महात्मा बुद्ध और भारत ---------!

भारत भूमि में

कोई ३१०० वर्ष पूर्व अहिंसा और आत्म ज्ञान के लिए जिस धर्म का उदय हुआ वह भारतीय वांगमय व वैदिक न होने के कारण केवल ३२५ वर्ष में ही भारत भूमि से समाप्त प्राय सा हो गया। इस पंथ की कायरता जहाँ विदेशी हमलावरों को रोक नहीं सका, वही दूसरी तरफ साकेत तक घुसी हुई विदेशी यवन सेनाओ को पराजित करता हुआ ''सेनापति पुष्यमित्र'' जब पाटलीपुत्र लौटा तो देखा कि वहाँ राजा तो अहिंसा के नाम पर यवनों के आगे समर्पण कर चुका है। तब भारत की मर्यादा बचाने के लिए 'पुष्यमित्र शुंग' ने राजा बृहद्रथ का वध कर पाटलीपुत्र की राज-गद्दी पर बैठा।  

भगवान बुद्ध का जन्म

कपिलवस्तु राजा सुद्दोधन के यहाँ एक पुत्र पैदा हुआ राजमहल में प्रसन्नता का कोई ठिकाना नहीं रहा राजा ने पुरोहित को बुला भेजा पुरोहित ने बिचार करने पश्चात् राजा को बताया यह बालक या तो बहुत बड़ा राजा होगा या बहुत बड़ा सन्यासी होगा। इसका नाम सिद्धार्थ होगा, राजा सुदोधन को लगा यदि हमारा पुत्र पढ़ लिख गया तो अवस्य ही सन्यासी हो जायेगा, इस नाते योजना बद्ध बालक सिद्धार्थ पढने की ब्यवस्था नहीं की गयी इस कार राजकुमार सिद्धार्थ पढ़े-लिखे नहीं थे। राजकुमार सिद्धार्थ का विबाह बचपन में ही एक बहुत सुन्दर राजकुमारी से कराया गया। उनके भोग- बिलास [सुरा-सुंदरी] की पूरी ब्यवस्था राजमहल में ही कर दी गयी, इतिहास बताता है कि जिस दिन वे घर छोड़े उस रात वे बहुत सी सुन्दरियों के साथ सोये थे। 

एक दिन भ्रमण पर निकले

एक दिन वे राजमहल से बाहर अपने मंत्री के साथ निकले तो रास्ता रुका (जाम) हुआ था उन्होंने मंत्री से पूछा की ये क्या है--? उसने बताया राजकुमार ये मरा हुआ मनुष्य है अंतिम संस्कार हेतु ले जाया जा रहा है, ये ऐसा क्यों होता है--? उसने बताया एक दिन सबको जाना ही पड़ता है यह तो विधि का विधान है। आगे उन्होंने देखा की एक ब्यक्ति डंडा लेकर ठेगते जा रहा है राजकुमार सिद्धार्थ के पूछने पर मंत्री ने बताया की एक दिन सभी मनुष्य इस अवस्था में आते है। उसी दिन उन्होंने तय किया कि मै इसका खोज करुगा और वह अर्ध रात्रि के समय सन्यास के लिए चल दिए।

