भारतीय स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति है 6 दिसंबर

भारतीय स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति का परिणाम है 6 दिसंबर


अयोध्या- अयोध्या और अयोध्या लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है बने भी न क्यों ! आखिर मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जन्म भूमि जो है। विगत हज़ार वर्ष देश के संघर्ष काल मे हमने बहुत से स्वाभिमान को नष्ट किया। आततायी इस्लाम मतावलंबियों को समझने मे हमने भारी भूल की और आज भी कर रहे हैं। हमारे राजा -महाराजा उन्हे इस्लाम आतंकी प्रचारक न समझ राजा समझने की भूल की वे केवल लुटेरे ही न थे बल्कि वे दुराचारी धर्म के प्रचारक भी थे। जिसे हिन्दू समाज ब्यभिचार समझता है वही इस्लाम में शिष्टाचार माना जाता है। हमारे पूर्बज़ समझ नहीं सके वे उनके साथ राजा जैसा ब्यवहार करने लगे, वे उनके साथ मनुष्यों जैसा ब्यवहार करने के कारण देश लंबे समय तक या तो संघर्ष शील रहा अथवा कुछ स्थानों पर गुलामी भी झेला लेकिन हिन्दू समाज ने कभी भी इस्लाम के शासन को स्वीकार नहीं किया ।

वे कोई धार्मिक नहीं लुटेरों का गिरोह

वे लुटेरे थे अरबों के कबीलों मे कोई राजा नहीं होते थे बल्कि लुटेरों का गिरोह हुआ करता था । खाने- पीने को कुछ नहीं होता था लूटना ही मुख्य धंधा। जिसके पास 200 घुड़सवार होता वह सरदार होता वे इस्लामी खलीफा के आदेश पर भारत मे लूटने हेतु आ जाता । सातवीं शताब्दी मे इन गिरोहों का आना शुरू हो गया, आज भी वामपंथी, सेकुलर इतिहासकार यह कहते नहीं थकते की भारत हज़ार वर्ष गुलाम रहा। उन्हे यह नहीं पता की जिस देश मे इस्लाम का शासन 50- 100 वर्ष रहा वहाँ एक भी अन्य मतावलंबी नहीं बचा वहाँ की संस्कृतियाँ समाप्त हो गईं कुछ भी नहीं बचा। इस नाते यह कहना कि भारत गुलाम था यह विल्कुल गलत है, कोरी कल्पना है, हाँ आक्रमणकारियों ने केवल लूट-पाट ही नहीं की बल्कि बलात धर्म परिवर्तन भी किया। वे केवल लुटेरे ही नहीं इस्लाम के प्रचारक भी थे। आज के मुसलमान कौन हैं ? वास्तविकता यह है कि ये सबके सब बलात्कारियों की संताने ही हैं। इस सबको चाहिए की प्राश्चित कर पुनः हिन्दू धर्म मे वापस आ जाय यह समय की पुकार है।

देश आजादी की अभिव्यक्ति

अब देश आज़ाद है जो भी कुछ हुआ और प्रचारित किया गया की हम आज़ाद हो गए है, तो जैसे सरदार पटेल ने आज़ादी के प्रतीक सोमनाथ मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र बाबू ने नेहरू के मना करने के बावजूद उसका उदघाटन किया। उसी प्रकार अयोध्या में "राम मंदिर" का भी जीर्णोद्धार होना चाहिए था किन्ही कारणों से यह नहीं हो सका। यदि सरदार पटेल जिंदा रहते तो शायद इसके लिए कोई आंदोलन नहीं करना पड़ता बल्कि यह सरकार स्वयं करती। हिन्दू समाज ने पचासों वर्ष इंतजार किया जब भारत सरकारें अधिक सेकुलर होने लगीं तो हिन्दू समाज को अपने स्वत्व का अनुभव हुआ की आज भारत आज़ाद है। और वह दिन आया जिसका सैकड़ों वर्षो से इंतजार था जिसके लिए लाखों हिंदुओं ने आहुति दी थी। जो स्वप्न नहीं था जिसे हमने अपनी आखो से देखा कि लाखों संख्या मे कारसेवक इकट्ठा होकर 6 दिसंबर 1992 पुराने बाबरी ढ़ाचे को ध्वस्त कर रामलला को स्थापित कर दिया। सारे विश्व के हिन्दुओ के लिए यह परम सौभाग्य का दिन था वास्तव मे यह स्वतन्त्रता की अभिब्यक्ति के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं था। 

संस्कृति में 36 का रिस्ता

आज जहां सारा विश्व अपने जड़ों को खोज रहा है वहीं कुछ पुरातन पंथी उससे भाग रहे हैं । बिना राम अथवा कृष्ण के हम भारत की कल्पना नहीं कर सकते। जहां सारे विश्व के कई इस्लामिक देशों मे मस्जिदों को तोड़कर सड़कें बनायीं जा रही है। कई देशों मे बुर्का पर प्रतिबंध, नमाज पर प्रतिबंध, दाढ़ी रखने पर प्रतिबंध, मस्जिदों को बनाने पर प्रतिबध, रोज़ा रखने पर प्रतिबंध अन्य इस्लामिक क्रिया कलापों पर प्रतिबंध लग रहा है चीन ने तो इस्लामिक नाम रखने पर प्रतिबंध लगा दिया है। पेरिस ने दो सौ मस्जिदों को तोड़ने का आदेश दे दिया है। वहीं जिसके बिना हम भारत की कल्पना नहीं कर सकते उनके जन्मभूमि पर मंदिर बनाने हेतु हिन्दू समाज को आंदोलन करना पड़ता है । अदालत जाना पड़ता है, कुछ सेकुलर नेता यह कहते नहीं थकते की भारत सबका है लेकिन यह वे भूल जाते हैं की भारत उनका है जो भारत के महापुरुषों, तीर्थों, नदियों, पहाड़ों तथा भारतीय मान बिन्दुओं का सम्मान करते है। जो राम जन्मभूमि मंदिर बनाने का बिरोध करते हैं उन पर भारतीय होने पर शंका उत्पन्न होती है। भारत केवल और केवल हिंदुओं का ही है अन्य समाज के लोग इसमे रहते है यह हमारी सहिष्णुता की पराकाष्ठा ही है उनको रहने का अधिकार है लेकिन हिन्दू बिरोध के आधार पर  नहीं, की हिन्दू जिसे महतारी (माँ) मानता है उसे वे तरकारी समझें, इसलिए ढांचे को गिराना हिन्दू स्वाभिमान का परिचायक है, वैसे देश मे दो धाराओं का होना स्वाभाविक है एक तरफ जहां राणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, स्वामी दयानन्द सरस्वती तथा स्वामी विबेकानंद थे वहीं दूसरी तरफ मानसिंह, जयचंद और नेहरू जैसों का जमावड़ा था। इसलिए मंदिर तो बनेगा ही इसमे कोई बहस की गुंजाईस नहीं है।       

अब राष्ट्रवाद   

आज समय की आवस्यकता है हिन्दू समाज खड़ा हो और केवल अयोध्या, माथुरा और काशी ही नहीं बहुत सारे सड़क जो विदेसियों के नाम पर है उसे बदलना भारत -भारत की तरह लगे जहां गौ, गंगा, गायत्री का सम्मान हो ऐसे भारतीय मान बिन्दुओं की रक्षा हो सके ऐसा हमे भारत बनाना है वास्तविक आज़ादी की तरफ हमे बढ़ाना है, क्योंकि आज़ादी अभी अधूरी है !