एक ऐसा भी राजवंश--- चित्तौड़गढ़ जो देशभक्ति का पर्याय बन गया------!

भारतीय सत्ता का केन्द्र            

चित्तौड़गढ़ जो देशभक्ति का पर्याय बन गया!

 
मेवाड़ के राणाओं ने कसम खाई थी कि वो  दिल्ली तभी जाएंगे जब विदेशी ताकतों से देश आजाद हो जाएगा, यह राजवंश विश्व का सर्वाधिक पुराना राजवंश है कभी इसका शासन अफगानिस्तान से लेकर गुजरात मालवा तक था यह काल 'महाराणा कुंभा' का था यह राजवंश हमेशा भारतवर्ष का पहरेदार ही नहीं हिन्दू धर्म व समाज की मर्यादा रखने वाला था इतना ही नहीं कभी किसी प्रकार की गुलामी स्वीकार नहीं की महाराणा राजसिंह ने तो औरंगजेब को तीन-तीन बार पराजित किया और उनके समय इस राजा के पास नियमित तीन लाख सेना हुआ करती थी । महाभारत, मौर्यवंश, शुंग वंश, महाराजा विक्रमादित्य के पश्चात मेवाड़ भारतीय सत्ता का केंद्र हुआ करता था अश्वमेध यज्ञ कि तथा चक्रवर्ती सम्राट की ब्यवस्था समाप्त होने पर भी मेवाड़ भारतीय सत्ता का केंद्र था जब तक मेवाड़ को कोई विदेशी पराजित नहीं कर लेता तब तक भारत वर्ष की पराजय नहीं मानी जाती थी, इसलिए सम्पूर्ण भारतीय समाज के श्रद्धा का केंद्र बिंदु महाराणा ही बने रहे .

संघर्ष का पर्याय

मेवाड़ राज्य की कहानी 730 इस्वी से शुरू होती है, मुगलों के हाथों में जाने से करीब 150 वर्ष पहले तक मेवाड़ इलाके पर गुहिलों और सिसोदिया राजपूत शासकों का शासन था, महाराणा प्रताप ने 1568 में अपने ''राज्य मेवाड़'' को मुगलों से वापस पाने के लिये जबरदस्त संघर्ष किया, और अपने जीवन काल मे ही एकाध किले छोड़ सभी किले अकबर से जीत लिए। 1818 में ब्रिटिश शासन के दौरान मेवाड़ राज्य ने दूसरे राज्यों से सुरक्षा हासिल करने के लिये अंग्रेजों से समझौता किया, मेवाड़ की खासियत ये थी कि राणा  हमेशा बिदेशी सत्ता को स्वीकार नहीं करते थे राणा हमेसा स्वतन्त्रता और स्वाभिमान के लिए संघर्ष करते थे, देश को आजादी मिलने के बाद ''मेवाड़'' पहली ऐसी रियासत थी जिसने भारतीय संघ में शामिल होने का फैसला किया।
मेवाड़ के प्रथम शासक
गुहदत्ता-(बाप्पा रावल)
अंतिम शासक
भूपाल सिंह बहादुर( 1930-1948)
मौजूदा मुखिया
महेंद्र सिंह मेवाड़ और अरविंद सिंह मेवाड़( 1984 से अब तक)
मेवाड़ राजकुल को 19 बंदूकों की सलामी का रुतबा हासिल था।

 सिटी पैलेस की शान

उदयपुर का सिटी पैलेस पिछोला झील के किनारे किनारे करीब ढ़ाई किमी तक फैला हुआ है। महल की खूबसूरती को आप ऐसे समझ सकते हैं कि पर्यटकों को फोटोग्राफी करने में दिक्कत आती है। आप हैरान होंगे कि आखिर ऐसा क्या है। दरअसर सिटी पैलेस का हर एक कोना इतना खूबसूरत है कि पर्यटकों को अपनी फोटोग्राफी के कौशल पर भ्रम होने लगता है। महल के अंदर तमाम गैलरियां है जिनमें राजाओं और रानियों के पोशाकों, आभूषणों, वाद्य यंत्रों, युद्ध के औजारों को करीने से सजाया गया है, 2011 में राजकुमारी पद्मजा की शादी में इस्तेमाल किया गया चांदी का पालना और चांदी का मंडप भी सुरक्षित रखा गया है। 

