भगवान मुक्तिनाथ --------हिंदुत्व व सनातन धर्म के रक्षा आवाहन है.

            
       प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल एकादशी (२२ अप्रैल २०१३) के दिन हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ की यात्रा जिसमें जगह -जगह धर्म सभाएं स्वागत संतों का प्रवचन आशीर्वाद यात्रा मार्ग में २६ स्थानों प़र धर्म सभाएं हुई हजारों धर्म पिपासू बंधुओं ने भाग लिया सैकड़ों स्थानों पर स्वागत हुआ यात्रा में विशेष आकर्षण भगवान गजेन्द्र मोक्ष का रथ बना हुआ था जिसे देखते ही सैकड़ो नर-नारी टूट पड़ते थे लगता था श्रद्धा का बाध ही टूट गया हो.
       सोनपुर में हरिहर मंदिर से उद्घाटन कार्यक्रम था जहाँ भगवान के रथ को भगवा झंडा दिखा रथ विदा करना था सटे हुए मौनी बाबा के आश्रम विशाल पंडाल में धर्म सभा हुई जिसमे हजारों नर-नारी उपस्थित थे जहाँ जन समुदाय को संबोधित करने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सरकार्यवाह डा. कृष्णगोपाल जी ने हमारी प्रार्थना सुना वहीँ इस यात्रा और हमें आशीर्वाद हेतु जगतगुरु शंकराचार्य वासुदेवानंद सरस्वती बद्रिका आश्रम (हिमालय) पधारे, इस यात्रा में अध्यक्ष गोपालनारायण सिंह अथक परिश्रम कर सफलता का मार्ग प्रसस्त किया हम सभी पचासों गाड़ियों के साथ यात्रा पर निकले २३ अप्रैल को जब रथ प्रातः ८ बज्र हरिपुर (हाजीपुर) के लिए निकल तो हरिपुर के वासियों ने सैकड़ो गाड़ियों के साथ स्वागत किया हर-हर महादेव का नर लगा जैसे स्वयं भगवान शंकर और भगवान विष्णु स्वयं धरती पर उतर आये हों यहीं आज प्रथम धर्म सभा हुई जलपान भी हुआ.
        धर्म सभा में पूर्व गृह राज्यमंत्री आचार्य महामंडलेश्वर हरिद्वार से स्वामी चिन्मैयानंद जी के भाषणों ने तो यात्रा का मार्ग ही तय कर दिया उनका उद्बोदन हिंदुत्व सनातन भारत के लिए था उन्होंने देश हेतु नरेन्द्र मोदी की वकालत भी की यहीं दिव्या प्रेम सेवा मिशन के आशीष भैया जो पुरे भारत में कुष्ट रोगियों की सेवा हेतु प्रथम नाम से जाना जाता है उन्होंने आकर यात्रा की प्रतिष्ठा बढाई, यहाँ पर पथ निर्माण मंत्री नंदकिशोर यादव ने कार्यक्रम की अध्यक्षता की, रथ आगे हरौली, लालगंज से बढ़ता हुआ रात्रि विश्राम हेतु फतेहाबाद (पारू) की तरफ बढ़ा जहाँ धर्म सभा बहुत विशाल थी मा.मुकुंदराव जो धर्मजागरण के अखिल भारतीय प्रमुख है उनका प्रेरक मार्गदर्शन हुआ सायं नारायणी महाआरती जिसमे हजारों नर-नारी सामिल थे छटा देखते ही बनती थी, प्रातः २४ अप्रैल को रथ साहबगंज, केशरिया होते हुए भगवान सोमेश्वरनाथ की धरती अरेराज पंहुचा जहाँ धर्मसभा में आशीर्वचन देने जगतगुरु रामानुजाचार्य श्रीधराचार्य अशर्फी भवन अयोध्या से पधार कर हमें कृतार्थ किया कठिया, बेतिया होते हुए हम धर्म सभा हेतु योगापट्टी पहुचे धर्म सभा से पहले आरती का दृश्य अद्भुत था गावं में जैसे स्वर्ग उतर आया हो.
