क्रन्तिकारी संत स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस, ---- २३ दिसंबर -----------!

               स्वामी श्रद्धानंद सरस्वती बचपन का नाम मुंशीराम था - इनका जन्म 22फ़रवरी 1856 में हुआ था। वे अपने युग के महान संत थे विद्यार्थी जीवन में वे नास्तिक थे उनके पिता कोतवाल थे इनकी नास्तिकता से बड़े ही चिंतित रहते थे बरेली में एक बार महर्षि दयानंद सरस्वती का आगमन हुआ उनके पिता जी उन्हें आग्रहपूर्वक स्वामी जी के कार्यक्रम में ले गए, दयानंद जी का प्रवचन सुनाने के पश्चात् उन्हें [मुंशीराम] लगा वेद, शास्त्रों के बिरुद्ध, विचार का कोई आधार नहीं है, सत्यार्थ प्रकाश पढ़कर तो उनका (स्वामी जी का) पूरा जीवन ही बदल गया. वे महान क्रन्तिकारी संत स्वामी श्रद्धानंद हो गए, महर्षि दयानंद जी के उत्तराधिकारी होने के साथ-साथ उन्होंने गुरुकुल कांगड़ी तथा अनेक शिक्षण संस्थाओ को खड़ा किया आर्य समाज के कार्य को राष्ट्रीय स्वरुप देते हुए देश आज़ादी में हजारो नव जवानों को झोक दिया, आर्य समाज की प्रेरणा से रामप्रसाद बिस्मिल, भगत सिंह जैसे क्रन्तिकारी तैयार हुए, उन्होंने अपने गुरु द्वारा शुरू किये गए मानवता के मिशन को दुनिया एक पवित्र रास्ते पर चले इस संकल्प को आगे बढाने का प्रयत्न किया, महात्मा गाँधी उनसे मिलने  हरिद्वार गुरुकुल में आये और कई बार उनके कार्यो की प्रसंसा करते, पहली बार श्रद्धानंद जी ने ही उन्हें महात्मा की उपाधि दी यानी महात्मा कहकर संबोधित किया तभी से गाधी जी को महात्मा गाधी कहा जाने लगा ।
           धर्म, शिक्षा और आज़ादी उनका मिशन था दलितोत्थान, बिधवाओ का कल्याण और राष्ट्रीय चेतना की मशाल बन कर सामने आये उन्होंने अपने बिछुड़े हुए जो किन्ही कारन जोर-जबरदस्ती- बलात मुसलमान अथवा ईसाई बनाये गए थे उन्हें पुनः हिन्हू धर्म में वापस लाने का कार्य किया राजस्थान में एक लाख पच्चीस हज़ार मलकाना इस्लामिक राजपूतो की हिन्दू धर्म में वापसी तथा उत्तर प्रदेश के करीब ८९ गावो के हजारो लोगो को स्वधर्म में घर वापसी का क्रन्तिकारी कार्य किया इससे आक्रान्ता इस्लाम के अनुयायियो की धरती खिसकने लगी वे अपनी असलियत पर आकर बौखला गए, उन्होंने (स्वामी जी) राष्ट्र के मुख्यधारा को समझ कर ही ये परावर्तन का कार्य शुरू किया था इन्ही कारणों से उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी थी, राष्ट्रीय एकता को मजबूत करते हुए देश को आजाद कराने हेतु संघर्ष करते कई बार जेल भी गए, हम सभी को पता है ही कि प्रत्येक मुसलमान धर्मान्तरण को बढ़ावा देता है यानी इस्लाम का सर्वश्रेष्ठ कार्य समझता है, लेकिन जब श्रद्धानंद जी ने परावर्तन करना शुरू किया तो यह मुल्ला- मौलबियो को बर्दास्त नहीं हुआ, एक मुसलमान के द्वारा स्वामी जी की २३दिसम्बर १९२६ को चादनी चौक की रघुमल कोठी में गोली मारकर हत्या कर दी, उस समय उनकी उम्र ७०साल की थी उस पर भी उन्होंने उदारता पूर्वक शांति की अपील की, दुर्भाग्य है कि महात्मा गाँधी ने उस हत्यारे को फांसी से बचाने की अपील की और कहा कि उसका अपराध नहीं उसकी मानसिकता का दोस है, जब कि इन्ही महात्मा गाधी ने भगत सिंह के बचाव में कोई अपील नहीं की थी, हमें इस दिन को भूलना नहीं चाहिए उस महान क्रन्तिकारी संत के बिछुड़े हुए कार्य को पूरा करना ही उनके प्रति श्रद्धांजलि होगी आइये हम सभी उनके आदर्शो पर चले जिससे उनकी आत्मा को शांति मिले महर्षि दयानंद द्वारा जलाया गया दीपक जिसे स्वामी जी ने प्रकाशित किया आज हमारा कार्य ही उनकी आत्मा को शांति प्रदान कर सकता है..।      

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8 टिप्पणियाँ

  1. aadarniy subedar ji
    aapke blog par aakar nit nai jankariyan pdhne ko milti hain .koi bhi bhi post ho vohamesha hi jankariyo me badhava hi karti hai.
    aapko hardik abhinandan
    poonam

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  2. इस देश का सत्यानाश गांधी और उसके चेलों ने कर रखा है, मुस्लिम तुष्टीकरण के लिए किसी भी हद तक गिरने को तैयार। स्वामी जी का अतुलनीय योगदान रहा है देश के लिए, और धर्म के लिए। परन्तु यह क्लीव सरकार उसको स्वीकार भी नही करेगी।

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  3. स्वामी जी के परिचय के लिए आभार। ऐसी महान विभूतियाँ कम अवतरित होती हैं। निश्चय ही उनके सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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  4. जो चाहते है वही जानकारी मिल जाती है हार्दिक धन्यवाद जी ....

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  5. स्वामी जी अपने जीवन में महान बदलाव लाकर के हमें जीवन कि दिशा बता गए हैं हमें उसी दिशा का अनुसरण करना चाहिए..उनका सपना था, चरित्र विकास , गरीबोद्धार और स्व्तंत्रता ............. निश्चय ही उनके सपनों को साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

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