आखिर इजरायली हमले पर इतनी हाय तौबा क्यों ? कोई भी देश जिसकी अपनी जमीन, भाषा व स्वतंत्रता हजारों वर्षों क़े संघर्ष क़े बाद मिली हो उसे अपनी स्वतंत्रता स्वयंप्रभुता की रक्षा करने से कैसे रोका जा सकता है| इजराईल आजादी क़े २४ घंटे भी बीत नहीं पाए थे कि इस्लामिक देशों ने उस पर हमला कर दिया, उन्होंने केवल अपनी सुरक्षा ही नहीं किया जिस भूमि में कुछ पैदा नहीं होता था उसे उपजाऊ ही नहीं बनाया बल्कि उसे वैभवशाली शक्ति सपन्न देश बनाने क़ा गौरव प्राप्त किया | इस्राईल ने कहा कि हमारी सीमा में युद्ध नहीं होना चाहिए अपनी तरफ से उसने कोई हमला नहीं किया यदि फिलिस्तीन को शांति चाहिए तो उसे इजराईल क़े विरुद्ध आतंकवाद बंद करना होगा, फिलिस्तीन इस समय दुनिया में आतंकवाद की नर्शरी क़े समान है जिसमे दुनिया क़े तमाम देशों क़े आतंकवादी प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं | जब इजराईल ने यह चेतावनी दी थी कि फिलिस्तीन को कोई सहायता नहीं भेजी जानी चाहिए तो कोई तो कारण अवश्य होगा, यह उसी प्रकार है जैसे अमेरिका पाकिस्तान को आतंकवाद क़े विरोध क़े लिए सहायता प्रदान करता है लेकिन वह उसे भारत क़े विरुद्ध आतंकवाद क़े लिए उपयोग करता है |
मिडिया क़े अनुसार शन्ति मिशन पर जाने वालों क़े पास हथियार बरामद हुए हैं, तो यह कैसा शांति मिशन है | संयुक्त राष्ट्रसंघ को इजरायिली कार्यवाही पर बड़ी चिंता है तो उसकी जाँच होनी चाहिए लेकिन आज जो वैश्विक आतंकवाद मुस्लिम देश व इस्लाम क़े नाम पर चलाये जा रहे हैं उसके बारे में संयुक्त राष्ट्रसंघ क़ा क्या कहना है ?
कश्मीर घाटी में एक भी हिन्दू नहीं बचा है भारत में ऐसे सकडों पाकेट्स है जहाँ हिन्दू घर छोड़ने को मजबूर है ! उसके बारे में "यु. एन." क़ा क्या कहना है ? इजरायली जनता और भारतीय जनता की एक ही समस्या है। लेकिन भारत की सेकुलर नीति सरकार को इजराईल पसंद नहीं क्योंकि भारत में मुस्लिम समुदाय की निष्ठां भारत में नहीं केवल इस्लाम में है जिन मुस्लिमों की निष्ठां भारत में है उनका इस्लाम में कोई स्थान नहीं है, इसलिए भारत सरकार देश हित को किनारे रखकर एवं सेकुलर क़े नाम पर हिन्दू और भारत विरोध पर आतुर रहती है|
फिलिस्तीनियों व पाकिस्तानियों को सहायता करना आतंकवादियों को सहायता करने जैसा ही है, प्रत्येक देश को अपने देश कि सुरक्षा करने क़ा अधिकार है इस नाते इजराईल ने जो कुछ किया है वही उपयुक्त है जिसकी निंदा नहीं होनी चाहिए, यह तो इजराईल जाँच करे कि शांति सहायता मिशन किस उद्देश्य को लेकर गाजापट्टी जा रहा था जनहानि से तो दुखी होना स्वाभाविक है, लेकिन जो मानवाधिकार वादी कार्यकर्ता आतंकवादियों क़े पक्ष में लगातार बयान देते हैं उनकी सुरक्षा की बात करते हैं वे उनको विद्रोही कहते हैं आखिर उनकी क्या दवा है ? इस पर भी विचार होना चाहिए कहीं ये सभी आतंकवादियों क़े पोषक तो नहीं !
यहूदियों ने अपने परिश्रम से अपने राष्ट्र क़ा निर्माण किया है पूरे देश की जनता सैनिक है और सम्पूर्ण विश्व के अग्रणी देशों में है उसे अपनी सुरक्षा क़ा पूरा अधिकार है, भारत को भी उसी क़े समान सोचना चाहिए और भारत विरोधी आतंकवादी कैम्प जो पाकिस्तान में चल रहे हैं उसपर हमला कर समाप्त कर देना चाहिए, फिलिस्तीन कोई देश नहीं यह तो सम्पूर्ण इस्लामिक देशों की इजराईल क़े विरुद्ध "आतंकवादी छावनी" मात्र है, जिसे पूरे "अरब देश" सहित सभी इस्लामिक देशों की सहायता प्राप्त है यदि ये इस्लामिक देश शांति चाहते तो फिलिस्तीनियों को जमीन उपलब्ध कराकर उसके समृद्धि क़ा रास्ता खोल सकते थे, इस्लाम क़े प्रेम मोहब्बत को बाँट सकते थे लेकिन इस्लाम में तो प्रेम क़ा स्थान हिंसा ने ले रखा है इसलिए विश्व मानवता के बचाने वालों को ठीक से विचार करना होगा केवल इजराईल पर हाय तौबा मचाने से काम नहीं चलेगा |
1 टिप्पणियाँ
self defence is not bad
जवाब देंहटाएं