संकट के समय में भारत के संतो का योगदान



यदा यदाहि धर्मस्य ----!
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हिन्दू समाज और देश पर संकट आया संत आगे आए---!
यदा यदाहि धर्मस्य----तदात्मानमसृजामिहम -------!
जब-जब धर्म कि हानी होती है मै आता हूँ और वे आए कभी आदिशंकर के रूप मे तो कभी नानक के रूप मे तो कभी स्वामी रामानुज, स्वामी रामानन्द तथा कभी ऋषि दयानन्द के रूप मे धर्म के रक्षार्थ ------

        एक समय ऐसा भी आया कोई 2500 वर्ष पहले जब भारत का राज धर्म बौद्ध यानि नास्तिक पंथ यानी अहिंसा के नाम पर नपुंशकता का भाव, अराष्ट्रीय भाव बन गया था वैदिक धर्म प्रायः लोप सा हो गया था राष्ट्रीयता व क्षत्रित्व का भाव लगभग समाप्त सा हो गया था उस समय कुमारिल भट्ट ने शास्त्रार्थ द्वारा जैनियों तथा बौद्धों यानी नास्तिक पंथ को परास्त किया ही था कि समय की पुकार सुन दक्षिण केरल के कालड़ी ग्राम से सात वर्ष का सन्यासी शंकर नर्मदा तट अमर कंटक जिनकी तपस्थली ऐसे गोविंद पाद से दीक्षा लेकर वैदिक धर्म की प्रामाणिकता सिद्ध कर पूरे भारतवर्ष मे पुनर्वैदिक धर्म की स्थापना की।


