वैशाली संत समागम का सन्देश है ---घर वापसी -----!

    
           

 वैशाली के संत समागम का संदेश

वैशाली जिसे बुद्ध की कर्म स्थली के नाम से जाना जाता है उसकी वास्तविकता कुछ और ही है वह वैदिक भूमि रही है त्रेता में जब गुरु विश्वामित्र अपने शिष्य श्रीराम और लक्षमण को लेकर जनकपुर जा रहे थे उस समय बाल्मीकि रामायण में लिखा है कि श्रीराम ने गुरु विश्वामित्र से पूछा की हे ऋषिवर यह जग-मगाता हुआ कौन सा नगर है? विश्वामित्र ने उत्तर दिया हे राम तुम्हारे पूर्बजों का बसाया हुआ नगर है यह वैशाली गढ़ हज़ारों लाखों वर्ष पुराण अपना इतिहास लिए हुए है इन्हीं कुछ कारणों को लेकर यह संत समागम यहाँ किया गया कहते हैं की इस गढ़ के चारो तरफ चार गेट और चार मंदिर थे आज कहाँ गए जिसमे खुदाई से तीन मंदिर प्राप्त हुए हैं जिसमे एक प्रमुख विक्रमादित्य चतुर्मुख महादेव मंदिर शामिल है एक अनुमान के अनुसार पांच हज़ार साल पुराना जिसका उल्लेख कहीं न कहीं महाभारत में है कुछ लोगो का कहना है की त्रेता युग में इस प्रकार की चतुर्मुख शंकर जी को विग्रह पाया जाता था जो आज हमारे सामने है, वास्तव मे भगवान बुद्ध वैदिक मतावलंबी थे उनका जीवन वैदिक था वे अहिंसक थे, जब सम्राट अशोक बौद्ध हुआ तब से जिस बुद्ध धर्म का प्रचार जो हुआ वह भगवान बुद्ध का नहीं था वह अशोक का था इस कारण आज बौद्ध मतावलंबी मांसाहारी हैं गो भक्षक हैं जबकि भगवान बुद्ध अहिंसक। 

न्यास वोर्ड से धर्म की हानी  

 संत समागम का विचार करते हुए यह समझ में आया कि पुरे बिहार के प्रत्येक पंचायत में किसी न किसी बहाने चर्च के लिए जमींन मतांतरण हेतु खरीद ली गयी है, हमारे ही बंधुओ को कुछ पैसों की लालच देकर पादरी -पास्टर बना दिया गया है एक तरफ चर्च की गति -बिधियां दूसरी तरफ मखतब- मदरसों की बाढ़ सेकुलर नेताओं का हिंदुत्व पर खिलाफ प्रहार, क्या हिन्दू समाज इसका मुकाबला कर पायेगा ? इन्हीं सब कारणों को लेकर यह संत सम्मलेन किया गया, बिहार में मठ -मंदिरों की संख्या बहुत है सम्पन्न भी है यहाँ के लोग बहुत धार्मिक हैं लेकिन यहाँ के मठ-और मंदिरों का धार्मिक न्यास बोर्ड बनाकर उनका सरकारी करण के कारण अब उन्ही संतों के साथ नौकर जैसा ब्यवहार किया जाता है।

शंकराचार्य ही आदर्श 

  जिस काम को आदि जगदगुरु शंकराचार्य, स्वामी दयानन्द सरस्वती ने किया जिस कारण स्वामी श्रद्धानंद जी का बलिदान हुआ उसी काम को भारत- भारत बना रहे धर्म जागरण समन्वय बिभाग का रहा है, इन्हीं उद्देश्यों को लेकर संत समागम वैशाली मे 12,13,14 दिसंबर को किया गया आखिर हिन्दू समाज की रक्षा कौन करेगा ! तो ध्यान मे आता है की ऋषि अगस्त से लेकर आज के संतों की ही ज़िम्मेदारी है की वे अपने समाज को बचाएं, क्या कोई सेकुलरिष्ट यह बताएगा की देश बिभाजन के समय जिन मुसलमानों की संख्या भारत मे 3 करोण थी इसायियों की संख्या 50 लाख थी आज इस्लाम मतावलंबियों की संख्या अचानक 20 करोण और इसायियों की 4 करोण कैसे हो गयी--? एक लाख हिन्दू लड़कियां प्रतिवर्ष लव जेहाद के माध्यम से इस्लाम मे दीक्षित की जाती हैं, तो क्या बिना हिन्दू के भारत बचेगा ? आज अफगानिस्तान भारत है ! आज पाकिस्तान भारत है ! आज बांगलादेश भारत है ! उत्तर आयेगा नहीं ! तो भारत बचाने के लिए हिन्दू आवस्यक है यदि घटा तो भारत कटा इस कारण भारत को भारत बनाए रखने की गारंटी हिन्दू ही है  ।

