पूज्य गुरु नानकदेव का भारतीय राष्ट्र निर्माताओ, समाज सुधारको और धर्म रक्षको में गौरवपूर्ण स्थान है, वह उस पंथ के संस्थापक है जिसमे विवेक, बैराग्य, भक्ति, ज्ञान, निष्काम कर्मयोग और आत्मसमर्पण की भावना निहित है, वे मौलिक चिन्तक, क्रन्तिकारी धर्मसुधारक, अदुतीय युग निर्माता, महान देशभक्त, दीन- दुखियो के हितैसी तथा दूरदर्शी राष्ट्र निर्माता भी थे, १०नवम्बर १४६९ को कार्तिक पूर्णिमा के दिन- रायभोई तलवंडी [ननकाना साहिब ] में बेदी कुलचंद पटवारी के गृह "माता तृप्ताजी" ने एक शिशु को जन्म दिया यही बालक आगे महामानव गुरु नानकदेव के नाम से प्रसिद्द हुआ।
कलियुग के कुत्ते
मुसलमान शासको ने अपने धर्म प्रचार के लिए कोई बात उठा नहीं रखी थी उन्होंने धर्म- परिवर्तन के कई अस्त्र निकाले, जिनमे यात्रा कर, तीर्थयात्रा कर, धार्मिक मेलो, उत्सवों और जुलूसो पर कठोर प्रतिबन्ध, नए मंदिरों के निर्माण तथा पुराने मंदिरों का जीर्णोद्धार पर रोक, हिन्दू धर्म और समाज के नेताओ का कठोर दमन, मुसलमान धर्म स्वीकार करने पर बड़े- बड़े पुरस्कार और ओहदा देने आदि मुख्य थे, इन्ही अस्त्रों के द्वारा वे लोग हिन्दू धर्म को भारत से सर्बथा नष्ट कर देना चाहते थे, "गुरु नानकदेव" के शब्दों में तत्कालीन राजनितिक परिस्थिति का अनुमान लगाया जा सकता है ---''कलियुग के लोग कुत्ते के मुह वाले हो गए है और उनकी खाद्य बस्तु मुर्दे का मांस हो गयी है, अर्थात इस युग के लोग कुत्तो के समान लालची हो गए है और रिश्वत तथा बेईमानी से पैसा खाते है वे झूठ बोल -बोल कर भूकते है''।
पंजाब की दशा सोचनीय
पंजाब की दशा तो और भी सोचनीय थी, मुसलमानों द्वारा यही प्रान्त सबसे पहले जीता गया दिल्ली और काबुल के बीच होने के कारन इसकी अवस्था दो चक्की के बीच पिसे जाने वाले अन्न की हो गयी थी, मुसलमानों की धर्मान्धता और क्रूरता का शिकार सबसे अधिक पंजाब प्रान्त को होना पड़ा, प्रारंभ में धर्म- परिवर्तन भी सबसे अधिक यही हुआ, देश की इन्ही बिषम परिस्थियों में "गुरु नानकदेव" का अविर्भाव हुआ।
साधना कंदराओं में नहीं मानवीयता में
गुरु नानक से यह दशा देखी नहीं गयी वे कंदराओ में बैठकर अध्यात्मिक साधना के पक्ष में नहीं थे वे मानव जाति में चेतना का महामंत्र फुकना चाहते थे वे कुरूतियो, पाखंडो के बिरुद्ध खड़े हो गए उन्होंने भारत ही नहीं सीमा पार पाच यात्राये की सबको पंहत और भंडारा की शिक्षा दी, यात्रा करते-करते वे मक्का पहुचे वह पर मस्जिद की तरफ पैर करके सो रहे थे कुछ मुल्लाओ ने बिरोध किया तो उस पर कहा की जिधर अल्लाह का घर न हो उधर पैर कर दो, बताते है की जिधर उनका पैर घुमाते उस तरफ "मक्का मस्जिद" हो जाती, सभी ने सिद्ध फकीर समझ छमा याचना की, वे बगदाद पहुचे वह कब्रिस्तान में भजन करना शुरू