तीनों क्षेत्रो का क्षेत्रफल-----!
आजादी के सत्तर साल बाद भी लोकसभा की पाँच और बिधान सभा की २४ सीटें आज भी ख़ाली पड़ी हैं आखिर क्यों- ? क्या किसी ने इस विषय पर विचार किया यदि नहीं किया तो क्यों ? यह एक गम्भीर विषय है भारत के प्रथम प्रधानमंत्री ने तो जहाँ पर उगली रखी वहाँ उससे भारत को लाभ कम हानि अधिक हुआ कश्मीर, नेपाल, चीन इत्यादि समस्या मे उन्होMने हाथ लगाया आज वह बिषबेल के समान हमारी पीछा नहीं छोड़ रही है जम्बू, कश्मीर और लद्दाख की कुल क्षेत्रफल 222236 बर्ग किमी है जिसमे नेहरू की गलत नीतियों का परिणाम है की पाक अधिकृत कश्मीर के पास एक लाख वर्ग किमी है पाकिस्तान ने जो भाग चीन को दिया उसका क्षेत्रफल 5180 वर्ग किमी है 1962 मे जो भाग चीन ने कब्जा किया वह 3755 वर्ग किमी है।जनसंख्या का घनत्व---!
वर्तमान मे लद्दाख का क्षेत्रफल 59136 वर्ग किमी और जनसंख्या दो लाख है, कश्मीर का क्षेत्रफल 15948 वर्ग किमी जनसंख्या 58 लाख और जम्बू का क्षेत्रफल 26293 वर्ग किमी जनसंख्या 62 लाख है इसके बिपरित जब विधान सभाओं का बटवारा कुछ इस प्रकार है कश्मीर पास 58 लाख जनसंख्या पर 47 विधान सभा सीट है जम्बू की जनसंख्या 62 लाख सीट 36 तथा लद्दाख दो लाख पर 4 सीट है पाक अधिकृत कश्मीर की 24 विधान सभा एक लोक सभा सीट खाली पड़ी रहती है ।विभाजन के पश्चात भयंकर विकृति--!
देश विभाजन के पश्चात पाकिस्तान अर्थात पाक अधिकृत कश्मीर से आए हुए हिन्दू बड़ी संख्या मे है एंग्लोइंडियन को हम लोकसभा तथा अन्य 'लोकसभा' तथा 'राज्य सभा'' मे नियुक्ति करते है तो पाक अधिकृत कश्मीर व चीन अधिकृत कश्मीर से क्यों नहीं नियुक्ति कर सकते--! आखिर हम पाकिस्तान से आए हुए लोगों को चौबीस सीटों पर मनोनीत क्यों नहीं करते, हमे लगता है की अब समय आ गया है भारत एक लोकसभा सीट और चौबीस विधानसभा सीटों पर पाक से आए हुए लोगों को विधान सभा मे मनोनीति कर रिक्त सीटों को पूरा करना चाहिए क्यों कि हम कई बार लोकसभा मे प्रस्ताव पारित कर चुके हैं कि पाक अधिकृत कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है पाकिस्तान उसे खाली करे --! यह एक बड़ा कदम होगा कि उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व वहाँ के मूल निवासियों द्वारा होगा और "जम्बू & कश्मीर" समस्या का समाधान भी होगा, इससे कश्मीर समस्या समझने औए सुलझाने मे सहायता मिलेगी जो पाक अधिकृत कश्मीर से आए हिन्दू हैं उन्हे अपने अधिकार भी मिलेगा ।शासन की हनक चाहिए---
भारत सरकार को यह समझना होगा शासन दम के आधार पर चलता है न कि समझौतावादी नीति से, कड़ाई से संविधान का पालन होना चाहिए, यदि कुछ लोग "मुस्लिम परसनल ला" चाहते हैं भारतीय संविधान नहीं चाहते तो देश उनके बारे मे विचार करे--! क्या भारतीय संविधान किसी महिला या पुरुष पर अत्याचार की अनुमति देता है ---?समस्या का समाधान---!!
