भिन्न प्रकार की किंबदंती बनी हुई है। 'वैदिक काल' में हिंदू समाज में जातीय ब्यवस्था न होकर वर्ण व्यवस्था थी "भगवान श्री कृष्ण" "श्री गीताजी" में कहते हैं "चातुर्वर्ण्य मयासृष्टा गुण कर्म विभागसः" इससे यह पूर्ण रूपेण समझा जा सकता है कि आज के पाँच हजार वर्ष पहले जातिय ब्यवस्था न होकर वर्ण व्यवस्था थी। हिन्दू समाज में कर्म के आधार पर यह ब्यवस्था बनी थीं कालांतर में धीरे धीरे जाति में परिवर्तित हो गई, जहाँ "पुरुषोत्तम श्री राम" 'मनुस्मृति' के दर्शन हैं तो वहीं 'राजा भरत' भारतीय ब्यवस्था के निर्माता। सभी को रोजगार कोई बेरोजगारी नहीं गांव में सभी का सहकार केवल कंमाने वाला खायेगा ऐसा नहीं तो सभी अपना काम करेंगे मिलकर बाटेंगे ऐसी ब्यवस्था प्रत्येक गांव में "बढ़ई, लोहार, कोहार, नाइ, धोबी, पुरोहित, टिकुलिहार" इत्यादि ये सभी खेती नहीं करते थे बल्कि प्रत्येक फसल पर इन्हें उत्पाद का एक हिस्सा मिलता था। जिससे सभी (जीवकोपार्जन) को वर्ष भर खाने के लिए अन्न उपलब्ध हो जाता था सभी सुख पूर्वक जीवन ब्यतीत करते थे यह अयोध्या के "राजा भरत" की बनाई ब्यवस्था थी।

कही यह समाज ब्राह्मण तो नहीं था?

जयपुर विश्वविद्यालय के एक प्रोफेसर ने एक पुस्तक लिखा "ब्राह्मण वंशविस्तार" जिसमें उन्होंने नाई समाज को ब्राह्मण माना है उसका दर्शन आज भी दिखाई देता है बिना नाई के हिन्दू समाज में कोई भी कर्मकाण्ड नहीं हो सकता। जब पुरोहित आएगा तो बिना नाई के वह अधूरा रहता है यदि वह दाहिना हाथ है तो नाऊ ठाकुर बायां हाथ। कभी कभी तो ध्यान में आता है कि पुरोहितों को नाई ही सब क्रिया कलाप बताता रहता है, इतना ही नहीं तो दिखाई देता है कि कई स्थानों पर नाऊ ठाकुर ही विवाह करा देता है। समाज में नाई बहुत बुद्धिमान कहा जाता है और ब्राह्मण तो बुद्धिमान होता ही है दोनो का मेल भी लगता है। वैदिक काल में जिसे हम विद्या की देवी सरस्वती कहते हैं वास्तविकता यह है कि सरस्वती नदी के किनारे ''ब्रह्मा जी'' को अमैथुनी से उत्पन्न चार ऋषियों  अग्नि, आदित्य, वायु और अंगिरा ने चारों वेदों का ज्ञान दिया। इसी नदी के किनारे ऋषियों ने गुरुकुल खोलकर समग्र समाज को वेदों की शिक्षा दी इसी कारण इस सरस्वती को विद्या की देवी कहा जाता है, जब मानव संस्कृति का विकास होना शुरू हुआ तो हमारे ऋषियों ने सारस्वत ब्राह्मणों (जागा, भांट, तिर्थ पुरोहित, पंडा, टिकुलिहार, नाई ) को इस विकास क्रम को जिसे हम कर्मकाण्ड कहते हैं। सभी नदियों के किनारे, सभी तीर्थों में भेजा जिससे सारे समाज में यह संस्कृति का विकास हो सके, धीरे धीरे मध्य काल में इस्लामिक षड्यंत्र द्वारा वर्तमान के ब्राह्मणों ने इन्हें ब्राह्मण मानने से इंकार किया जबकि सारे ग्रंथों में यह सारा समाज ब्राह्मण है और इनके सारे कर्म ब्राह्मणों के हैं।

कहीं ये राजपूत तो नहीं!

वैदिक काल से ही अपने समाज में जो रचना बनायी गयी है उसमें शासन करने राज्य चलाने का काम क्षत्रिय वर्ण का था अथवा वर्ण व्यवस्था के अनुसार जो भी राजा होता वह क्षत्रिय हो सकता था। यह हमारे यहाँ विधान था "समरथ को नहि दोष गोसाँई" कोई भी राजा बन सकता था कोई भी अपनी योग्यता के अनुसार ब्राह्मण वन सकता था। इतिहास के अनुसार भारतवर्ष का सबसे बड़ा प्रतिभाशाली शासक नंद वंश का संस्थापक प्रथम चक्रवर्ती सम्राट जिसने सम्पूर्ण भारत को एक करने का प्रयास किया "घनानंद, महापद्मनंद" जिसकी राजधानी "पाटलिपुत्र" थी कहते हैं कि वह नाई समाज का था इस वंश ने भारतवर्ष पर सैकड़ों वर्ष शासन किया कुछ लोग सम्राट अशोक को भी नाई मानते हैं। बड़ा प्रतिभाशाली प्रतिभा सम्पन्न सामाज है मध्य काल में भारत में स्वामी रामानंद हुए जिनके द्वादस भागवत शिष्य थे जिनमें "संत सेन" थे जो "नाई समाज" के थे। इससे यह ध्यान में आता है जहां यह समाज पुरोहित कर्म के द्वारा समाज के उन्नयन में रहा वहीँ शासक भी था।

