ब्रम्हावादिनी विश्ववारा
भारतीय दर्शन
भारतीय दर्शन व भारतीय ग्रंथों को बिना पढ़े, बिना समझें कोई कुछ भी बोल सकता है क्योंकि हमारी संस्कृति उदारता को सर्वाधिक महत्व देती है। इस कारण कोई कुछ भी बोल जाता है, वह यह अच्छी प्रकार जानता है कि यहाँ कोई "सर तन से जुदा" करने वाला नहीं है। सामान्यतया कोई कुछ बोलता रहता है तो सनातन धर्मी मुस्कराते हुए आगे वढ़ जाता है बस यही उसकी कमजोरी समझी जाती है। अपने को आधुनिक समझने वाले, विद्वान समझने वाले सेकुलरिष्ट, वामपंथी मूर्खों की जमात को समझाना वड़ा कठिन होता है। क्योंकि इनकी नीव हिंसा और हत्या पर आधारित है वे "सुपरयार्टी काम्प्लेक्स" से ग्रस्त रहते हैं। वामपंथियों ने अभी तक दशियों करोड़ निरपराध लोगों की हत्या की है तभी रसिया से लेकर चाइना, नेपाल पर शासन है और सेकुलरिष्टो को भारतीयों से अधिक और कौन समझ सकता है! वीसों लाख हिन्दुओं की लास पर पाकिस्तान बना है और ये सेकुलर आज भी हिन्दुओं को धार्मिक रूप से मूर्ख बनाने मे लगे रहते हैं। वे लगातार अपना तार वामपंथियों से जोड़कर सनातन धर्म जैसे वैज्ञानिक धर्म- संस्कृति के बारे में भ्रम फैलाने में लगे रहते हैं।
देश का दुर्भाग्य
देश का दुर्भाग्य ही था कि देश के प्रथम प्रधानमंत्री को राष्ट्रीयता, राष्ट्र, भारत, भारतीयता और भारतीय चिति का कोई ज्ञान नहीं था। लेकिन बड़ा अहंकारी था "वह अपने-आप को ऐक्सीडेंटल हिन्दू मानता था और कहता था कल्चर बाई मुस्लिम!" अब हम समझ सकते हैं कि भारतीय संस्कृति के बारे में उनके क्या विचार रहे होंगे ? इसलिये उसने भारतीय शिक्षा को ही समाप्त करने का काम किया मुसलमानो, ईसाईयों को अपनी धार्मिक शिक्षा की स्वतंत्रता लेकिन हिन्दू समाज को अपने सनातन धर्म के अनुसार शिक्षा नहीं ग्रहण कर सकता। इसलिये प्रत्येक मुस्लिम व ईसाई को अपने धार्मिक ग्रंथों का अध्ययन भी है और अपने महापुरुषों के बारे में जानकारी भी लेकिन हिन्दू समाज को न तो अपने धर्म के बारे में, न ही अपने धर्म ग्रंथों के बारे में और न ही अपने महापुरुषों के बारे में कोई जानकारी है। परिणाम स्वरुप धर्मान्तरण, लव जिहाद और देश भक्ति का अभाव ये साफ दिखाई देता है। यदि भारत को अपने महापुरुषों, धार्मिक ग्रंथों और भारतीय चिति का ज्ञान नहीं रहेगा तो भारत बचेगा इसकी क्या गारंटी? यदि जमीन का टुकड़ा रहेगा तो वह तो भारत नहीं कहा जायेगा। इसलिये भारतीय तत्वज्ञान, भारतीय ऋषि, ऋषिका और अपने वैज्ञानिक तत्वकज्ञान को समाज के सामने लाना ही होगा। तभी भारतीय राष्ट्र सुरक्षित हो सकता है आज इसी कड़ी में एक ऋषिका जो वेदों की मंत्र-दृष्टा है संक्षिप्त जीवन गाथा का वर्णन करने जा रहा हूँ।