सारनाथ में प्रथम उपदेश

ज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् उन्होंने 'सारनाथ' में चार भिक्षुओ को उपदेश दिया और अपने घर की तरफ चल दिए उन्होंने सर्व प्रथम अपने पुत्र और परिवार के लोगो को दीक्षा दी। अब वे सिद्धार्थ से 'महात्मा बुद्ध' हो चुके थे उनकी ख्याति भारतवर्ष में चारो तरफ फ़ैल चुकी थी उस समय हिंसाचार बढ़ गया था। महात्मा बुद्ध ने हिंसा के विरुद्ध शिक्षा दी वे अहिंसावादी थे ऐसा नहीं था कि वे अहिंसा का प्रथम उपदेश दे रहे थे भारत में तो अहिंसा को पहले ही वेदों में विस्तार से बताया गया है। लेकिन कर्मकांडी ब्राह्मणों ने कर्म -कांड में इसका गलत उपयोग किया और कहा गया कि ये सब वेदोक्ति है। महात्मा बुद्ध ने कहा यदि ये कर्म-कांड (हिंसा ) वेदों में है तो मै किसी वेद ही नहीं मानता! जब पुरोहितो ने ये कहा की ये सब भगवान को चढ़ाया जाता है तो भगवान बुद्ध ने कहा कि मै ऐसे किसी भगवान को भी नहीं मानता जो हिंसा करवाता हो। इस नाते बुद्ध का दर्शन न तो वैदिक रहा न ही इश्वर को मानने वाला बुद्ध दर्शन नास्तिक दर्शन हो गया। लेकिन वे हमेशा वैदिक जीवन पद्धति मानते रहे इस कारण इसमे उनका कोई दोष नहीं था ! ये तो सनातन परंपरा मानने वाले लोगो, पंडितो और उनके पिताश्री जिन्होंने उन्हें पढाया नहीं उनका दोष था। वे ''वेद'' नहीं पढ़े थे उन्हें 'उपनिषदों' का ज्ञान नहीं था उन्होंने ''गीता'' देखी नहीं थी इस नाते वे मनुष्य की दुखी अवस्था से दुखी होकर उन्होने यह मार्ग अपनाया। महात्मा बुद्ध ने कभी राजसत्ता नहीं छोड़ी यह एक प्रकार के शासक ही थे और बौद्ध धर्म के द्वारा ही सत्ता चलाना चाहते थे। यह विश्व का प्रथम मिशनरी यानी प्रचारक धर्म था इसी कारन यह धर्म लम्बे समय तक भारतीय वैदिक भूमि पर टिक नहीं सका

अहिंसा के गलत अर्थ का परिणाम 

उनका ज्ञान बहुत ऊंचा था उनके सारे क्रिया -कलाप यानी कर्म-कांड वैदिक ही थे अलग कुछ भी नहीं था। लेकिन नास्तिक दर्शन होने के कारण भारतीय बांगमय अथवा वेद बिरुद्ध हो गया इतना ही नहीं यह धर्म सद्गुण बिकृति का शिकार हो गया। इस कारण भारत की जितनी हानि बुद्ध धर्म या उनके बिचारो से हुआ उतना किसी परकीय धर्म ने नहीं किया न तो इसाईयों द्वारा न ही मुसलमानों द्वारा। बुद्ध की शिक्षा का असर इतना हुआ कि वैदिक गुरुकुलो को बुद्ध गुरुकुलो में परिवर्तित किया जाने लगा क्योंकि बुद्ध ऐसे संत थे जो क्षत्रिय राजबंश से आते थे। इस कारण भारतीय राजाओ को लगा यह तो अपने ही कुल-गोत्र का है बिना जनता की राय या मत लिए ही उद्घोषणा कर दिया गया कि सभी 'हिन्दू धर्म' छोड़कर बुद्ध धर्म को स्वीकार कर लिया। लेकिन ऐसा नहीं था ''वैदिक धर्म'' में ऐसा नहीं होता जो राजा का धर्म हो वही जनता माने लेकिन जोर जबरदस्ती जनता पर थोपा हुआ धर्म, ''बौद्ध धर्म'' था। परिणाम स्वरूप भारत में इस धर्म ने कारयता और आलसी लोगो को पैदा किया जो कर्महीन और राज्याश्रित हो गए। बुद्ध ने अहिंसा पर जोर दिया लेकिन कोई भी 'बुद्ध धर्म' मानने वाला शाकाहारी न होकर सभी मांसाहारी होते है। यहाँ तक इनके सबसे ताकतवर धर्माचार्य दलाईलामा घोर मांसाहारी है। बौद्धों की कथनी और करनी में जमीन- आसमान का अंतर है सभी गो मांस भक्षक है। भारतवर्ष (हिन्दू) जो अरब, अफगानिस्तान, ईरान, इराक तक था सभी बौद्ध मत को स्वीकार कर लिया क्योंकि यह पंथ प्रतिक्रिया बादी था। इस कारण हिंदुत्व के बिरोध में था परिणाम स्वरूप सारा का सारा यह क्षेत्र इस्लाम धर्म को स्वीकार कर लिया। इतना ही नहीं पश्चिम के आक्रमण कारियों का साथ देकर भारत का बिरोध करना ही अपना कर्तब्य समझा फिर क्या था--? इस्लाम की ताकत बढती गयी और ऐसी घटनाये होनी शुरू हो गयी कि जिस नालंदा गुरुकुल में दस हज़ार क्षात्र पढ़ते हो, हजारो आचार्य हो, वहाँ लुटेरा आक्रमणकारी 'बख्तियार खिलजी' मात्र 200 घुड़-सवारों के साथ आता है और विश्व प्रसिद्ध गुरुकुल का पुस्तकालय जलाकर चला जाता है। इस ''बौद्धधर्म'' अथवा गौतम बुद्ध का संदेश यदि देश में नपुंसकता को पैदा करता है तो यह भारत के लिए कितना खरतनाक सिद्ध हुआ यह हम समझ सकते हैं। 

