एक समय दक्षिण की काशी कही जाने वाली यह मंडला नगरी-- नर्मदा नदी जो दक्षिण की गंगा कही जाती है। महाकौशल, मालवा, विदर्भ, मध्यभारत, गुजरात और कर्णाटक इत्यादि प्रदेशो की जीवन धारा क़े रूप में भी जानी जाती है इस नगरी को कभी सौभाग्य प्राप्त हुआ था की कुमारिल भट्ट, मंडल मिश्र जैसे महापुरुषों को शिक्षित करने क़ा भारतीय संस्कृति में अद्भुत परिवर्तन लाने वाला शास्त्रार्थ जो शंकराचार्य और मंडन मिश्र क़े बीच हुआ इसी नगरी को यह सुअवसर मिला था। ये नर्मदा जी क़ा उद्गम अदि शंकराचार्य क़े गुरुदेव गौद्पादाचार्य की तपस्थली अमरकंटक से कोई २०० किलोमीटर पश्चिम-दक्षिण पर स्थित है आज भी यह बहुत बड़ा हिन्दुओ क़ा तीर्थ स्थान होने क़े नाते लाखो लोग स्नान क़े लिए आते है इसी नगरी को गोंडवाना क्षेत्र की राजधानी क़ा भी सौभाग्य को प्राप्त है। यह क्षेत्र भारतीय संस्कृति क़ा बहुत महत्वपूर्ण जागृत केंद्र रहा है इसी करण बिधर्मियो की इस पर नजर लग गयी।
गोंडवाना की महारानी दुर्गावती को कौन नहीं जानता यही उनकी राजधानी थी अपनी स्वतंत्रता को अक्षुण बनाये रखने क़े लिए उन्होंने अपने हजारो सैनिको क़े साथ मुग़ल बादसाह अकबर क़ा मुकाबला किया जीते जी उन्होंने हार नहीं मानी राज्य क़े सारे गौडो ने रानी क़े साथ स्वतंत्रता की मशाल जलाये रखा रानी दुर्गावती ने हजारो सैनिको क़े साथ बलिदान दिया। सतित्व की रक्षा हेतु हजारो स्त्रियों ने जौहर किया इसी क्षेत्र में बीर क्षत्रशाल ने अपने जीवन में मुगलों को कभी घुसने नहीं दिया यह क्षेत्र संघर्ष क़ा पर्याय बन गया यहाँ ब्रिटिश हुकूमत क़े भी पैर वनवासियों यानी गौडो ने जमने नहीं दिया। अपनी गौरवशाली परंपरा कायम रखी और इस राज्य ने कभी बिदेशी शासन को स्वीकार नहीं किया ।
लेकिन बिदेशियो की निगाहे इस क्षेत्र की भोली- भाली जानता पर लगी रही वे लड़कर तो यहाँ अपना प्रभाव तो नहीं जमा सकते थे उन्होंने दूसरा रास्ता अपनाया जो धोखा, लालच और धुर्तई क़ा था जिसे हम चार सौ बीसी कह सकते है अंग्रेजो ने पूरे जंगलो में गरीबी क़ा उनके सिधाई क़ा लाभ उठाकर बिधर्मी बनाना शुरू कर दिया। बड़े-बड़े चर्चो को माध्यम बनाकर जानता को भारतीय चिति से अलग करना वे भारतीय अथवा हिन्दू नहीं है उनको बताने क़ा प्रयत्न किया कि हिन्दू तो मूर्ति पूजक है तुम तो प्रकृति पूजक है इस प्रकार क़ा भ्रम फ़ैलाने क़ा प्रयास किया गया शायद चर्च को यह नहीं मालूम कि भारतीय बांग्मय में प्रकृति पूजक, मूर्ति पूजक और नास्तिक भी होता है यहाँ तो नास्तिक भी और आस्तिक भी दोनों हिन्दू है किसी से कोई दिक्कत नहीं ।
