बांग्लादेश में हिंदू नर संहार....!

 


आखिर हिंदू जाये तो जाये कहाँ --?

हिन्दुओं की सबसे बड़ी पराजय उस समय हुई जब  15अगस्त 1947 को धर्म के आधार पर देश का विभाजन हुआ। पश्चिम के लुटेरे जो धर्म का चोला पहनकर भारत में आये सीधा साधा हिंदू समाज उन्हें समझ नहीं सका हिन्दुओं ने समझा कि जैसा मेरा धर्म है वैसा ही ये भी कोई धर्म होगा उसका सम्मान करना चाहिए और किया भी। लेकिन उसका परिणाम हिंदू समाज के ऊपर अत्याचार, माँ बहनों के साथ बलात्कार, बलात धर्मान्तरण और उसकी परिणीति हमें देश विभाजन के रूप में देखने को मिला। आज सारे विश्व में हिंदू अपनी प्रतिभा के बल जाना जाता है वह कहीं बैज्ञानिक है तो कहीं उद्द्योगपति है तो डाक्टर के नाते जाना जाता है। देश विभाजन के समय पाकिस्तान में हिन्दुओं की संख्या डेढ़ करोड़ थी वहीँ पूर्वी पाकिस्तान आज के बांग्लादेश में लगभग दो करोड़ थी जबकि भारत में मुस्लिमो की संख्या ढ़ाई करोड़ थी लेकिन आज पाकिस्तान में हिंदू शायद दस लाख के आस पास बांग्लादेश में पचास लाख, एक करोड़ के आस पास होगी जबकि भारत में मुसलमानो की संख्या पच्चिस करोड़ पार कर रही है। तो पाकिस्तान और बांग्लादेश के हिंदू कहाँ चले गए या तो मार दिए गए या बलात धर्मान्तरण किया गया अथवा देश से भगा दिए गए। अफगानिस्तान में मोमिनो ने हिंदू और सिक्खों से कहा कि पीले कपड़े पहनो क्योंकि हम मोमिन जब आपस में लड़ेंगे तो किसे मारेंगे? आज बांग्लादेश के हिंदुओ का नरसंहार हो रहा है वह कहाँ जाय? सारे विश्व के हिंदुओ का अपना घर है भारत, विश्व में कहीं भी हिंदू सताया जायेगा तो स्वाभाविक रूप से वह भारत ही आएगा। आज बांग्लादेश का हिंदू मारा जा रहा है तो वह स्वाभाविक रूप से भारत ही आएगा लेकिन बीएसएफ ने कड़ाई पूर्बक उन्हें रोका। करोङो बंग्लादेशी मुस्लिम घुसपैठियों को, रोहगियों को बीएसएफ नहीं रोक पायी लेकिन जब हिंदू अपने घर में आ रहा है तो बीएसएफ उन्हें आने से रोक रहा है तो अब हिंदू जाये तो जाये कहाँ ?

मतुआ पंथ और नमोशूद्र 

बांग्लादेश में तख्ता पलट के बाद वहाँ जिस प्रकार से हिंदू समाज पर हमले हो रहे हैं उससे हिंदू समाज की सुरक्षा खतरे में पड़ गई है। वैसे वहाँ हिंदू समाज पर अत्याचार नया नहीं है कट्टरपंथी मुस्लिमों के अत्याचार से नमोशुद्रो को बचाने के लिए हरिचंद ठाकुर ने उन्नसवी सदी के मध्य फरीदपुर, पूर्वी बंगाल में 'मतुवा पंथ' की स्थापना की। मतुवा यानी मानवतावादी, मुस्लिम आतंकियों से बचने के लिए गुरुचंद ठाकुर के पौत्र प्रमाथ रंजन विस्वास 1948 में बंगाल के वनगाँव आ गए। उन्होंने बंगाल में मतुवा धर्मसंघ को संगठित किया। मतुवा धर्म महासंघ बंगाल में अपने डेढ़ करोड़ अनुयायियों के साथ आज भी "नमोशूद्र " शरणर्थियों के लिए संघर्षरत है। 

डा योगेन्द्र मंडल और डा आंबेडकर   

भारत विभाजन के समय दोनों विद्वान डा अम्बेडकर और डा योगेंद्र मण्डल में मत भेद हो गया था जहाँ डा अम्बेडकर मुसलमान, कुरान और हदीस के बारे में हिंदू समाजको चेतावनी दें रहे थे कि मुसलमानो का प्रेम मुहब्बत केवल मोमिनो के लिए है। शेष समाज काफिर है और काफिरों की सजा केवल मौत है। वहीँ डा योगेंद्र मण्डल कहते थे कि मुसलमानो का भाई चारा दलितों के लिए हितकारी है वे जिन्ना के बहकावे में आ गए और देश विभाजन के समय केवल बंगाल के दलितों को रोका ही नहीं बल्कि भारतीय भूभाग से दलित हिंदुओ को पूर्वी पाकिस्तान में ले भी गए। वे पाकिस्तान के विधी मंत्री बनाये गए, ठीक छः महीने बाद इस्लाम ने अपना असली चेहरा दिखा दिया मंदिरों पर हमले, दलितों की बहन बेटियों के साथ बलात्कार, हिंसा, हत्या का दौर शुरू हो गया। नौ अक्टूबर 1950 को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाक़त अली को भेजे गए त्यागपत्र में लिखा कि पूर्वी पाकिस्तान में दलितों हिंदुओ पर मुस्लिम कट्टर पंथीयों के हमले बढ़ते जा रहे हैं, उससे उनका मंत्री बने रहना संभव नहीं हैं। आगे उन्होंने लिखा देश विभाजन के बाद पचास लाख हिंदू पलायन करने को मजबूर हुए हैं, हिंदुओ का पलायन इसके बाद भी थमा नहीं। योगेंद्र मण्डल कुछ नहीं कर पाए ठीक तीन साल बाद 1950 में वे भागकर भारत कोलकाता में आजीवन बेनामी जिंदगी बिता दिया।

