स्वामी रामानंदाचार्य के शिष्य
कबीर दास जी का जन्म 1398 में काशी के 'लहरतारा' नामक स्थान पर हुआ था कहते है उनके माता -पिता का पता नहीं था वे अनाथ थे। उनका पालन-पोषण एक जुलाहा (तांती) यानी कपड़ा बुनने वाला 'बुनकर' (मुसलमान नहीं क्योंकि उसके पहले मुसलमानों में जुलाहा नाम की कोई जाती नहीं थी जो जुलाहा मुसलमान हुए उसे वही नाम देे दिया) परिवार में हुआ वे बचपन से भगवान के भक्त थे रामानंद स्वामी का प्रभाव पुुरे भारत में फ़ैल रहा था बालक कबीर स्वामी जी के शिष्य बनने हेतु बहुत ब्याकुल थे। वे बार-बार स्वामी जी के पास जाते लेकिन रामानंद स्वामी उन्हें मना करते की वे और बड़े तथा समझदार हो जायं फिर गुरु मंत्र लें। कुछ लोग स्वामी रामानंद के ऊपर यह आरोप लगते है की कबीर छोटी जाती के थे इसलिए उन्हें स्वामी जी अपना शिष्य नहीं बनाना चाहते थे लेकिन यह बात सत्य नहीं है क्योंकि उस समय इन सारी बातो पर हमारे समाज में बिचार नहीं था । यानी कोई छुवा- छूत तथा भेद-भाव नहीं था और उन्होंने हिन्दू समाज के बिभिन्न जातियों के २१ शिष्य खड़े कर धर्म बचाने का काम किया था। एक दिन प्रातः काल रामानंद स्वामी गंगा जी स्नान के लिए जा रहे थे "पञ्च गंगा घाट" सीढी पर भक्त बालक कबीर लेटे हुए थे अचानक स्वामी जी का पैर उनके ऊपर पण गया उन्होंने कहा बेटा चोट तो नहीं लगी---! बच्चा राम- राम कहो, कबीर ने स्वामी जी पैर पकड़ लिए --- कहा भगवन मुझे तो आपका मन्र मिल गया और उसी दिन से वे स्वामी रामानंद को अपना गुरु मानने लगे और गुरु को उपयुक्त शिष्य, शिष्य को उनके योग्य गुरु मिल गया।निर्गुण ब्रह्म के उपासक
कबीर को लोग फक्कड़ संत कहते है लेकिन मै इससे सहमत नहीं वे रामानंद के शिष्य है। रामानंद स्वामी हिन्दू समाज को धर्मान्तरण से बचा भारत को भारत बनाये रखना चाहते थे। वे स्वामी रामानंद की अभिब्यक्ति हैं वे सगुण होते हुए निर्गुण भी हैं। इस्लामिक सासन का इतना दबाव था की जब स्वामी रामानंद के साथ कबीर और रबिदास सहित द्वादस भागवत शिष्यों सहित यात्रा करते तो इन दोनों संतो को जिन्हें सिकंदर साह लोदी ने चंडाल घोषित कर रखा था तो कोई कैसे अपने मंदिर में प्रबेश देता। रामानंद स्वामी ने कहा यदि कबीर को मंदिर प्रबेश नहीं तो मै भी नहीं प्रवेश करुगा! फिर शास्त्रार्थ कर मंदिर में प्रबेश, हमारे यहाँ भेद-भाव नहीं था इसे इस्लामिक काल में योजना बद्ध तरीके से जबरदस्ती लागू कराया इस नाते कबीर बिद्रोही संत हैं वे इसे स्वीकार नहीं करते वे रामानंद के हथियार है जो 34 हज़ार इस्लाम मताव -लंबियो को पुनः हिन्दू धर्म में वापस लाते है। जहाँ इस्लामिक शासन हिन्दुओ में उंच-नींच तथा भेद-भाद पैदा कर रहा था जो धर्म के लिए लड़ने वाली जातियां थी उन्हें दलित बताने पर जोर देता वहीँ संत कबीर, संत रबिदास व अन्य स्वामी रामानंद अनुयायी इसके खिलाफ लड़ते दिखाई देते हैं ।
और अब हिन्दू समाज की भयावह स्थिति
यह समय कैसा है नौवी-दसवीं शताब्दी से लगातार हिन्दुओ का कत्लेआम बलात धर्मान्तरण, मुहम्मद्बिन कासिम, तुगलग, नादिरसाह, बख्तियार खिलजी और कला पहाड़ जैसे लोगो ने करोनो हिन्दुओ का केवल बध ही नहीं किया बल्कि लाखो, करोनो हिन्दुओ का बलात धर्मान्तरण भी किया हिन्दुओ ने जजिया देकर धर्म बचाने का काम किया हिन्दू भयक्रात था (हमारी जनसँख्या घटती जा रही थी जहाँ दसवी शताब्दी में ६० करोण हिन्दू था आखिर उन्नसवी शताब्दी में यह संख्या कैसे 40 करोण बची) जिन