            यात्रा के अध्यक्ष गोपालनारायण सिंह, उपाध्यक्ष श्री रामलखन सिंह, तथा उपाध्यक्ष रामबालक यादव के कुशल नेतृत्व में अब हम २५ अप्रैल को बगहा, बल्मिकि नगर धर्मसभा करते सायं महाआरती हेतु गज-ग्राह स्थल त्रिवेणी पहुचे जहाँ पहली बार आरती देखने हेतु हजारो लोगो ने धर्मसभा और आरती में भाग लिया गुजरात से आये हुए भास्कराचार्य ने नारायणी की महिमा का वर्णन किया रात्रि विश्राम हेतु हम बेलाटारी पहुचे, वहां स्वागत यात्रा के सह सचिव कमलेश गुप्ता, अनूप जी ने आगे का मार्ग प्रसस्थ किया सुर्यपुरा, गोपालपुर गोरक्ष पीठ में धर्म सभा करते सायं आरती हेतु नारायण घाट जहाँ विशाल धर्मसभा के पश्चात् महाआरती हुई नेपाल यात्रा के संयोजक खेम आचार्य सैकड़ो भक्तो ने साधू-संतो का स्वागत किया, अगले दिन २७ अप्रैल को देवघाट, मुग्लिंग, दमौली स्वागत धर्मसभा करते हुए प्रसिद्द पर्यटक स्थल पोखर धर्म सभा के पश्चात् आरती देखते ही बनती थी जिसमे हजारो लोग थे उन्होंने इस प्रकार की आरती कभी देखी ही नहीं थी, दुसरे दिन २८ अप्रैल स्वयं भू गलेश्वर होकर लेते में रात्रि विश्राम किया २९ अप्रैल को भगवान मुक्तिनाथ का दर्शन कर सभी यात्री मंत्र मुग्ध हो गए.
        आखिर क्या बात मुक्तिनाथ में -----?
          जगद्गुरु रामानुजाचार्य ने क्यों इतना महत्व दिया इस तीर्थ को, यह आज विचार का विषय है इतिहास बताता है की रामानुजाचार्य ने इस सालिग्राम क्षेत्र में वैष्णव धर्म का प्रचार बहुत दिन तक किया उन्होंने ही हिन्दू समाज को बताया की नारायणी नदी भगवान विष्णु का स्वरुप है उनके अनुसार भारत वर्ष को १०८ दिव्य देशो में बाटकर धर्म प्रचार किया जहाँ मुक्तिनाथ १०८ दिब्य देशों में एक है वहीँ अष्ट बैकुंठों में भी एक बताया यह तीर्थ हिमालय के उत्तर में स्थित है वैसे विचार से तो पूज्य रामानुज- पूज्य शंकर से सहमत नहीं थे लेकिन रामानुज यह नहीं भूले की सुदूर पहाड़ों में आज भी सनातन धर्म अपने काम नहीं कर पाया है वे यह ठीक प्रकार से जानते थे की यह मुक्तिनाथ केवल तीर्थ ही नहीं तो भारत धर्म का रक्षक बनेगा उस समय (ग्यारहवीं, बारहवीं शताब्दी) इस्लाम का आक्रमण होना शुरू हो गया था वे भविष्य द्रष्टा थे उन्हें चर्च के कुकृत्यों के बारे में भी जानकारी थी वे सतर्क भाव से धर्म प्रचार करते थे सारा का सारा वैष्णव संत समाज मुक्ति क्षेत्र के लिए लालायित रहता है बड़ी ही सूझ-बुझ के साथ यह रचना वैष्णव आचार्यों ने बनायीं थी जिसमे केवल रामानुज ही नहीं रामानंद स्वामी, बल्लभाचार्य, अथवा स्वामीनारायण सभी ने हिन्दू समाज को बताया कि आज मुक्तिनाथ भगवान हिन्दू समाज को बुला रहे है, हम यहाँ पर कैसे हैं यह तो देखो यहाँ आवो और हिन्दू धर्म की रक्षा करो, आज भी यहाँ हिन्दू अवादी २०% ही है चर्च का काम बड़ी तेजी से बढ़ रहा है, भगवान कह रहे है कि मै सीमा पर खड़ा हूँ आओ मेरी तरफ आओ, धर्म ही तुम्हे, हिन्दू समाज को बचाएगा भारत और नेपाल दोनों अपने-आप बच जायेगा, इसलिए हे हिन्दुओ तुम उत्तर तरफ भगवान मुक्तिनाथ को देखो और इस सालिग्राम क्षेत्र में आकर साधू-संतो के साथ धर्म और देश की रक्षा हेतु संकल्पित हों, यही है इस यात्रा और मुक्तिनाथ दर्शन का अभिप्राय .         

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