बांग्लादेशी साहित्यकार सलाम आजाद और तसलीमा नसरीन 

बांग्लादेशी साहित्यकार सलाम आजाद ने अपनी पुस्तक "बांग्लादेश से क्यों भाग रहे हिंदू" में लिखा कट्टर पंथी मुस्लिम संगठनों के अत्याचार से तंग आकर  1974से 1991 के बीच प्रतिदिन औषतन  475 हिंदू यानी प्रति वर्ष एक लाख तिहत्तर हज़ार 350 हिंदू हमेशा के लिए बांग्लादेश छोड़ने के लिए बाध्य हुए। वे आगे लिखते हैं यदि हिंदुओ का पलायन नहीं हुआ होता तो आज बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी सवा तीन करोड़ होती। सांप्रदायिक उत्पीड़न, सांप्रदायिक हमले, भेदभाव, दमनकारी शत्रु अर्पित संपत्ति कानून बांग्लादेश में हिंदुओं को कहीं का नहीं छोड़ा। आगे आजाद लिखते हैं बांग्लादेश के हिंदुओं के पास तीन ही रास्ते हैं या तो वे आत्महत्या कर लें अथवा मुस्लमान बन जाय नहीं तो देश छोड़ कर चले जाय। सलाम आजाद ने अपनी कृति 'शर्मनाक', टूटा मठ, बांग्लादेश में हिंदू नरसंहार में लिखा है कि हिंदू पिता के सामने बेटी के साथ माँ -बेटी को साथ रखकर दुष्कर्म किया गया। दुष्कर्मियों की पाशविकता से सात साल की बच्ची से लेकर साठ साल की बृद्धा तक को मुक्ति नहीं मिली। बांग्लादेश से हिंदुओं को नेस्तनाबूत कर वहाँ उग्र इस्लामी तथा तालिबानी राजसत्ता कायम करने के मकसद से हिंदुओं पर चौतरफा अत्याचार किया गया। सलाम आजाद ने जब आवाज उठाया तो उनके खिलाफ मौत का फतवा जारी कर दिया गया, उन्हें देश से निर्वासित होना पड़ा। तसलीमा नसरीन के उपन्यास "लज्जा " जो तीन दशक पहले प्रकाशित हुआ था कट्टरपंथीयों ने उनके खिलाफ भी मौत कर फतवा जारी किया, उन्हें भी निर्वासित होना पड़ा आज भी वे भारत में हैं। 

भारतीय विचार 

 स्वामी दयानन्द सरस्वती ने कहा "बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन संभव नहीं हो सकता" और 1857 के स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया वे पहले भारतीय आचार्य थे जो इस्लाम और ईसाइयत को पहचानते थे, इसलिए उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नामक ग्रन्थ लिखकर सभी का केवल पर्दाफास ही नहीं किया बल्कि सभी को चुनौती दें परस्त भी किया। स्वामी विवेकानंद सभी पंथो में एक ही परम तत्व सागर में विलीन होने की बात करते थे। रवीद्रनाथ टैगोर के शब्दों में "आमार सोनार बांग्ला" होता तो आज सांप्रदायिक आग में नहीं झूलसता, विश्व में कोई भी देश शायद हो जहाँ अल्पसंख्यक न हों। बांग्ला लेखक कपिल कृष्ण ठाकुर के उपन्यास "उजानतलीर उप कथा" में एक गीत का भावार्थ है --स्वाधीन देश में मजहबी कट्टरता के कारण लोग पलायन करें ऐसा सुना है क्या? बांग्लादेश में कभी 20% हिंदू थे आज घटकर सात प्रतिशत रह गई है।


अब क्या करे हिंदू --?