मूलतः वैदिक परंपरा

कुछ विद्वानों का मत है कि बौद्ध मत ''भगवान बुद्ध'' का नहीं वे तो ''वैदिक धर्मी'' ही थे उनका ब्यवहार दर्शन सभी कुछ वैदिक था वे अहिंशक थे। लेकिन जब 'सम्राट अशोक' ने ''बौद्ध धर्म'' स्वीकार किया उसने ''भगवान बुद्ध'' के नाम पर अपना ''पंथ'' शुरू किया जिसे हम 'बुद्ध मत' कहते हैं। क्योंकि 'बुद्ध' तो अहिंसक थे फिर हिंसा कहाँ से आ गयी तो 'अशोक' ने हिंसक मत शुरू किया और 'भगवान बुद्ध' का नाम दे दिया क्योंकि 'भगवान बुद्ध' का दर्शन कभी भी हिंसक हो ही नहीं सकता 'अशोक' के काल मे भारत-वर्ष का खंड -खंड होना शुरू हो गया था। 

बौद्ध समाज के लोग जब मुसलमान हो गए

 इस बिचार के कारण भारत की सीमाए केवल सिकुड़ी ही नहीं वल्कि  बिहार का नाम कभी बिहार नहीं था बौद्ध-विहार होने के कारन इस प्रदेश का नाम बिहार पड़ा। यहाँ बौद्ध विहार बहुत थे ये सारे के सारे विहार मस्जिदों में परिणित हो गए और सारे बौद्ध मतावलंबी इस्लाम मतावलंबी हो गए। जो आज बर्तमान बिहार के लिए हिन्दुओ के लिए जीना दूभर किये हुए है इतना ही नहीं बिहार तो इस समय आतंकवाद की नर्शरी का रूप धारण कर चुका है। हमें खुले मन से बिचार करने की आवश्यकता है की 'नालंदा गुरुकुल' को नया वि.वि. बनाने की तयारी चल रही है क्या हम वैसा ही गुरुकुल चाहते है--? जिसमे 200 घुड़सवार आयें और उसे समाप्त कर चले जाय 'नालंदा' का नाम उस समय बहुत बड़ा था जब वह गुरुकुल वैदिक गुरुकुल था जिसमे सम्पूर्ण विश्व के विद्यार्थी पढने के लिए आते थे जो 'बिन्दुसार' जैसा वीर शक्तिशाली राजा को जन्म देता था। 

