भारतीय संस्कृति जिसे हम हिन्दू संस्कृति के नाम से भी जानते हैं भारत को हम आर्य-भूमि, पुण्य-भूमि, देव-भूमि इस प्रकार तमाम प्रकार के विश्लेषण से युक्त हम इस भारत-माता को मानते है क्यों-? हमारी संस्कृति हजारों-लाखों वर्षों से ऋषि-महर्षियों के तपस्या के पश्चात यह मानवतावादी संस्कृति का निर्माण हुआ जो हमारी नश-नश मे, हमारे खून मे ब्याप्त है चाहते हुए भी हम छोड़ नहीं सकते ! इसकी विशेषता क्या है इस पर हजारों शोध ग्रंथ तैयार किए जा सकते हैं हमने गाय को माता कहा --! हमने गंगा को माता कहा -! हमने तुलसी को माता कहा--! हमने वेद को माता कहा इसका मतलब क्या है-! विवेकानंद ने कहा की जिससे हम सर्वाधिक प्रेम करते हैं और वह भी हमे अत्यधिक प्रेम करती है उसे हमने माता यानी माँ का स्थान दिया, यही हमारी गौरवमयी संस्कृति है जिसे हम किसी भी कीमत पर त्याग नहीं सकते, यही हमारी विशेषता भी है, यदि ताकतवर नहीं हुए, भारत मजबूत नहीं हुआ तो कौन बचाएगा इस वैभवशाली गौरवमयी संस्कृति और परंपरा को-! विश्व से मानवतावादी संस्कृति समाप्त हो जायेगी।
भारतीय संस्कृति और पश्चिम में अंतर
पश्चिमी संस्कृति और भारतीय संस्कृति मे अंतर क्या है-? इसे समझना पड़ेगा पश्चिम का एकेस्वरवाद और भारत का एकेस्वरवाद में अंतर हम जियो और जीने दो में विस्वास रखते हैं वे विश्व की सभी पुरातन संस्कृति को समाप्त करना चाहते हैं वे अपने पंथिक पुस्तक को छोड़ किसी के भी धर्म-ग्रन्थ को स्वीकार नहीं करना चाहते वे अपने पूजा स्थल को छोड़ किसी को मानने को तैयार नहीं उनके अन्दर मानवता, उदारता और सहिषुणता को कोई स्थान नहीं हमारा ही सबकुछ सत्य है इसी बात को लेकर इन पश्चिम के तीनों (इस्लाम, ईसाई, साम्यवादी) विचारों ने सैकड़ों करोङ निरीह लोगो की हत्या और लाखों धार्मिक स्थलों को नष्ट कर डाला, दूसरी तरफ हिन्दू विचार किसी को क्षति नहीं पहुचाता किसी के भी धार्मिक स्थलों को नहीं तोड़ता धर्म के नाम पर किसी की हत्या नहीं, सभी को अपनी-अपनी पूजा करने का सामान अधिकार है वास्तव में ये मौलिक अंतर है भारतीय चिंतन, विचार, सनातन धर्म और पश्चिमी विचार, चिंतन और धर्म में।
हिंदू विरोध फिर भारत विरोधी
आखिर ये सेकुलरिस्ट हिन्दू, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति के शत्रु क्यों बनते जा रहे हैं--? इस विषय पर हमें गहराई से विचार करना होगा, ये समाजवादी कौन हैं वास्तव में यह विचार पश्चिम का है इसका भारतीय संस्कृति, सभ्यता से कोई नाता नहीं, जब डाक्टर लोहिया ने समाजवाद को राष्ट्रवाद की तरफ मोड़ने का प्रयास किया यानी भारतमाता धरतीमाता, राम कृष्ण और शंकर नाम के ग्रन्थ लिखा, रामायण मेला शुरू किया वहीँ समाजवाद समाप्त होने लगा क्योंकि राष्ट्रवाद और समाजवाद में कोई मेल नहीं और धीरे-धीरे समाजवाद जातिवाद और फिर परिवारवाद में परिणित होने लगा, कांग्रेस सहित सभी तथाकथित समाजवादी और साम्यवादी जिनका एक मिलन विन्दु राष्ट्रवाद का विरोध भारतीयता का विरोध धीरे-धीरे यह हिन्दू विरोध और भारत विरोध के रूप में परिणित होना शुरू हो गया है, ये सभी भारत को एक राष्ट्र मानने को तैयार नहीं हैं।
शत्रु को पहचानने की आवश्यकता
आज ये सभी अपने को सेकुलर कहने वाले दल हिन्दू विरोध, भारत विरोध में इकठ्ठा होते दिख रहे हैं, पूरे देश मे दंगों की जो जांच हुई है उसमे जो रिपोर्ट आई है सभी दंगे मुसलमानो की तरफ से शुरू हुए मस्जिद और मदरसे उसके केंद्र मे रहे हैं इसी कारण सरकार किसी भी दंगे की रिपोर्ट प्रकाशित नहीं करती, एक गोधरा के पश्चात् गुजरात दंगों की रट लगाये हुए हैं क्या हिन्दू को केवल मरने का ही अधिकार है-? वह कब-तक प्रतिक्रिया नहीं करेगा-? उसकी भी एक सीमा है मखतब, मदरसे आतंकवाद कि नर्सरी बनकर खड़े हैं इस्लाम के जितने धर्म प्रचारक हैं इन आतंकवादियों को उनका आशीर्वाद प्राप्त है इन आतंकवादियों का रुकने संरक्षण सब मस्जिद और मदरसा ही है कभी भी कहीं भी कोई भी मुस्लिम आतंकवादी किसी भी मुस्लिम के यहाँ इस्लाम के नाम पर संरक्षण पाता है, क्या उसे रोकने कि कोई ब्यवस्था है नहीं-? इन आतंकवादियों के पक्ष में सभी सेकुलर दल क्यों खड़े दिखायी देते हैं -? हिन्दू समाज को इसका जबाब चाहिए क्या अब हिन्दू समाज को दुबारा आज़ादी हेतु संघर्ष करना पड़ेगा ? जिस प्रकार बिधर्मी इस्लाम मतावलम्बी और ईसाई मतवलम्बी हज़ार वर्षों तक हम हिन्दू समाज पर सासन किये, कहीं अब हम इन सेकुलरिस्टों के गुलाम तो नहीं हो गए हैं, जिस प्रकार इस्लामिक काल में भारत का इस्लामी करण, अंग्रेजों के समय ईसाईकरण करने का प्रयास किया गया आज फिर वही संकट भारत को फिर गुलाम बना सेकुलर के नाम पर पुनः भारत का इस्लामी और ईसाईकरण का प्रयास जारी है हमें इस जीवंत शत्रु को पहचानना होगा नहीं तो पुनः क्या हम भारत के एकऔर विभाजन को तैयार हैं----?
2 टिप्पणियाँ
hindu samaj ke naye shatru ka rup leta sekularist
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