माता जीजाबाई
होनहार विरवान के होत चीकने पात !
महाराष्ट्र के एक गांव में एक सात वर्ष की बालिका कुछ अपने गांव के बच्चों के साथ खेल रही थी जिसका जन्म १२ जनवरी १५९८ को ''जिजाऊ महल'' 'अहमद नगर सल्तनत' में तभी कुछ घुड़सवार यवन सैनिक घोड़ा दौडाते दिखाई दे रहे थे, देखते ही देखते वे एक मंदिर के पास जा रुके। देखा कि वे विधर्मी मंदिर में रखी भगवान देवी देवताओं की मूर्तियों का अनादर ही नहीं वै उसे तोड़ रहे थे, तभी उस बालिका ने जोर से चिल्लाया मत तोड़ो वे हमारे इष्ट हैं प्रतिरोध किया लेकिन कोई उसकी आवाज सुनने वाला नहीं। सैनिको ने बच्ची का उपहास करते उसे एक तरफ हटा दिया और मंदिर गिराने के लिए हथोंड़ा चलाने लगे। बच्ची पुनः डटकर खड़ी हो गई, उसने कहा पहले मेरे ऊपर हथोंड़ा चलेगा, फिर मेरे मंदिर के देवता को छू सकोगे मै जीते जी मंदिर तोड़ने नहीं दूँगी। देवता ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा है जो मंदिर गिराने का दुष्ट प्रयास कर रहे हो ? गांव के लोग विधर्मियो को जानते थे किसी न किसी गांव में इस प्रकार की घटना होती ही रहती थी सभी अपने अपने घर में घुस गए, वह बालिका न मानी वह बिरोध करती रही लेकिन बिधर्मियों पर कोई असर नहीं हुआ वे घुड़सवार मूर्तियों को तोड़ उस बच्ची कि हसीं उड़ाते निकल गए।
प्रतिज्ञा
उन दिनों प्रतिदिन यवन मंदिर गिराते ही रहते थे, प्रतिदिन ऐसे दृश्य देखकर गांववालो की संवेदना मर चुकी थी, वे इस बात का अनुभव ही नहीं कर पाते थे कि कोई विशेष घटना घटित हो रही है। परन्तु वह बच्ची यह सब सहन न कर सकी उसने सोचा की यह बात मैं अपने माता पिता को बताउंगी फिर इसका बदला लूँगी। वह आक्रोशित हो रोते रोते अपने माता पिता के पास गई उसने सारी घटना कह सुनाई और बोली मैं उन्हें दंड देकर रहूँगी। उसके माता पिता ने उसकी एक न सुनी और उसे एक कमरे में बंद कर दिया। उस बालिका ने विचार किया कि आज हमारी बात कोई नहीं सुन रहा है लेकिन जब मैं बड़ी होंगी मेरा विवाह होगा मैं अपने पति से कहकर इसका बदला अवश्य लूँगी। वह लड़की बड़ी हुई उसका विवाह हुआ, पहली ही रात जब अपने पति से मिली तो उसने यह बचपन की घटना कह सुनाई, लेकिन उसका पति चुपचाप सब सुनता रहा फिर बोला मैं तो उन्हीं के यहाँ नौकरी करता हूँ, उत्तर साफ था वह कुछ कर नहीं सकता था। उस बालिका ने उसी समय संकल्प लिया की जब मेरे लड़का होगा मैं उसे शिक्षित करूंगी फिर उसे यह घटना बताउंगी और उन यवनों से बदला लूँगी।
तपस्या का प्रतिफल धर्म रक्षक पुत्र
यह बच्ची कोई और नहीं जीजाबाई थी, रातो दिन ईश्वर से प्रार्थना करती कि प्रभु ऐसा पुत्र देना जो मेरे अरमानों को पूरा करने वाला हो धर्म रक्षक हो यवानों का मान-मर्दन करने वाला हो। एक दिन जीजाबाई गांव की कुछ महिलाओं के साथ बात कर ही रही थी तभी एक वाण जीजाबाई के चरणों के पास आकर गिरा गांव की महिलाएं चकित यह कौन सा उदंड बालक है जो इस प्रकार वाण चला रहा है वास्तव मे उस वीर बालक ने तो अपनी माँ को प्रणाम किया था वह वीर बालक और कोई नहीं वह तो वीर शिवाजी था दौड़कर अपने माँ के गले से लिपट गया। उस बच्ची जीजाबाई के पबित्र और दृढ संकल्प से शिवाजी जैसा वीर बालक पैदा हुआ जिसने महान हिंदू इतिहास की रचना की। उस वीर बालक ने अपनी माँ से पूछा माँ बताओ न तुम कहा करती थी जब मै बड़ा हो जाऊंगा तो एक बात बताउंगी वह कौन सी बात है --?
माँ का बचन पूरा हुआ
माँ तूने मुझे सँस्कारित किया, मुझे रामायण और महाभारत की कहानियाँ सुनाई! माँ ने शिवाजी को बचपन की सारी घटना सुना डाली, उसने अपने माता पिता और फिर अपने पति से बदला लेने की बात कही थी लेकिन अंत में मैंने भगवान से कहा था जब मेरे पुत्र होगा वह इसका बदला लेगा। अब समय आ गया है कि मै अपने लक्ष्य तक पहुंच जाऊ माँ अपने कर्तब्य का पालन करती रही, लक्ष्य पूर्ति के लिए "हिंदुपदपादशाही " की स्थापना छत्रपति शिवाजी का राजतिलक हुआ। पांच-पांच मुस्लिम शासकों को पछाड़कर (बीजापुर , गोलकुंडा, औरंगजेब इत्यादि कुछ देशी रियासते, कुछ विदेशी शक्तियां) उन्होंने स्वतंत्रत हिंदू राज्य स्थापित किया। डंके की चोट पर राजतिलक हुआ सभी दिशाओ में गाजे-बाजे व शहनाई बजी। नृत्य हुए भाटों ने चारण गाया, सभी राजे रजवाड़े मस्तक झुकाया। सब कुछ महारानी जीजाबाई के मार्गदर्शन में हुआ।
महाप्रयाण
एक दिन माता जीजा बाई ने अपने पुत्र शिवाजी महराज को अपने पास बुलाया, माँ ने कहा पुत्र! अब मेरा कार्य पूरा हो गया है जिसकी प्रतिज्ञा मैंने अपने बचपन में लिया था जिसके लिए मै जी रही थी, अगली एकादशी को मै जाउंगी। उसके ५ -6 दिन बाद एकादशी आयी जीजाबाई ने गंगाजल और तुलसीदल लिया और १७ जून १६७४ एकादशी के दिन रायगढ़ किले में शरीर छोड़ दिया। यही है कर्तब्य परायण माँ धन्य है वह माँ जिसने हिन्दू पदपादशाही की प्रेरणादायक संस्कार दिए।
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