जर्मनी में एक महापुरुष पैदा हुए जो अपने नाम क़े मोहताज नहीं उन्हें 'कार्लमार्क्स' के नाम से जाना जाता है। उन्होंने विश्व को एक दर्शन दिया विश्व क़े सम्पूर्ण मजदुर एक हो जावो उन्होंने भविष्यवाणी भी किया था, सबसे पहले जो क्रांति होगी वह विकसित राष्ट्रों में होगी यानी अमेरिका, इंग्लॅण्ड, जर्मनी, और फ्रांश इत्यादि देशो में होगी दुर्भाग्य बस यह भविष्य वाणी सत्य नहीं हुयी। उन्होंने अपना ग्रन्थ 'दासकैपिटल' इंग्लॅण्ड में ही लिखा उन्हें जर्मनी छोड़ना पड़ा वे बड़े विद्वान भी थे, बहुत सारे पुस्तकालय छान डाला दुर्भाग्य से उन्हें भारतीय बांगमय यानी वेद, उपनिषद, गीता, पढने को नहीं मिला। कभी- कभी मनुष्य बहुत विद्वान होते हुए भी वह रावण क़े समान राक्षस हो जाता है रावण भी त्रेता युग में तो राक्षस नहीं कहलाता रहा होगा उसके कर्म ने भविष्य में उसे राक्षस बना दिया जैसे 'कार्लमार्क्स' आज क़े २१वि.सदी में विश्व -खलनायक बनकर उभरे है।
पहला प्रयोग और उसके परिणाम
कार्लमार्क्स क़े शिष्य लेनिन ने 'जारशाही' क़े खिलाफ जनसंघर्ष किया प्रचार किया कि यह क्रांति मजदुर क्रांति है पूरे विश्व को मजदूरो का नेतृत्व मिलेगा यह दर्शन नया था। लोगो को बहुत पसंद आया दुनिया क़े लगभग सभी देशो में मार्क्सबाद क़ा प्रचार शुरू हो गया जो भी जर्मनी, इंग्लॅण्ड से पढकर लौटता वह बामपंथी होकर ही आता ऐसी लहर ही थी । रशिया में क्रांति १मइ १९१७ को हुई जिसे मजदुर क्रांति क़े नाम से जाना जाता है आज भी विश्व क़े वामपंथी मजदुर उस दिन को मजदुर दिवस क़े नाते मनाते है । रुश ने वास्तव में सभी को मजदुर बना दिया हथियार की होड़ में तथा यह दिखाने क़े लिए की मार्क्सबाद कितना सफल है जनता की आवाज़ को केवल दबाया ही नहीं लेनिन व स्टालिन ने करोणों नागरिको की हत्या की । अमेरिका की होड़ में उसका मुकाबला करने क़े लिए जनता को भूखे मार डाला इन क्रांतिकरियो ने रुश में चार करोड़ निरीह -निर्दोश जनता का शिकार किया यानी हत्या की। उसके ऊपर शासन स्थापित किया मजदूरो क़े नाम पर बैचारिक तानाशाही, लेकिन एक दिन तो जनता को जागना तो था ही अस्सी क़े दसक में वहा की जनता व शासक को यह महसूस हुआ कि यह बामपंथी निति ही हमारे दुर्भाग्य क़ा करण है। उन्होंने लेनिन, स्टालिन क़े कब्र को खोद डाला आक्रोस इतना था कि इनके कब्र की मिटटी को समुद्र में फेक दिया। उनकी मान्यता थी कि जब तक इनकी कब्र का एक भी टुकड़ा रुश में है तब तक रुश की उन्नति नहीं होगी। भुखमरी इतनी फ़ैल गयी की सम्पूर्ण विश्व सहायता क़े लिए दौड़ा। भारत तो रुश क़ा अभिन्न मित्र था लेकिन कितना गेहू देता ? एक खेप भेजा रुश की जनता तो रोटी खाने वाली, गेहू क़े देश सभी अमेरिका लाबी क़े थे जब रुश में लेनिन क़ा शासन आया तो जिसका कर्जा था उन्होंने किसी देश क़ा कर्ज नहीं दिया। अमेरिका ने कहा की जब हमारा पुराना कर्जा मिलेगा तब हम सहायता करेगे, एक-एक व्रेड क़े लिए एक-एक किलोमीटर की पंक्ति लगनी शुरू हो गयी और रशिया क़े १४ टुकड़े हो गए।
अंत में जाल में फॅसे