सर्जरी का वैद्य भी

अपने देश में हज़ारों वर्ष पूर्व एक वैद्य का नाम जिसे भारतवर्ष का कौन सा ब्यक्ति है जो नहीं जानता होगा पौराणिक मान्यता के अनुसार जब वे राजा परीक्षित को बचाने जा रहे थे तो रास्ते में एक सूखे पेड़ को हरा भरा कर दिया था ऐसे जो वैद्य थे उनका नाम ''धन्वंतरि वैद्य'' था जो इसी 'नाई समाज' के थे। भारतीय समाज में आज भी गांव गांव में घरेलू वैद्य मिल जायेंगे इतना ही नहीं तो घर में जो बुजुर्ग होंगे वे बहुत से असाध्य रोगों की औषधि बता सकते हैं। इस प्रकार की जागृति ब्यवस्था हमारे यहाँ थी ऐसा लगता है कि जो सर्जरी की चिकित्सा थी वह सारा इसी समाज के पास थी चेन्नई बंगलुरु तथा बहुत सारे स्थानों पर जो सर्जरी के प्रशिक्षण की ब्यवस्था थी वह इसी समुदाय के पास थी। मैं बचपन में देखता था कि हमारे जो 'नाऊ ठाकुर' थे वे किसी के फोड़ा फुंसी हुई तो वही ऑपरेशन कर देते थे इसका मतलब यह है कि इस समाज के पास पुरोहित के साथ साथ वैद्यकीय ब्यवस्था भी थी जहाँ पुरोहित पूरे गांव को बांधकर रखता था वहीं ये सब वैद्य भी हुआ करता था यह परंपरा सी बन गई।

परकियों की आँख लग गई

जब इस समाज में चक्रवर्ती सम्राट हुए तो हम समझ सकते हैं कि विदेशी शत्रुओं की कमी नहीं रहा होगा जिनसे खतरा समझा उन्हें किसी प्रकार से समाप्त करने का प्रयास करते रहे आखिर सिकंदर मगध साम्राज्य की विशाल सेना के भय से ही भागा वापस अपने देश में लौटा उसकी विजयी सेना आगे बढ़ नहीं सकी ऐसे वीर बुद्धिमान जाति के शत्रुओं की कमी नहीं, सातवीं शताब्दी में पश्चिम एक पंथ का जन्म हुआ जो हिंसा हत्या बलात्कार पर ही आधारित था जिसे आज हम इस्लाम के नाम से जानते हैं। मध्यकाल में जब आततायी आतंकवादी इस्लाम के हमले होने शुरू हो गए तो ऐसा नहीं रहा होगा कि यह समाज आगे नहीं आया होगा इसी समाज से स्वामी रामानंद के शिष्य ''भक्त सेन'' भी थे जिन्होंने इस्लाम से संघर्ष भी किया था। देश में जब ब्रिटिश शासन आया तो अंग्रेजों ने देखा कि इस समाज के गुण बहुत हैं, जब 1861 का जनगणना हुई तो ध्यान में आया कि प्रत्येक गाँव में गुरुकुल, वैद्य, पुरोहित सभी ब्यवस्था है तो उन्होंने भेद डालने का काम किया फूट डालो राज करो की नीति अपनाई और जो हमारे यहाँ वर्ण व्यवस्था थी उसे जाति ब्यवस्था में बदलना शुरू कर दिया पहले इस्लामी आतताइयों ने दुबारा अंग्रेजों ने लंबे समय से इन परकियों के शासन होने के कारण इसका प्रभाव ही नहीं तो यह हिन्दू समाज के अभ्यास में आ गया उन्होंने 'नाई समाज' को पिछड़ा घोषित कर दिया और हीन भावना पैदा करने का काम किया।

और मतान्तरण

पहले भेद खड़ा किया फिर बलात धर्मान्तरण शुरु किया मुसलमानों ने कहा कि हिन्दू समाज में भेद भाव है इस्लाम में नहीं है यह बात भोले भाले लोग समझ नहीं पाए कि इस्लाम मे "72 फिरके" (मत) हैं जो एक दूसरे को हिंसा हत्या पर उतारू रहते हैं। प्रतिदिन इस्लामिक देशों का जो एक आंकड़ा सामने आया है लाखों मुसलमान मारा जाता है उसे कोई और नहीं बल्कि ये बहत्तर फिरके जो एक दूसरे को काफिर समझते हैं हत्या करते हैं। धर्मान्तरण तो किये लेकिन जो बाल काटने का ही काम करते हैं आज भी वही करते हैं हिन्दू समाज में तो आज भी बिना 'नाई' के कोई शुभ कार्य नहीं किया जाता है। देश में 50% से अधिक नाई मुसलमान हो गया है समय की आवश्यकता है कि उसे पुनः हिन्दू धर्म में वापस लिया जाय, आज समय की आवश्यकता है कि समाज खड़ा हो संगठित होकर अपने पुराने गौरव स्वाभिमान और सामर्थ्य के बल आगे बढ़े अपनी पाचन क्रिया को ठीक करेके जो बंधु बिछड़ गए हैं उन्हें वापस अपने स्वधर्म में लाएं। ईश्वर ने हमें एक बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है वह यह कि नाई समाज हीन भावना से ऊपर उठाकर सारे हिन्दू समाज को संगठित करने का काम करे समाज की रक्षा उसके प्रगति में सहभागी बने।

संदर्भ ग्रंथ--- भविष्य पुराण, भारत का प्राचीन इतिहास-सत्यकेतु विद्यालंकार, कलिकालीन भारत- कुंजबिहारी जालान, ब्राह्मण वंश विस्तार, मौर्यकालीन भारत-।