मनुस्मृति भाग-3


मुख्य सारांश

1- मनुस्मृति के वर्तमान विभिन्न संस्करण राजर्षि स्वयंभू मनु प्रोक्त मूल मनुस्मृति के अनुसार नहीं है, तथा मनु की मूल मनुस्मृति भी आज कहीं उपलब्ध नहीं है।

2- मनुस्मृति का मूल विषय सार्वभौम मानव धर्म है। इसमें वेद आधारित वर्णाश्रम संबंधी धर्म के विधि-विधान है, इसमें कर्मणा वर्ण व्यवस्था अपनाने पर बल दिया गया है तथा इसमें आज की जन्मना जाती व्यवस्था का लेशमात्र भी संकेत नहीं है।

3- मनुस्मृति वेदों के बाद सर्वाधिक प्राचीन धर्मग्रंथ है, इसकी रचना रामायण, महाभारत, उपनिषद ब्राह्मण ग्रंथों, धर्मसूत्रों इत्यादि धर्म ग्रंथो से पहले का है। क्योंकि इन सभी ग्रंथों में कहीं न कहीं मनुस्मृति के श्लोकों अथवा मनु के नाम अवस्य मिलता है।

4- मनुस्मृति के अति प्राचीन होने के कारण विद्वानों द्वारा विभिन्न काल खंडों में विभिन्न सामाजिक एवं राजनीतिक परिस्थितियों में इसमें अनेक वेद विरुद्ध और तत्कालीन मान्यताओं के अनुकूल अनेक श्लोक जोड़े अथवा घटाए जाते रहे हैं।

5- हिन्दू समाज ने मनुस्मृति के उन्हीं विचारों को प्रामाणिक माना जो कि वेदानुकूल सिद्ध हुए और इसके वेद विरुद्ध वचनों को मान्यता नहीं दी। क्योंकि मनु का विस्वास था कि 'मानव धर्म' का मूल वेद है और वे समस्त परिस्थितियों में मानव मात्र के मार्गदर्शक 'सनातन चक्षु' हैं। उन्होंने वेद विरुद्ध धर्म शास्त्रों को असत्य और निष्फल माना।

6- मनुस्मृति को मौलिक और वेदानुकूल बनाने के उद्देश्य से अनेक विद्वानों ने मनुस्मृति में से मिलावटी श्लोकों को निकाल कर शुद्ध मनुस्मृति संपादित कर प्रकाशित की है। इनमे से डॉ सुरेन्द्र कुमार द्वारा संपादित विशुद्ध मनुस्मृति सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि उन्होंने मिलावटी श्लोकों की सात प्रामाणिक तरीकों से परीक्षा करके मिलावटी श्लोकों को निकालकर 1985 में विशुद्ध मनुस्मृति एवं वर्तमान मनुस्मृति के हिंदी में भाष्य भी प्रकाशित किया है।

7- डॉ सुरेंद्र कुमार के अनुसार वर्तमान मनुस्मृति के 2685 श्लोकों में से 1471 श्लोक मिलावटी है, यानी मूल मनुस्मृति के श्लोकों की संख्या से मिलावटी श्लोकों की संख्या अधिक है।

8- इस विशुद्ध मनुस्मृति में जन्मना जाति ब्यवस्था, जाति-पाती, जातिभेद और छुवाछूत के लेशमात्र भी संकेत नहीं है। यह पूरी तरह से वेदानुकूल और कर्मणा वर्णव्यवस्था की प्रतिपादक तथा मनुस्मृति की मूल मान्यताओं के अनुकूल है।

9- इतने पर भी डॉ आंबेडकर ने माना है कि बर्तमान जाति ब्यवस्था और छुआछूत के लिए मनु और मनुस्मृति उत्तरदायी नहीं है।

10- आज मनुस्मृति में मिलावटी श्लोकों के कारण शूद्र के नाम पर किसी प्रकार का भी हिंदू धर्म विरोधी आंदोलन या प्रचार प्रसार करना, न केवल अनुचित व असंगत है बल्कि पूर्णतया असामयिक है।

11- डॉ आंबेडकर एक सच्चे देशभक्त, राष्ट्रवादी नेता और निष्ठावान समाज सुधारक थे। उन्होंने अपने अनुयायियों को मुस्लिमलीग और ईसाई मिशनरियों से सावधान रहने का परामर्श दिया। वे राष्ट्रीय एकता के प्रबल पक्षधर थे।

12- मनुस्मृति की शिक्षायें मनुष्य की स्वाभाविक प्रवृत्तियों और सामाजिक आवश्यकताओं के आधार पर होने के कारण आज भी समस्त मानव जाति के लिए उपयोगी एवं सर्वांगीण विकासवादी हैं।

13- अतः वर्तमान में मनुस्मृति संबंधी सभी प्रकार के विचारों, समस्याओं एवं विवादों को डॉ सुरेन्द्र कुमार द्वारा संपादित 'विशुद्ध मनुस्मृति' के आधार पर परखना उचित होगा क्योंकि यही संस्करण "महर्षि मनु" की मूल वैदिक मान्यताओं के अनुकूल और सभी प्रकार के प्रक्षेपों से मुक्त है।

14. वैदिक संस्कृति की मान्यताओं का प्रभाव हमारे जीवन से दिखाई देता है और हम उसे अनुभव कर सकते है। उसी प्रकार मनुस्मृति ग्रंथ है जो हमारे जीवन में रचा बसा हुआ है कुछ लोगों ने जो वैदिक संस्कृति को नीचा दिखाने का प्रयत्न पहले से करते आये हैं और आज भी गलत ब्याख्या कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि हिंदू वैदिक धर्म पोंगा पंडितों का है उन्हें यह नहीं पता कि यह वैज्ञानिक आधार पर यह धर्म है, नाशा का जन्म तो बीसवीं शताब्दी में हुआ है आज आकाशवाणी दूरदर्शन पर चन्द्र ग्रहण सूर्य ग्रहण का समाचार नाशा के आधार पर देते हैं। लेकिन हमारे यहाँ काशी, नदिया, मिथिला के पंचांगों में हज़ारों वर्षों से आ रहा है और वही समय नाशा भी बता रहा है तो क्या हमारे ऋषि मुनि वैज्ञानिक नहीं थे? 

15. हमारी देवनागरी लिपि में क, ख, ग, घ फिर च, छ सभी अक्षर अंदर से बाहर की ओर निकलता है जो वैज्ञानिक है लेकिन अरबी भाषा व अंग्रेजी भाषा अथवा कोई और भाषाओं में इस प्रकार की वैज्ञानिकता नहीं पाई जाती है, करोड़ों वर्ष पहले वेदों में कहा गया है कि पृथ्वी गोल आकार का है और सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं दूसरी ओर कुरान और बाइबिल में सूरज पूरब उगता है और पश्चिम में बैठ जाता है इतना ही नहीं तो उसमें कहा गया है कि पृथ्वी चपटी है। फीर भी अर्बन नक्सली तथा तथाकथित प्रगतिशील सभी सनातन वैदिक धर्म को अवैज्ञानिक सावित करने का असफल प्रयास करते रहते हैं।


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1 टिप्पणियाँ

  1. प्राय: सभी वैदिक ग्रंथो का समय के अंतराल में इतना मलोच्छादन किया गया है ,कि राक्षसों को वही खुराक दिखाई देती है , जो वे जन्म जन्म से खाते आये हैं । इनका पवित्रीकरण , प्रस्तुतीकरण बहुत बड़ी चुनौती है ।
    संबंधित प्रयास सराहनीय है ।।

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