मंदार पर्वत जिसे समुद्र मंथन की मथनी माना जाता है------!

       

क्षीरसागर में हुआ समुद्र मंथन

सभी भारतियों को यह पता ही है कि 'समुद्र मंथन' हुआ था जिसमे चौदह 'रत्न' निकले थे। लेकिन यह किस पर्वत के द्वारा और वह किस स्थान, कहाँ पर है क्या आज भी मंदार का अस्तित्व है ? जिसे देवताओं व दानवों ने मथनी बनाया था अगर है तो कहाँ पर है और उसके साक्ष्य क्या हैं ? कि यह वही पर्वत है, लेकिन यह समुद्र मंथन कब हुआ और कहाँ हुआ अगर यह वही पर्वत है तो नाग बासुकि कहाँ है ? जिसको लेकर मंथन हुआ था वास्तव मे यह सोध का विषय है, जिस पर काम करने की अवस्यकता है। क्योंकि हिन्दू समाज का आधार व अस्तित्व और उसकी वैज्ञानिकता को भी सिद्ध करना जरूरी है कि 'समुद्र मंथन' "क्षीर सागर" मे हुआ था तो वह "क्षीर सागर" कहाँ पर है-? या कोई क्षीर सागर था भी या नहीं--! ऐसे बहुत से प्रश्न खड़े हैं उसका समाधान होना भी आवस्यक है ।

संथाल समाज का उद्गम

 मंदार पर्वत पर एक 'सीता कुण्ड' भी है किंबदंती है कि सीता जी ने प्रथम बार यहां छठ किया था। यहाँ पर एक शंख कुण्ड भी है जिसमें एक "भगवान विष्णु" का शंख है जिसे "पांचजन्य" नाम से जाना जाता है वह 35-40 फीट की गहराई कीचड़ में है इस पर्वत के किनारे बड़ी संख्या में मंदिर पाये जाते हैं, साधू संत सन्यासियों की जमात तो रहती ही है, बड़ी संख्या में धार्मिक श्रद्धालु हमेशा आते रहते हैं। "मकर संक्रांति" पर तो लाखों 'वनवासी' मंदार पर्वत पर स्थित तालाब 'पापहरणी' में स्नान करने हेतु आते हैं और पूरे एक महीने यह मेला चलता रहता है, मेला, तीर्थ, नदियों -तालाबों में स्नान भारतीय संस्कृति का अंग है। इसी के बीच 'हिंदू संस्कृति' बिकसित औऱ सुरक्षित रहती है, लेकिन 'मंदार पर्वत' जिस प्रतिष्ठा का हकदार था वह उसे नहीं मिला, मंदार को भारतीय धार्मिक पर्यटन के क्षितिज पर लाना आवस्यक है।

हिमालय से भी पुरातन

अगर मथनी यहाँ है तो समुद्र कहाँ है यह भी प्रश्न खड़ा है! सारा विश्व जानता है कि हिमालय सर्वाधिक नया पर्वत है, गंगा जी के उत्तर हिमालय सहित सारा का सारा भूभाग समुद्र था। जिसे क्षीरसागर के नाम से जाना जाता था और समुद्र मंथन क्षीरसागर में ही हुआ था, जिसमें चौदह रत्न प्राप्त हुआ था। आज भी मंदार पर कामधेनु मंदिर है जो इस बात का प्रमाण है कि यही वह पर्वत है जिससे समुद्र मंथन किया गया था। इस स्थान पर तमाम प्रकार की जड़ी -बूटियां पायी जाती हैं जो दूर्लभ हैं, गंगा जी से उत्तर हिमालय के बीच दो -तीन किमी बोरिंग करने पर एक भी कंकड़ नहीं पाया जाता है। वेदो में भी गंगा जी और हिमालय का वर्णन नहीं मिलता वेदों में सरस्वती व नर्मदा का वर्णन मिलता है। इसका अर्थ है कि गंगा जी से उत्तर हिमालय की भूमि नयी है जिसे हम गंगा यमुना का मैदान कहतें हैं, यही "क्षीरसागर" है यही 'मंदार पर्वत' है जिसे मथनी बनाया गया था। इसका अर्थ है कि यह मंदार पर्वत गंगा जी व हिमालय से पुराना "वैदिक कालीन" है जो भारत की धरोहर है जिसका सुरक्षित रखना विकसित करना हमारा दायित्व है।