कांग्रेस का आजादी में नहीं ! देश विभाजन में योगदान।


कांग्रेस और देश विभाजन 

बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं 

देश आजादी का एक मंत्र था "बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं किया जा सकता।" यह मंत्र कोई नया नहीं था यही मंत्र लेकर कोई ढाई हजार वर्ष पूर्व आदि जगद्गुरु शंकराचार्य ने बिधर्मी हुए लोगों यानी संपूर्ण भारत वर्ष को पुनः सनातन वैदिक ध्वजा के निचे लेकर आये। इसी मंत्र के साथ ग्यारह सौ वर्ष पूर्व स्वामी रामानुजाचार्य ने "विशिष्ठा द्वैत" द्वारा इस्लाम से वैचारिक संघर्ष करना ही नहीं तो नागा, लस्करी संप्रदाय तक का निर्माण किया और धीरे धीरे यह एक पूजा पद्धति बनकर संप्रदायका स्वरुप धारण कर लिया। कोई पांच सौ वर्ष पूर्व स्वामी रामानंद जी ने अद्भुत क्रांति का आह्वान किया जिसमे उनके साथ संत रविदास, संत कबीर दास, धन्ना जाट, राजा पीपा इत्यादि द्वादाश भागवत शिष्यों के साथ सारे भारत वर्ष को जगाया वे ऐसे आचार्य थे जिन्होंने इस्लामिक कुरीतियों को पहचाना हिन्दू समाज को सचेष्ठ किया। इसी काल में सारे देश में पुरशार्थी राजाओ की श्रृंखला खड़ी हो गई, "श्री विजय" नाम के ग्रन्थ में वर्णन है की जो कोई मुस्लिम अयोध्या से गुजरता था उसकी दाढ़ी समाप्त हो जाती थी टीका चन्दन हो जाता था। ऐसी महिमा थी स्वामी रामानंद की। ब्रिटिश काल के संघर्ष के समय एक अद्भुत ऋषि का जन्म हुआ जिसका नाम था ऋषि दयानन्द सरस्वती! स्वामी जी ने इसी मंत्र "बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं हो सकता " चरितार्थ करने की प्रतिज्ञा की और भारत भ्रमण शुरू कर दिया। उन्होंने देश के सभी राजाओ से मिलने की ठानी वे राजाओ, जमींदारों को जगाने का काम शुरू कर दिया लेकिन उनके पीछे अंग्रेजी हुकूमत खुफ़िया पुलिस लगा रखी थी। उन्होंने देशभर के राजा-महाराजा, साधू -सन्यासी सभी के अंतर्मन में यह मंत्र गुंजायमान करने का प्रयास किया। स्वामी जी ने 1857 की क्रांति का आह्वान किया परिणाम सशस्त्र युद्ध हुआ अंग्रेजो को यह कल्पना नहीं थी कि हिन्दू समाज इस प्रकार लड़ेगा, सभी राजा, महाराजा, सन्यासी मैदान में आ जाएंगे! अंग्रेजो ने चालाकी कर सिक्योरिटी गार्ड के स्थान पर सेना भर्ती किया था यही भारतीयों पर भारी पड़ गया। 

