26 अक्टूबर को भारत में विलय.! जम्मू-कश्मीर भूत और बर्तमान परिदृश्य -- !

वास्तविकता कुछ इस प्रकार है--!

इधर लम्बे समय से जम्मू-कश्मीर आतंकबाद और अलगाव बाद के करण चर्चा क़ा विषय बना हुआ है वहां की  वास्तविकता कुछ इस प्रकार है -------- कुल क्षेत्रफल --२२२२३६ वर्ग कि.मी.------- पाक अधिकृत ----७८११४ वर्ग कि.मी. बर्तमान में भारत में--- १०१३८७ वर्ग कि.मी.--पाक ने चीन को दिया --५१८० वर्ग कि.मी-----चीन अधिकृत ---.(१९६२)।

सत्ता हमेशा हिन्दुओ के हाथ में--!

कश्मीर  में इस्लाम १३२० में आया, सत्ता कभी भी उनकी टिकाऊ नहीं रही वहा पर सत्ता सिखो और हिन्दू राजाओ की रही . वर्तमान जम्मू-कश्मीर राज्य १८४६ से महाराजा गुलाब सिंह ने जम्मू में राज्य स्थापना की थी और अमृतसर की संधि के अनुसार उन्हीने अंग्रेजो से कश्मीर घाटी ली और पराक्रम से गिलगित, बल्तिस्तान, तिब्बत तक राज्य बिस्तार किया जिसके द्वारा जम्मू-कश्मीर राज्य क़ा निर्माण हुआ, यह रियासत भारत की ५६५ रियासतों में सबसे बड़ी थी, डोगरा शासन सामान्यतः लोकप्रिय शासन था, महाराजा गुलाब सिंह से लेकर रणबीर सिंह, राजा प्रताप सिंह और महाराजा हरी सिंह ने १९४७ तक शासन किया था।

संघ के प्रयास ने रियाशत का विलय--!

जम्मू-कश्मीर क़ा भारत में विलय ------ नेहरु जी की गलत नीतियों के कारण [शेख अब्दुल्ला मोह] महाराज बहुत दुखी थे लौह पुरुष सरदार पटेल की योजना से संघ के सरसंघचालक श्री गुरु जी ने बार्ता कर राजा को विलय के लिए तैयार कर लिया, महाराजा हरी सिंह ने भारत स्वतंत्रता अधिनियम, १९४७ के प्रदत्त अधिकारों क़ा उपयोग करते हुए जम्मू- कश्मीर राज्य क़ा भारत में विलय २६ अक्टूबर १९४७ को विलय पत्र पर हस्ताक्षर करके किया. २७ अक्टूबर १९४७ को लार्ड माउन्ट बेटन ने उस विलय पत्र को  स्वीकार कर लिया २६ जनवरी १९५० को, भारत क़ा संबिधान लागू होने के साथ ही जम्मू-कश्मीर भारत क़ा अविभाज्य अंग बन गया. १९५६ में, सातवे संबिधान संसोधन के उपरांत, जम्मू-कश्मीर राज्य ''बी'' श्रेणी के राज्य के स्थान पर सब राज्यों के समान घोषित किया गया ।

नेहरू की गलत नीतियों का परिणाम --!

पं.नेहरु की गलत नीतियों के चलते शेख अब्दुल्ला के मोह- पास में फसकर जानता की बिना इक्षा जाने ही ३७० लागू किया और  वार्ता क़ा नाटक कर १९५२ जुलाई नेहरु जी ने संबिधान सभा में घोषणा की ------- जम्मू-कश्मीर राज्य क़ा अलग संबिधान, अलग ध्वज रहेगा, राज्यपाल के स्थान पर सदरे रियासत मुख्यमंत्री के स्थान पर प्रधानमंत्री शब्द क़ा प्रयोग होगा. जम्मू-कश्मीर में शेष भारत से आने वाले को अनुमति-पत्र लेना होगा और अलग नागरिकता रहेगी, राज्य के पास अलिखित शक्ति रहेगी, लद्दाख के लोगो ने कहा था की हमें केंद्र शासित राज्य अथवा हिमांचल के साथ जोड़ दिया जाय, जम्मू के लोगो ने भारत में पूर्ण बिलय की बात कही लेकिन नेहरु को खून क़ा रिश्ते ने मजबूर कर दिया, देश क़ा एक बड़ा हिस्सा अपने सहोदर शेख अब्दुल्ला को दे दिया, जन आन्दोलन प्रारंभ हुआ जिसमे डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी सामिल हुए, बिना परमिट प्रवेश के करण गिरफ्तार हुए २३ जून १९५३ को उनका रहस्यमय ढंग से जेल में बलिदान हुआ ।

और जिन्न बाहर आया--!

८ जुलाई १९५३ को नेहरु जी से बात -चीत के नाटक उपरांत आन्दोलन वापस हुआ शेख अब्दुल्ला राष्ट्रद्रोह में गिरफ्तार हुए और भारत के सभी संबिधान के प्रावधानों को लागू होने क़ा मार्ग प्रसस्त हुआ, परमिट सिस्टम ख़त्म हुआ, धीरे-धीरे राज्यपाल, मुख्यमंत्री के नाम क़ा उपयोग, राज्यपाल की राष्ट्रपति द्वारा नियुक्ति, भारतीय प्रशासनिक सेवा, चुनाव आयोग, महालेखागर, सर्बोच्च न्यायालय के अंतर्गत यह राज्य आया।

ये राजनैतिक नहीं इस्लामिक आतंक की समस्या-!