बामपंथियो पर मुझे एक कथा याद आती है एक बहेलिया था वह प्रतिदिन पक्षियों को जाल में फसा कर लाता उससे उसका रोजगार चलता । एक दिन बहेलिया जाल लेकर जंगल में गया देखा कि सभी पक्षी में एकता हो गयी है एक पक्षी ने सबको बताया कि इसी प्रकार यदि बहेलिया रोज जाल में हमें फसा कर ले जायेगा तो हम समाप्त हो जायेगे । उसने सबको सिखाया 'बहेलिया आयेगा जाल बिछाएगा दाना डालेगा हम नहीं चुनेगे नहीं फसेगे' । बहेलिया निरास होकर घर वापस चला गया घर में लेटा था। उसके लड़के ने पूछा पिता जी क्या हो गया आज कोई पक्षी जाल में नहीं फसा-? उसने कहा बेटा सभी पक्षी पढ़-लिख गए है जाल देखते ही वे इस प्रकार बोलने लगते है। लड़के ने कहा पिता जी आखिर मै भी तो पढ़ा हू मै जाल लेकर जाता हू लड़का जाल लेकर जंगल गया पक्षियों ने जाल को देखते ही गीत गाना शुरू कर दिया, 'बहेलिया आयेगा दाना डालेगा जाल बिछाएगा हम नहीं चुनेगे नहीं फसेगे; लेकिन बहेलिया क़े लड़के ने दाना डाला जाल बिछाया धीरे-धीरे सभी पक्षी जाल पर आकर चारा चुनने लगे जाल खीचा सभी पक्षी फस चुके थे। लेकिन सभी पक्षी गीत गा रहे थे 'बहेलिया आयेगा दाना डालेगा जाल बिछाएगा हम नहीं चुनेगे नहीं फसेगे', । चीन में ठीक उसी प्रकार नए -नए स्वरुप में बामपंथी आकर कभी किसान क्रांति क़े नाम पर कभी जमींदारों के नाम पर ५-६ करोड़ लोगो कि हत्या करके मानवता क़े सबसे बड़े ठेकेदार बने हुए है ।
मजदूरों के हितैषी नहीं शोषक
विश्व में सर्बाधिक मजदूरो क़ा शोषण बामपंथी चीन में है। किसी भी हालत में कोई भी मजदुर हड़ताल नहीं कर सकता दुनिया की सबसे सस्ती लेवर चीन में है इस नाते विश्व क़े सभी पूजीपति क़े लिए सबसे सुरक्षित स्थान चीन है। यहाँ क़े मजदुर बहुत कम मजदूरी में १२ घंटे काम करते है कोई साप्ताहिक अवकास नहीं दिया जाता। ताईवान की एक कंपनी 'फोक्सकोँ संसार की इलेक्ट्रिक समान बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनी है, में चार लाख मजदुर काम करते है । कम मजदूरी क़े कारण भुखमरी आत्म हत्याए होनी शुरू हो गयी १९४९ से आज तक चीनी मजदूरो को हड़ताल क़ा अनुभव नहीं था इधर २-३ वर्षो में चीन क़े हजारो फैक्टरियों में हड़ताल हुई है । विदेसी कंपनिया निर्यात कर भर पूर लाभ उठाकर पैसा अपने देशो को भेज रही है चीन क़े मजदूरो को नाम मात्र की मजदूरी मिलती है सरकार आख मूदकर बैठी है । ये केवल चीन में ही नहीं है बामपंथियो क़ा मजदूरो से कोई रिश्ता ही नहीं है ये केवल शासन पाने क़े लिए इनका उपयोग करते है उस पढ़े-लिखे बहेलिये क़े समान मजदूरो को तोता रटंत बना दिया है ।
और नेपाल
नेपाल में माओबाद क़े नाम पर हजारो हत्या करने क़े पश्चात् माओबादी नेता प्रचंड सत्ता में आये गरीब क़े नाम पर जीते थे। मजदूरो को उकसा कर कंपनियों में हड़ताल करवाना नेपाल की फैक्ट्रिया बंद सी हो गयी। मजदुर बेरोजगार हो गए, भुखमरी क़े शिकार हुए मजदुर भारत में आने को मजबूर है। माओबादी सत्ता में तो आए लेकिन उनकी शिक्षा क़े अनुसार उन्हें देश व गरीबो क़े लिए तो काम करना ही नहीं था वे सभी नेता करोड़पती हो गए। सभी केंद्रीय सदस्य 'कार - बंगला' वाले हो गए, गरीब और गरीब होता चला गया। अब वे सत्ता क़े लिए ब्याकुल है सत्ता जनमुखी होनी चाहिए यानी जनमुखी तभी होगी जब प्रचंड क़े हाथ मे सत्ता होगी इतना ही नहीं उनकी पार्टी में कोई भी नहीं ! केवल और केवल प्रचंड वे चीन क़े अच्छे मित्र है जैसे चीन में मजदूरो कि दुर्दसा है वैसे ही नेपाल में भी मजदूरो की स्थिति करनी चाहिए यही है बामपंथ का सच।