आर्य समाज की स्थापना

1857 के स्वतंत्रता संग्राम ने अद्भुत कार्य किया सारे देश भर को जागृत कर दिया लेकिन स्वामी दयानन्द सरस्वती कहाँ बैठने वाले थे? उन्होंने विचार करना शुरू कर दिया कि कहाँ चूक हुई ? उन्हें ध्यान में आया कि देश के अंदर एक हिन्दू समाज सुधार संगठन ब्राम्हसमाज है कहने को तो वह हिंदुओं के अंदर समाज सुधार करता है लेकिन उसकी असलियत कुछ और थी प्रकारान्तर से वह क्रिप्टो कृश्चियन जैसा था। ब्रम्ह समाज हिंदुओं को ईसाई बनाने का पुल मात्र था, स्वामी दयानन्द सरस्वती 1857 के क्रांति को असफल नहीं मानते थे इस क्रांति ने सारे देश को झकझोर कर रख दिया था। स्वामी जी मुंबई से सीधे कोलकाता रवाना हो गए और ब्रम्ह समाज के कार्यालय पहुंचे, उस समय ब्रम्हसमाज के अध्यक्ष केशवचंद सेन थे उन्हें लगा कि राजा राममोहन राय जैसा ही कोई सन्यासी होगा। स्वामी जी प्रतिदिन प्रवचन करते उन्हें सुनने के लिए सैकड़ो की संख्या प्रतिदिन आती वे वही मंत्र दुहराते बिना स्वराज्य के स्वधर्म का पालन नहीं हो सकता। एक दिन वायसराय ने स्वामी दयानन्द जी को बुला भेजा भगघी आयी स्वामी जी वायसराय से मिलने पहुंचे, वायसराय ने स्वामी जी से पूछा स्वामी जी स्वराज्य क्या है ? स्वामी जी ने कहा मैं तुम्हे इंग्लैंड भेज दूँ ये स्वराज्य है वायसराय को यह कल्पना नहीं थी कि कोई बाबा उससे ऐसी बात कर सकता है। ऋषि दयानन्द सरस्वती को यह बात ध्यान में आयी कि हिन्दू समाज में संगठन और जागरूकता आवश्यक है इसलिए उन्होंने अपने गुरू विरजानंद जी की प्रेरणा से 10अप्रैल 1875 को गिरगांव, मुंबई मे "आर्यसमाज" की स्थापना की। स्वामी जी के प्रथम चरण के शिष्यों में पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा, लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिनचंद पाल जैसे विद्वान क्रन्तिकारी थे। 

कांग्रेस की स्थापना -?

कभी -कभी कांग्रेसी यह कहते नहीं थकते कि आजादी अहिंसा से आयी कारण वे अंग्रेजों के दलाल मात्र थे अथवा हैं, प्रसिद्ध गाँधीवादी विचारक धर्मपाल ने अपनी पुस्तक में लिखा हैं कि 1857 से 1860के बीच अंग्रेजो ने बीस लाख लोगों की हत्या किया जितने पढ़े लिखें लोग थे उन्हें समाप्त कर दिया, आगे धर्मपाल अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि भारत में सात लाख गुरुकुल थे जिन्हे तोपों इत्यादि से ढहा दिया गया। यह कहना कि 1857 में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम असफल रहा तो यह बिलकुल असत्य है यह युद्ध महाराणा प्रताप, क्षत्रपति शिवाजी महराज, राणा राजसिंह इत्यादसे लेकर महारानी लक्ष्मीबाई, वीरकुंवर सिंह से आगे बढ़ता गया। अंग्रेजो को ध्यान में आया कि भारतीयों को शांति नहीं किया जा सकता इसके लिए उन्होंने एक रणनीति तैयार की जिसमे भारतियों के स्वतंत्रता आक्रोश की हवा कैसे निकलना? इस विषय पर काफ़ी चिंतन मनन करने के पश्चात् अंग्रेज व्यूरोक्रेट इकठ्ठा हुए और इस विषय पर विचार किया। 1857के स्वतंत्रता संग्राम से भयभीत होकर अंग्रेजो ने स्वतंत्रता संग्राम की हवा निकालने के लिए बड़ी रणनीति के तहत अंग्रेजो ने  28 दिसंबर  1885 के दिन 72 ब्यक्तियों की उपस्थिति में एक अंग्रेज सेवा निबृत अधिकारी ए.ओ. ह्युम ने कांग्रेस की स्थापना की। 

