पहले लूट फिर धर्मांतरण
हज़ार वर्षों के संघर्ष काल में हिन्दू समाज ने अपनी संस्कृति व सभ्यता को बचाने हेतु अतीत में जो- जो उपाय किये बर्तमान में वही अभिशाप बनकर खड़ा हो गया, कभी भारत में सत्ता का केंद्र हस्तिनापुर हुआ करता था तो कभी पाटलिपुत्र कभी इंद्रप्रस्थ लेकिन सांस्कृतिक राजधानी हमेशा काशी ही रही, ई ७१२ में जब इस्लामिक लुटेरों के हमले शुरू हो गए वे लम्बे समय तक चलते रहे जैसे कुत्ते के मुँह में खून लग जाय, पहले तो लुटेरे धन लुटते, फिर उन्होंने बलात धर्मान्तरण शुरू किया, सबसे पहले उन्होंने कमजोर लोगो पर धर्म लादा जो बुनकर, टिकुलिहार, चुड़िहार, पटवा, खतवे और चौपाल ऐसे लोग थे, हमें लगता है कि बुनकर के नाम पर इन्हें कुछ सुबिधायें भी दी होंगी लेकिन हिन्दू समाज यह समझ नहीं पाया कि इस्लाम क्या है ? इस्लाम स्वीकार करने के पश्चात् भी वह होली, दिवाली, दशहरा मनाता रहा कोई दबाव नहीं था कारन उस समय मुल्ला- मौलबी न के बराबर थे और मखतब, मदरसे भी नहीं थे।पूरे देश में विभिन्न नामों से
इस समाज की संख्या पंजाब से लेकर बंगाल गंगा जिनके मैदान में सर्बाधिक पायी जाती है, आठवीं शताब्दी मुहम्मदबिन कासिम से लेकर पंद्रहवीं शताब्दी सिकंदर लोदी तक भयंकर अत्याचार इस्लाम ने किया जब तक हिन्दू अपने को सम्हाल पाता तब तक बहुत देर हो चुकी थी, साधु, संत खड़े होना शुरू हो गए वैष्णव परंपरा में उत्तर भारत के प्रथम आचार्य स्वामी रामानंद का प्रादुर्भाव हुआ, हिन्दू समाज के बिभिन्न जातियों में संत खड़े कर समाज का जागरण शुरू हो गया लेकिन तब तक ये जातियां में बड़ी संख्या में लोग इस्लाम स्वीकार कर चुके थे, लेकिन जुलाहा कौन--? कपड़ा करघे से बुनने वाला, तंतुवाय, खतवे, चौपाल, टिकुलिहार, चुड़िहार, तांती, तुरहा इत्यादि को जुलाहा कहते हैं कहीं- कहीं पर ये अपने कोरी जाती यानी अनुसूचित में तो उत्तर प्रदेश में पिछड़ी जाती आते हैं, लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इन्हे अनुसूचित जाती में माना है पंजाब, हिमांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और बंगाल में आज भी हिन्दू जुलाहा पाया जाता है केवल बिहार में ही इनकी संख्या दस लाख है।सनातन परंपरा के वाहक
इन जातियों में सिंदूर लगाना, टिकुली लगाना, चूड़ी पहनना और हिन्दू समाज के जो भी तीज -त्यौहार हैं सभी मनाया जाता है इतना ही नहीं जिन्होंने इस्लाम स्वीकार कर लिया वह भी हिन्दुओं के सभी त्यौहार मानते हैं जिसमे होली, दशहरा प्रसिद्ध है, काशी इनका प्रमुख केंद्र होने के कारन भगवान शंकर के प्रति अधिक श्रद्धा भाव है, कबीर दास के बारे में बड़ी किंबदंती है, हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार कबीर बिधवा ब्राह्मणी के गर्भ से पैदा हुए थे यह भ्रम भी हो सकता है लेकिन उनका लालन- पालन