विकाश पुरुष नरेन्द्र मोदी शांति -प्रतिक मोदी के खिलाफ षण्यंत्र करते सेकुलरिष्ट----.

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          गुजरात की त्रासदी यह है कि मोदी के बिरोधी उन्हें राजनैतिक रूप से हरा नहीं सकते इसलिए वे NGO और मीडिया के एक वर्ग का उपयोग कर अपनी खीझ मिटाने का प्रयास कर रहे है, आज गुजरात का काया- पलट मोदी ने किया वहा सुख, समृद्धि और शांति स्थापित किया, गुजरात देंगे के दस साल हो चुके है ऐसा नहीं था कि यह दंगा पंजाब के दंगे से बड़ा था पंजाब ही नहीं पुरे भारत में कांग्रेसियों ने सिक्खों को दौड़ा-दौड़ा कर मारा था लगभग दस हज़ार सिक्खों को मौत के घाट उतार दिया गया लेकिन उसे  न तो मीडिया न तो कोई NGO ही याद करते, हम सभी को पता है कि गुजरात में कोई दंगा नहीं था वह तो गोधरा- प्रतिक्रिया थी जो होना स्वाभाविक था, यदि गोधरा के पश्चात् गुजरात में हिन्दुओ ने प्रतिक्रिया नहीं किया होता तो पुरे भारत में जो माहौल होता शायद हमें देश बिभाजन की याद आती ये सामाजिक कार्यकर्ता कौन है -? इनका काम क्या है -? ये जहा -जहा भारत के खिलाफ काम होता है वहा -वहा भारत बिरोधियो का साथ देना ही नहीं उनके तरफ से वकालत करना उन्हें सही साबित करना यही मानसिकता इन्हें बामपंथ की ओर ले जाती है कोई यह पता नहीं करता की राजीव गाँधी फौंडेशन, तिश्ता जाबेद, अरुंधती राय और स्वामी अग्निवेश के पास कहा से धन आता है --? इनकी इसमें क्या और क्यों -रुची है --? वास्तव में ये सभी देश बिरोधी गतिबिधियो में लगे हुए है.
         गुजरात दंगे की याद तो ये भारत बिरोधी करते है लेकिन गुजरात का विकाश इन्हें आखो से सुहाता ही नहीं उन्हें गुजरात की शांति अच्छी लगती ही नहीं आज गुजरात विश्व के नक्से पर उभर कर अपना पहला स्थान बनाये हुए है वह भारत का सबसे प्रगति शील प्रान्त ही नहीं तो शांति प्रदेश कहे तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी इस समय गुजरात में शांति है तो उसका श्रेय केवल और केवल मोदी को ही है जिन नदियों में पानी नहीं था उसमे पानी लाने का काम कृषि उत्पादन का काम विदेशी निबेश के प्रति विस्वास पैदा करना मोदी ---- ये सभी काम इन सामाजिक कार्यकर्ताओ को दिखाई नहीं देता, वहाँ की आर्थिक उन्नति में केवल हिन्दू ही नहीं वहा के मुसलमान भी भागीदार है वे वहा सकुन महसूस करते है लेकिन ये देश बिरोधी मीडिया और NGO के लोग वहा के मुसलमानों का  जीना दूभर किये हुए है, इन्हें राजीव गाधी के वह शब्द याद नहीं आता की जब कोई बड़ा पेड़ गिरता है तो कुछ नुकसान होता ही है .
          इन्हें शायद इन दंगो का सिलसिला याद नहीं आता  दर असल १९६७ के दंगे के बाद गुजरात एक दंगा संभाव्य राज्य बनगया, १९६७ के पश्चात् १९७१,-१९७२ और १९७३ में गुजरात में भीषण दंगे हुए, इसके लम्बे अन्तराल के बाद जनवरी १९८२, मार्च १९८४ से जुलाई १९८५, जनवरी १९८६.मार्च १९८६,जनवरी १९८७, अप्रैल १९९०, नवम्बर १९९०,  अक्टोबर १९९०, जनवरी १९९१, मार्च १९९१, अप्रैल १९९१, जनवरी १९९२, जुलाई १९९२, दिसंबर १९९२,और जनवरी १९९३ में दंगे हुए कर्फु हिंसा बलात्कार का शाक्षी बना यह दंगा इन सेकुलरो को याद नहीं आता, ये दंगे हिन्दू-मुस्लिम घृणा का साक्षी पुरे गुजरात में दंगो का नंगा नाच चलता रहा लेकिन २००२ के पश्चात् दंगे शांति हुए अब दंगे नहीं होते कुछ तो है मोदी में उन्होंने जनता का विस्वास जीता है शांति और विकाश दोनों को उन्होंने करके दिखाया है लेकिन जो संस्थाए बिदेशो से संचालित है उन्हें गुजरात की शांति और विकाश बर्दास्त नहीं हो पा रहा है .
          आज देश को मोदी की आवश्यकता है जिससे देश स्वाभिमान से चल सके सिर उठाकर विश्व में अपना विकाश और शांति का परचम फरहा सक पुरे भारत में अमन चैन कायम हो सके गुजरात का अभुतपुर्ब बिकाश पुरे भारत में ह यह प्रयत्न करना होगा ,अब यह महत्व पूर्ण है की दंगो के पश्चात् दस सालो में गुजरात में अमनचैन कायम है विकाश की रह पर अग्रसर है आइये इसका उत्सव मनाये.

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5 टिप्पणियाँ

  1. यही एक रट लगाये हैं कि कैसे मोदी को हटा सकें.

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  2. कुतर्कियों को क्या कहें... उन्हें गुजरात के पिछले दंगे तो छोडो गोधरा भी याद नहीं...

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  3. is sandarbh mejyada jaan kaari nahi hai ---sir kya likhun ----
    parntu vicharniy prastuti hai----
    poonam

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  4. किसी को अजेय होने का अहंकार हो जाए तो समझ लीजिए उस का अंत निकट है।

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