नेपाल --------- राजा महेंद्र के कर्मो का फल भोग रहा है नेपाल, साथ में भारत भी.

 भारत के साथ आज़ाद हुआ नेपाल

मै काठमांडो मारवाड़ी सेवा समिति के हाल में एक कार्यक्रम में हेतु गया था अमेरिका में नेपाल के राजदूत रहे प्रो.जयराज आचार्य ने अपने भाषण में कहा कि जब भारत आजाद हुआ उसके बाद नेपाल भी आजाद हुआ, मै समझ नहीं सका कार्यक्रम के पश्चात् मैंने उनसे पूछा की हम लोग तो यही जानते है कि नेपाल कभी गुलाम नहीं रहा उन्होंने बिस्तार से बताया की नेपाल १०४ वर्ष तक राणावो यानी प्रकारांतर से ब्रिटिश भारत का  गुलाम था अपने मन से राणा लोग कुछ नहीं कर सकते थे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में सामिल बी.पी. कोइराला अन्य नेपाली जनता यह चाहती थी कि भारत के साथ नेपाल भी राणा यानी ब्रिटिश के चंगुल से मुक्त हो जाय, भारत के आज़ादी के पश्चात् १९५० की सुपरिचित संधि जिसमे राजा, बी.पी कोइराला और नेहरु सामिल हुए उस संधि के अनुसार नेपाल स्वतंत्र देश सार्वभौम सत्ता संपन्न हुआ, राजा त्रिभुँवन ने सत्ता में वापसी की तत्काल प्रधानमंत्री के नाते बी.पी. कोइराला की नियुक्ति हुई लगभग दस वर्षो तक चुनाव नहीं हो सका १९५९ में पहला चुनाव हुआ जिसमे नेपाली कांग्रेस को १०९ सीटो में से ७४ सीटे प्राप्त हुई ।

जब हिमालय के उत्तर चीन को दिया

पूर्ण बहुमत के साथ कोइराला चुने हुए प्रधानमंत्री बने दुर्भाग्य से राजा त्रिभुवन की मृत्यु हो गयी महेंद्र राजा हुए, चीन से राजा की दोस्ती हुई नेपाल राजा और कम्युनिष्ट चीन के बीच एक संधि हुई जिसमे नेपाल के हिमालय के दक्षिण में १६ की.मी. तिगडी नदी तक नेपाल था राजा ने आधा हिमालय सहित 'तिगडी नदी' तक का भू-भाग चीन को दे दिया बदले में चीन ने यह बचन दिया की चीन हमेसा नेपाल के राजशाही को समर्थन करता रहेगा तथा चीन ने भारत से अलग अपनी पहचान के लिए भारतीय संस्कृति यानी हिन्दू संस्कृति से अलग कुछ दिखना चाहिए उसी को नेपाली संस्कृति और धीरे-धीरे भारत बिरोध यानी हिन्दू बिरोध प्रारंभ हो गया, सभी को पता है की जितने मठ-मंदिर है सभी में महंतों की नियुक्ति अयोध्या और मथुरा, काशी से हुआ करती थी सारा नियंत्रण भारतीय तीर्थो से हुआ करता था यह बात राजा को यानी उनके आका चीन को बर्दास्त नहीं हुई जिस प्रकार चीन ने सारे बौद्ध मठो से सोने -चादी के सामानों को निकलवा लिए उसी प्रकार राजा ने नेपाली मंदिरों से सोने -चादी के मूर्तियों- इत्यादि सामग्री को निकाल मंदिरों का नियंत्रण अपने हाथ में ले लिया सारे महंथो को हटा नेपाली नागरिक पुजारी कर्मचारियों की नियुक्ति हुई नेपाल के राष्ट्रीयता के रास्ता बंद हो गया ।

 वामपंथ दरबार द्वारा स्थापित       

राजा के माध्यम से चीन ने माओबादियो का प्रबेश करा दिया सरकारी धन से उनका प्रशिक्षण शुरू किया इतना ही नहीं वे चाहे मनमोहन अधिकारी रहे हो या माधव नेपाल से लेकर प्रचंड और बाबुराम तक सभी का लालन -पालन दरबार से ही हुआ है राजा ने कांग्रेस का बिकल्प कम्युनिष्ट और भारत का बिकल्प चीन को चुना, उसके इशारे पर मखताब -मदरसों की भरमार भारतीय सीमा पर होना शुरू हो गया भारत सीमा पर मुसलमानों को बसाना क्यों की मुसलमान स्वाभाविक रूप से भारत का शत्रु होता है धीरे-धीरे बामपंथी माओबाद के रूप में और मखतब -मदरसे  हिन्दू राजा बिरोध के रूप में प्रकट हो गए जैसे भारत में सेकुलर के नाम पर देशद्रोह जारी है ठीक उसी प्रकार राजा महेंद्र ने जो शिक्षा नीति देश में लागू किया उसी का परिणाम आज नेपाल से राजा समाप्त हो गया इतना ही नहीं भारत बिरोध- हिन्दू बिरोध का रूप धारण कर लेने के कारण ईशाई मिशनरियों ने पुरे देश में अपना जाल फैला लिया आइ.एस.आइ. ने जड़ जमा लिया नेपाल तो खोखला हो ही रहा है साथ में भारत भी, लोकतंत्र ही नेपाल और भारत के हित में है  चीन यह नहीं चाहता कि नेपाल में लोकतंत्र मजबूत हो क्योंकि हिंदुत्व यदि ताकतवर होता है तो लोकतंत्र अपने- आप ही ताकतवर हो जाता है ।

दरबार और माओवादी एक सिक्के के दो पहलू

आज भी नेपाल में राजदरबार के जो भी प्रतिनिधि है वे सभी कभी भी माओबादी का बिरोध नहीं कर सकते राजा और माओबाद एक मुद्दे पर एक बिचार के पोषक रहे है वह बिचार है लोकतंत्र और भारत का बिरोध दोनों तानाशाही के समर्थक है चाहे राजा रहे या माओबादी अगर यह कहा जाय कि माओबादी और राजा एक सिक्के के दो पहलू है तो अतिशयोक्ति नहीं होगी इतनी बात सत्य है कि जिस प्रकार राजा नेपाल में नहीं चल पाया उसी प्रकार माओबादी नेपाल में अधिक दिन तक टिक नहीं सकते बर्तमान प्रधानमंत्री श्री खनाल जिसे प्रचंड का संमर्थन प्राप्त है टिक नहीं सकते क्यों की वह भी हिन्दू धरती है यह धरती तानाशाही यानी माओबादी को बर्दास्त नहीं करेगी इन्हें समाप्त होना ही है माओबादियो के नेता सभी करोण पती ही नही अरब पती हो गए है, जनता को गरीब बनाने का ही काम किया है आर्थिक ढाचा चरमराया हुआ है उसे ठीक करने का कोई उपाय नहीं हो रहा है, श्री खनाल जिस प्रकार की पृष्टि भूमि से प्रधानमंत्री बने है जो समझौते सामने आ रहे है उनके मंत्री मंडल बनाने में ही बाधा है माओबादी ४० प्रतिशत से कम पर तैयार नहीं हो रहे है फिर वे गृहमंत्री माग रहे है, अपनी जनसेना को किसी प्रकार नेपाली सेना में भर्ती कराके सेना पर कब्ज़ा करना और फिर बिना किसी चुनाव के नेपाल पर कब्जे की तौयारी हमें लगता है की नेपाल के रास्ते में रोड़ा ही रोड़ा है वह लोकतंत्र के रास्ते ही ठीक हो सकता है भारत को अपनी भूमिका ठीक से निभाना होगा नहीं तो नेपाल तो जा ही रहा है अराजकता के रास्ते पर भारत भी उससे अछूता नहीं रहेगा यह सब नेपाल नरेश के अदुरदर्शिता का ही परिणाम है ।
       राजा महेंद्र ने भारत बिरोध के नाम पर हिन्दू संस्कृति का बिरोध--!
       चीन को खुश करने के लिए बामपंथियो को प्रबेश ---!
       कांग्रेस के बिकल्प के नाम पर बामपंथियो को बढ़ावा---!
       दरबार का राष्ट्राबाद यानी भारतीय बिरोधी राष्ट्रबाद---!
        दरबार और माओबाद का राष्ट्रबाद यानी भारत बिरोधी राष्ट्रबाद--!
भारतीय संस्कृति का बिरोध यानी हिन्दू संस्कृति यानी नेपाली संस्कृति का स्वाभाविक बिरोध राजा ने अपने पैर में स्वयं ही कुल्हाड़ी मारी जो नेपाल और भारत दोनों को तकलीफ दे रहा है ।