जातियों ने धर्म बचाने के लिए संघर्ष किया उन्हें पददलित कर दिया, जिन संतों ने संघर्ष किया उन्हें प्रताड़ना देकर समाज में अछूत बनाने का काम किया इस नाते हम देखते है की कबीर के अनुयायी जादेतर समाज का तथा-कथित निचला तपका है। आज का तथा-कथित समाज का अग्रगणी वर्ग इस्लामिक सत्ता के भय से इस्लामी आदेश मानकर अपने ही समाज को काटने का काम किया। यहाँ तक हुआ की जब स्वामी रामानंद के साथ पुरे देश का भ्रमण करते मंदिरों का दर्शन हेतु (मुसलमानों द्वारा प्रतिबंधित) जाते वहां के मंदिर ब्यवस्थापक उन्हें दर्शन के लिए मना करते जिससे समाज में बिकृति फैले वहां शास्त्रार्थ कर चुनौती स्वीकार करते फिर भगवान के दर्शन करते।
अरे इन दोउ रह न पायी
कबीरदास कहते हैं की इन दोनों को सच्चाई दिखाई नहीं देती काकर-पत्थर जोड़ी कर मस्जिद लेई बनायीं---- आखिर क्या कहना चाहते है कबीर वे मुसलमानों को ललकारते हैं की इस प्रकार मस्जिद पर चिल्लाने से कुछ नहीं होता, क्या बहरा हुआ खुदाय---? उस समय जोरो से इस्लामी करण हो रहा था, दूसरी तरफ तथा-कथित हिन्दुओ की आलोचना भी की उन्होंने पंडितो को भी सुनाया जो इस्लामिक शासको के दबाव में हिन्दू समाज में भेद डालने का काम कर रहे थे। क्योंकि उसी समय जुलाहा जाती के लोगो को अछूत करने का काम किया और उसी समय जुलाहों का इस्लामी करण हुआ इसी कारण कुछ लोग कबीर को भी मुसलमान समझने की गलती कर बैठता हैं। जब की रामानंद स्वामी के द्वादश शिष्य जिन्हें द्वादश भागवत कहा जाता था, भारत और सनातन धर्म को बचाने और हिन्दू से बने मुसलमानों को वापस हिन्दू धर्म में लाने के काम में जुटे ही नहीं तो आन्दोलन ही खड़ा कर दिया, हमें यह बात आसानी से समझनी चाहिए कि इस्लामिक (इब्राहीम लोदी) सत्ता ने उसी समय चमार यानी चंडाल और जुलाहा को मुसलमान बनाने का काम किया, समाज से अलग-थलग करने की साजिस की, क्यों की संत रबिदास और संतकबीर ये दोनों संत देश ब्यापी प्रभाव रखते थे और मुस्लिम सत्ता के लिए चुनौती बनकर खड़े थे।
कैसे थे कबीर---?
एक बार कबीरदास से मिलने एक भक्त आया घर पर कबीर नहीं थे उसने उनके पुत्र 'कमाल' से पूंछा तो उसने बताया की वे घटपर किसी को अंतिम दाह संस्कार में गए हैं वह काशी घाट पर जहाँ मुर्दा जलाये जाते है गया वह कबीरदास को पहचानता नहीं था लौट आया पूछा कबीरदास को कैसे पहचानूंगा ! कमाल ने बताया की जिसके मुख पर औरा यानि 'आभामंडल' दिखाई दे वही कबीर हैं घाट पर जाकर देखा तो वहां सबके ऊपर आभामंडल दिखाई दे रहा था वह चकित हो वापस आ गया फिर पूछा की वहां तो सबके मुखपर आभामंडल दिखाई दे रहा है कमल ने बताया की जब ब्यक्ति मुर्दा घाट पर जाता है तो उसे यह अनुभूति होती है की एक दिन हमें भी यहीं आना है और उसके मन में "बैराग्य" आ जाता है इस नाते जब वहां से कुछ दूर वापस आ जायं तब जिसके मुखमंडल पर आभामंडल रहे वही कबीर है यानी वे विदेह थे "कर्मयोगी" भी थे। कहते हैं की एक संत से किसी ने पूछा की बुद्ध और कबीर में क्या अंतर है उस संत ने बताया की कबीर उस जंगल के साधक हैं जो प्रकृति द्वारा निर्मित है लेकिन बुद्ध स्वयं मानव के द्वारा बनाये बागान, बाटिका यानी गार्डन में बास करते है जहाँ साधना नहीं हो सकती बैठने में अच्छा लग सकता है पिकनिक मना सकते है लेकिन कबीर के जगल में साधकों की भरमार है।कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुवाठी हाथ