बौद्ध धर्म के नाम पर भारतीय संस्कृति का विरोध

आज भी ये प्रतिक्रिया वादी ही है बोध गया में 'आदि शंकराचार्य के मंदिर' के सामने ये जूता रखने का स्थान बनाये हुए है। इतना ही नहीं बोध गया के 'बौद्ध मंदिर' में प्रवेश द्वार पर 'भगवन विष्णु' का विग्रह बना हुआ है और बुद्ध के हाथ में शिवलिंग रखा हुआ है। वहाँ ''नवबौद्ध'' प्रतिदिन आन्दोलन करते है की ''विष्णु और शंकर'' की मूर्ति हटाई जाय, यदि वहाँ का हिन्दू खड़ा हो जाय कि 'शंकराचार्य' के मंदिर का जीर्णोद्धार किया जायेगा और वहां पर 'बौद्ध मंदिर' के विकाश को रोका जाय तो क्या होगा ----? यह भी हमें सोचना चाहिए, हमें बिचार करने की आवस्यकता है हिन्दू के अतिरिक्त कोई भी विचार उदारवादी नहीं है बौद्ध विचार भी 'इस्लाम और ईसाईयत' के सामान ही है। ये अपनी सर्बोच्च सत्ता चाहते है, हमने ब्यवहारिक दृष्टि से यह लिखा है, हमें उसी प्रकार मूल्याकन करने की जरुरत है जैसे कुरान-इस्लाम को प्रेम मोहब्बत का धर्म बताकर सम्पूर्ण विश्व में आतंक फैला रखा है उसी प्रकार बौद्ध दर्शन को केवल पढना ही नहीं भारत ने जो भोगा है उसे भी यथार्थ रूप से देखना पड़ेगा। 

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11 टिप्पणियाँ

  1. निसंदेह हमारा हिन्दू धर्म ही सबसे उदारवादी है जो सर्वे भवन्तु सुखिना में विश्वास रखता है। हमें अपने धर्म की पूरी जानकारी होनी चाहिए और इसके प्रचार-प्रसार में भरपूर योगदान देना चाहिए।

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    1. तुम जैसे बेवकूफ लोग ऐसी बकवास करेँगेँ तो बौद्धिस्ट इसे मान लेँगेँ इस पोस्ट से ही तुम लोगोँ की मुर्ख बुद्धी का पता चलता हैँ ।

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  2. ab samay aa gaya ki hame apne mool dhrm ki taraf laotna chahiye ,aur iska prachar prasar bhi kerna chahiye

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  3. gautam buddha ahinsavadi the Unhone Manavta ka Dhamma diya, nahi Vishamatavadi, jo pakhandi bramahan gautam buddha ke bare me aisa sochte hain, Un Logo ko apne gireban me zankna chahiye.agar wo zankte to delhi gang rape nahi hota.kyonki ye to unke hi bhagwan Indra ki den hain jo puran kal me unhone Mahasati Ahilya aur Vrunda ke sath kiya tha.

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  4. jis kisine ye information di he shayad usane bauddha dharma ka abhyas nahi kiya he, ya usane hindu dharma kitana ghinona he us ka bhi abhyas kiya nahi he, yesa lagata he ki usaki bhagvan buddha se koi jati dushmani he us ki wajah se usane ye bachkani harkat ki he, yesa karke shayad uske kaleje me dhanda milti hogi. usake vicharo se lagata he ki woh kuch padha likkha nahi he, bus dushmani nikal raha he.

