गाय माता, भारतीय संस्कृति और सेकुलर नेता---!

भारत में कन्याकुमारी से कश्मीर और अटक से कटक तक में एक ही नारा है--!

गाय हमारी माता है, देश -धर्म का नेता है

  गाय से हमारा नाता क्या है क्या विशेषता है इसमे पूरा देश बिना के वैतरणी यानी मोक्ष की कल्पना क्यों नहीं करता ! जब -तक  हम यह नहीं समझगे तब -तक भारतीय चिंतन भारतीय राष्ट्र और भारत समझ मे नहीं आयेगा, महाभारत सहित वैदिक ग्रन्थों मे उद्धहरण है की इस धरती के प्रथम राज़ा वेन थे एक समय आया वे अत्याचारी हो गए ऋषियों के समझाने पर न माने ऋषियों ने कुशा से उनकी हत्या कर दी फिर ऋषियों को लगा की बिना राजा के धरती का शासन कैसे चलेगा ऋषियों ने उनकी शरीर का मंथन किया उनके दायें भाग से एक काला पुरुष आया वह जल क्षत्रिय हुआ जिसे आज हम मल्लाह केवट इत्यादि कहते है, बाएँ अंग से एक गोरा चिट्टा पुरुष आया जो राजा बनाने योग्य था जो महाराजा पृथु के नाम से प्रसिद्ध हुआ वे धरती के प्रथम राज़ा थे जिनहोने अपनी प्रजा के सुखी- संपन्नता हेतु सपथ ग्रहण किया।

राजा पृथु और गौमाता 

 एक बार धरती पर अकाल पड़ा राजा पृथु को लगा की अपने जनता की रक्षा कैसे करे उसने धनुष-बाण उठाया की मै धरती को ही नष्ट कर दूंगा तब-तक धरती गाय का स्वरूप धारण कर राजा के सामने आ गयी राजा ने उसका पीछा किया गाय ने राजा से कहा हे राजन मै पालन करुगी आपके जनता की, मेरे बछड़े से खेत की जुताई होगी दूध-दहि से पकवान बनेगा चुकि धरती ने गाय का रूप धारण किया था इसी कारण राजा ने उसे अपनी पुत्री माना तब से इस धरती का नाम पृथबी पड़ा और गाय को समाज माँ के रूप मे देखने लगा।

वैदिक कल से गाय अवद्ध्य  है 

  ऋग्वेद मे गाय को बार-बार अघन्या-अवध्या कहा गया है, इन्द्र स्वयं अघन्या के स्वामी हैं इन्द्र गायों के रक्षक हैं ऋग्वेद मे कहा गया है की गायें ही इन्द्र हैं ''इमा या गावः स जनास इन्द्र'', कहते हैं की शत्रु भी इन्हे शस्त्र से इन्हे हानी नहीं पहुचा सकते, गाय ''सहस्त्रधारा पायसा''' है, सहस्त्रधाराओं मे दूध देती हैं, गाय का दूध दुर्बुद्धि दूर करती है -''गोमिष्टरेमंतीन दुरेवाम'', 'अथर्वेद मे कहा गया है कि जिस देश मे गाय परेशान होती है उस राष्ट्र का तेज शून्य हो जाता है,वहाँ वीर जन्म नहीं लेते, गाय को पीड़ित करना क्रूरता है राज़ा से अनुरोध है कि गाय त्रिसकृत न किया जाय'। आज के पाँच हज़ार वर्ष पहले भगवान श्रीकृष्ण ने गाय को माता मानकर गोपालक बने आज भी पूरा भारतीय समाज उन्हे 'गोपाल' के नाम से जानता है, महात्मा गांधी ने कहा की यदि एक दिन के लिए भी मुझे सत्ता मिल जाय तो मै पूर्ण गो बध बंद कर दूंगा, संविधान निर्माण के समय डॉ भीमराव अंबेडकर ने संविधान मे गोरक्षा हेतु संविधान की धारा का निर्माण किया, भारत गौ, गंगा,और गायत्री के नाते जाना जाता है और यही हमारी पहचान है, स्वतंत्र भारत मे तत्कालीन प्रधानमंत्री इंद्रा गांधी के समय पूज्य शंकरचार्यों, करपात्री जी महराज, प्रयाग के पूज्य प्रभुदत्त ब्रांहचारी जी महराज एवं संघ के प पू श्री गुरु जी के नेतृत्व मे गोरक्षा हेतु बहुत बड़ा देश ब्यापी आंदोलन चला, समय-समय पर गोरक्षा हेतु आंदोलन चलते रहे हैं भारत मे हमेशा गो मांस पर प्रतिबंध रहा है ।

सेकुलारिष्ट संस्कृति विरोधी 

 भारत के सेकुलर नेता क्या चाहते हैं वे भारत से भारतीयता को समाप्त करना चाहते हैं इसी कारण समय -समय पर वे लोग गो मांस की डिमांड करते हैं, जब देश आज़ाद हुआ तो कांग्रेस और वामपंथियों मे एक समझौता हुआ सत्ता कांग्रेस के पास बौद्धिक संस्थान वामपंथियों के पास 1951 से यह सम्झौता चला आ रहा है बौद्धिक संस्थान ने संस्कृत को मृत भाषा घोषित करने का काम किया बार-बार वीफ को लेकर हँगामा इतना ही नहीं अभिब्यक्ति के नामपर हिन्दू देवि-देवताओं का अपमान कर हिंदुओं को सारे-आम अपमानित करना स्वभाव बन गया है, मैक्समूलर जैसे अर्ध ज्ञानियों की पुस्तकों जो हिन्दू बिरोधी लिखी गयी हैं उसे आधार बनाने का प्रयास किया जाता है, स्वामी दयानन्द सरस्वती मैक्समूलर के बारे मे कहते थे जैसे 'अन्धो मे कनवा राजा' जहां कोई संस्कृत नहीं जनता वहीं का विद्वान मैक्समूलर बन सकता है न कि भारतीय वांगमय का, वामपंथी ही नहीं सेकुलरिष्ट भी 'सजनी हमहू राजकुमार' बनाने लगे, चाहे लालू प्रसाद यादव हों या रघुवंश ये कौन सा वेद पढे हुए हैं ये संस्कृति का एक शब्द का शुद्ध उच्चारण नहीं कर सकते ''वेद'' पढ़ने को कौन कहे ! सेकुलरिष्ट नेताओ का उद्देस्य हमारे ऋषियों-मुनियों को गोमांस भक्षी बता हिन्दू समाज और भारत का अपमान करने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं, वामपंथी और सेकुलर यदि यह समझते हों कि ऐसा करने से वे भारत का सारे आम अपमान कराते रहेगे और हिन्दू समाज चुप रहेगा यह संभव नहीं ऋग्वेद मे लिखा है कि जो गाय का बध करता है उसका उसी प्रकार बध कर देना चाहिए, वेद ईश्वर प्रदत्त ग्रंथ है अपौरुषेय है, वह ईश्वर की आज्ञा है, अंत मे हिन्दू समाज को स्वयं इस विषय पर विचार पूर्बक निर्णय करना होगा।                             

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