अंग्रेजो की चाल असफल 

कांग्रेस ने यह नियम बनाया कि जो लोग अंग्रेजी जानते हैं उन्हीं को कांग्रेस का सदस्य बनाया जायेगा लेकिन कांग्रेस के स्थापना के पश्चात् अंग्रेजो को यह बात भी ध्यान मे आयी की आर्य समाज तो राष्ट्रवादी संगठन है और हिन्दू संगठन है तो क्या करना ऋषि दयानन्द तो बिख्यात थे। और उनके विचारों को भी अंग्रेज जानते थे इसलिए कांग्रेस ने एक प्रस्ताव रखा कि किसी भी आर्यसमाजी  को कांग्रेस का सदस्य न बनाया जाय। लेकिन योजना वद्ध तरीके से लोकमान्य तिलक, लाला लाजपत राय और बिपिनचंद पाल जैसे अनेक लोग कांग्रेस में शामिल ही नहीं हुए बल्कि पूरी कांग्रेस पर कब्ज़ा कर लिया। अब कांग्रेस भारतीय आजादी की लड़ाई मे मुखर हो गई और धीरे -धीरे अंग्रेजो को लगने लगा कि पार्टी हमारे हाथ से निकलती जा रही है, अंडमान की जेल में बैठे वीर सावरकर और विदेश मे पंडित श्यामजी कृष्ण वर्मा क्रांतिकारियों के दिलों में ज्वाला बनकर धधक रहे थे। इंग्लैंड का इंडिया हाउस हो अथवा जर्मनी व अन्य देश सभी में देश आजादी कि ललक थी अंग्रेज परेशान थे। अब कांग्रेस ने विकल्प खोजना शुरू कर दिया जब सावरकर इंग्लैंड मे पढ़ते थे "इंडिया हाउस" का संचालन कर रहे थे वहाँ ही नहीं वे सशस्त्र क्रांतिकारियों कि नर्सरी थे जिसको छू लेते वह सोना बन जाता यानी क्रन्तिकारी बन जाता। उस समय मोहनदास कर्मचंद गाँधी दक्षिण अफ्रीका में वकालत कर रहे थे उनकी प्रेक्टिस के बारह वर्ष हो गए थे बड़ी योजना से उन्हें अंग्रेजो ने भारत लाया और कांग्रेस मे उन्हें प्रोजेक्ट किया। अंग्रेजो ने अपने संसाधन से गाँधी और नेहरू का उपयोग किया। अब क्या था लाल, बाल और पाल का युग लगभग समाप्त हो गया था।

आजादी का बिगुल 

महान क्रन्तिकारी स्वामी श्रद्धानंद हरिद्वार मे गुरुकुल के माध्यम से, महामना मदनमोहन मालवीय काशी हिन्दू विश्व विद्यालय को माध्यम बनाकर अपने अपने तरीके से इस स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाते रहे। अब सावरकर पुणे आ चुके है, उसी समय गाँधी के प्रभाव से सुभाषचंद बोस को कांग्रेस छोड़ना पड़ा। विनायक दामोदर सावरकर की सलाह से उन्होंने जर्मनी जाना तय किया वहाँ वे हिटलर और मुसोलनी से मिलकर आज़ाद हिंद फौज का गठन किया। द्वीतीय विश्व युद्ध में बड़ी संख्या मे भारतीय सैनिक गिरफ्तार थे जो अंग्रेजो की ओर से लड़ रहे थे, बहुत आसानी से वे सब आज़ाद हिंद फौज में भर्ती हो गए। अब जिस लौ को स्वामी दयानन्द ने सुलगाया था वह प्रज्वलित हो रही है, जहाँ क्रन्तिकारी भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल जैसे क्रन्तिकारी देश भर में स्वतंत्रता संग्राम की ज्वाला लिए अंग्रेजो के लिए सिरदर्द बन गए थे वहीँ विदेशों में श्यामजी कृष्ण वर्मा और वीर सावरकर की बनायी क्रांतिकारियों की नर्सरी भारतीय क्रांतिकारियों के समर्थन में वातावरण बना रहे थे तो सुभाष बाबू ने आजाद हिन्द फौज के द्वारा अंग्रेजो पर हमला शुरू कर दिया। द्वीतीय विश्व युद्ध मे ब्रिटिश बहुत कमजोर हो गया था विश्व अंग्रेजो ने ऐसे बहुत से देशों को स्वतंत्रता दे दी, कुछ पढ़े लिखें लोगों को शासन सौंप कर इंग्लैंड चले गए। उस समय भारत में तो क्रांति की ज्वाला जल रही थी आजाद हिन्द फौज जीतते रंगून से आगे बढ़कर बंगाल तक पहुंच गई थी। अंग्रेजो के सामने कोई बिकल्प नहीं था वे सभी असुरक्षित थे इसी बीच भारतीय नेवी ने भी बगावत कर दिया था लेकिन अंग्रेज भारतीय सत्ता क्रांतिकारियों को नहीं सौपना चाहते थे उन पर सुभाष बाबू और अन्य क्रांतिकारियों की बड़ी मार पड़ी थी उनका बड़ा नुकसान हुआ था इसलिए उन्होंने एक चाल चली।