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  5. Aap Bol rahe ho ki jitna apka nuksan buddha dharma ne kiya utna nuksan muslim aur isai dharma ne bhi nahi kiya. shayad aap bhul rahe ho ki Taimurlang aur Chhangez Khan ne kitne hindu logo ko katl kiya.itni jaane gayi kya wo bharat ka nuksan nahi. Gajhni ne 17 bar Bharat pe akraman kiya, Mandir Toda, logoka Khoon Bahaya, Tabhi to hindu samrat Chalukya the. tabhi to koi Buddhist raja ya Praja nahi thi kyonki Unko to Apke Vaidik Raja Aur Shankaracharya ne Pehle hi nasht Kar Diya tha, Tabhi Bharat ka Nuksan Nahi Hua Kya. buddha ya Buddha Dharma Ne Aisa Kya Kiya Hai Apki buddhi Itni Bhrashta ho Gai Aap Kuchha bhi Bake Ja Rahe Ho. Sharma Aani Chahiye Apko. Hamara Vishwadharma ke Bare Me aisa Likhte ho Jiska Apke Pas koi bhi sabut nahi hai. Agar Apka Dharma itna Mahan hota to Wo sirf Bharat Me Nahi Rehta.

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  6. भारत की आत्मा ही सनातन धर्म है भगवान बुद्ध सनातनी थे इसमे कोई शंका नहीं, बिना जानकारी के प्रतिकृया करना बिना पढे शोध किए टिप्पदी ठीक नहीं ये बकवास नहीं सत्य है, सनातन धर्म ही है जिसने इतने हमलों के बावजूद भारत अपना हिन्दू राष्ट्र का स्वरूप बनाए हुए है वास्तविकता स्वीकार करना चाहिए बौद्धों के कारण ही भारत मे इतने विदेशी आक्रमण हुए, अपने कहा की विश्व मे बौद्ध अधिक है तो कहा है तिब्बत,लंका,वर्मा, थायलैंड ऐसे कुछ देश कुल 1 से 15 करोण इस नाते सत्या स्वीकार करो मई भगवान बुद्ध का बिरोधी नहीं अध्ययन करो फिर बकवास करो।

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  7. ===महापरिनिब्बानसुत्त===
    अब प्रश्न यह है कि प्राचीन भारत के इन आठ गणराज्योें के राजवंश के लोग वर्तमान समय में कहा चले गये, असल में इन तत्कालीन राजवंशों की वंशावली आज भी वर्तमान भारत में विद्यमान है। उन्हे पता ही नही कि उनके पूर्वज राजा थे। मूल राजवंशों के राजाओं द्वारा भगवान बुद्ध कीे शिक्षा के अनुसार शासन करने के कारण प्रबुद्ध भारत अपने शिखर पर पहॅंच चुका था। इतिहास साक्षी है विश्व के लोग आकर्षित हुए प्रबुद्ध भारत के विद्या व संस्कृति, धर्म की ओर। 1500 ई0पू0 मेसोपोटामिया की सभ्यता से आये विदेशी वैदिक अपने कर्म-काण्ड पशु, नर बली संघारक अन्धमान्यताओं सोम-सुरा इस प्रकार के आचरण को उन दिनों के भारत में वैदिकों को अधोगति अनार्य सेवित धर्म की संज्ञा दी गयी।
    ===आम्बट्टसुत्त,पालिकच्चायन व्याकरण====
    वैदिक विदेशी जातिया अन्दर ही अन्दर मूल प्रबुद्ध भारत के सम्यता संस्कृति का विरोध कर रहे थे। तत्पश्चात् 190 ई0पू0 में वैदिक कुम्हरील भट्ट का शिष्य पातंजली व पुष्यमित्र शुंग ने मूल भारतीय राजवंशों का विनाश कर भारतीय जनता को वैदिक आनार्य सेवित धर्म के बल पर मानसिक गुलाम बना डाला जिससे मूल राजवंशों व प्रबुद्ध भारत का अस्तित्व खतरे में पड़ गया। इस घटना ने भारत देश को अन्धकार, विदेशी आक्रमण व हजारों वर्षों की गुलामी में ढकेल दिया इस देश से प्रबुद्ध भारत का विनाश का मूल कारण केवल वैदिक व मनुवादी साजिश के तहत भारतीय जनता पर अमानुषीय आक्रमण था, इस आक्रमण में हजारों लाखों हत्यायें व विहार, मूर्तिया, पुस्तकालय जलाई, तोड़ी गयी
    ===मौर्योत्तर भारत का प्रचीन इतिहास====