किया प्रातः काल- अजान दिया पुरे बगदाद में अजान सुनाई दी लेकिन मुहम्मद का नाम नहीं था, वहा के पीर ने फतवा जरी किया की उस हिन्दू फकीर को पत्थर से मार-मार कर मार डालो, शहर के सभी मुसलमान वहाँ पत्थर लेकर पहुचे लेकिन किसी के हाथ से पत्थर उठा ही नहीं सभी उनको देख मंत्र -मुग्ध हो रहे थे, अंत में वह बगदाद के पीर को आना पड़ा उसने शास्त्रार्थ करना चाहा लेकिन परास्त होकर जाने लगा क्षमा प्रार्थी हुआ और छोटा पीर जो उसी का लड़का था वह गुरु नानकदेव के साथ शिष्य बनकर रहना स्वीकार किया।
गुरु जी के साथ सैनिकों को भी छोड़ना पड़ा
वे भारत की तरफ आते है "मुगल बाबर" का बर्बर हमला अत्याचारी धर्म बिरोधी शासन जारी था उनको (गुरूजी) जेल में डाल दिया, उनसे चक्की पिसवाने का काम देखा कि चक्की अपने आप चल रही है यह समाचार बाबर को मिला उसने सिद्ध संत समझ भयाक्रांत हो गया उनकी प्रतिभा ऐसी थी उनको तो छोड़ना ही पड़ा। "महाराणा सांगा" के संघर्ष - रत बंद सैनिको को भी छोड़ना पड़ा, उन्होंने हिन्दू समाज को बचाने का अद्भुत काम किया सम्पूर्ण भारत को जागृत किया आज हम भारतीयों के वे आदर्श ही नहीं प्रेरणा श्रोत बने हुए है।
वहीँ बसे रहो
"गुरु नानकदेव" अपने शिष्य के साथ एक स्थान पर भ्रमण पर गए थे जहा रात्रि बिश्राम था, उस गाव के लोग बड़े ही उदंड थे उन्होंने गुरु जी के साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया जब वे गाव से बिदा होकर बाहर निकले तो कोई बाहर छोड़ने भी नहीं आया, गुरु नानकदेव पीछे मुड़कर उन्हें आशीर्वाद दिया की गाव वालो यही बसे रहो, उनका एक शिष्य साथ रहता था वह सब देखता रहता अगले गाव में पहुचने पर लोगो ने स्वागत- सत्कार किया उनका प्रवचन भी प्रेम से सुना जब दुसरे दिन जाने लगे तो गाव के सभी लोग उनको बाहर तक छोड़ने के लिए आये और बार-बार दुबारा आने का आग्रह भी करने लगे, गुरु जी ने अशिर्बाद दिया की बच्चो तुम सब उजड़ जावो नानक का यह व्यवहार देखकर उनका शिष्य "मरदाना" बड़ा हैरान हो गया पूछा! आपने जिन्होंने आपको परेशान किया उन्हें वही बसे रहने का अशिर्बाद दिया क्या कारन है ? गुरु जी ने बताया की अच्छे लोग जहा जायेगे वहा अच्छा काम करेगे इस नाते उनका उजड़ना अच्छा है ऐसे थे हमारे गुरु नानकदेव।
3 टिप्पणियाँ
भारत के महान संत गुरू नानकदेव को सहस्त्र प्रणाम !
जवाब देंहटाएंगुरू के श्रीचरण मेँ वन्दन!!
जवाब देंहटाएंभारत के धर्म रक्षक संत जिन्होंने केवल आध्यात्मिक ही नहीं शस्त्र और शास्त्र दोनों का चिन्तन किया और गुरू तेग़बहादुर, गुरू गोविन्द सिंह जैसे परम्परा के बाहक तैयारकर केवल हिन्दू समाज की रक्षा ही नहीं की बल्कि इस्लामिक सत्ता के समाप्त की नींव डाल दी---।
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