फिर प.बंगाल
हम आपको भारत क़े मजदुर हितैसियो क़े पास ले चलते है इनका शासन पश्चिम बंगाल में लगभग ३० वर्षो से है। सारी फक्ट्री बंद हो गयी है सारे मजदुर भुखमरी क़े कगार पर बंगाल छोड़कर बाहर क़े तरफ मुख कर लिए है । वहा क़े प्रतिष्ठित मुख्यमंत्री ज्योतिबसु जैसे कोई किराये क़े घर में रहता हो उसकी मरम्मत नहीं करता ठीक उसी प्रकार बंगाल पर शासन तो किया लेकिन देश क़े अग्रगणी भाग में रहने वाला प्रदेश आज सबसे पीछे कतार में खड़ा है। इतना ही नहीं दुनिया में केवल कोलकाता में आदमी रिक्सा चलता है। जो ब्यक्ति स्वयं अपने ऊपर खिचता है यह केवल बंगाल में है, ज्योति बाबू उसे भी समाप्त नहीं कर पाए। इनकी निति ही है गरीब को गरीब बना कर रखो, जब तक मजदुर नहीं रहेगा तब तक हमें सपोर्ट कौन करेगा यही कम्युनिष्ट नीति है।
छत्तीसगढ़
हम आपको कही और ले चलना चाहते है छत्तीसगढ़ जो सर्बाधिक चर्चित है, जहा माओबादी सामंती या जमींदारो से नहीं लड़ रहे है। उन्होंने तो उस क्षेत्र में लगभग ३० वर्षो से स्कूल, कालेज सड़क बिजली जैसी जन सुबिधाये समाप्त कर वनवासियों को जिन्दा लास बना दिया है। वहा उनकी ही सरकार चलती है इससे ऊब कर वनवासियों ने "सलवाजुडूम" यानी राष्ट्रवादी रास्ता अपनाया वे माओबादी को नकार चुके है। वे यह जानते है कि उनका कितना शोषण हो चुका है कोई भी शिक्षित नहीं बचा न होने वाला है माओबादी क़े मुकाबला हेतु खड़े हो गए वास्तविक लडाई ये है। कुछ लोग इसे आर्थिक करण समझते है वास्तव में ये केवल बैचारिक तानाशाही चाहते है। कुछ बुद्धिजीवी जो ऐ.सी. में बैठ कर लिखते है वे माओबादी क़ा समर्थन करते है वे इसे वनवासी और माओबादी को मिलाकर देखते है ऐसा नहीं है वनवासी तो माओबादी क़े बिरोध में है। ये हिन्दू स्टेट क़े बिरुद्ध डंके की चोट पर युद्ध घोषणा की है। लड़ने क़े शिवा कोई बिकल्प नहीं है, ये सभी बामपंथी चरित्र धोखे और झूठ पर निर्भर है ये गरीबो, मजदूरो क़े दुश्मन है रुशियो और चीनियों ने भी लेनिन, स्टालिन और माओ को मानवता क़ा सबसे बड़ा शत्रु कहा है सभी बामपंथी उस बहेलिये क़े और मजदुर पक्षियों क़े समान हो गए है।थोपे गए युद्ध को जीतने क़े सिवा कोई बिकल्प नहीं सरकारी धन से सरकारों क़े बिरुद्ध विद्ध्वसक अड्डो क़े रूप में संस्थाओ क़ा दुरूपयोग बंद करना चाहिए, बामपंथी उस कुत्ते क़े समान है जो पागल हो जाता है और उसे अंत में मारना ही पड़ता है ।
3 टिप्पणियाँ
ek acchhi post jo wastavikta ke najdik
जवाब देंहटाएंdhanyabad
bahut hi gyan-vardhak avam sarhniy post. aapke blog par aakar padhte-padhte usi me duub jaati hun .jab tak pura lekh padhungi nahi tab tak uska mulyankan kaise kar sakti hun.
जवाब देंहटाएंpoonam
पूनम जी आप हमारी पोस्ट आई बहुत-बहुत धन्यवाद.
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