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  8. ===अशोक भगवान बुद्ध की शिक्षा का वास्तविक अनुयायी===
    कलिग-युद्ध के उपरान्त अशोक भगवान बुद्ध की शिक्षा का वास्तविक अनुयायी वन चुके थे । वह भला सेना व शस्त्रों को कैसे त्याग सकते थे ? उलटें भगवान बुद्ध की शिक्षा के अनुसार उन्होंने प्रबल सेना रखी परन्तु उसका उपयोग अपने देश की भितरी व बाहरी सुरक्षा के लिए किया न कि पड़ोसी देशों पर आक्रमण करने के लिए । अपने देश की अखण्डता एवं स्वतंत्रता पूर्ण रूप से कायम रखी । कलिग युद्ध के बाद वह मृत्यु पर्यन्त 40 वर्ष तक राज्य करते रहे । इतने लम्बे समय तक कोर्इ विदेशी दुश्मन देश की एक इंच भुमि न ले सका ।अशोक ने देश की स्वतंत्रता पर जरा भी आच नहीं आने दी । क्या यह सब सेना व शस्त्र त्याग करने से सम्भव होता ? यही नहीं उन्होंने अपने शिलालेख में आने वाली पिढि़यों को यही संदेश दिया। देवताओं के प्रिय राजा अशोक ने कहा-ऐ मेरे पुत्रो, पोतो, परपोतो और आने वाली पीढि़या 'आर्यधम्म शासन का पालन करे । यदि वे ऐसा करते है, तो कल्प के अन्त तक पुण्य को प्राप्त करेगे ।
    (शिलालेख मानसेहरा-पाकिस्तान)
    अब यदि कोर्इ शिक्षा का पालन ठीक प्रकार से ना करे तो इसके लिए शिक्षा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। सम्राट अशोक इस बात को अच्छी तरह समझाते थे कि हमारे न रहने पर हमारे नितियों व शिक्षाओं को दुषित व भुला दिया जायेगा । इसलिए उन्होंने ने वृहद पैमाने पर अभिलेख लिखवाये जो कार्य उन्होंने जनता व विश्व के कल्याण के लिए किया । यही अभिलेख साहित्य संविधान है और उनकी आचार सहिता भी । जो आज 2300 वर्षों बाद जीवन्त है ।
    अब सवाल उठता है कि भगवान बुद्ध की यह अहिसापरक शिक्षा है क्या ?
    धर्मराजा अशोक कहते है उनका शिलालेख कहता है कि मुझसे पहले इस देश में बहुत से राजा हुए और सभी राजा चाहते थे कि मेरी प्रजा सुखी रहे, निर्भय रहे (अकारण प्राणी हिसा ना हो), झुठ (ठग) ना हो व्यभीचार -दुराचार ना हो, चोरी नाशाखोरी ना हो, मेरी प्रजा में धर्म हो,मेरी प्रजा शानित से रहे, बड़ो का सम्मान हो, छोटों से प्यार हो, परस्पर लड़ार्इ-झगड़े न हो । ऐसा सब चाहते थे । (स्वभाबिक है आज के भारत में भी ऐसा सभी विद्वान लोग चाहते है । हमारा भारतीय संविधान चाहता है।) शिलालेख कहता है कोर्इ सफल नहीं हुआ फिर कहते है मैं सफल हुआ । शिलालेख का लेख है, इतिहास साक्षी है। कैसे सफल हुआ ? उनका भाग्य जागा भगवान बुद्ध की शिक्षा विपश्यना विधा के सम्पर्क में आये, एक संत भिक्खु 'मोग्गलिपुत्ततिस्स के सम्पर्क में आये । विपश्यना करते-करते गहराइयों में पहुँचने पर धर्म का एक स्वभाव प्रकट होने लगता है 'ऐहिपासिसको- ऐहिपासिसको आओ तुम भी करके देखो-आओ तुम भी करके देखो शुद्ध वैज्ञानिक बात है ।शिक्षा का यह व्यवहारिक स्वभाव इस सम्राट में जागा तो उन्होंने कहा-
