हिंदू समाज में वर्ण व्यवस्था समाज का आधार- समाज समर्थ हैं बिकृति सुलझाने में-!

 जन्मना जायते शूद्र:--गुण कर्म विभागस:

भारतीय समाज की मान्यता है कि हमारा सृष्टि संबत 'एक अरब छानबे करोड़ अट्ठावन लाख' वर्ष है हमारी सृष्टि इतनी अधिक पूरानी है कि समाज में बहुत अधिक उतार चढ़ाव उसने देखा हुआ है, आर्य संस्कृति में चार वर्णों की ब्यवस्था थीं ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र लेकिन कोई भेद-भाव नहीं था कोई ऊँच-नीच जैसे ब्यवस्था नहीं थीं "जन्मना जायते शूद्र" जन्म से सभी शूद्र माने जाते थे कर्म से लोग वर्णों में बिभाजित होते थे, समाज में विकृति आना स्वाभाविक है लेकिन हिन्दू समाज में ऐसी शक्ति है जो किसी भी मान्यता को रूढ़ी नहीं होने देती, वैदिक युग में शूद्र कुल में जन्म लेने वाले ऋषि दीर्घतमा, ऋषी कवष ऐलूष वेदों के मंत्रद्रष्टा हो ब्राम्हण हो जाते हैं तो वहीँ वैदिक युग के प्रथम अश्वमेध यज्ञ करने वाले राजा सुदास अपने कर्मों से गिरने के कारण शूद्र हो जाते हैं, जब जब समाज में विकृति फैलती है समाज सुधारक खड़े हो जाते हैं लेकिन वह भी समय आया जब वर्ण व्यवस्था जातिय व्यवस्था में परिवर्तित होने लगीं औऱ अपने आप मे कठोर रुप धारण कर लिया, बौद्ध काल में यह विकृति अधिक हुई हिन्दू समाज को नीचा दिखाने के लिए उन्होंने हिन्दू धर्म ग्रंथो में क्षेपकों का प्रयोग किया और यह प्रचारित करने का प्रयास किया कि हिन्दुओं के धर्म ग्रंथ महापुरूष सबने समाज के साथ भेदभाव किया जबकि यह सर्वथा अनुचित था, इस्लामिक काल के पहले भरतीय समाज में ऊंच नीच जैसी भावना थीं ही नहीं हम अपने धर्म ग्रंथों को ही लें जहाँ "रामायण" के रचयिता ऋषी बाल्मीकि हैं वहीं "महाभारत" के रचनाकार महर्षि वेदव्यास हैं ये लोग किस कुल से आते हैं चर्चा की आवश्यकता नहीं इतना ही नहीं "ऐतरेय ब्राह्मण" को लिखने वाले ऋषी महिदास ऐतरेय भी सूद्र कुल के हैं, इसलिय आप तथाकथित दलित समाज को हिंदू समाज से अलग कैसे कर सकते हैं दलित समाज हिन्दू समाज का आधार है इतना ही नहीं तो बहुत सारे सम्राट, राजे -महाराजे इस समाज में हुए हैं।

 और संघर्ष काल

मध्य काल में जब इसलामिक आक्रमण कारियों ने बलात धर्मान्तरण शुरु किया तो उस समय रामानंद जी के द्वादश भागवत शिष्यों में प्रसिद्ध सन्त कबीर दास, संत रविदास जी ने भारत भूमि में घूम घूम कर हज़ारों लोगों को खड़ा कर हिन्दू समाज समरसता लाने का प्रयत्न ही नहीं किया बल्कि बलात धर्मान्तरण को रोकने का प्रयत्न किया, देश विभाजन के समय देश में तीन प्रसिद्ध दलित नेता थे डॉ भीमराव अंबेडकर, बाबू जगजीवन राम तथा डॉ योगेंद्र मण्डल तीनों ने दलित समाज के उद्धार के लिए काम किया लेकिन डॉ आंबेडकर की मान्यता थी कि इस्लाम का जो प्रेम मुहब्बत है वह केवल मुसलमानों में है न कि अन्य लोगों के लिए बाबू जगजीवन राम को भी यही विस्वास था लेकिन योगेंद्र मण्डल यह नहीं मानते थे उन्होंने डॉ आंबेडकर की बात नहीं मानकर लाखों दलितों को पुर्वी पाकिस्तान में जाने का आवाहन किया परिणाम स्वरूप लाखों दलित आजके बांग्लादेश में गए, विभाजन के 6 महीने पश्चात इस्लाम मतावलंबियों ने दलितों की बहन बेटियों पर भूखे भेड़ियों के समान टूट पड़े उनके मठ मंदिर तोड़े जाने लगे "डॉ योगेंद्र मण्डल" विधि मंत्री थे पाकिस्तानी सरकार से गुहार लगाते रहे कोई सुनवाई नहीं क़ुछ नही कर सके और अन्त में हार मानकर तीन बाद पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री "लियाकत अली" को एक पत्र लिखकर 'जैसा मैंने इस्लाम को जाना' लाखों दलितों को बेसहारा छोड़ कर भारत आ बेनामी जिन्दगी बिता मर गए।।

औऱ वर्तमान में

वैदिक काल से लेकर आज तक जब हम विचार करते हैं तो ध्यान में आता है कि जिन्हें हम लोग दलित समझते हैं वही भरतीय समाज सुधार के अग्रदूत थे और आज भी हैं हम लोग इस बात को क्यों नहीं समझ रहे कि इस्लामिक काल में जो हिन्दू धर्म के रक्षक थे उन्हें ही अछूत और पददलित किया गया, आजादी के पश्चात बामपंथियों, सेकुलरिस्टों ने हिन्दू धर्म व समाज को बांटने अथवा देश को तोड़ने की जो साजिश का कार्य किया है उसके लिए समाज को जोड़ने, देश को एक रखने का जो कार्य कर रहे हैं वह भी कोई ब्राह्मण समाज के लोग नहीं है तो कोई बाबा स्वामी रामदेव जी होंगे कोई श्री श्री रविशंकर होंगे इतना ही नहीं देश को उबारने में भी कोई नरेंद्र मोदी होंगे इनमें सभी तथा-कथित पिछड़े वर्गों से ही है, यह उसी प्रकार है जैसे वैदिक युग मे दीर्घतमा, कवष ऐलूष तो त्रेतायुग में महर्षि वाल्मीकि द्वापरयुग में महर्षि वेदव्यास औऱ वर्तमान समय में स्वामी रामदेव जी- भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी।।

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