बांग्लादेश में हिंदू समाज योगेंद्र मण्डल के पापो का फल भोग रहा है, अभी तख्ता पलट के दौरान अथवा क्षात्रों द्वारा आंदोलन इन सभी का लक्ष्य केवल हिंदू समाज का खात्मा और कुछ भी नहीं। छोटे -छोटे बच्चे जिनका खतना नहीं हुआ यानी हिंदू बच्चे है उन्हें मारा जा रहा है, छोटी -छोटी बच्चियों के साथ दुष्कर्म किया जा रहा है सोसल मिडिया अथवा न्यूज चैनल की माने तो लाखों हिंदू बलिदान हों चुके हैं। कोई कुछ बोलने वाला नहीं है भारतीय मिडिया, राजनेता सब चुप हैं, कांग्रेस तो हमेशा से हिंदू बिरोधी रही है, वामपंथी, समाजवादी और सेकुलरिष्ट चुप्पी साधे हुए हैं। जब हमास ने इसरायल पर हमला किया था और इजरायल ने प्रतिक्रिया में आतंकी हमास वालो को ठोकना शुरू किया फिर क्या था? ये सभी भारतीय राजनेता इसरायल की आलोचना में लगे थे क्योंकि वहाँ आतंकवादियों को इसरायल मार रहा था। आज बांग्लादेश में हिंदू नरसंहार पर जहाँ सारा विश्व चुप है, मानवताधिकार वादी चुप है वहीँ भारतीय राजनेताओं का मुख नहीं खुल रहा है। 

योगेंद्र मण्डल के अवतार चंद्रशेखर रावण 

कुछ नेता अपने को दलितों के स्वघोषित रक्षक हैं, लेकिन उन्होंने न तो भारतीय बंगमय को पढ़ा है और न ही डा अम्बेडकर को ही पढ़ा है वे खुले आम हिंदू बिरोध अम्बेडकर के नाम पर करते हैं। जबकि यदि मैं यह कहूँ कि डा अम्बेडकर अपने काल के सबसे बड़े और कड़े हिंदू थे उन्हें वीर सावरकर, स्वामी श्रद्धानंद और महामना मदनमोहन मालवीय के बराबर खड़ा किया जा सकता है। डा अम्बेडकर का स्पष्ट मत था कि हिंदू समाज मैं जो बुराई है वह हमारे अंदर कि बुराई है हम उससे आपस मे निपट लेंगे लेकिन मुसलमानो के साथ नहीं जाएंगे। इसके ठीक उलट डा योगेंद्र मण्डल मुसलमानो के प्रेम मुहब्बत के झांसे मे आ गए देश विभाजन के समय लाखों करोड़ों दलितों को फसा दिया। आज जय भीम जय मीम के नेता चंद्रशेखर रावड़ कहाँ हैं कुछ पाता नहीं हैं हज़ारों दलितों का नरसंहार हो रहा है इनके मुख से कोई आवाज नहीं निकल रही है। चंद्रशेखर रावण ठीक योगेंद्र मण्डल के रास्ते पर जा रहे हैं जिसने लाखों दलितों का बलिदान कराया हज़ारों बहन बेटियों के बलात्कार और लाखों दलितों के बलात धर्मान्तरण का जिम्मेदार था। कल के योगेंद्र मण्डल आज के चंद्रशेखर रावण ही हैं।

सरकार की भूमिका ----????

बांग्लादेश और भारतीय सीमा पर जब पीड़ित हिंदू  भागकर जान बचाकर आ रहा है तो उसे मारा पीट कर वापस किया जा रहा है, जब रोहंगिया और बंग्लादेशी आतंकी घुसपैठिये आते है तो ये बीएसएफ के जवान कहाँ चले जाते हैं? सारे विश्व के हिंदुओं का स्वाभाविक घर है भारत! आज उन्हें अपने घर में आने से रोककर मौत के मुख में धकेला जा रहा है। भारत सरकार ने कानून बनाया है की जो भी पीड़ित हिंदू होगा उसे भारत नागरिकता देगा लेकिन आज उसका पालन नहीं किया जा रहा है। ऐसे में भारतीय हिंदुओं का कर्तब्य बन जाता है कि अपने भाइयों के रक्षार्थ खड़े हों और यहाँ से रोहगियों, बंगालदेशियों को निकाला जाये, बांग्लादेश से हिंदू समाज को सुरक्षित लाकर हिंदुओं को नागरिकता दी जाय।

बांग्लादेश में "हिंदू होमलैंड" की मांग

हिंदू समाज को जागना होगा नहीं तो सारे विश्व की मानवता तार -तार हो जाएगी। विश्व में जहाँ भी वामपंथियों की सरकार है कहीं भी मस्जिद नहीं है यदि थी तो उसे ढहा दिया गया है। इतना ही नहीं किसी भी इस्लामिक देश में कोई वामपंथी नहीं पाया जाता। लेकिन भारत में अथवा हिंदू समाज के खिलाफ सब एक हैं। यदि हिंदू समाज खड़ा होगा तो ये आतंकी मुस्लिम मैदान छोड़ देंगे। ये बहुत डरपोक कौम है इन्होंने तलवार देखकर सलवार पहना है आज बांग्लादेश का हिन्दू खड़ा हो रहा है और वह अपने अस्तित्व के लिए लड़ेगा भी उसे अब नैतिक समर्थन चाहिए बांग्लादेश में ही एक अलग हिन्दू राष्ट्र! अब वहाँ के हिंदू समाज ने यह तय किया है कि हमें अलग देश चाहिए और सारे विश्व से निवेदन है कि सभी हिंदू तन -मन और धन से बांग्लादेश के हिंदुओं का सहयोग करें।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