जुलाहा के यहाँ हुआ यह सत्य है, डॉ धर्मबीर कबीर को दलित संत मानते हैं, भारत का दुर्भाग्य यह है कि यहाँ देश आज़ाद होने के पश्चात् वामपंथियों ने इतिहास को तोड़ -मड़ोर कर सत्य को छिपाने का काम किया है इतना ही नहीं जो भारत को नुकसान कर सकता है गलत तरीके से जिसका कोई शाक्ष्य नहीं है वही इतिहास है, ऐसा वामपंथियों ने लिखा है, जुलाहा शब्द होने के कारन कबीर दास को मुसलमान घोषित कर दिया जबकि उस समय सभी जुलाहा हिन्दू थे, यानी कबीर का लालन-पालन जिस जुलाहा परिवार में हुआ वह हिन्दू था इस कारन कबीर को मुसलमान कहना गलत ही नहीं बल्कि हिन्दू समाज से शत्रुता पूर्ण ब्यवहार करना है, कबीर ने अपने को अनेक बार जुलाहा कहा है लेकिन एक बार भी मुसलमान नहीं कहा ! वे कहते हैं--
अरे इन दोउ राह न पाई, हिन्दू करै अपनी हिन्दुवाई-
मुसलमान की पीर औलिया मुर्गी मुर्गा खायी,
इससे यह साबित होता है कि कबीर मुसलमान नहीं थे, क्योंकि कोई भी मुसलमान कभी इस्लाम की बुराई नहीं करता लेकिन हिन्दू अपनी कमियों को कुरीतियों को दूर करने हेतु उसकी आलोचना करता है, तो वास्तव में कबीर हिन्दू थे वे समाज सुधारक थे उनकी समाज मे बड़ी इज्जत थी उस समय जुलाहा जाती हिन्दू थी आज भी है, चूंकि अधिक मात्रा में जुलाहा इस्लाम स्वीकार कर लिए इस कारन लोगो को समझ में आया भ्रम हुआ की जुलाहा जाती मुसलमान है जबकि सम्पूर्ण विश्व में कहीं भी जुलाहा नाम की मुसलमानों में कोई जाती नहीं है ।
जघन्य अत्याचार
एक तरफ ज़ोर जबर्दस्ती बलात धर्म परिवर्तन किया जा रहा था दूसरी ओर ''स्वामी रामानन्द'' के शिष्यों की मंडली भी हिन्दू समाज का जागरण कर रही थी दो बड़े संत जो ''रामानन्द स्वामी'' के शिष्यों मे सर्वाधिक प्रतिष्ठित थे ''संत कबीरदास और संत रविदास'' दोनों पर इस्लाम स्वीकार करने का दवाव था बहलोल लोदी ने बलात धर्मांतरण (इस्लाम) के लिए सदन कसाई को भेजा लेकिन सदन कसाई हिन्दू बन गया, ऐसा इन संतों का प्रभाव था बाद मे बहलोल लोदी ने ''संत रविदास'' व ''सदन कसाई'' को चांडाल घोषित कर जेल मे डाल दिया और ''संत कबीरदास'' का हाथ पैर बंधवाकर ''गंगाजी'' मे फेक दिया लेकिन वे अद्भुत संत थे ईश्वर कृपा से वे बच निकले इसलिए हमे वामपंथियों के भ्रम मे नहीं पड़ना चाहिए वास्तविकता यह है कि संत कबीर का लालन-पालन जुलाहा हिन्दू परिवार मे हुआ था।शुद्रों की खोज
"शूद्रों की खोज" जैसे प्रख्यात ग्रंथ मे 'डॉ भीमराव अंबेडकर' ने लिखा है कि ये ओ शूद्र नहीं हैं जो वैदिक काल के थे और इसी पुस्तक मे वे आगे लिखते हैं कि वैदिक काल मे वर्ण ब्यवस्था थी लेकिन भेद -भाव अथवा उंच-नीच या छुवा-छूत नहीं था इसलिए यह कहना कि यह बीमारी पुरानी है यह गलत है डॉ अंबेडकर उसी पुस्तक मे लिखते है कि छुवा-छूत इस्लामिक काल की देन है यानी एक हज़ार वर्षों मे हिन्दू समाज अपने को सुरक्षित रखने हेतु जो बांध बनाया वही उसके लिए घातक सिद्ध हुआ ।