योगी आदित्यनाथ का आवाहन  

  संत समागम मे 2000 से ऊपर संख्या आई बिहार मे यह अभूत पूर्व रहा सारा वाताबरण भगवा मय दिखाई देता था सभी मत-पंथ और संप्रदाय के संत उपस्थित थे बिना किसी भेद-भाव के उत्साह जनक समागम हुआ स्थानीय सांसद श्री रामा सिंह, केन्द्रीय मंत्री श्री राम कृपाल यादव ने भी संत समागम को संबोधित किया बीजेपी के बिहार प्रांत के पूर्ब अध्यक्ष श्री गोपाल नारायण सिंह तीनों दिन रहकर ब्यवस्था देखते रहे तीनों दिन पूज्य परमात्मा नन्द सरस्वती और पूज्य योगी आदित्यनाथ जी ने समरसता हेतु संतों तथा हिन्दू समाज का आवाहन किया संत सभा मे तीन प्रस्ताव पारित किए गए 1- हिन्दू समाज मे कोई छुवा-छूत, भेद-भाव नहीं है ''न हिन्दू पतितो भवेत'' 2- धार्मिक न्यास बोर्ड का अध्यक्ष किसी संत को बनाया जय किसी मठ-मंदिर से कोई टेक्स न लिया जाय मंदिरों की आय केवल हिन्दू समाज के कार्य मे खर्च किया जाय (वैदिक शिक्षा व मंदिरों के विकाश) न की चर्च और हज के लिए, 3- भारत मे पूर्ण ताया धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाया जाय और संत घर वापसी के लिए तैयार हो हिन्दू समाज अपने पचाने की शक्ति बढ़ाए, संत सभा ने केंद्र सरकार से मांग की कि कानून बनाकर घर वापसी का रास्ता साफ करे---! योगी जी ने संतों का आवाहन किया कि पूरे देश मे 13 लाख से अधिक संत हैं देश मे कुल छह लाख 23 हज़ार गाँव है यदि एक गाँव मे दो-दो संत अलख जगाए तो यूरोप से आए हुए पादरी मैदान छोड़ देगे, आज संतों को जगाने की आवस्यकता है जिससे हिन्दू समाज और देश की रक्षा हो सके।

घरवापसी का संदेश  

 आखिर क्यों आवाहन करना पड़ रहा है घर वापसी का ? हम सभी को पता है की वर्तमान समय मे जो मुस्लिम समाज अथवा क्रिश्चियन है उनके पूर्वज हिन्दू थे उन्हे जबर्दस्ती मुसलमान बनाया गया उनकी माँ -बहनों के साथ बलात्कार किया कर गया गोवा जैसे राज्यों मे चर्च ने भी यही किया वे इस बात को भूले नहीं कि उनके मंदिरों को तोड़ा गया उनके भगवान कि मूर्तियों को अपवित्र किया गया अब भारत आज़ाद हो चुका है वे अपनी भूल सुधार हिन्दू बनाना चाहते हैं क्यों की उन्हे पता है की वे किसकी संतान हैं वे अपने नाम के आगे सोलंकी, परमार, चौहान, ठकुराई और गद्दी, घोषी लगाते हैं भारत के अंदर उन्हे पछतावा है आज वे अपने घर आना चाहते हैं देश हित मे सरकार को चाहिए उनकी मदद करे, लेकिन सेकुलरिष्ट (देशद्रोही) इसे बरदास्त नहीं कर पा रहे हैं उनका पेट दर्द कर रहा है वे मुसलमानों को मुसलमान नहीं वोट के रूप मे देख रहे हैं जब वे हिन्दू हो जाएगे तो उनका वोट खत्म हो जाएगा उन्हे यह समझना होगा कि वोट से बड़ा हैं देश ! 

धर्मांतरण पर बहस अवश्यक 

 आज के सौ साल पहले गांधी जी कहा था कि ''ईसाई मिशनरियों द्वारा धर्मांतरण कराना 'दुनिया मे अनावस्यक अशांति फैलाना है'' और अभी साल भर पहले कांग्रेस नेता तत्कालीन केन्द्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कहा था कि ईसाई मिशनरियों को 'लक्षमण रेखा' का ध्यान रख धर्मांतरण कराने वाली प्रबृत्ति छोड़ना चाहिए, यह उन्होने विशपों, पादरियों के सम्मेलन मे कहा था, ''1923 मे महर्षि अरबिन्द ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर कहा था निश्चय ही हिन्दू-मुस्लिम एकता इस आधार पर नहीं बन सकती कि मुसलमान तो हिंदुओं का धर्मांतरण कराते रहे जबकि हिन्दू किसी मुसलमान को धर्मांतरित नहीं करायेंगे'', आज क्या पीड़ित हिन्दू चुप-चाप समाप्त हिन्दू को देखता रहे हिन्दू समाज के साधू-संत आँख मूँद भारत कि दुर्दशा देखते रहे ! यह कैसे संभव है जबकि देश आज़ाद हो चुका है किसी भी हल मे धर्मांतरण के मुद्दे पर हिंदुओं को घेरने की कोशिश घातक प्रवंचना है जिससे सावधान रहना होगा यह उल्टा चोर कोतवाल को डाटें जैसी कहावत चरितार्थ हो रही है, धर्मांतरण पर खुली बहस की जरूरत है इसमे पोप से लेकर तबलीगी मुल्लाओं, इस्लामी किताबों से लेकर हिन्दू महापुरुषों की सारी चिंताओं को पूरी तरह सामने लाना चाहिए ।      
       

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1 टिप्पणियाँ

  1. धर्मांतरण पर बहस होनी ही चाहिए केवल संसद मे ही नहीं बलिक पूरे समाज मे पत्र पत्रिकाओं से लेकर सभा गोष्ठियों सभी जगह हज़ार वर्ष से पीड़ित हिन्दू समाज कब तक बरदस्त करता रहेगा अब जब समय आया तो सेकुलरिष्ट हिजड़ों के समान हिन्दू समाज के सामने खड़े होने का प्रयास कर रहे है।

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