देश का विभाजन 

अंग्रेजो ने एक चाल चली और कहा कि हिन्दू और मुसलमान एक साथ नहीं रह सकते एक तरफ जिन्ना ने मुस्लिम एक अलग राष्ट्र है का राग अलापना शुरू कर दिया। उन्होंने 16 अगस्त 1946 को "डायरेक्ट ऐक्सन डे" की घोषणा की के साथ ही हिंदुओं पर हमले शुरू हो गए, जिन्ना कोलकाता को पाकिस्तान में शामिल करना चाहता था इसलिये बंगाल के मुख्यमंत्री सुहरावर्दी ने हिंदुओं का नरसंहार शुरू कर दिया। अंग्रेजो ने बड़ी चालाकी से कहा जो कांग्रेस का अध्यक्ष होगा उसी को हम सत्ता सौंप कर चले जाएंगे गाँधी ने उसको इम्प्लीमेंट करने का काम किया कांग्रेस कमेटी मे जिसे एक भी वोट नहीं मिला था गाँधी ने उस नेहरू को प्रधानमंत्री बना दिया उसी दिन रिमोट से सत्ता चलना और तानाशाही का जन्म । गाँधी पर हिन्दू समाज का पूरा भरोसा था जिसे अंग्रेजो ने भुनाया, गाँधी ने कहा देश का विभाजन मेरी लास पर होगा देश को विस्वास था कि देश का विभाजन नहीं होगा लेकिन देश का विभाजन हुआ और गाँधी हिंदुओं के नरसंहार पर जश्न मनाते रहे। गाँधी -नेहरू ने एक दूसरे को राष्ट्रपिता बापू और चाचा नेहरू की उपाधि से नवाज लिया। विभाजन में बीस लाख से अधिक हिन्दू मारें गए हज़ारों क्रांतिकारियों ने अपना बलिदान दिया अनेको की फांसी हुई हज़ारों आजाद हिन्द फौज के सैनिक बलिदान हुए। लेकिन विभाजन के बाद कांग्रेस ने यह प्रचार किया कि आजादी चरखा काटने, सत्याग्रह से मिली इसका प्रचार किया गया क्रांतिकारियों को भुलाने की योजना वद्ध  तरीके से विद्यालयों, सरकारी माध्यमों से प्रचार किया गया। गीत गाया गया, "सावरमती के संत तूने कर दिया कमाल, देदी आजादी हमें खड़ग बिना ढाल।" इस गीत के माध्यम से क्रांतिकारियों का अपमान किया गया और आज भी कांग्रेस क्रांतिकारियों के अपमान का कोई मौका नहीं चूकती।

और अंत में 

इससे स्पष्ट हो जाता है कि देश आजादी में कांग्रेस की कोई भूमिका नहीं थी हाँ कांग्रेस ने अंग्रेजो की योजना पुर्बक देश का विभाजन कराया जितने भी कांग्रेस नेता थे या तो वे गाँधी नेहरू को समझ नहीं पाए या अंग्रेजो की चाल मे फंस गए थे। आखिर इतनी बड़ी घटना हो रही थी हिन्दू संहार हो रहा था, देश का प्रिय मातृभूमि का विभाजन हो रहा था सारे नेता चुप क्यों थे ? एक आवाज आयी वह निष्पक्ष थी डा भीमराव अम्बेडकर ने कहा "देश का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ है इसलिए भारत में एक भी मुस्लमान नहीं रहना चाहिए और पाकिस्तान में एक भी हिन्दू।" डा भीमराव अम्बेडकर ने कहा "मुस्लमान एक बंद निकाय के समान है उनका प्रेम मुहब्बत केवल मुसलमानो के लिए है" ये किसी दशा में राष्ट्रभक्त नहीं हो सकते। यदि मुसलमानों को भारत में रहने दिया गया तो पचास साल बाद पुनः यही स्थित् पैदा हो जाएगी, आगे डा अम्बेडकर ने कहा अभी अभी देश आजाद हुआ है इसलिए देश की राष्ट्र भाषा संस्कृत होनी चाहिए जिससे कभी विबाद नहीं होगा। लेकिन कांग्रेस को कांग्रेसियों को तो सत्ता अंग्रेजो की कृपा से प्राप्त हुई थी इसलिये उन्होंने हर ऐसा काम किया जो अंग्रेजो को प्रिय था। लाखों हिंदुओं की लासों, क्रांतिकारियों के अपमान, भगतसिंह की फांसी, सुभाषचंद बोस के अपमान, डा अम्बेडकर के अपमान जिससे उनके आका (अंग्रेज )खुश रहते वह प्रत्येक कार्य किया। भारत आज भी कांग्रेस का दिया हुआ दंश झेल रहा है।

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