१९४७ से आज तक एक लाख से अधिक हिन्दू-सिखो की हत्याए, जम्मू-कश्मीर में १४ लाख से अधिक शरणार्थी, गत २५ वर्षो से आतंकबाद क़ा नया दौर, घाटी से चार लाख हिन्दुओ क़ा पलायन, संपत्ति, मंदिर, धर्मस्थलों की लूट, वर्तमान केंद्र सरकार अलगाव बादियो के दबाव में जम्मू-कश्मीर की आतंरिक सुरक्षा से सेना को अलग करना, ३५००० सैनिको को हटाना, जम्मू-कश्मीर की पूरी सुरक्षा की जिम्मेवारी स्थानीय पुलिस को देने केंद्रीय पुलिस बल को केवल सहायता के लिए तैयार रहने को कहा गया, पाकिस्तान में कट्टरपंथियों क़ा बढ़ता प्रभाव भारत के भविष्य के लिए खतरे क़ा कारण बनने वाला है।

हिन्दुओ के साथ-भाव ---!

पाकिस्तान से आए हुए हिन्दू सर्णार्थियो की संख्या दो लाख है, उनकी नागरिकता होने से जम्मू क़ा संतुलन ठीक हो सकता है लेकिन कांग्रेश व अन्य दल भा.ज.पा. को छोड़कर बिरोध कर रहे है. जिससे जम्मू क़ा प्रतिनिधित्व बढ़ने न पाए, कांग्रेश द्वारा इस बिधेयक क़ा बिरोध किया गया जबकि उसके २५ बिधायको में से अधिकांस हिन्दू बिधायक जम्मू से है, १९४७ में ९० हज़ार हिन्दू- सिखो क़ा नरसंहार हुआ व शेष लोग मीरपुर, पूंछ, व मुज़फ्फराबाद जिलो से जम्मू-कश्मीर में आए थे जिनकी बर्तमान संख्या आठ लाख है, अपने उचित अधिकारों के लिए ६२ वर्षो से संघर्ष कर रहे है अभी तक पुनर्वास की प्रतीक्षा में है राज्य बिधान सभा में २४ बिधान सभा सीट पाक अधिकृत कश्मीरी के लिए रिक्त है लेकिन पाक से आए बिस्थापितो को स्थान नहीं मिला।

वास्तविक समस्या -!

कश्मीर केन्द्रित दलों ने अलगाव बादी व आतंकी संगठनों के सहयोग अपने संकीर्ण राजनैतिक हित को पूरा करने के लिए हिन्दू, विस्थापित व भारतीय भावनाओ के बिरोध में माहौल बनाया हुआ है, घाटी में केंद्र सरकार के पैसे से भारतीय सैनिको पर राजनैतिक दल पत्थर मरवाने क़ा काम-- करने वाले गिरोहों की पुनर्वास निति बनवाते है, सुरक्षा बलो को मारने वालो को इनाम- मारे गए आतंकी को लाखो रुपये देकर उनका मनोबल बढ़ाना ----देश -द्रोह के बदले रुपया लो की केंद्र सरकार की नीति, जम्मू -कश्मीर की समस्या राजनैतिक नहीं है ये समस्या विशुद्ध इस्लामिक है जहा- जहा मुसलमान अधिक है समस्या पैदा होने वाली ही है भारत में १२ करोण मुसलमान है हम कितना और कब-तक भारत को बाटेगे जिसको भारत में रहना स्वीकार नहीं उन्हें पाकिस्तान चला जाना चाहिए, भारतीय जानता दुबारा बटवारा स्वीकार नहीं करेगी ,यदि कश्मीरी यह सोचते है की सम्पूर्ण विश्व के मुसलमान उनकी मदद करेगे तो उनकी भूल होगी उन्हें ५५ लाख कश्मीरी मुसलमनो सहित भारत में करोणों मुसलमनो के बारे में भी सोचना होगा ! भारत क़ा एक अरब हिन्दू यह सोचने के लिए बाध्य होगा ----- इस नाते कश्मीर समस्या क़ा समाधान धारा ३७० हटाना, वहां के सारे अनुदान, सहायता बंद कर देने से ही समस्या क़ा समाधान होगा ।

राजनैतिक इक्षाशक्ति की आवस्यकता ---!

केवल कश्मीर ही नहीं पूरे भारत के बारे में बिचार करने की आवस्यकता है, लेकिन भारत के बारे में कौन बिचार करेगा क्या सोनिया, राहुल या मनमोहन ---- ? नहीं कदापि नहीं इनको भारत से क्या मतलब -? इनकी मानसिकता तो भारतीय है ही नहीं ये तो चर्च के द्वारा प्रेरित व निर्देशित होते है जो भारत को खंड-खंड करना चाहती है, जहाँ-जहाँ नेहरु जी ने हाथ लगाया वही -वही स्थान आज तक भारत माता को कष्ट दे रहा है,  इस नाते संगठित हिन्दू--------- समर्थ भारत की तयारी करनी होगी ।
                  जहां हुआ बलिदान मुखर्जी, वह कश्मीर हमारा है.।

एक टिप्पणी भेजें

3 टिप्पणियाँ

  1. .

    बहुत ही सारगर्भि लेख है। अनेक जानकारियों से परिपूर्ण। आपने सही कहा है- हमें संगठित होने की जरूरत है । अपने देश को बचाना ही होगा।

    .

    जवाब देंहटाएं
  2. संगठित होना है वह ठिक है। लेकिन संगठन की रणनीति ठीक हो यह जरुरी है....

    जवाब देंहटाएं
  3. हिमवंत जी आपका सुझाव सिर माथे.
    बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं