हरिहरनाथ -मुक्तिनाथ सांस्कृतिक यात्रा

       इस सम्पूर्ण यात्रा का उद्देश्य भारत- नेपाल के मध्य धार्मिक एवं सांस्कृतिक एकता को बढ़ावा देना नारायणी तट पर अवस्थित हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ तक के सभी तीर्थक्षेत्रो का विकाश ,धर्मभाव की जाग्रति एवं मतान्तरण को रोकना व अपने मतांतरित बंधुओ को पुनः स्वधर्म में लेन के पवित्र उद्देश्य से इस यात्रा को प्रारंभ किया जा रहा है.
       पूर्व काल में  साधू-संतो के नेतृत्व में नारायणी और गंगाजी के संगम स्थल हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ के दर्शन हेतु नारायणी के किनारे-किनारे यात्रा होती थी, इस यात्रा पथ में हरिहरनाथ से मुक्तिनाथ के मध्य बाबा सोमेस्वर नाथ [अरेराज] महर्षि बाल्मीकि आश्रम, त्रिवेणी, देवघाट, नारायण घाट इत्यादि पड़ाव स्थल के रूप में इस यात्रा के महत्व को बढ़ाते है.
     इस यात्रा पथ में तीर्थ क्षेत्रो के महात्मका वर्णन नाना पुराणो में वर्णित है श्री भगवत पुराण के अष्ठम स्कन्द में गज-ग्राह युद्ध, गजेन्द्र द्वारा स्तुति,  नारायण का प्रादुर्भाव एवं इसके उद्धार की कथा है इस कथा वर्णित गज-ग्राह युद्ध के साक्षी त्रिबेणी व नारायणी के प्रकटीकरण का साक्षी हरिनाथ तीर्थ का वर्णन है. इसी प्रकार पद्मपुराण के पातालखंड में गण्डकी के तीर्थयात्रा एवं शालिग्राम भगवन की महिमा का प्रसंग है | इस कथा मे नृप रत्नग्रीव  की तीर्थयात्रा, शालिग्राम महिमा प्रसंग में पुल्कस  की कथा का वर्णन है | इसी के साथ पद्मपुराण के उत्तरखंड में (नारायणी) के महातम्य, प्रादुर्भाव के साथ ही ब्रम्हा, महादेव और श्रीराम द्वारा स्तुति का वर्णन है|
      इसी प्रकार देवी भागवत के नवम स्कन्द एवं स्कन्दपुराण में नारायणी एवं नारायणी के तत्क्षेत्रो के तीर्थो का अनुपम वर्णन है | भारतीय जनमानस पर अमित छाप छोड़नेवाले रामायण में वर्णित वाल्मीकि आश्रम भी इसी तीर्थक्षेत्र  के मार्ग में  अवस्थित  है|
                     गण्डकी गडयोमध्येक्षेत्रा हरिहर मिषितम |
                      तत्रा स्नात्वा जलम पीत्वा नर: नारायणोभवेत् ||    
  पद्मपुराण का यह श्लोक हरिहर क्षेत्र के महत्व को दर्शाता है |
       ज्ञातव्य हो कि मुक्तिनाथ स्वामीनारायण सम्प्रदाय के प्रवर्तक पूज्य स्वामीनारायण की तपस्थली है | मुक्तिनाथ तीर्थयात्रा सम्पूर्ण कष्टों से मुक्ति, शोक से रहित करनेवाला, सुख, समृद्धि, शांति प्रदान करने वाली है | हिन्दू धर्म की मान्यताओं में चार धाम की पूर्णता मुक्तिनाथ की यात्रा के बाद ही माने जाने की परंपरा रही है | इसी पुनायादयिनी, सदानीरा, गण्डकी  (नारायणी) के गर्भ से नारायण स्वरुप भगवान् शालिग्राम प्रादुर्भूत होते है| अतएव प्रत्येक हिन्दू पुण्य दायिनी  मोक्ष दायिनी नारायणी के तट पर अवस्थित तीर्थ क्षेत्रो का दर्शन करना चाहता है | 
     वर्त्तमान समय में इस तीर्थयात्रा के महात्म्य को जनमानस में पुन स्थापना हेतु धर्मजागरण समन्वय विभाग द्वारा तीर्थयात्रा का दिव्य - भव्य आयोजन इस वर्ष चैत्र एकादशी के शुभ अवसर पर 3अप्रैल २०१२ को हरिहरनाथ (सोनपुर) से मुक्तिनाथ (नेपाल) के लिए प्रारंभ की जा रही है |
                      आइये हम इस यात्रा में सहभागी बनकर अपने सांस्कृतिक मूल्यों को पुनर्स्थापित करे.


   
 

एक टिप्पणी भेजें

1 टिप्पणियाँ