नेपाल
एक कहावत है -बाढई पूत पिता के धर्मा, खेती उपजय अपने कर्मा--------!चाहे कोई देश हो अथवा राष्ट्र या परिवार सभी पर यह बात लागू होती है जिस देश की नीव गलत तरीके से पड़ गयी हो उसे सम्हलना बड़ा ही कठिन होता है, नेपाल की शुद्ध यही हाल है 1950 मे भारत के साथ ही यदि कहा जाय कि नेपाल भी आज़ाद हुआ तो कोई अति-सयोक्ति नहीं होगा, भारत, नेपाली कांग्रेस और श्री3 चंद शमशेर के समझौते मे नेपाल मे राजा स्वीकार किया गया राणाओं का शासन समाप्त हुआ राजा और नेपाली कांग्रेस का संयुक्त शासन हुआ ''मोनार्की विद मल्टी पार्टी डेमोक्रेसी'' चाइना के इशारे पर राजा ने वीपी कोइराला को गिरफ्तार कर लोकतन्त्र को समाप्त कर सत्ता पर स्वयं कब्जा कर लिया, राजा महेंद्र ने सत्ता प्राप्ति के पश्चात हिन्दुत्व के नाम पर भारत का विरोध करना शुरू किया उनको लगता था कि नेपाली कांग्रेस भारत के पक्ष कि पार्टी है वे 'चाइना' पक्ष कि पार्टी चाहते थे उन्होने कम्युनिष्ट पार्टी का गठन कराया उसका दरवार से पूरा खर्चा वहाँ करते थे।
वामपंथ का उदय
जैसा ऊपर बताया कि राजा महेंद्र ने हिन्दू राष्ट्र के नाम पर भारतियों को ब्लेक मेल करना, राजा महेंद्र को लगा कि नेपाली कांग्रेस लोकतान्त्रिक है जिसका झुकाव भारत के साथ स्वाभाविक रहता है उन्होने वैलेंस बनाने के लिए माओवादी पार्टी का गठन कराया उसके प्रशिक्षण कि ब्यवस्था भी कराया चीन के इशारे पर भारतीय वामपंथियों ने दरभंगा, गोरखपुर,काशी जैसे स्थानो पर उनका साथ दिया राजा को यह समझ मे नहीं आया कि जो अपना बंश बदल देता है वह किसी का नहीं होता जो राम, कृष्ण के वंशज से बादल माओचेचुंग के वंश मे गए वे देश और हिन्दू समाज के हितैसी कैसे हो सकते हैं इतना ही नहीं दरबार मे उन्हीं की जागीर लगती थी जो वामपंथी प्रशिक्षण प्राप्त हुआ करते थे, इसलिए नेपाली कम्युनिष्टों को रायल कम्युनिष्ट कहा जाता है राजा ने अपना जड़ स्वयं नष्ट किया, वामपंथियों द्वारा भारत का विरोध करवाना, इतना ही नहीं भारतीय सीमा पर मुस्लिम आवादी को बसाना, क्योंकि वे अच्छी प्रकार जानते थे कि भारत का सबसे बड़ा शत्रु मुसलमान ही है, वे भारत बिरोधी हिन्दू खड़ा करना चाहते थे उन्हे यह नहीं पता था कि भारत बिरोधी हिन्दू हो ही नहीं सकता इसका परिणाम हुआ कि भारत बिरोध धीरे-धीरे हिन्दू बिरोध के रूप मे सामने आया और ईसाई मिशनरियों ने पूरे नेपाल मे अपना जाल फैला दिया धर्मांतरण, मखतब, मदरसों की भरमार हो गयी यह सब भारत के बिरोध मे तो गया ही लेकिन नेपाल भी उस बिरोध से अछूता नहीं रहा और उसका परिणाम मोनार्की समाप्त हो गयी, यदि इन सब दुर्दसाओं का एक कोई जिम्मेदार है तो वह केवल और केवल राजा महेंद्र !24 विदेशी एम्बेसियों का नेपाल मे क्या काम
चर्च के द्वारा बहुत से ईसाई देशों ने योजना वद्ध तरीके से हिन्दू राष्ट्र नेपाल को ईसाई चरागाह बनाने हेतु दूतावासों का निर्माण काठमांडों मे कारण का प्रयास किया गया, तत्कालीन राजा को विस्वास मे लेकर दूतावासों ने चर्च प्रायोजित षड्यंत्र शुरू किया देखते ही देखते नेपाल के पहाड़ी जिलों मे सैकड़ों चर्च खड़े कर दिये धर्मांतरण का कुचक्र शुरू किया, दूसरी तरफ इस्लामिक षण्यंत्र का शिकार हुआ नेपाल पेट्रोल, रोजगार के चक्कर मे एक स्वतंत्र स्वाभिमानी राष्ट्र दिखने के लिए तमाम इस्लामिक देशों के दूतावासों को खुलवाया इस प्रकार योजना पूर्वक लगभग 24 दूतावास खोले गए जो न तो नेपाल के हित मे हुआ न ही भारत के हित मे लेकिन चर्च और इस्लामिक मदरसे, मस्जिद दोनों नेपाल के हिन्दुत्व और राष्ट्रियता को समाप्त करने मे लग गए एक तरफ भारत सीमा पर इस्लामिक मदरसे- मस्जिदों की भरमार तो दूसरी तरफ चर्च द्वारा पहाड़ मे धर्मांतरण, यह नेपाल ही नहीं भारत के लिए भी खतरनाक सिद्ध हुआ, दोनों ताकते दोनों हिन्दू देशों मे तकरार पैदा करने मे सफल दिखाई देते हैं वास्तविकता यह है की उनका लक्ष्य नेपाल कम भारत अधिक है उनके पास कोई काम नहीं उनका तो काम केवल भारत के विरोध मे षणयंत्र करना ही है और वे सफल भी हो रहे हैं।नेपाल की वास्तविकता यह है की राज़ा महेंद्र, चर्च, इस्लामिक षणयंत्रों के शिकार हुए और भारत विरोधी राष्ट्रवाद खड़ा करने मे सफल होने लगे, वे जाने-अनजाने चीन के जाल मे फंस गए और अनजाने मे चीन से नेपाल विरोधी समझौता कर बैठे वे हिन्दुत्व तो चाहते थे लेकिन भारत विरोधी, सायद उन्हे यह ज्ञात नहीं था की भारत विरोधी हिन्दू हो ही नहीं सकता और भारत बिरोध करते-करते नेपाल हिन्दू बिरोधी होने लगा, जिससे नेपाल पहाड़ी, मधेसी समस्या का जन्म हो गया जो आज नेपाल के लिए जीवन मरण का प्रश्न बनाकर खड़ा हो गया है!