श्री जी के नाम से मशहूर अरविंद सिंह मेवाड़

मौजूदा समय में सिटी पैलेस अरविंद सिंह मेवाड़ का मिनी साम्राज्य है। अरविंद सिंह को लोग प्यार से श्रीजी के नाम से बुलाते हैं, 18 अप्रैल 1948 को जिस समय अरविंद सिंह महज चार साल के थे, उस समय उनके दादा भूपाल सिंह (मेवाड़ के 74वें महाराणा) ने कहा था कि उनके पूर्वजों ने उनकी पसंद को तय कर दिया था, भूपाल सिंह ने कहा था कि अगर उनके पूर्वजों ने अंग्रेजों की जी हजूरी की होती तो वो उनका राज्य हैदराबाद से भी बड़ा रहा होता, लेकिन न तो उनके पूर्वज अंग्रेजों की हां में हां मिलाया न तो उन्होंने ऐसा किया, मेवाड़ पूरी तरह से भारत के साथ है और मेवाड़ देश की पहली रियासत रही जिसने अपने आप को भारतीय संघ में विलीन कर लिया। मेवाड़ राजवंश ने भले ही भारतीय संघ में विलय कर दिया था, लेकिन उसके मुखिया पूरी शान शौकत के साथ रहते थे, अरविंद सिंह मेवाड़ यानि श्रीजी जब महज 12 वर्ष के थे उनके पिता भागवत सिंह तत्कालीन पीएम जवाहर लाल नेहरू के निमंत्रण पर लाल किला देखने के लिए आए, इसके पीछे दिलचस्प कहानी ये है कि मेवाड़ के राजाओं ने शपथ ली थी कि जब तक दिल्ली पर विदेशियों का शासन रहेगा वो दिल्ली नहीं जाएंगे, जिस समय मेवाड़ के महाराणा दिल्ली गए उस समय देश को आजादी हासिल हो चुकी थी।

कुछ ऐसा था मेवाड़ राजवंश

रियासतों का जब भारतीय संघ में विलय हो रहा था उस वक्त राजाओं, रानियों, नवाबों और बेगमों को प्रिवी पर्स दिया जा रहा था। लेकिन मेवाड़ के 'महाराना भागवत सिंह' दूरदृष्टि वाले थे, उन्होंने अपनी संपत्ति के कुछ हिस्सों को प्राइवेट कंपनी के जरिए होटलों में बदल दिया, उनके इस कदम से राजपरिवार को आय का एक स्थाई स्रोत हासिल हुआ, अरविंद सिंह मेवाड़ जब 25 साल के थे उस वक्त प्रिवी पर्स और उपाधियों को इंदिरा गांधी की सरकार ने खत्म कर दिया था, दरअसल इस मुहिम में इंदिरा गांधी ने श्री जी के पिता से मदद मांगी ताकि राजा-रजवाड़ों के आत्म सम्मान पर किसी तरह की चोट न पहुंचे, भागवत सिंह ने कहा कि प्रिवी पर्स की समाप्ति से राजाओं को आर्थिक कठिनाइयां आएंगी, लेकिन उनके सम्मान को ठेस नहीं पहुंचना चाहिए उन्होंने एक ट्रस्ट का गठन कर अरविंद सिंह को ट्रस्टी बना दिया।

राणा की छवि अभी भी बरकरार

देश की आजादी के सत्तर साल और प्रिवी पर्स खत्म होने के 48 साल के बाद श्री जी की छवि आज भी मेवाड़ के लोगों के लिए महाराणा की ही तरह है, 2003 में सिटी पैलेस को प्रत्येक दिन 800 पर्यटक देखने के लिए आते थे, अब ये संख्या बढ़कर 3000 हो गई है, सिटी पैलेस को व्यवसायिक तरीके से चलाने के लिए 2000 कर्मचारियों की तैनाती की गई है, उदयपुर की करीब 40 फीसद जनता अपनी आजीविका के लिए उदयपुर सिटी पैलेस पर निर्भर है, शंभू निवास पैलेस, शिव निवास पैलेस और फतेह प्रकाश पैलेस बागों के जरिए एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। संगमरमर के फाउंटेन से जब पानी निकल रहा होता है को इसका मतलब ये होता है कि श्री जी महल के अंदर हैं, श्री जी के पास विंटेज कारों का बेड़ा है जिन्हें मेवाड़ मोटर गैराज में रखा गया है। अरविंद सिंह की प्रिय सवारी 1924 में बनी मोरिस ग्रीन है, सभी विंटेज कारों को म्यूजियम के गार्डेन में निकाला जाता है लेकिन सिटी पैलेस के बाहर कारों को नहीं ले जाया जाता है।

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