वैदिक काल में छुवा-छूत नहीं था
डॉ भीमराव अम्बेडकर अपनी प्रसिद्ध पुस्तक "शूद्रो की खोज" मे लिखते हैं की ये ओ 'शूद्र' नहीं है क्योंकि "वैदिक काल" मे छुवा-छूत, भेद-भाव नहीं था। वे अपनी ईसी पुस्तक मे आगे लिखते हैं कि छुवा- छूत इस्लामिक काल की देन है 'हिन्दू समाज' के वैदिक काल मे वर्ण व्यवस्था थी न कि जाति ब्यवस्था धीरे-धीरे वर्ण व्यवस्था ही जातीय स्वरूप लेने लगी लेकिन वेदों मे कहीं भी जातियों अथवा भेद- भाव को कोई स्थान नहीं है। प्रथम बार जब आठवीं शताब्दी मे 'महाराजा दाहिर' के ऊपर लुटेरा मुहम्मदबिन कासिम का हमला हुआ, पराजित होने पर रानियों ने जौहर तय किया कि जल्दी अग्नि को समर्पित करो नहीं तो मलेक्ष छू लेगा और उन क्षत्राणियों ने सर्बोच्च बलिदान की तैयारी किया, पहली बार भारत मे छूत और अछूत शब्द आया।छुवा-छूत इस्लामिक देन
आठवी शताब्दी के बाद यह अछूत की भावना इस्लाम मतावलंबियों के द्वारा आयी जिन्होने देश व धर्म के लिए सर्वाधिक संघर्ष किया उनसे बदला लेने के लिए उन्हे योजना पूर्वक पददलित -अछूत घोषित कराया। भारत के अंदर शौचालयों की ब्यवस्था नहीं थी इसकी कोई परम्परा यहाँ थी ही नहीं। इस कारण किसी भी किले मे सौचालय नहीं थे मुस्लिम लुटेरों ने तो कोई किला बनाया नहीं बल्कि उन लुटेरों ने हिंदुओं के किले को अपना आवास बनाया । हिन्दू समाज मे दिसा तय रहती थी की पुरुष किस दिशा मे जाएगे और महिलाएं किस दिशा मे जाएगी! इसी बहाने मनुष्य एक या दो किमी प्रातः घूम भी लिया करता था स्वास्थ्य के लिए भी ठीक था घर की पवित्रता बनी रहती थी ऐसा हिन्दू जीवन दर्शन था। मुस्लिमो मे कई बिबाह करने की परम्परा है वे लुटेरे थे कोई संस्कार नहीं था। लूट का माल बाट लो जो महिलाए लूट मे मिल जाय उन्हे रख लो वे ज़ोर जबर्दस्ती करते थे यह उनकी परम्परा थी। वे केवल लुटेरे ही नहीं थे बल्कि इस्लाम के प्रचारक भी थे। लाखों मंदिरों को तोड़ा उनके रक्षक राजपूत और पुजारी ब्रह्मण हुआ करते थे कहीं न कहीं रक्षक, पुजारी युद्ध मे हारे उन्हे बंदी बना लिया गया।धर्म वीर
इस्लाम की बहु पत्नी प्रथा का आँड लेकर जो जितनी संख्या मे बीबियाँ रखता था। मुस्लिम जगत मे उसका उतना ही सम्मान होता इतिहास लिखता है मुगल अकबर के पास पाँच हज़ार बीबियाँ थी ऐसे मुहम्मद तुगलग, मुहम्मद गोरी, महमूद गजनवी, बाबर, शेरसाह शुरी ऐसे अनगिनत लुटेरे जिनको बादशाह अथवा शासक कहा जाता था सैकड़ो-हजारों बीबियाँ रखते थे । लेकिन सौचालय नहीं थे वे कहाँ जातीं सभी को बाहर जाना पड़ता था। एक और बात थी एक पुरुष इतनी महिलाओं के साथ न्याय कर सकता था क्या-? नहीं उन सभी ने अपना-अपना साथी बना रखा था ये बाते भी सार्वजनिक होती थी इन लोगो ने घर अथवा किलों मे ही यह ब्यवस्था करने की सोची, फिर क्या करना ? जिन पुजारी व राजपूतो को बंदी बनाया था उन्हे कहा कि या तो इस्लाम स्वीकार करलों नहीं तो मैला उठाने का काम करो वे बड़े स्वाभिमानी और धर्म भीरु थे। उन लोगो ने मैला उठाना स्वीकार किया इस्लाम नहीं स्वीकार किया। धीरे-धीरे उन्हे अछूत घोषित किया क्योंकि वे धर्म वीर थे धर्म नहीं बदला उनका "मान भंग" किया गया इस कारण उन्हे ''भंगी'' कहा गया, वास्तविकता यह है कि जिन्हें ''भंगी'' कहा जाता है वे धर्म-वीर हैं न कि अछूत -।चँवर वंश के क्षत्रीय
सिकंदर लोदी ने 1489 से 1517 के बीच 'चँवर वंश' के राजपूतों को अपमानित करने हेतु अछूत घोषित कर दिया क्यों कि धर्म क्षेत्र मे सर्वाधिक संघर्ष 'चँवर वंश' के राजपूतों ने किया था। ''श्री भक्त माल'' के रचयिता ''श्री नाभा'' के टीकाकार ''ग्रंथ'' मे 269 भक्तों का वर्णन है जिसमे 'नाभा' के बारे मे लिखा है वे 'डोम वंश' के थे उन्हे 'भंगी' भी कहा जो अनुचित है क्योंकि डोम त्रेता युग मे "राज़ा हरिश्चंद्र" को डोम राज़ा ने खरीदा था वे अछूत तो नहीं थे --! डोम, कलावंत, ढांदी, कथक, इन सभी के साथ सत्रहवीं शताब्दी मे भंगी को भी घृणित जाति मे वर्णित किया। भारत मे इस्लामिक राजाओ के पहले यहाँ भंगी नहीं थे दिल्ली के आस पास भंगी शब्द शाहजहाँ ने प्रचलित किया चौदहवीं शताब्दी मे घृणित पेशा भंगी--!अमृतलाल नागर के अनुसार इन सबके गोत्र ब्रह्मण व क्षत्रियों के हैं ---"नाच्यों बहुत गोपाल", ''पतित प्रकाकर'' पुस्तक के अनुसार ग्यारहवीं शताब्दी मे भंगी जाति आयी----------!
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