"एक सच जाने क्यूं छिपाया गया"
मुसलमानों ने कबीर की हत्या कर दी थी क्योंकि वे मियाँ बनने को तैयार नहीं थे ! कपोल कल्पित कथा, कबीर मरने के बाद फूल बन गये, हिन्दू और मुस्लिमो ने उन्हें बराबर बांट लिया, जबकि सचाई यह है कि सिकंदर लोदी ने उन्हें हाथी के पैरो से कुचलवाकर मरवा दिया था।
जब कबीर दास जी ने इस्लाम कबूल करने से मना कर दिया, तो सिकंदर लोदी के आदेश से जंजीरो में जकड़कर कबीर को मगहर लाया गया। वहां लाते ही जब शहंशाह के हुक्म के अनुसार कबीर को मस्त हाथी के पैरों तले रौंदा जाने लगा, तब लोई पछाड़ खाकर पति के पैरों पर गिर पड़ी। पुत्र कमाल भी पिता से लिपटकर रोने लगा। लेकिन कबीर तनिक भी विचलित नहीं हुए।आंखों में वही चमक बनी रही। चेहरे की झुर्रियों में भय का कोई चिन्ह नहीं उभरा। एकदम शान्त-गम्भीर वाणी में शहंशाह को सम्बोधित हो कहने लगे-
"माली आवत देखिकर,कलियन करी पुकार।
फूले फूले चुन लिए,काल्हि हमारी बार।।"
और फिर इतना कहते ही हलके से मुस्कुरा दिया। कबीर आगे बोले-'मुझे तो मरना ही था;आज नहीं मरता तो कल मरता। लेकिन सुलतान कब-तक इस गफलत में भरमाए पड़े रह सकेंगे, कब तक फूले-फूले फिरेंगे कि वह नहीं मरेंगे? ऊपर जो छंद है यह कबीर के मरते वक्त ही रचा गया था और कबीर ग्रंथावली के अंत में भी जोड़ा गया है!!
कबीर को जिस समय हाथी के पैरों तले कुचलवाया जा रहा था, उस समय कबीर का एक शिष्य भी वहां मौजूद था, उसके मुख से निकल पडा!
"अहो मेरे गोविन्द तुम्हारा जोर ,काजी बकिवा हस्ती तोर।
बांधि भुजा भलैं करि डार्यो,हस्ति कोपि मूंड में मार्यो।
भाग्यो हस्ती चीसां मारी,वा मूरत की मैं बलिहारी।
महावत तोकूं मारौं सांटी,इसहि मराऊं घालौं काटी।
हस्ती न तोरे धरे धियान,वाकै हिरदै बसे भगवान।
कहा अपराध सन्त हौ कीन्हा,बांधि पोट कुंजर कूं दीन्हा।
कुंजर पोट बहु बन्दन करै,अजहु न सूझे काजी अंधरै।
तीन बेर पतियारा लीन्हा,मन कठोर अजहूं न पतीना।
कहै कबीर हमारे गोब्यन्द,चौथे पद में जन का ज्यन्द।।"
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6 टिप्पणियाँ
बिहार में जुलाहों की संख्या तकरीबन 3% ....
जवाब देंहटाएंJai kori samaj ki
हटाएंMalum nahi hai to nahi likh a chahiyea bewkoof
जवाब देंहटाएंयह मेरा लेख तथ्य परक है हाँ यह बामियो गवार कठमुल्लों को पच नहीं पा रहा है क्योंकि यदि इन्हें वास्तविकता पता चल जाएगा तो यह जाति स्वाभिमानी हो जाएगी और राष्ट्रवाद की मुख्यधारा में होगी तो कुछ लोग असभ्यता तो करेंगे ही।
हटाएंधन्यवाद
Mai hindu julaha hun jo ki tanti tatwa hota hai
हटाएंDon't spread fake theory...
जवाब देंहटाएंKabir Das na to Hindu then aur na hi musalman avsya hi tum hate de rhe ho 🙏