क्रान्तिकारियों का अपमान
हम लोग स्कूल जाते थे तो पंद्रह अगस्त, २६ जनवरी को राष्ट्रगीत की प्रतियोगिता होती योजना बद्ध गीत गवाया जाता बड़ी जोरो से तयारी की जाती उसमें सबसे अच्छा गीत ----
"दे दी आज़ादी हमें खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तुने कर दिया कमाल।"
हम तब भी सोचते कि फिर भगत सिंह की फासी क्यों हुई, चंद्रशेखर आजाद ने स्वयं को गोली क्यों मारी, असफाक उल्ला, पं रामप्रसाद बिस्मिल ऐसे हजारो क्रान्तिकारियों ने फासी क़े फंदे को क्यों चूमा ? क्या हम इस गीत द्वारा इन क्रांतिकारियों क़ा अपमान नहीं कर रहे है ? इसी करण आज गुरु गोविन्द सिंह, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, महाराणा राणाप्रताप और छत्रपति शिवाजी महाराज को भटके हुए देशभक्त और कहीं कहीं तो आतंकवादी पढ़ाने की परंपरा शुरू हो गयी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की बेटी ने तो हनुमान जी कामुक बन्दर बना दिया।
देश की सीमा?
हे पंद्रह अगस्त तुमने हमारा गेहू क़ा सबसे उपजाऊ जमीन पाकिस्तान क़े रूप में, चावल क़ा सबसे उपजाऊ जमीन को बंगलादेश बना दिया । १५ अगस्त १९४७ से आज तक हमारी भारत माता सिकुड़ती जा रही है ! कही गुलाम कश्मीर पर पाकिस्तान कब्ज़ा किये है तो कही ४२ हजार एकड़ भूमि चीन कब्ज़ा किये है दिन-प्रतिदिन हमारी सीमा सुकडती जा रही है ।
क्या आने वाली पीढ़ी आजादी की कीमत समझेगी?
आने वाली जनरेशन को पता ही नहीं चलेगा कि देश आज़ादी क़े लिए १८५७ से १८६० क़े बीच जितने पढ़े-लिखे लगभग ८० लाख लोगो को मौत क़े घाट उतार दिया गया। आज भी गाव-गाव में वे पीपल-बरगद क़े पेड़ वे बड़े-बड़े कुए गवाह क़े रूप में मौजूद है। हजारो महिलाओ क़े सिंदूरो की कीमत बहनों के भाइयो द्वारा बलिदानों की कीमत पर १४-१५ अगस्त क़ा बंटवारा। जब जवाहर लाल नेहरु लालकिले पर तिरंगा फरहा रहे थे उस समय २० लाख लोग मारे जा चुके थे ये सब देश आज़ादी की कीमत है ऐसा नहीं की देश बिना किसी लडाई क़े आजाद हो गया अंग्रेज ऐसे नस्ल क़े नहीं थे वे इतना उदार नहीं सोनिया की नस्ल थी, ये जाती ऐसी नहीं है ।
पंद्रह अगस्त को प्रणाम
इसलिए हे १५ अगस्त तुम्हे बारम्बार प्रणाम तुम आते हो तो भाई महाबीर, महामना मदनमोहन मालवीय ऐसे बहुतो की याद आती है जिन्होंने यह सुन कर प्राण त्याग दिया की भारत माता क़े टुकड़े हो गए। क्या हम तैयार है फिर भारत माता क़े बटवारे को! प्रधानमंत्री को तो कोई फर्क नहीं पड़ता कश्मीर पर बयान तो यही दर्शाता है दुर्भाग्य है की देश आज़ादी क़े दिन भी प्रधानमंत्री लाल किले से भूलकर भी भगत सिंह, सुभासचंद बोस इत्यादि क्रांतिकारियों क़ा नाम तक नहीं लेते आज १५ अगस्त केवल विद्यालय कुछ सरकारी संस्थानों तक ही सिमित, सरकारी त्यौहार बनकर रह गया है आम भारतीय नागरिक गरीब, किसान, मजदूर तो इस आज़ादी क़े दिन को जानता ही नहीं है । यह सम्पूर्ण भारत क़ा त्यौहार बने यह प्रयत्न होना चाहिए लेकिन तब एक खतरा है की कांग्रेसी नेताओ क़ा महत्व कम हो जायेगा इसका ध्यान रखकर ही स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है ।
3 टिप्पणियाँ
sateek........sadhuwaad...
जवाब देंहटाएंधन्यवाद मुद्गल जी
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना.
जवाब देंहटाएं