अपने देश में राष्ट्रीय एकता सामाजिक संरचना को ठीक बनाये रखने क़े लिए पूरे अर्याबर्त, भारत वर्ष में जो पश्चिम में मक्का से पूर्व ब्रह्मदेश तक था बारह स्थानों पर कुम्भ लगते थे अपने यहाँ बारह महीने, बारह राशिया, बारह नक्षत्र होने क़े कारन देश की एकता हेतु पश्चिम में मक्केश्वर महादेव पर पहला कुम्भ लगता था ऐसे प्रभाष क्षेत्र सरस्वती नदी क़े किनारे हरिद्वार, उज्जैन, प्रयाग और नासिक इत्यादि १२ स्थानों पर कुम्भ लगता था। आज समय की आवस्यकता है कि सामाजिक समरसता हेतु सामाजिक कुम्भ लगाये जाय पहला कुम्भ हमने गुजरात क़े दाग जिले में सबरी कुम्भ के नाम से लगाया था। उसी कड़ी में ये मंडला क़ा चयन किया गया है । जिसमे जिन जातियों को ईसाई लक्ष बनाकर धर्मान्तरण कर रहे है। उन सभी जातियों क़े पुरोहित, भगत उनके संतो को जगाने क़े लिए और चर्चो क़े कुकृत्यो क़ा पर्दाफास क़े लिए ये कुम्भ है ।
हिन्दवः सोधरा सर्वे न हिन्दू पतितो भवेत क़े मंत्र क़े साथ पूज्य संतो की प्रेरणा से भारतीय संस्कृति की पुनर्स्थापना एवं समरसता हेतु सामाजिक कुम्भो क़ा आयोजन किया गया है वर्ष २००६ में सबरी कुम्भ की अगली कड़ी में माँ नर्मदा सामाजिक कुम्भ १०,११,१२ फ़रवरी २०११ को मंडला में है ।
लोकमान्य तिलक ने [केशरी १८९५] में कहा था ! ''आखो क़े सामने आपके बाल-बच्चो क़ा मतान्तरण देखकर आप शांत कैसे बैठे है ? फुसलाकर भ्रष्ट किये गए उनको वापस लाने क़ा उपाय आपको नहीं सूझता क्या ? इस प्रकार आपके धर्म क़ा एकतरफा क्षय हो रहा है और आप चुप-चाप बैठे है, तो धन्य है आपकी विद्वता।"
डॉ.भीमराव राम जी अंबेडकर -! हैदराबाद नबाब व ईशाइयो को उत्तर देते हुए कहा कि 'यह एक भयानक सत्य है कि ईशाई या मुसलमान बन जाने से जातिबाद तो नहीं मिटता अपितु ब्यक्ति अराष्ट्रीय हो जाता है इस नाते मै अपने भारतीय धर्म में जसका चिंतन भारतीय है बौद्ध धर्म स्वीकार करुगा जिससे हमारी आस्था भारत में बनी रहे क्यों कि जब कोई मुसलमान या ईशाई बनता है तो उसकी आस्था भारत में न रहकर अरब या बेटिकन सिटी, रोम में हो जाती है।
मंडला जबलपुर से ८५ कि.मी. दुरी सड़क मार्ग पर बसे उपलब्ध रहती है---
4 टिप्पणियाँ
वर्तमान समय में भारत एकात्म के लिए सामाजिक कुम्भ की आवश्यकता है . शबरी कुम्भ में सामाजिक समरसता का संचार हुआ नर्मदा कुम्भ से भी होगा
जवाब देंहटाएंमाँ नर्मदा सामाजिक कुम्भ अपनी पुरातन संस्कृति को याद ही नहीं जीवंत करने वाला है और महर्षि दयानंद सरस्वती की तरह स्वधर्म में आने क़ा आवाहन भी है जो भारत व भारतीयता को नवजीवन देने वाला होगा तभी इस कुम्भ की प्रासंगिकता होगी ,सफलता हेतु सुभकामना.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी दी.
जवाब देंहटाएंथोडा वर्तनी पर ध्यान दें तो लेख की सुंदरता बढ़ जायेगी.
आदि शंकराचार्य, कुमारिल भट्ट एवम मंडन मिश्र की वजह से ही हमारी परम्परा जीवित है। उनको शिक्षा देने वाली भुमी पुज्यनिय है।
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