ऋषिका विश्ववारा
ऋषिका विश्ववारा वेदों की महान विदुषी थी, जिन्होंने वेदों के ज्ञान के बल ऋषि उपाधि प्राप्त किया, जिसे हम ऋषिका कह सकते हैं। वे अत्रि ऋषि के वंश में पैदा हुई थीं और ऋग्वेद के पांचवे मण्डल के अठाइसवे सूक्त षड़ऋको की मंत्र दृष्टा हैं, जिसमें छः ऋचाएं हैं। उनका वेद मंत्रो का गहन अध्ययन था और मंत्र दृष्टा थीं। वे महर्षि अत्रि के कुल में उत्पन्न हुई थीं। विश्ववारा अत्रेयी भी थीं जो अत्रेय कुल के कारण अत्रेयी थीं।
वैदिक साहित्य में स्त्री शिक्षा, गार्गी, मैत्रेई, घोषा, गोधा, विश्ववारा, अलापा, अदिति, लोपामुद्रा इत्यादि बहुत सारे नाम हैं। उस समय बालकों के समान लड़कियों का भी उपनायन संस्कार होता था, गुरुकुल में रह ब्राम्हचर्या का पालन कर विद्या अध्ययन करती थीं। सतपथ ब्राह्मण में उल्लेख मिलता है कि श्री राम के गुरु वशिष्ठ के गुरुकुल में संगीत, पर्यावरण संरक्षण की शिक्षा उनकी महान विदुषी पत्नी 'अरुनधती' ही देती थीं। अत्रि महर्षि के वंश में उत्पन्न विदुषी विश्ववारा ने स्त्रियों को सावधानी पूर्वक अतिथि सत्कार करना चाहिए। यज्ञ के लिए हविष्य तथा समग्रीयों को प्रस्तुत करके अपने अग्निहोत्री पति के समीप पहुंचना चाहिए। ऐसे वेद मंत्रो की दृष्टा हैं ऋषिका विश्ववारा जो भारतीय नारियों के लिए प्रेणास्पद हैं।
ऋग्वेद का 28वां शूक्त और उसकी छः ऋचाएं
ऋग्वेद के 28वें सूक्त की ऋचाओं से विश्ववारा की प्रतिभा का पता चलता है, ये ऋचाएं सूर्य व अग्नि को समर्पित हैं। जिसमें ईश्वर ने कहा हे मनुष्यों! जो यह सूर्य दिखाई देता है वह अनेक तत्वों से बना हुआ है और जिसके प्रभाव से पूर्व आदि दिशाएं विभक्ति की जाती हैं और रात्रियां होती हैं उस अग्नि रूप सूर्य को जान कर सम्पूर्ण कृत्य सिद्ध करो।1।।
हे धर्मनिष्ठों--! हम लोग आपके बड़े ऐश्वर्य की इच्छा करें और आप दोनों स्त्री और पुरुष जितेंद्रीय धर्मात्मा बलवान और पुरुषार्थी होकर संपूर्ण दुष्टों की सेना को जीतिये।।2।।
जो राजा अग्नि आदि गुणों से युक्त हुआ अच्छे न्याय को यथावत करता है वह यज्ञयों में अग्नि के सदृश्य सर्वत्र प्रकट यश वाला होता है।।3।।
विद्यार्थी जन जैसे विद्वान जन शिल्प विद्या का स्वीकार करते हैं वैसे स्वयं भी स्वीकार करें।।4।।
ऐसे मैंने विश्ववारा के छः मंत्रो से कुछ मन्त्रों का भावार्थ दिया है जो महर्षि दयानन्द सरस्वती द्वारा भाष्य है, इन ऋषिकाओं के जीवन से यह ध्यान में आता है कि वैदिक काल से ही हमारे यहाँ महिलाओ को पुरुषों के समान सभी क्षेत्रों में पूर्ण व समानता का अधिकार था।
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