    कोअरिन यदा पयया पस्सतित ।
    तेन होति कोअरियानं, सब्बदुक्खापमुच्चति ।। (उत्तरविहारट्टकथायं-थेरमहिंद)
    कौन शस्त्रु (हिसा, चोरी, झुठ, व्यभीचार, आसक्ति ) ऐसा प्रज्ञा से देखाने वाला 'कोअरि है, वह सभी दुक्खों से मुक्त हो जाता है । तब ऐसी अवस्था में अपने आपको 'कोअरिय(जो आर्य हो) कहा आज वहीं अपभ्रस होकर 'कोइरी हो गया । उन्होंने गहरार्इ से राज धर्म को समझा कि राजा की सन्तान होती है प्रजा । अरे इनको ये शिक्षा (धर्म) मिल जाये इनको ये विपश्यना विधा मिल जाये तो कितना बड़ा लोक कल्याण हो जायेगा । देश में मनुष्य-मनुष्य में भेद चलता है, सम्प्रादय-सम्प्रदाय में झगड़े चलते हैं, दूर हो जायेगे । यदि ये शुद्ध शिक्षा, धर्म विपश्यना विधा सारे लोक में फैले । तो शिलालेख कहता है कि मैं क्यों सफल हुआ । एक तो उन्होंने आमात्य बनाये और उनका कार्य था देश में घुम-घुम कर बुद्ध की कल्याणकारी शिक्षा को प्रचार करे और विपश्यना-साधना सिखाये । उसका बहुत बड़ा प्रभाव पड़ा-
    मुनिसानं....धम्मवढि़ता.....अकालेहि धम्मनियमेन
    तत चु लहु से धम्मनियमेन निझतिया च व भुये । (शिलालेख-देल्ही सप्तम)
    अर्थात-मनुष्यों में जो धर्म की बढ़ोतरी हुर्इ है, वे दो प्रकार से है। इस समय धर्म के नियम पालन से दूसरा ध्यान (विपश्यना ) से कही ज्यादा दिखार्इ पढ़ता है । समाज में फैली तमाम बुरार्इया अपने आप खत्म होती गर्इ । बड़े पैमाने पर विहार, स्कुल विश्वविधालय, सड़क अस्पताल, आदि की स्थापना कर मानवीय सवेदनाओं से आते-प्रोत जितने भी कार्य थे सब उन्होंने अपने कार्यकाल में लागु किया । आज उन्हीं का अनुसरण हमारा भारतीय संविधान व सयुक्त राष्ट्र संघ कर रहे हैं ।

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  9. यह लेख आप के कलुषित मस्तिस्कता का उपज हो सकता है आप सही अध्ययन करे बाबा जी गलत मत नीरा धार वीना शाक्ष्य के आप उल्टा सीधा न लेखे यह असम्बैधानिक है आप का मंगल हो

    यह लेख आप के कलुषित मस्तिस्कता का उपज हो सकता है आप सही अध्ययन करे बाबा जी गलत मत नीरा धार वीना शाक्ष्य के आप उल्टा सीधा न लेखे यह असम्बैधानिक है आप का मंगल हो यह लेख लिख कर आप आपने विदेशी पन का साबुत दे रहे है और यहाँ के ८५%जनता को उनके पूर्वजो को गली दे रहे है जिसे कटाई बर्डस नहीं किया जायेगा ... जय हो

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