ऋषी देवल का प्रादुर्भाव--!
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712 ईसवी सन मे मुहम्मदबिन कासिम जो अरब का कबीलाई सेनापति था सिंध के महाराजा दाहिर पर हमला किया कई बार पराजित हुआ धोखे से राज़ा दाहिर पराजित हो गए कासिम केवल लूट-पाट ही नहीं किया बल्कि धर्मांतरण भी किया 24000 हिन्दू ललनाओं को अरब के बाज़ारों मे ले गया, लेकिन वह लंबे समय तक टिक नहीं सका उस समय देवल ऋषि का प्रादुर्भाव हुआ उन्होने 'देवल स्मृति' लिखा जिसमे घर वापसी का रास्ता खोल दिया ऋषि देवल ने अपनी स्मृति मे 96 श्लोकों मे इसी को सर्बाधिक महत्व दिया घर वापसी की सरल पद्धति विकसित की । 
1- "प्रायश्चिते तु शंकिर्णे गंगास्नानेन शुध्याति"। 
2- सिंधु सौवीर सौराष्ट्र तथा प्रत्यंतवासिन । 
कलिंग कोंकणान बंगाल गत्वा संस्कार मरहिती ॥
और जो इस्लाम स्वीकार किए थे वह सभी हिन्दू धर्म मे वापस आ गये कासिम समाप्त हुआ ।
स्वामी रामानुजाचार्य--!
तेरहवीं शताब्दी मे संत रामानुजाचार्य हुए जिन्होने भक्ति आंदोलन देश भर मे फैलाया वे समरसता के प्रबल योद्धा थे एक मुस्लिम लड़की बीबी नचचियार को मंदिर मे रखा उन्होने मंदिरों की पूजा मे क्रांतिकारी परिवर्तन किया वे समरसता के अग्रदूत थे, स्नान करने जाते समय ब्राह्मण के कंधे पर हाथ रख कर जाते वापस आते समय तथा कथित सूद्र के कंधे पर हाथ रखकर आते वे कहते थे की ब्राह्मण के कंधे पर हाथ रखने से शरीर शुद्ध होती है लेकिन जब मै शूद्र के कंधे पर हाथ रखता हूँ तो मन की शुद्धि होती है ।
दक्षिण से उत्तर भक्तिमार्ग
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पंद्रहवीं सोलहवीं शताब्दी मे रामानन्द स्वामी का प्रादुर्भाव हुआ उस समय सिकंदर लोदी, बहलोल लोदी का शासन था रामानन्द स्वामी बड़े प्रतापी संत थे 175 वर्षों तक अपने शिष्यों के साथ पूरे भारत का भ्रमण करते रहे उनके द्वादस भगवत शिष्य थे वे सभी प्रतिभा सम्पन्न थे उन्होने शुद्धि की घोषणा कर दी ।
कंठे च तुलसी माला जिभ्वा राममयीकृता।
म्लेच्छास्ते वैष्णवाश्चासन रामानन्दप्रभावकृत॥
तत्काल अयोध्या के आस-पास 35 हज़ार राजपूतों को जो मुसलमान हो गए थे सबको हिन्दू बनाकर वही बसा लिया।
संत रविदास का संघर्ष
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बहलोल लोदी संत रविदास तथा संत कबीर के प्रभाव को सह नहीं सका सदन कसाई को रविदास को मुसलमान बनाने हेतु भेजा लेकिन वह हिन्दू बन गया बाद मे बहलल लोदी ने संत रबिदास को जेल मे डाला संत कबीर दास को हाथ पैर बांध कर गंगाजी मे फेंक दिया लेकिन वे सब हार नहीं माने हिन्दू धर्म की अलख जगाए रखा, कबीर ने पाखंडों तथा मुल्ला मौलाबियों का जमकर बिरोध किया, संत रबीदास ने कहा ----
वेद धर्म सबसे बड़ा अनुपम सच्चा ज्ञान, 
फिर मै क्यों छोड़ू इसे पढ़ लूँ झूठ कुरान।
वेद धर्म  छोड़ूँ नहीं  कोसिस  करो  हज़ार,
 तिल-तिल काटो चाहि गोदो अंग कटार ॥
सारे हिन्दू समाज को भक्तिमय करके बचा लिया।
संत तुलसीदास और कुम्हानदास
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मुगल काल मे एक और संत हो गए संत तुलसीदास जिन्होने लोक भाषा मे रामायण लिखा जो जगत प्रसिद्ध हो गया उसी आधार पर राम लीला शुरू की उन्होने कहा "कोई नृप होई हमे का हानी" यानी हमारे राज़ा तो राम हैं ऐसा संदेश दिया, मुगल सासन को लगा की जनता तो हमारी बात ही नहीं मानती वह तो संतों की ही बात सुनती है उसने तुलसीदास को पत्र लिखा लेकिन वे अकबर के दबाव मे नहीं आए लिख भेजा ----
हम चाकर रघुबीर के पटो लिखो दरबार। 
अब तुलसी का होईहैं नर को मनसबदार॥
ऐसे ही प्रयाग में एक संत कुम्भन दास हो गए उनके प्रभाव को देख अकबर ने उन्हें फतेहपुर सीकरी बुलाया उन्होंने पालकी स्वीकार न कर पैदल ही चले गए दरबार में जा उन्होंने पूछा की क्या काम है अकबर उनका वर्णन करते हुए कुछ सुनाने के लिए कहा, संत कुम्भन दास ने भजन गाया----
       संतन को सीकरी सो काम -------!
      आवत जाट पनहिया टूटत विसरजात हरि नाम,
       संतन को सीकरी सो काम-------
       फिर आगे कहा -------!
       जाको मुख देखत अघि लगत उनको करन पड़ी परिणाम--!
ऐसे संत कुम्भन दास ने भरे दरबार में अकबर को सुनाया वे इस प्रकार निडर महात्मा थे!
और सिख गुरुओ की बलिदानी परंपरा-!
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ऐसे थे हमारे संत इसी काल मे हमारे सिक्ख बलिदानी परम्परा शुरू हुई गुरु अर्जुन देव का प्रथम बलिदान हुआ फिर क्या था----! हिन्दू धर्म रक्षा हेतु गुरु तेगबहादुर, गुरु गोविंद सिंह, बंदा वीर बैरागी जैसा बलिदान का आंदोलन ही शुरू हो गया और मुगलों की जड़ मे मट्ठा डालने जैसा कार्य किया आज मुगलों नाम की कोई चीज नहीं बची इस देश मे, शायद विश्व मे ऐसा कोई उदाहरण हो, ब्रिटिश काल मे महर्षि स्वामी दयानन्द सरस्वती ने हिन्दू समाज रक्षा हेतु आर्यसमाज गठित कर आंदोलन ही खड़ा कर दिया उनके उत्तराधिकारी स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती जी ने शुद्धि सभा का गठन कर लाखों बिधर्मियों को स्वधर्म मे लाये पश्चिम उत्तर प्रदेश में मेरठ से गाजियाबाद के बीच 111 गावों के बिधर्मी हुए हिंदुओं को पुनः घर वापसी की, राजस्थान के सवा लाख मलकाना मुसलमान बने राजपूतों की घर वापसी उसी मे एक अब्दुल रसीद नाम के सिरफिरे ने स्वामी जी को गोली मार कर हत्या कर दी, स्वामी जी तो चले गए लेकिन आज भी उनका मिशन जिंदा है ।
संतो के जागरण की आवश्यकता--!
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आज समय की अवस्यकता है हम अपने पूर्व संतों का अनुसरण करें हिन्दू समाज और देश बर्तमान संतों का इंतजार कर रहा है वे गले लगने को तैयार है संतों को आगे आने की जरूरत है देश को अब संत ही बचा सकते हैं घटती हुई हिन्दू जनसंख्या क्या हम पुनः भारत बिभाजन को तैयार हैं-? आए दिन मठ-मंदिर खतरे मे हैं पुजारियों का गला रेत कर हतयाए हो रही हैं हम संत समाज कब-तक सोते रहेगे--! जब किसी मंदिर के पुजारी की हत्या गला रेतकर होती है क्या हमे कष्ट नहीं होता ----! आइए हम अपने समाज और देश की रक्षा मे खड़े हों, हिन्दू समाज कातर भाव से हम संतों को पुकार रहा है।         

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