संत कबीर बड़े साहसी और निडर थे उन्होंने कहा ! "कबीरा खड़ा बाज़ार में लिए लुवाठी हाथ, जो घर फूकै अपना रही हमारे साथ", जब भारत का धर्म संकट में था वे भारत के सांस्कृतिक राजधानी में कठमुल्लों और दिल्ली के शासक शिकंदरसाह लोदी को ललकार रहे होते हैं उन्होंने हिन्दू समाज का आवाहन किया की समाज उनके साथ खड़ा होकर इस्लामिक सत्ता का मुकाबला करे आवाहन कहाँ तक सबकुछ छोड़कर भारतीय धर्म बचाने के लिए सड़क पर आ जायं ऐसे भारत भ्रमण कर धर्म बचाने हेतु एक पंथ ही खड़ा कर दिया जिसने तर्क सम्मति कुरान और इस्लाम का उत्तर दिया समाज का साहस बढ़ाने हेतु उन्होंने कहा "जौ कबीरा काशी मरै, तो रामै कौन निहोरा" यानी काशी में मरने से तो सभी को मोक्ष प्राप्त होता है आज भी सम्पूर्ण भारत से मरने हेतु काशी आते हैं प्रत्येक प्रदेश के मुमोक्ष भवन बने हुए हैं। 'कबीर दास' कहते है की मैं यहाँ नहीं 'मगहर' जाता हू कबीर मगहर जाते हैं वहीँ १५१८ में शरीर छोड़ते हैं वहां भी मुसलमानों ने साजिस किया उनकी मृत शरीर लेने मुसलमान भी आते है लेकिन हिन्दू यह साजिस भांपकर पहले ही उनका अंतिम संस्कार कर देते हैं।
"एक सच जो हमसे छिपाया गया !"
मुसलमानों ने कबीर की हत्या कर दी थी क्योंकि वे मियाँ बनने को तैयार नहीं थे ! कबीर मरने के बाद फूल बन गये और हिन्दू और मुस्लिमो ने उन्हें बराबर बांट लिया, जबकि सचाई यह है कि सिकंदर लोदी ने उन्हें हाथी के पैरो से कुचलवाकर मरवा दिया था, क्योंकि उन्होंने मुल्ला बनने से मना कर दिया था।
जब कबीर दास जी ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया, तो सिकंदर लोदी के आदेश से जंजीरो में जकड़कर कबीर को मगहर लाया गया। वहां लाते ही जब शहंशाह के हुक्म के अनुसार कबीर को मस्त हाथी के पैरों तले रौंदा जाने लगा, तब लोई पछाड़ खाकर पति के पैरों पर गिर पड़ी। पुत्र कमाल भी पिता से लिपटकर रोने लगा। लेकिन कबीर तनिक भी विचलित नहीं हुए। आंखों में वही चमक बनी रही। चेहरे की झुर्रियों में भय का कोई चिन्ह नहीं उभरा। एकदम शान्त-गम्भीर वाणी में शहंशाह को सम्बोधित हो कहने लगे-
"माली आवत देखिकर,कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बार।।"
और फिर इतना कहते ही हलके से मुस्कुरा दिया। कबीर आगे बोले-'मुझे तो मरना ही था; आज नहीं मरता तो कल मरता। लेकिन सुलतान कब-तक इस गफलत में भरमाए पड़े रह सकेंगे, कब तक फूले-फूले फिरेंगे कि वह नहीं मरेंगे ? ऊपर जो छंद है यह कबीर के मरते वक्त ही रचा गया था और कबीर ग्रंथावली के अंत में भी जोड़ा गया है!!
कबीर को जिस समय हाथी के पैरों तले कुचलवाया जा रहा था, उस समय कबीर का एक शिष्य भी वहां मौजूद था, उसके मुख से निकल पडा-
"अहो मेरे गोविन्द तुम्हारा जोर ,काजी बकिवा हस्ती तोर।
बांधि भुजा भलैं करि डार्यो,हस्ति कोपि मूंड में मार्यो।
भाग्यो हस्ती चीसां मारी,वा मूरत की मैं बलिहारी।
महावत तोकूं मारौं सांटी,इसहि मराऊं घालौं काटी।
हस्ती न तोरे धरे धियान,वाकै हिरदै बसे भगवान।
कहा अपराध सन्त हौ कीन्हा,बांधि पोट कुंजर कूं दीन्हा।
कुंजर पोट बहु बन्दन करै,अजहु न सूझे काजी अंधरै।
तीन बेर पतियारा लीन्हा,मन कठोर अजहूं न पतीना।
कहै कबीर हमारे गोब्यन्द,चौथे पद में जन का ज्यन्द।।"
राष्ट्रीय चेतना के पुकार
कबीर ऐसे है जहाँ भारतीय चेतना की पुकार है जो भारत और हिंदुत्व को बचाने का काम करती है वे भारत की आत्मा के पुकार हैं अपनी परवाह न कर इस्लामिक सत्ता को चुनौती देने वाले संत हैं।सूबेदार
पटना