स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती का बलिदान आर्य समाज की परंपरा
स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जी का जन्म 22 फरवरी 1856 में हुआ था। स्वामी जी महान क्रन्तिकारी देश भक्त संत थे वे अपने गुरु महर्षि दयानंद सरस्वती के अनन्य भक्त और उनके उद्देश्यों के प्रति समर्पित शिष्य थे, वेदों के प्रचार वैदिक साहित्य के लिए गुरुकुलो की स्थापना देश आज़ादी हेतु हजारो क्रांतिकारियों की श्रृंखला खड़ा की--- वैदिक धर्म, वैदिक संस्कृति, और आर्य जाती की रक्षा के लिए, मरणासन्न अवस्था से उसे पुनः प्राणवान, गतिवान बनाने की लिए उसे सर्बोच्च शिखर पर पहुचने हेतु आर्य समाज ने सैकणों बलिदान दिए है उसमे प्रथम पंक्ति की प्रथम पुष्प स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती थे। इनके पिता जी का नाम नानकचंद था इनका बचपन का नाम मुंशीराम था पद्धने में मेधावी परन्तु बड़े ही उदंड स्वभाव के थे पिता जी पुलिस इंस्पेक्टर थे, बालक के नास्तिक होने के कारन पिता जी बड़े ही असहज महसूस करते थे। सम्बत १९३६ में महर्षि दयानंद सरस्वती बरेली पधारे पिता जी इनको उनके प्रवचन के लिए लेकर गए उनके उपदेशो को सुनकर प्रभावित ही नहीं हुए बल्कि उनके प्रति श्रद्धा भाव उत्पन्न हो गया लेकिन नास्तिकता का भाव नहीं गया उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश पढ़ा नास्तिकता तो समाप्त हो ही गयी उनके मन में पुनर्जन्म के प्रति भी जो अनास्था थी समाप्त हो गयी और आर्यसमाज के निकट आ गए ।
आर्य समाज जालंधर के अध्यक्ष
वकालत के साथ आर्य समाज के जालंधर जिला के अध्यक्ष हो गए उनका सार्बजनिक जीवन प्रारम्भ हो गया, एक बार घूमते-घूमते हिमालय के कंदराओ में जा पहुचे उन्हें प्यास लगी पानी खोजते-खोजते एक गुफा दिखाई दी कम्मंडल बाहर रखा था स्वामी जी ने देखा की एक महात्मा उसी गुफा में खड़ा तपस्या में लीन है। श्रद्धानंद जी उस महात्मा से निवेदन करने लगे की आप बाहर आये भारत पर बिपत्ति है देश गुलाम है गो हत्या हो रही है भारत माता की अस्मत लुटी जा रही है आप जैसे महात्मा यदि कंदराओ में अपनी ब्यक्तिगत मोक्ष के लिए तपस्या करते रहेगे तो देश का क्या होगा--? लेकिन उस महात्मा के ऊपर कोई असर नहीं हो रहा था, वे वापस एक गाव में आ गए दुसरे दिन फिर उस संत से मिलने पहुचे और वही आग्रह दुहराने लगे महात्मा पर कोई असर नहीं होता देख उन्होंने कहा की यदि आप नहीं निकलेगे तो मै यही बैठता हूँ। स्वामी जी की बात सुनकर वो महात्मा मुस्कराया और कहा की तुम्हारा नाम स्वामी श्रद्धानंद है तुम पंजाब के रहने वाले हो, तुम्हारी आत्मा महान तपस्वी है इसके बगल में एक और गुफा है उसमे आप भी खड़े हो जाओ बहुत ही शांति मिलेगी, स्वामी जी ने कहा मै महर्षि दयानंद का शिष्य हूँ देश और धर्म की रक्षा हेतु ही मेरा जन्म हुआ है पीछे नहीं हट सकता उस सन्यासी ने कहा की मै भी तुम्हारी तरह हिन्दू समाज के लिए काम करता था यह समाज मरने के लिए पैदा हुआ है निराश होकर मै यह आनंद ले रहा हू तुम भी बगल की गुफा में खड़े हो जाओ ----! मेरे गुरु का आदेश है भारत की स्वतंत्रता भारत की सुरक्षा और धर्म की रक्षा के साथ बिधर्मी हुए बंधुओ की घर वापसी, उस सन्यासी ने स्वामी जी से कहा की तुम नवजवान हो जिस देश का नवजवान खड़ा हो जाता है वह देश दौड़ने लगता है, स्वामी जी ने आर्य समाज के माध्यम से हजारो देश भक्त नवजवानों को खड़ा कर दिया और क्रांतिकारियों की ऐसी श्रंखला से देश दौड़ने लगा।