ताजमहल और कुतुबमीनार पर बहँस होनी ही चाहिए-----!

तेजोमहालय-!

आज देश के अंदर ताजमहल, कुतुबमीनार को लेकर बंहस हो रही है जो स्वाभाविक ही है क्योंकि यदि मुगल व अन्य मुस्लिम शासकों के पास इतने बड़े भवन निर्माण के तज्ञ कारीगर थे तो ताजमहल, कुतुबमीनार, लालकिला जैसे इमारतें इसलामिक देशों में भी होनी चाहिये जो न के बराबर है। वास्तविकता यह है कि इन कबीलाई लोगों ने लूट-पाट कर इन इमारतों से केवल देवी देवताओं की मूर्तियों को नष्ट कर अपने अकबर नामा, बाबरनामा व बादशाहनामा में लिखवाया! वास्तविकता यह है कि ये लुटेरे थे इसके अलावा इन्हें क़ुछ नहीं आता था।

राजा मानसिंह द्वारा निर्मित--!

प्रसिद्ध इतिहासकार पी एन ओक ने ताजमहल हिंदू भवन होने के कई प्रमाण प्रस्तुत किये हैं । इसे हिन्दू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना बताया है। वास्तव में यह राजा जयसिंह की संपत्ति थीं जिसे शाहजहां ने बलात हड़प ली जिसका दुःख हमेशा राजा जयसिंह को सताता रहता था। क़ुछ विद्वानोँ की दृष्टि में ताजमहल "राजा परिमलदेव" के द्वारा तेजोमहालय मंदिर के रूप में स्थापित किया गया था। राजा जयसिंह से हड़पने का तथ्य बादशाहनामा प्रथम भाग के पृष्ठ 403 पर उल्लिखित है। ताजमहल मानसिंह द्वारा निर्मित था जिसे राजा जयसिंह (मानसिंह का पौत्र) से मुमताज को दफनाने के लिए जबर्दस्ती ले लिया। ज्ञातब्य हो कि मन्दिरों, मठों व तीर्थों का निर्माण भारत में नदियों के किनारे बनाने की परंपरा है कोई भी कब्रिस्तान नदी के किनारे नहीं बनाया जाता--!

मंदिर की अनुभूति--!

एक हमारे मित्र जो नेपाल से है उन्होंने बताया-- जब मैं पहली बार ताजमहल के गर्भ गृह में गया तो किसी अदृश्य शक्ति की प्रेरणा से मैं चिल्ला उठा "हर हर महादेव"। उसके गर्भ गृह और गलियारों के वास्तु शिल्प (Lay Out) तथा पशुपतिनाथ मंदिर के बनावट में गज्जब की समानता है। कई वर्षों बाद इतिहासविद पी.एन. ओक को पढा तो इन चीजों का सत्यार्थ अनुभूत हुआ, इस विषय मे प्रमाणिक शोध की आवश्यकता है-।

औऱ कुतुबमीनार--!

 चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य ने नक्षत्रों की गणना हेतु उनके नवरत्नों में सामिल बराहमिहिर ने "ध्रुव नक्षत्र शाला" (कुतुबमीनार) बनवाया था । बराहमिहिर उस समय के प्रसिद्ध खगोल शास्त्री थे जिनके देख रेख मे यह वेधशाला बनायीं गई थी। क़ुछ वामपंथी विचारधारा के इतिहासकारों ने हिन्दू समाज को अपमानित करने की दृष्टि से लिखा कि इसे कुतुबुद्दीन ऐबक ने बनवाया जबकि वह एक लुटेरे के अतिरिक्त कुछ नहीं था । वह केवल चार साल ही यहाँ रहा लूट पाट करने के अतिरिक्त उसके पास समय ही नहीं था कि वह कुतुबमीनार जैसी अद्भुत कलाकृति का निर्माण करवाता। यह मीनार 27 कला पूर्ण परिपथों का निर्माण कराया गया इन्हीं परिपथों के स्तम्भों पर सूक्ष्म कारीगरी के साथ देवी देवताओं की प्रतिमाएं थीं । जिसे नष्ट कर दिया गया जिस पर खुदा हुआ ब्राम्ही लिपि में लेख लिखा हुआ है। जिसे गरुड़ ध्वज कहा जाता है। यह सम्राट चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य के काल का होने पर भी इसमें जंग नहीं लगती वर्तमान के वैज्ञानिकों के लिए आश्चर्य का विषय वना रहता है। उस महान सम्राट विक्रमादित्य के दरबार में गणितज्ञ आर्य भट्ट, खगोलशास्त्री वराहमिहिर, वैद्य राजब्रम्हगुप्त आदि थे।

बहँस की आवश्यकता--!

इस्लामिक कला कृतियों में मूर्तियां हराम है लेकिन जब हम न्यूनता से अध्ययन करते हैं तो ध्यान में आता है कि आज भी सभी तथ्य मौजूद हैं । इस कारण बंहस की आवश्यकता है कि भरतीय संस्कृति पर हम गर्व कर सके। और हमें यह ध्यान रखना होगा कि यह हजार वर्ष हमारा संघर्ष का काल रहा है!

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1 टिप्पणियाँ

  1. अवश्य बहस होनी चाहिए।
    इतिहास का एक और दबा सच निकलकर आएगा।

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