गुजरात ने देश को बहुत बड़े-बड़े महापुरुषों को जन्म दिया जहाँ नरसी मेहता, महात्मा गाधी जैसे को जन्म दिया वही उस भूमि ने दयानंद जैसे धर्म उद्धारक को भी जना टंकारा गाव के ब्रह्मण कुल में 27फरवरी १८२५ में उत्पन्न पिता का नाम कर्षण तिवारी व माता का नाम यशोदा बाई था, बचपन का नाम मूलशंकर सनातनी परंपरा का जमींदार परिवार मेधावी बचपन, बहन की मौत और मूर्ति पूजा में अनास्था का गहरा असर पड़ा एक दिन की घटना महादेव की चढ़ाई हुई लड्डू चूहा के ले जाने से उनके बिचार में बड़ा ही परिवर्तन आया वे सन्यासी हो गए सोने चादी के गहने उनके किस काम का सब दान देते चले गए, बहुत पढ़ते रहने के कारन कोई गुरु नहीं मिलता सभी उनके योग्य नहीं एक संत ने उन्हें बताया की मथुरा में स्वामी बिरजानंद है वे उनके गुरु योग्य है दयानंद जी मथुरा पहुचे बिरजानन्द तो जन्मांध थे पूछा की कौन आया है उन्होंने बताया की यही तो जानने आया हू की मै कौन हू. गुरु को शिष्य जैसा शिष्य और शिष्य को गुरु जैसा गुरु मिला उन्होंने वेदों का अध्ययन किया ,गुरुदाक्षिना का दिन आया वे गुरु को लौंग देना चाहते थे क्यों की बिरजानन्द को लौंग बहुत पसंद थी, बिरजानंद नाराज होकर कहा की तुम मुझे ठगना चाहते हो स्वामी जी के पास कुछ नहीं था उन्होंने अपने पूज्य गुरु से पूछा कि आप आदेश करें बिरजानंद ने उनसे सारा जीवन वेदों के प्रचार का ब्रत लिया, मुझे तुम्हारा जीवन देश के लिए चाहिए, इतना कहना था कि दयानंद ने सारा जीवन गुरु के चरणों में समर्पित कर देश के कार्य में लग गए समाज की स्थित बदतर थी स्वामी जी ने समाज में फैले अंधविश्वास, पाखंड और कुरीति को समाप्त करने हेतु नयी दिसा हेतु आर्यसमाज की स्थापना १८७५ मुंबई में कर देश का स्वाभिमान और हिन्दू समाज से बिरत हुए लोगो को वापसी का सन्देश दिया ।
महर्षि ने गरीब, दलित और पिछडे हुए बंधुओं की शिक्षा अभियान में लग गए जहाँ एक ओर देश की आज़ादी का यानी १८५७ का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम का बिगुल बजाने में अग्रगणी भूमिका निभाई वहीँ वेदों का भाष्य कर हिंदु समाज को नयी दिशा और उत्साह भरने का प्रयास किया उन्होंने बड़े ही विस्वास से ऋगुवेद भाष्य भूमिका में लिखा है यदि मेरा भाष्य पूरा हो जाता है वेद अपौरुषेय है यह प्रमाण है उन्होंने भाष्य पूरा किया और मोक्षमुलर जैसे विद्वानों को चुनौती भी दी सभी गलत भाष्य को नकार शास्त्रार्थ को चुनौती दी और पूरा देश में आर्यसमाज के माध्यम से क्रांतिकारियों की भरमार कर दी स्याम जी कृष्ण वर्मा, भगत सिंह, चन्द्रशेखर आजाद, रामप्रसाद विस्मिल, वीर साबरकर, श्रद्धानंद, लालालाजपत राय जैसे अनगिनत क्रन्तिकारी उनकी प्रेरणा से देश आज़ादी में अपना जीवन होम कर दिया, यदि हमसे कोई पूछे की एक और अकेला देश आज़ादी का श्रेय किसको है तो मै कहुगा कि वे केवल और केवल महर्षि दयानंद सरस्वती, उन्होंने केवल हिन्दू समाज की कुरीतियो पर ही नहीं प्रहार किया बल्कि विश्व में फैलाते अंधकार बाइबिल और कुरान का भी विश्लेषण किया और धर्मान्तरित लोगो का घर वापसी का रास्ता भी खोल दिया, वे भारत को भारत बनाये रखना चाहते थे, इस नाते हिन्दू समाज जिसके नाते भारत है वह भेद-भाव को भुला कर एक हो इसी में भारत और हिन्दू समाज की भलाई है नहीं तो अरब से लेकर वर्मा तक भारत था आज कहा है वह भारत, इसी प्रयोजन को लेकर उन्होंने आर्य सामाज की सथापना की १८५७ के पहले स्वाधीनता संग्राम से ल्रेकर महाप्रयाण १८६३ तक वे अंग्रेजी शासन से छुटकारा दिलाने और आज़ादी के रंणबाकुरो को स्वतंत्रता के लिए प्रेरित करने में लगे रहे, उन्होंने केवल वेदों का भाष्य ही नहीं ''सत्यार्थ प्रकाश'' सहित ४० ग्रंथो को लिखकर देश और समाज को नयी दिशा दी ।
8 टिप्पणियाँ
itni acchi jankari aur disha ke liye dhanywad
जवाब देंहटाएंमहर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा समाज के उत्थान की दिशा में दिये गए महत्वपूर्ण योगदान कभी भी भुलाए नहीं जा सकते ! उनकी कर्मशीलता को शत शत नमन !
जवाब देंहटाएंभारत के निर्माता ही थे स्वामी जी ...
जवाब देंहटाएंap tino ko bahut -bahut dhanyabad.
जवाब देंहटाएंमुर्तिपुजा के बारे मे स्वामी जी के विचार अतिवादी थे. अन्यथा स्वधर्म मे स्वामी जी की गहरी निष्ठा थी.
जवाब देंहटाएंMaharshi jee ke baare me batane ke liye bahut bahut saadhuwaad!
जवाब देंहटाएंस्वामी दयानन्द के आने के पहले लोग ईश्वर को भी नहीं जानते थे . पत्थर की मूर्ति को ही ईश्वर समझ रखा था . कब्रों एवं मजारों पर माथा टेकते थे तथा अनेक प्रकार के ढोंग रच के अपना जीवन गवांते थे .दयानन्द जी ने बताया की ईश्वर हमारा परम पिता परमात्मा है , हम सब उसके पुत्र हैं . ईश्वर दुसरे तीसरे या सातवें आसमान में नहीं अपितु वह तो इस ब्रह्माण्ड के कण कण में व्याप्त है .
जवाब देंहटाएंबहुत सारी शुभ कामनाएं आपको !!
Happy Holi......
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