स्वतंत्रता सेनानी महामना मदनमोहन मालवीय .

25 दिसंबर मालवीय जी का जन्म दिन -। 


मालवीय जी भारतीय परंपरा के आधुनिक ऋषि थे दिखने में सामान्य परन्तु महान क्रन्तिकारी देश भक्त थे जिनकी प्रेरणा से हजारो देश भक्तो ने देश आज़ादी में अपने को न्योछावर कर दिया वे परंपरागत सनातन ''हिन्दू धर्म'' मानने वाले परिवार में जन्म लिए थे उनका जन्म तीर्थराज प्रयाग में २५ दिसंबर १८६१ को हुआ था, पूज्य मालवीय जी कट्टर हिन्दू थे हिन्दू सिद्धांतो की उन्हें सजीव मूर्ति कहा जाना चाहिए, आचार में अत्यंत संयमी और बिचार में परम उदार --हिंदुत्व की यह विशेषता उनमे कूट-कूट कर भरी थी ।

एक लाख गायों की गोशाला

मालवीय जी देश आज़ादी के साथ-साथ वे रचनात्मक कार्यो को प्रमुखता देते थे गोशालाओ के लिए वे राष्ट्र ब्यापी अभियान चलाये जिसमे बिहार में तो सरकारी कर्मचारी भी अपनी कमाई से कुछ अंश गोशालाओ के लिए निकलते थे, आज भी बिहार और उत्तर प्रदेश में सैकड़ो स्थानों पर गोशाला, गोचर की जमीने हैं गोशालाए मृत पड़ी हैं मालवीय चाहते थे की एक स्थान पर एक लाख गायों की गोशाला बनायीं जाये जो उनकी ईक्षा पूर्ण न हो सकी उनकी मंशा थी की प्रत्येक हिन्दू को घर में कम से कम एक गाय पालनी ही चाहिए। 

एक लाख क्षात्रों का गुरुकुल

मालवीय जी एक स्थान पर एक लाख ब्रम्ह्चारियो का गुरुकुल चाहते थे उसी महत्वाकांक्षा का परिणाम ''काशी हिन्दू विश्व विद्यालय'' की स्थापना हुई यह विश्व बिद्यालय भारत और हिन्दू समाज को अनुपम भेट है मालवीय जी एक ऐसे राष्ट्रीय नेता थे जिनका प्रभाव देश के प्रत्येक वर्ग में था महात्मा गाँधी उनको बड़ा भाई तो राजे -महराजे उन्हें पूजते थे, हिन्दू महासभा के वे जन्मदाता थे हिन्दू संगठन, हिन्दू धर्म उनका प्राण था, उनकी भेट संघ संस्थापक डॉ हेडगेवार से हुई वार्ता के पश्चात् मालवीय जी संघ के लिए धन इकठ्ठा करने की बात की तो डाक्टर जी ने यह कहते हुए मना कर दिया कि हमें तो आप ही मिल गए हैं धन तो अपने-आप ही आ जायेगा इस पर उन्होंने काशी हिन्दू विश्व बिद्यालय में ''राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ'' का कार्यालय बनवाया, वे कहते थे --
(लक्ष्य था)
ग्रामे-ग्रामे सभा कार्या, ग्रामे-ग्रामे कथा शुभाः
पाठशाला मल्लशाला ,प्रति पर्व महोत्सव॥ 
उनका यह संदेश प्रत्येक हिन्दू गाव में विद्यालय, कुस्ती लड़ने के लिए अखाडा हो जिससे प्रत्येक हिन्दू बलवान हो लेकिन उनके मन मे द्वेस को स्थान नहीं था, पर्व व परंपरा-गत धार्मिक कथाये और सभाए होनी चाहिए ऐसा उनका समाज से आग्रह था वे मन से शरीर तक सम्पूर्ण स्वदेशी थे। 

और बाबू जगजीवन राम 

महामना समरस समाज के पक्षधर थे उनका जीवन इसी काम के लिए समर्पित था बाबू जगजीवन राम बिहार में एसएलसी की परीक्षा में प्रथम स्थान पर आये, मालवीय जी उनको कशी हिन्दू विश्व बिद्यालय में ले गए क्षात्रवास में क्षात्रो के बिरोध के कारन जगजीवन को अपने ब्यक्तिगत आवास मे रखा, उनका रसोइया बर्तन माजने से मना कर दिया कुछ समय ऐसा भी आया कि जगजीवन राम के जूठे बर्तन भी मालवीय जी ने स्वयं धोने की जिम्मेदारी ली लेकिन जगजीवन को यह बात पता नहीं चलने नहीं दी इस प्रकार मालवीय जी ने गाव के एक बालक को इतना बड़ा बनाया की आगे चलकर यह बालक भारत का उप प्रधानमंत्री बना। 

और नोआखाली

नोवाखली का भयानक हिन्दू नरसंहार, हत्या कांड मालवीय जी ने सुना उनका ह्रदय घात हो गया वे हिल गए, अपने को सम्हाल नहीं पाए, यह सभी जानते है नोवाखाली कांड ने ही १२ नवम्बर १९४६ को महामना का बलिदान लिया, उनका अंतिम संदेश हिन्दू संगठन, हिन्दू जागरण की कातर पुकार है, उन्होंने ने कहा था जो हिन्दुओ को शांति से नहीं रहने देने चाहते उनके साथ किसी प्रकार की उदारता नहीं हो सकती ----- हिन्दू धर्म, हिन्दू संस्कृति खतरे में है, परिस्थिति संकटापन्न है, ऐसा समय आ गया है कि हिन्दू समाज एक होकर सेवा तथा सहायता से साधनों की परिपुष्टि करे, आज भी उन महापुरुषों की चेतावनी वैसी ही है --यह कैसे कहा और किया जा सकता है, अब हमारे बिचार करने की आवश्यकता है॥