जब से नरेंद्र मोदी को भाजपा ने प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित
किया गया है तब से मनमोहन गिरोह परेशान हैं। वे मोदी
के बयान पर सफाई देते हैं और उन्हें गलत रूप में पेश करने का प्रयास कर
रहे हैं। कांग्रेस नेता मोदी के इस बयान पर बौखला गए हैं कि अगर सरदार पटेल
प्रधानमंत्री बनते तो भारत का भविष्य कुछ और ही होता। मोदी को इतिहास का ज्ञान देना चाहते हैं, किंतु उनसे भी अधिक इतिहास जानने जरूरत कांग्रेस नेताओं को है। चूंकि कांग्रेसी नेताओं को सरकार के शीर्ष पायदान पर बचे रहने के
लिए चापलूसी एक पूर्व शर्त है, इसलिए कांग्रेस के नेताओं में इस बयान पर
मोदी की आलोचना करने की होड़ मच गई है। आजादी के बाद से ही नेहरू-गांधी
परिवार महत्वपूर्ण संस्थानों में ऐसे शिक्षाविदों और इतिहासकारों को अहम
पदों पर नियुक्त करता रहा है जो मोतीलाल नेहरू, जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा
गांधी और राजीव गांधी का स्तुति गान करते रहे हैं। इन इतिहासकारों ने
नेहरू-गांधी परिवार की कई कमियों को नजरंदाज किया और उनकी छवि निखारने के
लिए अनेक घटनाओं को बढ़ा-चढ़ा कर पेश किया है। उन्होंने
पं. नेहरू के समकालीन सरदार पटेल के बारे में विद्वेष से भरी गलत बातें
लिखीं। सरदार पटेल का दृष्टिकोण स्पष्ट था और वह जटिल मुद्दों को अधिक
दृढ़ता और बेहतर समझ से सुलझाते थे ।
फर्जी इतिहासकार उपकृत
चूंकि
नेहरू-गांधी परिवार ने केंद्र में 50 सालों तक राज किया है इसलिए उसे इन
फर्जी इतिहासकारों को उपकृत करने का अच्छा-खासा मौका मिला। इन इतिहासकारों
को अकादमियों में तैनात करके, अंतरराष्ट्रीय फेलोशिप दिलाकर और तमाम
पुरस्कारों से विभूषित करके उपकृत किया गया। सबसे पहले अरुण शौरी ने इन चापलूस इतिहसकारों का पर्दाफास किया।
उन्होंने अनेक वामपंथी इतिहासकारों के लेखन के कपटपूर्ण योगदान पर ध्यान
केंद्रित किया। इसके बाद 2008 में प्रो. मक्खन लाल की पुस्तक "सेक्युलर
पॉलिटिक्स कम्युनल एजेंडा" प्रकाशित हुई जिसमें उन्होंने पं. नेहरू, सरदार
पटेल, राजेंद्र प्रसाद और अन्य समकालीन राजनेताओं के बीच के अनेक रहस्यों
को उद्घाटित किया। उदाहरण के लिए यह पुस्तक स्थापित करती है कि नेहरू ने
राजेंद्र प्रसाद से झूठ बोला था कि उन्होंने और सरदार पटेल ने तय किया है
कि राजगोपालाचारी पहले राष्ट्रपति बनने चाहिए। अगली सुबह ही राजेंद्र
प्रसाद और पटेल ने इस झूठ का पर्दाफाश कर दिया। यह पुस्तक गांधी, नेहरू और
पटेल के वार्तालाप का भी विस्तृत विवरण देती है, जिसमें 1946 में कांग्रेस
अध्यक्ष और प्रधानमंत्री पद के दावेदार के चुनाव के बारे में चर्चा हुई थी।
प्रो. लाल ने लिखा है कि 15 में से 12 प्रादेशिक कमेटियों ने सरदार पटेल
को नामित किया। बची हुई तीन कमेटियों ने किसी का भी नामांकन नहीं किया। इस
प्रकार नेहरू को किसी भी प्रदेश कमेटी ने नामित नहीं किया था। इस पर पं.
नेहरू ने गांधीजी से कहा कि अगर सरदार पटेल प्रधानमंत्री बनते हैं तो वह
सरकार में शामिल नहीं होंगे। उन्होंने कहा कि वह नंबर दो या किसी भी अन्य
स्थान पर नहीं रहेंगे। सरदार पटेल को नाम वापस लेने के लिए तैयार करने में
गांधीजी सफल रहे।

आम भारतीय तथ्यों से अवगत नहीं
भारत के लोग हैदराबाद और कश्मीर के बारे में भी तथ्यों से अवगत नहीं
हैं। अगर नेहरू पर छोड़ दिया जाता तो भारत के हाथ से हैदराबाद के साथ-साथ
पूरा कश्मीर निकल जाता। नेहरू-गांधी के वफादार इतिहासकारों ने देश से इन
तथ्यों को 60 साल तक छुपाए रखा। किंतु अरुण शौरी और प्रो. मक्खन लाल की
शुरुवाती प्रेरणा से देश का नया इतिहास लिखा जाने लगा है। जाहिर है, इससे
कांग्रेस परेशान है, क्योंकि उसका भविष्य फर्जी ऐतिहासिक आधारशिला पर ही
टिका हुआ है।
5 टिप्पणियाँ
एक महान नेता जिसने पाँच सौ सियासतों को भारत मिलाया पुरातन भारत की तरफ ले जाने का प्रयास किया उस महान राष्ट्र भक्त की उपेक्षा महान पाप कांग्रेस ने किया है देश उसे कभी माफ नहीं करेगा पूरे देश को इसकी जानकारी होनी चाहिए------!
जवाब देंहटाएंज्यों-ज्यों सरदार पटेल के महान कार्यों की जानकारी जनता को होगी देश खड़ा होता जाएगा और उसका परिणाम गद्दार कांग्रेसी और फर्जी इतिहासकारों को भी भोगना पड़ेगा।
जवाब देंहटाएंBharat ko Bharat banane mein atulniy yogdan
हटाएंनेहरू को कोई फर्क नहीं पड़ा क्योकि वो अपने स्वार्थ मे अंधा था।
जवाब देंहटाएंSahi maene main counres rastar dorohi party thi aur hai
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