बार-बार करवट लेती काशी---!


बार-बार उद्धार होती काशी-!

भगवान श्रीकृष्ण गीता उपदेश देते हुए कहते हैं कि जब जब धर्म की हानी होती है अधर्म बढ़ता है मैं आता हूँ, और वे आये किसके उद्धार हेतु तो काशी के उद्धार हेतु क्योंकि काशी का उद्धार ही हिंदू धर्म का उद्धार है काशी वैदिक हिन्दू धर्म का केंद्र था और आज भी है जब हम धर्म की चर्चा करते हैं तो यह ध्यान में रहना चाहिए कि उसमें राष्ट्र समाहित है। भारत वर्ष में बिना वैदिक धर्म के राष्ट्र की कल्पना करना संभव नहीं हो सकता इसलिये हिन्दू धर्म का उद्धार यानी काशी का उद्धार यानी भारतीय संस्कृति राष्ट्रवाद का उद्धार यानी भारतीय राष्ट्रवाद के चिति को जागृत करना। आज के कोई 2800 वर्ष पहले भगवान बुद्ध का प्रादुर्भाव लुम्बिनी में हुआ था वे तपस्या हेतु गयाजी गए कहते हैं कि उन्हें एक पीपल के बृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त किया। वे वैशाली में वैदिक ऋषि "अलार कलाम" से मिलकर धर्म की चर्चा की आत्मा के विषय पर बुद्ध चुप हो गए दुबारा जब बुद्ध को ध्यान में आया कि 'अलार कलाम' सही थे "महात्मा बुद्ध" उनसे मिलने वैशाली जाते हैं लेकिन अब विलंब हो चुका था "अलार कलाम" नहीं रहे। वैसे महात्मा बुद्ध ने कोई धर्म नहीं चलाया जैसे 'मुहम्मद साहब' के मरने से सौ साल बाद "हदीस- कुरान" लिखा गया, 'यीशु' के मृत्यु के सौ साल बाद कई पुस्तकें मिलाकर "न्यू टेस्टामेंट" लिखा गया तो उसी के पश्चात ये सभी मत आये उसी प्रकार बुद्ध के जाने के पश्चात ही बुद्ध मत का प्रादुर्भाव हुआ।
पूरा देश बौद्ध हो गया था "राजा बौद्ध"- "जनता वैदिक" एक अलग प्रकार का संघर्ष शुरू हो चुका था । 'भगवान बुद्ध' तो जा चुके थे लेकिन उनके अनुयायियों ने वैदिक मंदिरों को बौद्ध मंदिरों में परिणित करना शुरू कर दिया, देश में पुरुषार्थ समाप्त होने लगा बौद्ध मठों में काहिल लोग मुड़ी छिलाकर कुछ काम न करना पड़े भोजन मिलता रहे क्योंकि सभी बौद्ध मठ राज्याश्रित था। एक और बड़ी घटना हो गई 'काशी विश्वनाथ मंदिर' से "शिवलिंग" हटा दिया गया और उसके स्थान पर बुद्ध भगवान की मूर्ति स्थापित कर दिया गया देश में अजीव सी स्थिति पैदा हो गयी थी।

कौन बचायेगा इस वैदिक धर्म को--!

कहते हैं कि वैदिक मतावलम्बी संघर्ष कर रहे थे साधू सन्यासियों ने जागरण प्रारंभ कर दिया था गुरुकुलों को जागृत करने की जिम्मेदारी ब्राह्मणों के पास थीं सभी गुरुकुल सतर्क हो गए थे। वैसे भी "काशी" भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक राजधानी हमेशा से रही है। एक बौद्ध राजा की पत्नी अपने क्षत पर बैठे रो रही थीं उसका आँसू ऊपर से एक ब्रम्हचारी के सिर पर गिरा! वह ऊपर देखकर जोर से बोला माते क्यों रो रही है-? उसने कहा पुत्र कौन बचायेगा इस डूबते हुए "वैदिक धर्म" को ? यह ब्रम्हचारी बोला मैं बचाऊँगा इस "वैदिक धर्म" को ऐसी चुनौती को स्वीकार करने वाला इसकी घोषणा करने वाला "कुमारिल भट्ट" के अतिरिक्त और कौन हो सकता था ?

पूर्णस्य पूर्णमादाय---!

वैदिक धर्म में पहले मूर्ति पूजा नहीं थीं निराकार ब्रह्म की उपासना तथा प्रकृति पूजा थी। काशी में भगवान विश्वनाथ मंदिर जिसमें शिवलिंग स्थापित था सारे विश्व के हिंदुओं के श्रद्धा का केंद्र। पूरे भारतवर्ष में जब किसी का अंतिम समय आता तो "काशी वास" करता ऐसा माना जाता है कि काशी में मरने से मुक्ति मिलती है। इसलिए संत कबीर कहते हैं कि "जौ कबिरा काशी मरै तो रामै कौन निहोरा"। हिन्दू समाज "ब्रह्माण्ड" का उपासक था। शिवलिंग "ब्रह्मांड" का प्रतीक है भगवान शंकर "आदि देव" हैं। यहाँ खंडित पूजा में विस्वास नहीं है इसलिए शिवलिंग में हमनें देखा "पूर्णमदः पूर्णमिदं पूर्णस्य पूर्णमादाय" यानी सब कुछ पूर्ण है ऐसी मान्यता है। जब महात्मा बुद्ध स्वर्ग सिधार गए तो उनके अनुयायियों ने जिसमें अधिकतर राजे राजवाड़े थे उन्होंने विना किसी विचार के शिवलिंग को हटा भगवान बुद्ध की मूर्ति स्थापित कर दिया, कहते हैं कि "आदि जगद्गुरु शंकराचार्य" ने शास्त्रार्थ के बल वैदिक धर्म की सार्थकता को सिद्ध कर सम्पूर्ण भारत में "पुनर्वैदिक धर्म" की स्थापना की यानी पुनः राष्ट्रवाद की ओर भारत बढ़ चला। और यदि यह कहा जाय कि यह पहली बार काशी का उद्धार शंकराचार्य ने किया तो उसी जमीन को जिसकी उर्बर भूमि "कुमारिल भट्ट" ने तैयार किया था।

तीर्थोउद्धारक सम्राट विक्रमादित्य---!

बौद्ध काल में केवल सभी को बौद्ध बनाया गया ऐसा नहीं है बल्कि सभी तीर्थों का बौद्धिकरण भी किया गया। इतना ही नहीं तो अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, अवंतिका सहित लगभग सभी तीर्थों को समाप्त कर दिया था । सारे ग्रंथ समाप्त प्राय हो गए थे। सम्राट पुष्यमित्र शुंग ने सत्ता में आते ही सभी ग्रंथों को केवल खोजवाया ही नहीं तो उसे सुरक्षित रखने की ब्यवस्था भी की। आज के 2100 वर्ष पहले जब सम्राट विक्रमादित्य का प्रादुर्भाव हुआ तो जो जो तीर्थ नष्ट किये गए थे सभी का जीर्णोद्धार कराया वह चाहे अयोध्या हो अथवा काशी वर्तमान की काशी ऐसा लगता है कि यह सम्राट विक्रमादित्य की काशी है।

और फिर काशी उद्धार---!

इस्लामिक काल था जो भी आक्रांता भारत पर हमला करता वह प्रथम भारत की अस्मिता को समाप्त करने यानी भारतीय संस्कृति को समाप्त करने का लक्ष्य लेकर आता। हमारे राजे राजवाड़े भी संघर्ष करते लेकिन उनकी दिक्कत यह थी कि वे इस्लाम को एक धर्म ही समझते थे कि यह भी कुछ मेरे धर्म जैसा ही होगा कोई धर्म किसी धर्म की हानि कैसे कर सकता है ! उन्हें इस्लाम समझने में बहुत देर हो गई! समय समय पर राजाओं ने चाहे "महाराजा रणजीत सिंह" हो या अन्य राजा काशी की प्रतिष्ठा बचाने में कोई कोर -कसर नहीं छोड़ा क्योंकि वे जानते थे कि काशी को बचाना हिंदुत्व के मानविन्दु को बचाना है। महाराजा रणजीत सिंह ने 18वीं शताब्दी में मंदिर के कलश में सोना लगवाया। सम्पूर्ण भारतवर्ष में एक समय आया मराठों का डंका बजने लगा मराठों ने मुगल बादशाह व सारी इस्लामिक रियासतों को पराजित कर "हिंदवी साम्राज्य" की स्थापना की लेकिन उनके अंदर भी सद्गुण विकृति थी वे चाहते तो जिन मंदिरों को तोड़कर मुस्लिम आक्रमण कारियों ने जिसका मस्जिदी करण किया था । उसे मंदिर में बदल सकते थे और जिनको मुसलमान बनाया गया था उन्हें वापस हिन्दू धर्म में ला सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। नहीं तो भारत का इतिहास भूगोल कुछ और होता। मराठा साम्राज्य का एक महत्वपूर्ण राज्य "होल्कर राज्य" था जिसकी महारानी "अहिल्याबाई होल्कर" थी यह महारानी बहुत ही धार्मिक थी। और यदि यह कहा जाय कि "सम्राट विक्रमादित्य" के समान भारतोद्धार किया तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगा, 17वीं शताब्दी में "अहिल्याबाई होल्कर" ने भारत के सभी तोड़े हुए मंदिरों का जीर्णोद्धार करने का प्रयास किया। लेकिन वहाँ भी वही हुआ चाहे "सोमनाथ मंदिर" हो अथवा "काशी विश्वनाथ मंदिर" मूल स्थान को छोड़कर बगल में उस मंदिर की स्थापना की। आज का जो "काशी विश्वनाथ मंदिर" है वह अहिल्याबाई होल्कर का बनवाया हुआ है जब हम दर्शन करने जाते हैं तो मंदिर के पीछे "ज्ञानवापी" दिखाई देती है, इतना ही नहीं उस मस्जिद के सामने "विशाल नंदी" आज भी विराजमान है जिसे हम देख सकते हैं। जहां नंदी इतना विशाल होगा वहां पर शिवलिंग कितना विशाल होगा इसकी कल्पना हम सब कर सकते हैं।

फिर काशी का उद्धार---!

15 अगस्त 1947 को देश को राजनैतिक आज़ादी तो मिली लेकिन वास्तविक स्वतंत्रता नहीं मिली । भारत के प्रथम प्रधानमंत्री तो वास्तव में नेताजी सुभाषचंद्र बोस थे। "आजाद हिंद सरकार" को विश्व के 8 देशों ने मान्यता भी दी थी। लेकिन ब्रिटिश षड्यंत्र के कारण वे प्रधानमंत्री स्वीकार नहीं हो सकते थे। नेहरू गांधी को सुभाष पसंद नहीं थे। क्योंकि वे ब्रिटिश साम्राज्य को पसंद नहीं थे, इसलिए आज़ादी तो मिली लेकिन भारत - भारत नहीं रह सका! भारत का मतलब अयोध्या, मथुरा, माया, काशी, कांची, अवंतिका है भारत का अर्थ गंगा, सिन्धुश्च, काबेरी, यमुना च सरस्वती, रेवा, महानदी, गोदा, ब्रम्हपुत्रा, पुनात्माम है, यह कोई केवल भूमि का टुकड़ा नहीं है। यह महान परंपरा की तपस्थली है, इसे ऋषियों ने तपस्या के बल महान संस्कृति को जन्म दिया है हमारे ऋषियों, मुनियों, महापुरुषों और तीर्थों सबकी उपेक्षा हुई। ऐसा नहीं हुआ कि आजादी के पश्चात सभी तीर्थो का शुद्धिकरण होता पुनः भारत स्थापित किया होता, सारे हिंदुओं के मानविन्दुओ के साथ छेड़छाड़ करने का काम किया। हमारे इतिहास को निर्वीर्य बताया हमने कभी युद्ध जीता ही नहीं जैसे महाराजा दाहिर, बप्पा रावल, पृथ्वीराज चौहान, महाराणा प्रताप, महाराणा कुम्भा, क्षत्रपति शिवाजी महाराज, शंभाजी राजे, वीर क्षत्रशाल इस देश में हुए ही नहीं । तुर्क, मुगल, अंग्रेज हमे पीटते रहे शासन करते रहे हम सहते रहे यह सब पंडित नेहरू की देन है। 70 वर्ष बाद पुनः काशी का उद्धारक "नरेंद्र मोदी" के रूप में आया जिसका हम कल्पना नहीं किया करते थे। वह काशी में हो रहा "भगवान काशी विश्वनाथ मंदिर" से "गंगाजी" तक अब परिदृश्य बदला- बदला सा लगता है। कितने मंदिर घरोँ में छिपे थे बाहर निकल आये। पीछे आज भी "ज्ञानवापी मस्जिद" दिखाई दे रही है सामने "नंदी" बैठा दिखाई दे रहा है अब समय आ गया है "काशी" का पूरा उद्धार करने का काशी बदल रही है दर्शनार्थियों की संख्या बढ़ रही है लगता है कि पुनः भारत की सांस्कृतिक राजधानी की ओर अग्रसर हो रही है काशी।

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