'जम्मू & कश्मीर' की इस समस्या का एक और हल हो सकता है 2004 मे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कुरुक्षेत्र के कार्यकारी मण्डल की बैठक मे एक प्रस्ताव पारित किया था कि जंबू, कश्मीर घाटी और लद्दाख को तीन अलग-अलग केंद्र शासित राज्य बनाया जाय घाटी को सेना के हवाले दे दिया जाय और दोनों राज्यों से धारा 370 हटा ली जाय यह भी एक समाधान हो सकता है। आज भी घाटी विना सेना के सुरक्षित नहीं है, सेना है तो खर्च उतना ही हो रहा है इस कारण घाटी को अलग राज्य बनाने पर एक तो 'जंबू और लद्दाख', घाटी की गुलामी से मुक्ति मिल जाएगा, विकाश की धारा बढ़ेगी देश का खर्चा भी कम हो जाएगा। इस कारण जंबू & कश्मीर के तीन राज्य बनाना भी श्रेयस्कर हो सकता है, तत्काल एनडीए सरकार ने इस प्रस्ताव को तुरंत ही खारिज कर दिया था लेकिन इस सरकार को इस प्रस्ताव पर गंभीरता पूर्वक पुनर्विचार करना चाहिए ।और डा अम्बेडकर
जवाहरलाल नेहरू की देश भक्ति कुछ इस प्रकार थी उन्होंने "मित्रता को देशभक्ति से अधिक महत्व दिया करते थे।" नेहरू यह भली भाति जानते थे कि डा अम्बेडकर प्रखर राष्ट्रवादी हैं वे कभी भी धारा 370 को मानेंगे नहीं। इसलिए उन्होंने शेख अब्दुल्लाह को डा अम्बेडकर के पास भेजा। प्रातः काल ही शेख अब्दुल्ला डा अम्बेडकर के आवास पर पहुंचे, वार्ता शुरू ही हुई थी कि डा अम्बेडकर ने कहा क्या आप ये चाहते हैं कि भारत की सारी कमाई कश्मीर पर व्यय किया जाये! मै इसे कभी स्वीकार नहीं करुगा। जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण विलय हुआ है, इसे आपको भी स्वीकार करना चाहिए लेकिन शेख अब्दुल्ला तो कश्मीर को अपनी जागीर समझता था। शेख ने कई तर्क दिए लेकिन बात नहीं बनी डा अम्बेडकर ने शेख अब्दुल्ला से कहा "मै भारत का विधि मंत्री हूँ भारत की एक एक इंच भूमि की सुरक्षा करना मेरा काम है।" उनके सामने शेख की कुछ भी नहीं चली और निरुत्तर हो वापस नेहरू के पास चले गए। डा अम्बेडकर महाराजा हरिसिंह को ठीक प्रकार से जानते थे उनकी भेंट गोलमेज सम्मलेन लन्दन में हुई थी अम्बेडकर सामाजिक समरसता के पक्षधर थे उनकी राजा हरिसिंह से इस पर चर्चा उसी सम्मलेन में हुई थी, महाराजा हरिसिंह ने कश्मीर लौटने के पश्चात् इस विषय को अपने राज्य में ठीक प्रकार से लागू किया। डा अम्बेडकर संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी के चेयरमेन थे उन्होंने धारा 370 को ड्राफ्ट करने से मना कर दिया। अब नेहरू के सामने समस्या थी कि कौन ड्राफ्ट करेगा? फिर उन्होंने आयंगर से इस धारा को ड्राफ्ट कराया, हम यह समझ सकते हैं कि जवाहरलाल नेहरू ने अपने जिद के आगे राष्ट्र को दांव पर लगा दिया। एक तरफ नेहरू की मित्रता दूसरी ओर राष्ट्र, सरदार पटेल डा अम्बेडकर और महाराजा हरिसिंह फिर भी राष्ट्र पराजित हुआ और मित्रता जीती ऐसे थे तथाकथित पंडित जवाहरलाल नेहरू।
2 टिप्पणियाँ
१९४७ मे जब जनसंख्या की अदली-बदली हो रही थी यानी हिन्दू विस्थापित हो रहा था, सभी को भारत मे सब सुविधा नागरिकता मिली कश्मीर मे आये हिन्दुओं को क्यों नहीं -? अब समय आ गया जब उन्हें उनका अधिकार मिलना चाहिये ---।
जवाब देंहटाएंकश्मीर समस्या का समाधान उसके तीन हिस्से करने से होगा दो हिस्से ( जम्मू और लदाख) से ३७० हटाना एक हिस्सा घाटी को सेना के हवाले करना हमें लगता है यही सबसे अच्छा रास्ता है-।
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